भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खोखला करने का करता है काम

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में यह जो कहा कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खोखला करने का काम करता है उससे किसी के असहमत होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठना चाहिए। यह एक कटु सच्चाई है कि भ्रष्टाचार देश की तमाम समस्याओं की जड़ है। चिंता की बात यह है कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के तमाम उपायों के बावजूद वह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।

आए दिन ऐसी खबरें सामने आती हैं जिससे पता चलता है कि एक ओर जहां रिश्वतखोरी का सिलसिला कायम है वहीं दूसरी ओर बड़े पैमाने पर टैक्स की चोरी भी हो रही है। बड़े-बड़े व्यापारी किस तरह से टैक्स चोरी में लिप्त हैं, इसका उदाहरण है विभिन्न एजेंसियों की ओर से की जाने वाली छापेमारी के दौरान कर चोरी के हैरान करने वाले मामलों का भंडाफोड़ होना।

यह ध्यान में रखने की जरूरत है कि टैक्स चोरी का काम भ्रष्ट व्यापारियों और नौकरशाहों की मिलीभगत से ही हो रहा है। भ्रष्टाचार का एक बड़ा जरिया सरकारी ठेके भी बने हुए हैं। इन ठेकों में कमीशनखोरी के नाम पर करोड़ों रुपये की धनराशि अवैध रूप से इधर-उधर होती है। नतीजा यह है कि जो धन सरकारी कोष में जाना चाहिए और जिसका सदुपयोग देश की प्रगति में होना चाहिए वह भ्रष्ट तत्वों की जेबों में जा रहा है और देश की उन्नति में बाधक बन रहा है।

आश्चर्य की बात यह है कि नोटबंदी के बाद जो ऐसे तमाम नियम-कानून बने जिनके तहत एक निश्चित मात्र से अधिक नकद राशि का लेन-देन नहीं हो सकता है, उनका भी उल्लंघन हो रहा है। यह समझना कठिन है कि आनलाइन लेन-देन का चलन बड़े पैमाने पर बढ़ने के बावजूद बैंकों के माध्यम से बड़ी धनराशि का लेन-देन क्यों और कैसे हो रहा है? स्पष्ट है कि सरकार को नकदी के लेन-देन को रोकने के लिए बनाए गए नियम-कानूनों पर नए सिरे से विचार करने और इस क्रम में उन छिद्रों को बंद करने की आवश्यकता है जिनका इस्तेमाल भ्रष्ट तत्व कर रहे हैं। समस्या केवल आर्थिक भ्रष्टाचार की ही नहीं है। समस्या नैतिक कदाचरण की भी है।

राजनीति समाज को दिशा देने का काम करती है इसलिए वह किसी न किसी स्तर पर नेताओं के कार्य व्यवहार से प्रभावित होती है। शायद यही कारण है कि हमारे समाज में एकजुट होकर और आपसी मतभेदों को भुलाकर देश की उन्नति के लिए कर्तव्य निर्वहन का वह भाव नजर नहीं आता जो आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य भी है।

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