गैस सिलेंडर अब 500 रुपए में मिलेगा..चुनाव से पहले सरकार ने की घोषणा…

विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री ने बड़ी घोषणा की है. भारत जोड़ा यात्रा के तहत सोमवार को अलवर जिले के मालाखेड़ा में सभा के दौरान जनता को संबोधित करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि उनकी सरकार राज्य के गरीब परिवारों को रसोई गैस का सिलेंडर 500 रुपये में उपलब्ध करवाएगी.

जानिए कब से मिलेंगे 500 रुपये में सिलेंडर

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि राज्य सरकार इस बारे में लाभान्वितों की श्रेणी का अध्ययन करवाकर इसे नए वित्तवर्ष यानी 1 अप्रैल से लागू करेगी. उन्होंने कहा कि मैं इस मौके पर यह घोषणा करूंगा कि ऐसे लोग जो गरीबी रेखा से नीचे यानि बीपीएल से हैं और उज्ज्वला योजना से जुड़े हैं, उस श्रेणी का अध्ययन करवाएंगे उसके बाद एक अप्रैल के बाद साल में 1040 रुपये वाला 12 सिलेंडर 500 रुपये में देंगे. ये मैं आपसे वादा करना चाहता हूं.

गहलोत सरकार ने खेला बड़ा दांव!

बताते चलें कि रसोई गैस सिलेंडर महंगा होने के बाद देशभर में उज्जवला योजना के फेल होने की चर्चा होने लगी है. इसी बीच, राजस्थान की कांग्रेस शासित गहलोत सरकार ने एक और नजीर पेश करने के लिए बड़ा दांव खेल दिया है. अशोक गहलोत ने आरोप लगाया कि उज्ज्वला योजना के नाम पर पीएम मोदी ने गरीबों के साथ नाटक किया. उन्होंने कहा, एलपीजी कनेक्शन और चूल्हा दे रहे हैं. आज वे टंकियां खाली पड़ी रहती हैं, कोई ले ही नहीं रहा. क्योंकि, 400 रुपये से 1040 रुपये कीमत हो गई है सिलेंडर की. गहलोत ने कहा कि अगले महीने हम बजट पेश करेंगे, उसमें रसोई से महंगाई का बोझ कम करने के लिए किट बांटने की योजना लेकर कर आएंगे.

सचिन पायलट को भी दिया राजनीतिक संकेत!

अशोक गहलोत ने स्पष्ट रूप से इस घोषणा के साथ राजनीतिक गेंद को लुढ़का दिया है. उन्होंने अपनी पार्टी और विशेष रूप से प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट को राजनीतिक संकेत भी दिया है कि वह मुख्यमंत्री बने रहेंगे और चुनावी बजट पेश करेंगे. बताते चलें कि अलवर में आज भी राहुल गांधी का भाषण गहलोत सरकार की उपलब्धियों पर केंद्रित रहा. राहुल गांधी ने राजस्थान में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोलने पर कांग्रेस सरकार की तारीफ की. उन्होंने कहा कि बीजेपी नेता नहीं चाहते कि स्कूलों में अंग्रेजी पढ़ाई जाए. लेकिन, उनके सभी नेताओं के बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में जाते हैं. दरअसल, वे नहीं चाहते कि गरीब किसानों और मजदूरों के बच्चे अंग्रेजी सीखें, बड़े सपने देखें और खेतों से बाहर निकलें.

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