हलचल…तिहार में सुशासन की झलक

thethinkmedia@raipur

तिहार में सुशासन की झलक

विष्णु सरकार जनता की समस्याओं के त्वरित निराकरण के लिए सुशासन तिहार मना रही है। आम जनता को सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिले इसलिए तपती गर्मी में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय पेड़ की छाँव में चौपाल लगा रहे हैं। हालांकि यह कोई नया अभियान नहीं है, इसके पहले भी मुख्यमंत्रियों ने ऐसे अभियान चलाये थे। जिसमें प्रमुख रुप से ग्राम संपर्क अभियान, ग्राम स्वराज अभियान, लोक स्वराज अभियान और भेंट मुलाकात कार्यक्रम शामिल है। इन तमाम अभियानों के माध्यम से मुख्यमंत्री जनता के बीच में जाते रहे हैं और उनकी समस्याओं का निराकरण करते रहे हैं। लेकिन विष्णु सरकार एक मात्र ऐसी सरकार है जो सरकारी कामकाज और जनता की समस्याओं के त्वरित निराकरण के लिए तिहार मना रही है। दरअसल तिहार का सीधा संबंध उत्सव से होता है। वास्तव में मुख्यमंत्री विष्णुदेव की सहजता के कारण यह जन अभियान किसी उत्सव से कम नहीं है। बड़े ही सहज स्वभाव से सीएम आम जनता के बीच जा रहे हैं, और आम जनता भी सीएम से सहज रुप से संवाद कर रही है। और त्वरित समाधान हो रहा है। यह उत्सव नहीं तो क्या है? तिहार नहीं तो क्या है। विष्णु सरकार का यह अभियान अंतिम पड़ाव की ओर चल पड़ा है, लेकिन राज्य के किसी कोने से सीएम के बर्ताव और निर्णय को लेकर कोई विरोधाभाष देखने, सुनने और पढऩे को नहीं मिला। जो पूर्व की भूपेश सरकार में जगह-जगह देखने को मिलता रहा।

कटारा ने किया खटारा

राज्य में सुशासन की सरकार है। शांत स्वभाव के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय अफसरों को दो टूक कह चुके हैं कि सरकारी कार्यों में गड़बड़ी बरदास्त नहीं की जाएगी। उसके बाद भी बलरामपुर जिले में रेत माफियाओं को किसका संरक्षण है? यहां माफियाओं का आतंक इस कदर बढ़ चुका है कि वह पुलिस को भी बख्सने के मूड में नहीं हैं। तो भला आम जनता की कौन सुनेगा? खैर अवैध रेत खनन रोकने की पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की है। लेकिन स्थानीय प्रशासन यहां माफियाओं के सामने घुटने टेक चुका है। वरना रेत माफियाओं के अंदर इतनी हिम्मत नहीं आती कि वह एक पुलिस जवान की टैक्टर से कुचलकर हत्या कर दें। इस घटना के बाद से जिला प्रशासन सवालों के घेरे में है। हालांकि इसके पहले भी एक सेन्ट्रल जांच एजेन्सी ने जिले के कर्ता-धर्ता को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अब अवैध रेत खनन और हत्या ने पूरे सिस्टम को दागदार बनाने का काम किया है। हाईकोर्ट ने भी मामले को लेकर जवाब तलब किया हैै। आखिर स्थानीय प्रशासन को किसका दबाव है? रेत माफियाओं के सर पर किसका हाथ है? ऐसे तमाम सवाल इन दिनों जनता के बीच घूम रहे हैं। और यहां जगह-जगह यह बात सुनी जा सकती है कि कटारा ने बलरामपुर को खटारा कर दिया।

किसकी चूक?

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और जवानों के विशेष प्रयास से राज्य नक्सल मुक्त होने की कगार पर हैं। लेकिन नक्सल मामले में हमारे नेताओं को ब्यानबाजी की इतनी जल्दबाजी क्यों हैं? जल्दबाजी के कारण पहली बार गृहमंत्री विजय शर्मा और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के बयानों में विरोधाभाष देखने को मिला। जिसे आज विपक्षी दल मुददा बना रहा है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल इसको लेकर जगह-जगह प्रेस कांफ्रेंस कर रहे हैं। मुख्यमंत्री और गृह मंत्री द्वारा नक्सल मामले पर आखिर अलग-अलग ब्यान क्यों दिए गए? आखिर मुख्यमंत्री के बयान का गृहमंत्री ने खंडन क्यों किया? ऐसे तमाम सवाल इन दिनों आम जनता के बीच में घूम रहे हैं। कर्रेगुटटा में चल रहे आपरेशन के नाम को लेकर भी अब सवाल उठने लगे हैं। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने प्रेस कांफ्रेंस कर आपरेशन के नाम पर भी सवाल खड़े किये है। वह कह रहे हैं कि यह संकल्प है? विकल्प है? या फिर ब्लैक फारेस्ट? आखिर सच क्या है? खैर इसका जवाब तो गृहमंत्री और मुख्यमंत्री ही दे सकते हैं। लेकिन सत्ता की कमान सम्भाल रहे जवाबदारों के द्वारा एक-दूसरे के ब्यान का खंडन किया जाना कितना उचित है? आखिर इस मामले में किससे चूक हो गई? आम तौर पर मुख्यमंत्री और गृहमंत्री दोनों को रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी एक ही अफसर की होती है। तो दोनों के ब्यान में भिन्नता क्यों?

