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संघ सत्ता से दूर, अफवाह से बचिए
जो लोग संघ को जानते हैं, समझते हैं, उन्हें यह बात हजम नहीं हो रही कि सब उपर से हो रहा, सब संघ से तय हो रहा। यह बात महज एक अफवाह नजर आती है, राजनेता पहले भी अपनी मर्जी की करते रहे हैं, और शायद अब भी कर रहे हैं। संघ तो अपने काम, अपने तरीकों नियमों और सिद्धान्तों पर ही करता है। छत्तीसगढ़ में भी इसके अनेकों उदाहरण हैं। संघ आज भी प्रत्यक्ष रुप से सत्ता से दूर है, इसीलिए संघ में शक्ति है। क्या मुख्यमंत्री सचिवालय में आईएएस पी. दयानंद की नियुक्ति संघ के सिफारिस में हुई है? शायद नहीं। आईपीएस राहुल भगत को सीएम सचिवालय में सचिव बनाने की सिफारिस संघ से हुई है क्या? शायद यह भी नहीं। क्योंकि आईपीएस राहुल भगत तो विष्णुदेव साय के केन्द्रीय मंत्री रहते हुए भी साथ रहे। दयानन्द पांडे भी पहले से ही साय के करीबी बताये जाते रहे हैं। तो भला पहले से करीबी रहे अफसरों के लिए संघ क्यों सिफारिस करेगा। ऐसे अनेकों अफसरों की पोष्टिंग में संघ की सिफारिस की बात सामने आती रहती है, यह महज एक अफवाह के सिवाए कुछ नहीं है। अब यही हाल मंत्रियों का है, कुछ मंत्री तो अपने पूर्व में रहे ओएसडी से अप्रत्यक्ष रुप से काम ले रहे हैं। इसलिए अफवाह से बचिए।
अजय की चिंता वाजिब
पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर इन दिनों कांग्रेस विधायक देवेन्द्र यादव को लेकर काफी चिंतित हैं, उनकी चिंता वाजिब भी है। वह लागातार विधानसभा में कह रहे कि देवेन्द्र यादव इतनी लम्बी छुट्टी में हैं, हम सबको उनकी चिंता हो रही है, पूरा सदन परेशान है। चंद्राकर का कहना है कि वह किन कारणों से अवकाश में हैं इसका खुलासा होना चाहिए। चन्द्राकर ने यह भी कहा कि देवेन्द्र यादव विधानसभा की पूरी कार्यवाही में अनुपस्थित हैं? उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह से देवेन्द्र की वास्तुस्थिति जानने का निवेदन किया। यहीं नहीं अजय चंद्राकर ने यह भी कहा कि उनके खिलाफ एक राष्ट्रीय एजेन्सी जांच कर रही है। अदालत ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। ऐसे में सदन उन्हें जाने-अनजाने में संरक्षण तो नहीं दे रहा? चंन्द्राकर लगातार इस विषय पर जोर दे रहे हैं कि देवेन्द्र सदन में उपस्थित हों और वास्तविकता जनता के सामने आये। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह इस मामले में फिलहाल कोई निर्णय लेने से परहेज करते दिख रहे हैं।
चौधरी के दोस्त और 18 करोड़
वित्त मंत्री ओपी चौधरी इन दिनों काफी सुर्खियां बटोर रहे हैं। वह आईएएस से लेकर मंत्री के रुप में भी लगातार चर्चे में हैं। अब एक बार फिर ओपी चौधरी चर्चा का विषय बने हुए हैं। लेकिन अब ओपी से जादा ओपी के दोस्तों की चर्चा हो रही है। दरअसल में 2018 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद ओपी चौधरी ने अपने कुछ दोस्तों से 2 करोड़ रुपये उधार लिए। यह बात हम नहीं कह रहे, ओपी चौधरी ने इस बात का खुलासा स्वयं किया है। फिर इस राशि को उन्होंने शेयर मार्केट में लगाया। 2 करोड़ रुपये 4 साल के निवेश में नेटवर्थ बढ़कर 18 करोड़ रुपये हो गये। 2040 तक शेयर बाजार के नेटवर्थ एक हजार करोड़ होने का जिक्र करते हुए, ओपी ने कहा कि शेयर बजार से कमाए हुए पैसों का वह इस्तमाल नहीं करते हैं, और आगे भी नहीं करेंगे। इस आय से ओपी ने जनसेवा के लिए ट्रस्ट बनाया है। ओपी अब ट्रस्ट के माध्यम से भी जनसेवा करेंगे। ओपी चौधरी के पैसा कमाने की इस तरकीब को सुनकर लोग कह रहे हैं कि काश हमारे पास भी ऐसे दोस्त होते जो 2 करोड़ रुपये उधार दे देते। फिलहाल चौधरी ने दोस्तों से ली हुई उधारी वापस कर दी है।
खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़े बारह आने
