thethinkmedia.com
कांग्रेस भी गैर ब्राह्मण उम्मीदवार पर ही विचार करेगी?
रायपुर दक्षिण का उप चुनाव कई मायनों में अहम हो गया है। दरअसल इस क्षेत्र में तकरीबन 35 से 40 हजार ब्राह्मण वोटर हैं। सम्भत: इसीलिए ब्राह्मण समाज के लोग भाजपा कार्यालय और कांग्रेस कार्यालय अपने समाज से उम्मीदवार को टिकट देने की मांग करने गए थे। कहते हैं कि भाजपा ने तो, ब्राह्मण समाज को परशुराम भगवान का वंशज बताकर प्रणाम कर लिया, लेकिन कांग्रेस में बात बन गई शायद इसीलिए अकाश शर्मा को दक्षिण उप चुनाव में कैंडीडेट घोषित कर दिया गया। अब आकाश और कांग्रेस को इस समाज से काफी उम्मीदें हैं। हालांकि अब तक इस क्षेत्र के ब्राह्मण वोटर बृजमोहन के साथ खड़े नजर आते रहे हैं, लेकिन इस बार खुद इस समाज के लोग पार्टी दफ्तर जाकर टिकट देने की मांग की थी, ऐसे में आगे क्या होगा फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। रायपुर दक्षिण में पिछले 40 साल से बृजमोहन अग्रवाल बतौर उम्मीदवार और विधायक रहे, लेकिन इस बार विधायक प्रत्याशी के रुप में सुनील सोनी को मैदान में उतारा गया है। यह बात अलग है कि बृजमोहन अपनी कला से जनता तक यह मैसेज देने में सफल हो गए हैं कि चुनाव सुनील नहीं बल्कि वह खुद लड़ रहे हैं। और कांग्रेस यह बताने में कही न कहीं चूक गई है कि कैंडीडेट बृजमोहन अग्रवाल नहीं बल्कि सुनील सोनी हैं। कुल मिलाकर यदि सुनील और बृजमोहन की जीत होती है तो सम्भवत: कांग्रेस भी अब इस समाज से दूरी बनाना पसंद करेगी।
राज्य औषधि पादप बोर्ड का क्या?
छत्तीसगढ़ राज्य वन संपदा से घिरा हुआ क्षेत्र है, यहां के जंगलों में अनेकों प्रकार के पौधे पाये जाते हैं। वन औषधि की दृष्टि से छत्तीसगढ़ देश का सबसे महत्वपूर्ण राज्य है। लेकिन यह बोर्ड दम तोड़ते दिख रहा है। राज्य के कितने किसान औषधि का उत्पादन कर रहे हैं ? या खेती की जा रही है? यह कहीं दिखाई नहीं देता। बोर्ड का काम सिर्फ दफ्तर तक सीमित होकर रह गया है, जबकि छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बाहुल्य राज्य में इसकी महती उपयोगिता हो सकती है। नेशनल मेडिशनल प्लांट बोर्ड के द्वारा अनेको योजनाएं संचालित की जा रही हैं। केन्द्र सरकार राज्यों को इसके लिए भरपूर वित्तीय सहायता देने को तैयार है, सम्भवत: दिया भी जा रहा है। लेकिन इसका लाभ राज्य की जनता को दूर-दूर तक नहीं मिल रहा है। दरअसल पूर्व की कांग्रेेस सरकार ने राज्य औषधि पादप बोर्ड के सीइओ के पद पर एक रिटायर्ड आईएफएस जेएसीएस राव की तैनाती की थी, जो सरकार बदलने के बाद भी कुर्सी में विराजमान हैं। पिछले पांच साल में इस बोर्ड में क्या काम हुए? कितने प्रोजैक्ट से यहां के आदिवासी-वनवासी लाभांवित हुए? इसको लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं।
सीएम ने जनसंपर्क विभाग की खुले मन से की प्रशंसा