सुधीर और राव फिर आमने-सामने

वनबल प्रमुख व्ही श्रीनिवास राव और सीनियर आईएफएस अफसर पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ सुधीर अग्रवाल एक बार फिर आमने-सामने हैं। दरअसल सुधीर अग्रवाल श्रीनिवास राव से सीनियर हैं, लेकिन उन्हें वनबल प्रमुख बनने का अवसर नहीं मिला। जिसके बाद से सुधीर देश की हर संवैधानिक संस्था का दरवाजा खटखटा रहे हैं। सुधीर अग्रवाल व्ही श्रीनिवास की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पहले हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। वहां उनकी अपील खारिज कर दी गई। इसके बाद सुधीर अग्रवाल सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुुंच गए हैं। सुधीर अग्रवाल ने राव की नियुक्ति को चैलेंज करते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है, जिसे स्वीकार कर लिया गया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि सुधीर की याचिका में इतना जल्दी फैसला हो पाएगा क्या? दरअसल सुधीर अग्रवाल यह लड़ाई लड़ते-लड़ते इसी साल के अगस्त माह में रिटायर हो जाएंगे। ऐसे में सुधीर को इस याचिका से कितना फायदा होगा? यह तो आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा। लेकिन एक बार फिर सीनियर आईएफएस सुधीर अग्रवाल और वनबल प्रमुख व्ही श्रीनिवास राव आमने-सामने है।

फिर पीए का दौर?

पूर्व की भाजपा सरकार में मंत्री और नेताओं को उनके पीए ने भी डुबाने का काम किया था। शायद इसीलिए इस बार पीए के मामले में बड़ा फूंक-फूंक कर कदम रखा गया। लेकिन पीए चीज ही ऐसी होती है कि उसका दौर स्वमेव आ जाता है। अब एक बार फिर भाजपा सरकार में पीए चर्चा में आने लगे हैं। कहीं पीए के नाम से एफआईआर हो रही, तो कहीं पीए साहब बनकर अपना पीए बैठक में भेज दे रहे हैं। यह तमाम घटना देखकर यह कहा जा सकता है कि एक बार फिर राज्य में पीए का दौर शुरु हो चुका है।

महंत भी ठंडे और जांच भी

भारतमाला परियोजना में भ्रष्टाचार की परतें तो खुली लेकिन मामला ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा है। दरअसल इस परियोजना में भ्रष्टाचार की परते खोलने वाले नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास मंहत ठंडे हो गए हैं। उनमें अब वैसी अक्रामकता नहीं दिख रही जैसा तेवर विधानसभा सत्र के दौरान देखने को मिला। महंत ठंडे तो जांच ठंडी होना स्वाभाविक है। भारतमाला परियोजना में दलाल तो अंदर हुए लेकिन जांच एजेन्सी के हाथ उपर तक नहीं जा पा रहे हैं। घोटाले में संलिप्त कई अफसरों को फरार बताया जा रहा है। क्या वास्तव में जांच एजेन्सी और पुलिस इन अफसरों तक नहीं पहुंच पा रही है? या फिर इन अफसरों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है? खैर जैसे-जैसे समय बीतेगा इन अफसरो को जमानत मिलने की संभावना बढ़ जाएगी। बहरहाल भारतमाला परियोजना में हुए भ्रष्टाचार को लेकर महंत भी ठंडे पड़ गए है, और जांच भी।

अरुण देव, पवन देव या फिर जीपी सिंह

अगले माह राज्य के स्थायी डीजीपी के नाम पर मुहर लग जाएगी। दरअसल राज्य के डीजीपी के लिए तीन नामों का पैनल तैयार कर लिया गया है। जिसमें वर्तमान प्रभारी डीजीपी अरुण देव गौतम, सीनियर आईपीएस अफसर पवन देव और तेज तर्रार आईपीएस अफसर जीपी सिंह के नाम शामिल हैं। वैसे तो प्रभारी डीजीपी को स्थायी जिम्मेदारी सौंपे जाने के ज्यादा चांस है। दरअसल अरुण देव गौतम फरवरी माह से राज्य के प्रभारी डीजीपी हैं। अरुण देव शांत स्वभाव के सुलझे हुए अफसर माने जाते हैं। वहीं पैनल में पवन देव और जीपी सिंह के नाम भी शामिल होने की खबर है। ऐसे में राज्य का स्थायी डीजीपी किसे बनाया जाएगा इस पर अगले माह मुहर लग जाएगी।

कब तक खैर….

सीजीएमएससी घोटाले को लेकर भ्रष्टाचार की अब असली परतें खुलेंगी। भ्रष्टाचार में लिप्त अफसर और कारोबारी कब तक बच पायेंगे? फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। दरअसल सीजीएमएससी मामले में ईडी ने भी अपराध दर्ज कर जाँच शुरू कर दिया है। अभी तक राज्य की जाँच एजेंसी ईओडब्ल्यू और एसीबी मामले की पड़ताल कर रही थी। मामला राज्य की जाँच एजेसी के पास था तो आरोपी अफसर और रडार में रहे संदिग्ध अफसर भी बेफिक्री से काम कर रहे थे। अब ईडी ने सबकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कुल मिलाकर भ्रष्टाचार में लिप्त अफसर और कारोबारी कब तक खैर मनायेंगे?

editor.pioneerraipur@gmail.com

शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *