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इंशानियत जिंदा है
ऐसा नहीं है कि हमारे समाज में सिर्फ बुराइयां है, यहां इंशानियत आज भी जिंदा है। शनिवार दोपहर तकरीबन 12 बजे मेरे पास एक कॉल आता है। जिसमें एक 10 साल के मासूम बच्चे की नाजुक हालत के बारे में जिक्र करते हुए राजधानी के व्यस्तम ट्राफिक के बीच बच्चे को एयर एम्बुलेंस तक पहुंचाने के लिए ट्राफिक कंट्रोल की मदद मांगी जाती है। मैं इस विभाग का शुक्रगुजार हूं जिसने तत्परता दिखाई और बच्च्चे को मदद दिलाई। दरअसल ऑफिस निकलते वक्त कार में ही इस घटना की सूचना मुझे मिली और मैंने पहला कॉल रायपुर के ट्राफिक डीएसपी सतीश ठाकुर को लगाया, उन्होंने बिना किसी एक्सक्यूज के तुरंत मदद की पहल की और बच्चे को एयर एंबुलेस तक पहुंचाने का हरसंभव प्रयास किया। विभाग और इस जिंदादिल अफसर की बदौलत बच्चे को बिना ट्राफिक समस्या एयर एम्बुलेंस तक पहुंचाया गया। हालांकि यह मेरे हलचल कॉलम का विषय नहीं था। लेकिन कुछ घंटे बाद मेरे पास काल आता है कि सतीश ठाकुर साहब को धन्यवाद बोल दीजिएगा। तब मैंने कहा कि मैं हलचल लिख रहा हूं और सिर्फ बोलकर उनको धन्यवाद देना कोताही होगी। इसलिए मैं इंशानियत के लिए दो शब्द लिखकर उनको धन्यवाद दूंगा…. भगवान उस मासूम बच्चे की रक्षा करें।
मार्गदर्शक या दर्शक
छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया है। यहां पर मुख्यमंत्री की टीम में नए नेताओं को जगह दी गई है। मंत्री पद की रेस में शामिल सभी पुराने चेहरों को अघोषित रुप से मार्गदर्शक मंडल करार दे दिया गया है। यह बात अलग है कि आज के समय में कोई नया नेता पुराने नेता से मार्गदर्शन लेता ही नहीं। इसलिए संभव है कि यह तमाम नेता आने वाले समय में सिर्फ दर्शक बनकर रह जाएंगे। केन्द्र की भाजपा और राज्य में इसके कई उदाहरण भी मौजूद हैं। दरअसल राज्य भाजपा के तमाम कथित दिग्गज नेताओं को एक झटके में किनारे कर दिया गया है। आखिरी तक मंत्री पद की रेस में शामिल अमर अग्रवाल के नाम पर भी सहमति नहीं बन पाई। फाइनली नए अग्रवाल चेहरे पर मुहर लगा दी गई। राजेश मूणत को भी लाख प्रयासों के बाद सफलता नहीं मिली। अजय चंन्द्राकर ने पहले ही अपने आप को रेस से बाहर कर लिया। धरमलाल कौशिक पर भी पार्टी का ऐतवार नहीं रहा। सत्ता की चाबी कहलाने वाला बस्तर भी मन कचोट के रह गया। विक्रम उसेण्डी, लता उसेण्डी जैसे नेताओं को मंत्रिमंडल के विस्तार में तवज्जो नहीं दी गई। खैर ऐसा साहस भाजपा ही जुटा सकती है। यहां निर्णय कोई भी हो, कैसा भी हो नेताओं को सहर्ष स्वीकार करना पड़ता है। शायद यही कारण है कि दर्द से कराह रहे यह तमाम नेता उफ तक करने की स्थिति में नहीं हैं।
जंगल में दंगल