राज्योत्सव की दूसरी संध्या पर छत्तीसगढ़ी रंग में डूबने से मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय खुद को रोक नहीं पाये। यहीं नहीं मुख्यमंत्री साय मांदर की थाप पर थिरकते नजर आये। मुख्यमंत्री ने जनसंपर्क विभाग की प्रदर्शनी की जमकर सराहना की। दरअसल प्रदर्शनी में श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण सुनकर विष्णुदेव साय विभाग की प्रसंशा करने से खुद को रोक नहीं पाये। हालांकि राज्योत्सव के कुछ दिन पहले विभाग में नए कमिश्नर की पदस्थापना की गई थी, लेकिन इस बीच जनसंपर्क विभाग के सचिव का दायित्व संभाल रहे मुख्यमंत्री के सचिव पी. दयानंद लगातार विभाग की बैठकें लेते रहे, राज्योत्सव की तैयारी में वह खुद डटे रहे। राज्योत्सव के ठीक कुछ दिन पहले ही जनसंपर्क विभाग के नए कमिश्नर डॉ. रवि मित्तल ने पदभार ग्रहण कर दायित्व संभाला था। निश्चित तौर पर डॉ. मित्तल के लिए इस तरह का यह पहला आयोजन रहा, जहां राज्य स्तरीय आयोजन में मुख्यमंत्री ने उनके विभाग की खुले मन से प्रशंसा की गई।
ई-कुबेर या ई-सुदामा?
राज्य में वित्तीय पारर्शिता के लिए ई-कुबेर की व्यवस्था लागू की गई। लेकिन यह ई-कुबेर वन विभाग के लिए ई-सुदामा साबित हो रहा है। दरअसल इस वित्तीय वर्ष के तकरीबन 8 माह बीतने को हैं, लेकिन वन विभाग लाख प्रयत्नों के बाद अब तक बजट का औसत 11 प्रतिशत राशि ही खर्च कर पाया है। इसके लिए विभाग में सिर्फ बैठकों का दौर चल रहा है, लेकिन कोई स्थाई समाधान नहीं मिल पाया है। जिसके कारण फील्ड के काम लगभग ठप्प पड़े हुए हैं, वनांचल में मदजूरों के भुगतान अटके पड़े हुए हैं। इस वित्तीय वर्ष के लिए 4 माह और शेष बचे हैं ऐसे में बजट राशि खर्च करना विभाग के लिए सरदर्द बन गया है। एक ओर जहां अन्य विभाग में बजट की कमी की बात सामने आती है, वहीं इस विभाग में राशि खर्च न होने से विभाग के अफसर परेशान और हलाकान हैं। हालातों को देखकर अब विभाग के अन्दर ई-कुबेर को ई-सुदामा कहा जाने लगा है।
जबड़ा या गिरेबान
वैशाली नगर से भाजपा विधायक रिकेस सेन ने भरी भीड़ में एक आदमी का जबड़ा पकड़ लिया। अब इसे जबड़ा कहा जाए या गिरेबान मतलब एक ही है। आमतैार पर इस समाज के लोगों की ऐसी तस्वीर देखने को नहीं मिलती, सम्भवत: यह तस्वीर भी छत्तीसगढ़ की राजनीति की विरली तस्वीर है। सेन समाज के लोग अमूमन सहज और सरल स्वभाव के होते हैं, लेकिन रिकेस को इतना गुस्सा क्यों आया? यह तो भाजपा विधायक रिकेस सेन ही जानेंगे। वहीं भाजपा भी अब तक ऐसी राजनीति से परहेज करती रही है, लेकिन रिकेस को लेकर भाजपा खामोश क्यो हैं? कहतें हैं कि नामकरण को लेकर विरोध जताते हुए बड़ी संख्या में लोग विधायक रिकेस सेन के कार्यालय वैशाली नगर पहुंचे थे। लेकिन गुस्से से तमतमाये रिकेस सेन से रहा नहीं गया वह एक व्यक्ति का सार्वजनिक रुप से जबड़ा पकड़ लिए। रिकेस सेन के इस वीडियो के बाद विपक्ष को बैठे- बिठाये मुद्दा मिल गया। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने इस वीडियो को सोसल मीडिया में पोष्ट करते हुए लिखा कि जो व्यक्ति गर्दन पकड़े हुए धमका रहे हैं वो वैशाली नगर के भाजपा विधायक हैं, और जिनसे बात हो रही है वो छत्तीसगढ़ की जनता है। बहरहाल जनता द्वारा चुने गए एक जनप्रतिनिधि का जनता जनार्दन के लिए ऐसा चरित्र कितना वाजिब है? इस पर भाजपा नेताओं को मंथन और चिंतन करने की जरुरत है।