मंत्री केदार कश्यप को लेकर इन दिनों यह कहावत एकदम फिट बैठ रही है, ‘खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़े बारह आने। दरअसल में कहने का आशय यह है कि केदार कश्यप इन दिनों पुरानी सरकार के कारनामों से काफी परेशान हैं। पुरानी सरकार में वन विभाग के शीर्ष अधिकारी इतने लापरवाह हो गए थे कि उनके एक-एक कारनामे आज भी उजागर हो रहे हैं। इस बीच विधानसभा में केदार कश्यप की फजीहत हो रही है। वन्यप्राणियों के मामले में मंत्री केदार कश्यप लगातार घिरते नजर आते हैं। जबकि जितने भी मामले हैं, उनमे से जादातर पुरानी सरकार के दौरान घटित हुए। मामला यहां तक पहुंच गया कि बाघ के मौत पर नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ पर काईवाई करने की मांग कर डाली। राज्य में कांग्रेस सरकार के दौरान बेजुबान जानवरों की लगातार मौत होते रही। लेकिन विभाग के जिम्मेदार अफसर इस पर पर्दा डालते रहे। कहते हैं कि पुरानी सरकार में गुमराह करने की आदद आज भी उच्च अधिकारियों को लगी हुई है। आरोप यह भी है कि वन विभााग द्वारा मंत्री केदार कश्यप को बाघ की मौत के मामले में गलत जानकारी दी गई है। इस मामले में ज्यूडिसियल जांच की बात कही गई है, जबकि ऐसी कोई जांच विभाग द्वारा नहीं कराई जा रही है।
कोरबा से जुदेव और रायपुर से अमित के चर्चे
पिछले अंक में हमने लिखा था कि भाजपा राज्यसभा सांसद सरोज पांडे को किनारे करने जा रही है, वह अब आपके सामने है। राज्यसभा के लिए भाजपा ने नए प्रत्याशी देवेन्द्र प्रताप सिंह को मैदान में उतार दिया है। इसके साथ ही लोकसभा की तैयारी में भी भाजपा जुट गई है। चर्चा है कि पूराने सांसदों में से सिर्फ एक को ही रिपीट किया जाएगा। बाकी 10 की टिकट खतरे में है। रायपुर ग्रामीण से विधानसभा की टिकट के दावेदार रहे पूर्व भायुमो अध्यक्ष अमित साहू को रायपुर से सांसद प्रत्याशी बनाने की चर्चा है, कहते हैं कि अमित आंतरिक रुप से तैयारी में भी जुट गए हैं। राजधानी में अमित साहू की जगह-जगह वाल पेंटिग भी देखी जा सकती है। वहीं राजा रणविजय सिंह जुदेव को भी राज्यसभा में मौका नहीं मिला। जूदेव परिवार का कोरबा समेत अन्य क्षेत्रों में काफी प्रभाव है, रणविजय राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा महंत परिवार के सामने कोरबा से हिन्दुवादी छवि के नेता रणविजय सिंह जुदेव को मैदान में उतार सकती है।
मूणत के तेवर
बजट सत्र के दौरान पूर्व मंत्री राजेश मूणत के तेवर देखते ही बनता है। मूणत पूर्व की कांग्रेस सरकार को घेरने में तनिक भी कोताही नहीं बरतते। मामला राजीव युवा मितान क्लब का था। यह मुद्दा किसी और ने उठाया, लेकिन मूणत ने झट से इसे लपक लिया और मौका देख मितान क्लब को भंग करने की मांग कर डाली। अध्यक्ष के अपील के बाद भी मूणत लगातार युवा मितान क्लब को भंग करने की मांग पर अड़े रहे। मूणत के तेवर देख खेल एवं युवा कल्याण मंत्री टंकराम वर्मा को इसे भंग करने का ऐलान करना पड़ा। कहते हैं कि भूपेश सरकार ने इस क्लब में जादातर कांग्रेसियों को आगे किया था। अब यह क्लब तो भंग हो जाएगा, जांच भी होगी। वहीं यदि इसे आगे कंटीन्यू करने पर पर विचार किया गया तो जाहिर सी बात है कि अब कांग्रसी नहीं भाजपा कार्यकर्ताओं को मौका मिलेगा।
विजय नए, लेकिन नयापन नहीं
उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा भले ही पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे, लेकिन उनका परफारमेन्स किसी पुराने मंत्री से कम नहीं है। वह बेहद ही सुलझे तरीके से सत्ता पक्ष और विपक्षी सदस्यों को जबाब देते हैं, उनके जवाब को सुनकर नयापन नहीं लगता। जबाब को देख-सुनकर यह कहा जा सकता है कि वह अजय चंद्राकर की भांति विषयों का अध्ययन करते हैं। भाजपा में अजय चन्द्राकर, बृजमोहन अग्रवाल के आलवा कुछ ही ऐसे मंत्री हुआ करते थे, जो नियमों को ध्यान में रखकर अपनी बात पर जोर देते रहे हैं। बृजमोहन अग्रवाल और अजय को संसदीय मामलों का जानकार माना जाता है। अब विजय शर्मा की कार्यशैली को देख यह कहा जा सकता है कि वह इसी क्रम में आगे बढ़ रहे हैं।
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