वाइल्ड लाइफ प्रमुख आईएफएस सुधीर अग्रवाल और हेड ऑफ फारेस्ट व्ही श्रीनिवास राव के बीच चल रहे दंगल में राव सुधीर को पटकनी देते नजर आ रहे हैं। दरअसल सुधीर अग्रवाल इसी माह रिटायर हो रहे हैं। इसके साथ ही सुधीर के द्वारा श्रीनिवास के नियुक्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी लगाई गई है, जिसकी सुनवाई 13 सितंबर को नियत है। कहने का आशय यह है कि सुधीर इसी माह रिटायर हो जाएंगे, ऐसे में सितम्बर में होने वाली सुनवाई का औचित्य क्या है? खैर जंगल का दंगल यहीं खत्म नहीं हुआ है। हेड ऑफ फारेस्ट व्ही. श्रीनिवास राव और विभागीय मंत्री केदार कश्यप के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा। और अब तक यह माना जा रहा था कि मंत्रिमंडल के विस्तार के समय केदार कश्यप से वन विभाग वापस लिया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। केदार से जल संसाधन विभाग वापस लेते हुए उन्हें परिवहन विभाग सौंपा गया है। वन विभाग के मुखिया केदार ही बने रहेंगे। ऐसे में मंत्री और हेड ऑफ फॉरेस्ट के बीच चल रहे अघोषित दंगल में आगे क्या होगा? इसको लेकर उत्सुकता बढ़ गई है। बहरहाल राव किस्मत के धनी हैं, इसी माह सुधीर अग्रवाल और आलोक कटियार के रिटायर होते ही पीसीसीएफ स्तर के अफसरों में फेरबदल होने हैं, और इस बीच मुख्यमंत्री विदेश प्रवास पर हैं। ऐसे में मंत्री केदार कश्यप शायद ही कोई बड़ा निर्णय लेंगे। मतलब जंगल में दंगल आगे भी जारी रहेगा।
हीरो बनने का अवसर
नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने राज्यपाल को पत्र लिखकर एक मंत्री को हटाने की मांग की है। महंत का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 164 (1. क) के तहत मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की संख्या कुल सदस्यों की 15 प्रतिशत होनी चाहिए। दरअसल राज्य में कुल 90 विधायक हैं, और 90 का 15 प्रतिशत 13.50 होता है। लेकिन हाल ही में 3 नए मंत्रियों की शपथ के बाद राज्य में मुख्यमंत्री सहित यह संख्या 14 हो गई है। जिसे नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने असंवैधानिक करार दिया है। हालांकि उपमुख्यमंत्री अरुण साव का तर्क है कि हरियाणा में भी ऐसा है, यह संविधान का उलंघन नहीं है। लेकिन राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के इतर अगर महंत सही या गलत के फैसले का मसला न्यायालय को सौंप देते हैं, तो जरुरी नहीं कि हरियाणा में जैसा हो रहा है वैसा ही अन्य जगह करने की छूट मिल जाए। कुल मिलाकर फैसला जो भी हो, महंत को राजनीतिक हीरो बनने का एक बड़ा अवसर मिल गया है।
रमन के खिलाफ साजिश तो नहीं
डॉ. रमन सिंह राज्य ही नहीं बल्कि भाजपा के एक बड़े चेहरा हैं। वह पंद्रह साल तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का दायित्व भी उन्होंने सम्भाला, अटल बिहारी बाजपेयी के सरकार में वह मंत्री रहे। राज्य बनने के बाद उन्होंने मंत्री पद को तवज्जों न देते हुए छत्तीसगढ़ भाजपा का अध्यक्ष बनना पसंद किया। इतना ही नहीं उस दौरान अध्यक्ष होने के नाते राज्य में भाजपा को सत्ता में लाने का श्रेय भी कहीं न कहीं रमन को ही जाता है। वर्तमान में डॉ. रमन सिंह छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष हैं। इस दायित्व का भी रमन सहर्ष और बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। लेकिन डॉ. रमन के पीछे आखिर कौन बार-बार साजिश रच रहा है? आखिर उन्हें राज्य भाजपा से कौन बाहर करना चाहता है? यह सवाल इन दिनों आम जनता के बीच घूम रहा है। दरअसल एक