योगी जी पधारो हमारे राज, सुस्वागतम……
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाजपा के फायरब्रांड नेता हैं। योगी राज में उत्तर प्रदेश की पुलिस लगातार एनकांउटर को लेकर सुर्खियां बटोरती रही है। अब छत्तीसगढ़ पुलिस का भी नाम एनकाउंटर से जुड़ गया है। कानून व्यवस्था के वर्तमान हालातों को देखते हुए यहां की पुलिस के सपनों में योगी राज की गूंज सुनाई देने लगी है। सम्भवत: लगातार कानून व्यवस्था पर उठ रहे सवाल से निजात पाने पुलिस महकमें द्वारा यह तरकीब निकाली गई है। आमतौर पर इस शांत प्रदेश में एनकांटर जैसी स्थिति पिछले कई वर्षों में निर्मित नहीं हुई। इसके पहले दिग्विजय सरकार के दौरान सदर बजार में हुए एनकाउंटर की खूब वाहवाही मिली थी। तब दहशतगर्द ने प्रदेश में दहशत का महौल बना रखा था। उसके बाद रमन सरकार के 15 साल और भूपेश सरकार के कार्यकाल में भी एनकाउंटर की खबर दूर-दूर तक सुनाई नहीं दी। लेकिन अचानक दुर्ग में हुए एनकाउंटर के बाद लोग कह रहे हैं, योगी जी पधारो हमारे राज, सुस्वागतम…..
दीपांशु काबरा और आनंद छाबड़ा के ‘मेनस्ट्रीम’ में आने के संकेत ?
विष्णुदेव सरकार ने 9 महीने बाद एडीजी स्तर के अफसर आईपीएस दीपांशु काबरा की पोस्टिंग कर दी है। इसके पहले भूपेश सरकार में आईपीएस दीपांशु काबरा परिवहन के साथ-साथ जनसंपर्क विभाग के आयुक्त की भूमिका निभा चुके हैं। वहीं पूर्व सरकार में आनंद छाबड़ा राज्य के खुफिया चीफ का दायित्व निभा रहे थे। छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन होने के बाद भाजपा की राडार में रहे आईपीएस दीपांशु काबरा को 9 महीनों तक मुख्यालय में बिना किसी जवाबदारी के बैठाया गया था। छोटी जिम्मेदारी ही सही, लेकिन राज्य सरकार ने दीपांशु काबरा को नई जिम्मेदारी सौंप दी है। ज्ञात हो पूर्व की रमन सरकार में 1997 बैच के आईपीएस अफसर दीपांशु काबरा राजधानी रायपुर समेत कई जिलों के पुलिस अधीक्षक और आईजी की भूमिका निभा चुके हैं। व्यक्तिगत तौर पर काबरा की राजनीतिक और सामाजिक पकड़ मजबूत है। सम्भवत: इसीलिए विष्णु सरकार ने ज्यादा दिन मुख्यालय में बिठाने से बेहतर इन अफसरों से काम लेना उचित समझा। दीपांशु काबरा को अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक एवं प्रशिक्षण की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वहीं 2001 बैच के आईपीएस अफसर आनंद छाबड़ा को पुलिस महानिरीक्षक प्रशिक्षण की जवाबदारी दी गई है। कुल मिलाकर इस पोस्टिंग के मायने क्या है? क्या यह पोस्टिंग आने वाले दिनों में इन दोनों अफसरों के ‘मेनस्ट्रीम’ में आने के संकेत हैं।
editor.pioneerraipur@gmail.com