बार फिर रमन को लेकर अफवाह उड़ रही है, या उड़ाई जा रही है कि वह महाराष्ट्र के राज्यपाल बनाए जा सकते हैं। लेकिन वास्तव में क्या रमन सिंह राज्यपाल बनने के इच्छुक हैं? शायद नहीं। वह राज्य की राजनीति में अभी भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। विधानसभा में संसदीय कार्यों का बखूबी निर्वहन करते नजर आते हैं, और पार्टी में इस समय जिस तरह से नए नेताओं को आगे किया जा रहा है, ऐसे में शायद ही रमन को राज्य से बाहर करने पर विचार किया जाए। इसलिए यह माना जा रहा है कि रमन के लिए यह अफवाह ही नहीं बल्कि राजनीतिक साजिश का हिस्सा भी हो सकता है।
भनक तक नहीं
राज्य में मत्रिमंडल के विस्तार के साथ ही मंत्रियों के विभाग में भी फेरबदल किया गया है। पहली बार ऐसा हुआ है कि मंत्रियों के विभाग में परिवर्तन करने के बाद उन्हें खबर लगी। कहने का आशय यह है कि सरकार और पार्टी के बड़े नेता क्या निर्णय लेने जा रहे हैं, यह राज्य के किसी भी नेता या मंत्री को खबर नहीं थी। इसकी खबर सिर्फ मुख्यमंत्री या पार्टी के शीर्ष नेताओं को ही थी। मंत्री केदार कश्यप से जल संसाधन विभाग वापस लेते हुए उन्हें परिवहन विभाग की जिम्मेदारी दी गई है। वहीं डिप्टी सीएम विजय शर्मा से तकनीकि शिक्षा वापस लिया गया है। उपमुख्यमंत्री अरुण साव से विधि विभाग वापस लेते हुए उन्हें खेल एवं युवा कल्याण विभाग दिया गया है। मंत्री रामविचार नेताम के विभाग में भी आंशिक परिवर्तन किया गया है। मंत्री लखनलाल देवांगन को आबकारी विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। मंत्री ओपी चौधरी और श्याम बिहारी जायसवाल को छोड़ दें तो सभी मंत्रियों के विभाग में कुछ न कुछ परिवर्तन किया गया है। लेकिन किसी भी नेता या अफसर को भनक तक नहीं लगी।
प्लान ‘बी’
दुर्ग शहर से विधायक गजेन्द्र यादव का मंत्री बनना लगभग तय था। पूरे प्रदेश में इस समाज से पार्टी के अंदर कोई प्रतिद्वंदी भी नहीं है। गुरु खुशबंत साहेब का मंत्री बनना भी हैरान करने वाला नहीं है। लेकिन सबसे ज्यादा हैरान करने वाला फैसला 94 वोटों से जीतकर विधायक बनने वाले राजेश अग्रवाल का मंत्री बनना है। दरअसल सरगुजा संभाग से स्वयं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय आते हैं। इसी संभाग से मंत्री रामविचार नेताम, श्याम बिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े भी आती हैं। अब मुख्यमंत्री सहित इस क्षेत्र से पांच नेता हो गये हैं। जाहिर सी बात है भाजपा एक चिंतन करने वाली पार्टी है, वह हमेशा आगे की सोचती है। सरगुजा में पहले से ही ज्यादा मंत्री हैं, उसके बाद भी राजेश अग्रवाल को मंत्री क्यों बनाया गया? इस पर सवाल उठना लाजमी है। दरअसल कहा जा रहा है कि इसके लिए भाजपा ने पहले ही प्लान ‘बी’ तैयार कर लिया है। भविष्य में यदि विवाद बढ़ा तो इस संभाग से किसी एक मंत्री को ड्राप किया जा सकता है। और जिस क्षेत्र में राजनीतिक नुकसान की संभावना होगी वहां से नए मंत्री को शपथ दिलायी जा सकती। फिलहाल अभी तो पूरे राज्य में सरगुजा संभाग की बल्ले-बल्ले है।
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