प्रदेश सरकार यूं तो अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में हर क्षेत्र में ही विफल रही है परंतु शिक्षा व्यवस्था पर जो कांग्रेस सरकार ने जो कुठाराघात किया है वो न केवल अस्वीकार्य अपितु शर्मनाक भी है
छत्तीसगढ़ में शिक्षकों के करीब 19 फीसदी पद, प्राथमिक शालाओं के प्रधानपाठक के 60 फीसदी पद, पूर्व माध्यमिक शाला के प्रधानपाठकों के 33 फीसदी पद, हाई स्कूल के प्राचार्य के 70 फीसदी पद तथा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्राचार्य के 39 फीसदी पद खाली पड़े हैं, इसके अलावा छत्तीसगढ़ में कुल 30,371 प्राथमिक स्कूल 13,117 पूर्व माध्यमिक स्कूल 1,940 हाई स्कूल तथा 2,380 हायर सेकेंडरी के स्कूल हैं, उनमें ये पद रिक्त पड़े हैं. जाहिर है कि जब स्कूलों में शिक्षा देने वाले शिक्षकों का ही अभाव है तो शिक्षा का स्तर तो गिरना लाजमी है ।
हैरत की बात है कि जब राज्य में पंजीकृत शिक्षित बेरोजगारों की संख्या 23 लाख के लगभग है और शिक्षक, प्रधानपाठक तथा प्राचार्य के 36 हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हुये हैं, इससे साफ पता चलता है कि एक तरफ छत्तीसगढ़ के शिक्षित बेरोजगारों को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है कि उन्हें किस विषय में अध्ययन करना चाहिये, दूसरी तरफ शिक्षा विभाग में 36,038 पद खाली पड़े हैं. जिसका सीधा-सीधा असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ रहा है।
शायद यही कराण है कि छत्तीसगढ़ के गांवों में शिक्षा की हालत सोचनीय है. गौरतलब है कि ताजा अध्ययन के अनुसार ग्रामीण छत्तीसगढ़ में 5वीं कक्षा के 56 फीसदी छात्र-छात्रायें ही 3री कक्षा के पाठ पढ़ सकते हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि पिछले 3 सालों में ग्रामीण शिक्षा के सार में गिरावट आई है।इस स्थिति में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वतंत्रता दिवस की दिन घोषणा कर दी कि दंतेवाड़ा जिले की शतप्रतिशत स्कूलों को आत्मानंद विद्यालय में परिवर्तित किया जायेगा, परंतु बिना समुचित अध्ययन और तैयारी के ये निर्णय लिया गया है।
ये कर के मुख्यमंत्री उन व्यवहारिक दिक्कतों को भूल गए जो हिंदी से अंग्रेजी भाषा में जाने वाले छात्रों के समक्ष जाने वाली है, जिन छात्रों ने अपनी आधारभूत शिक्षा हिंदी माध्यम से प्राप्त की है उन्हे अचानक अंग्रेजी भाषा में अध्ययन करना होगा, ये छात्रों के साथ निर्दयता है।
शतप्रतिशत स्कूलों को आत्मानंद विद्यालय में परिवर्तित करने के पीछे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बड़ी कूटनीति है चूंकि आत्मानंद विद्यालय खोलने के लिए बड़ी चालाकी से उन्होंने उन क्षेत्रों का चयन किया है जहां शासन को DMFT के पैसे ज्यादा प्राप्त होते हैं, और इसी पैसे से आत्मानंद विद्यालय को संचालित किया जाता है, इससे राज्य सरकार को कोई वित्तीय भार नहीं आयेगा, और स्कूल खोलने का श्रेय भी मिल जायेगा।
इसके अलावा आत्मानंद विद्यालय में जिन शिक्षकों की भर्तियां की जाती है उनकी तनख्वाह भी डीएमएफटी फंड से ही दी जाती है और शिक्षकों की भर्ती वॉक इन इंटरव्यू के जरिए की जाती है और आरक्षण रोस्टर का पालन भी नहीं किया जाता ।
इससे वंचित वर्ग के उम्मीदवार नौकरी पाने में असफल रहते हैं, एक तरह से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आत्मानंद विद्यालय के जरिए न केवल छात्रों का भविष्य दांव पर लगा रहे हैं बल्कि आरक्षण के नियमों की अवहेलना कर संविधान का अपमान भी कर रही है ।
आत्मानंद विद्यालय खोलने के बहाने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शिक्षा और आरक्षण खत्म करने का षडयंत्र कर रहे हैं, प्रदेश में 30 हजार से अधिक सरकारी विद्यालय हैं उनमें शिक्षा का स्तर और शिक्षकों की कमी को पूरा करने की जगह मुख्यमंत्री जी की नजर DMFT के पैसों पर है यदि मुख्यमंत्री इसमें सफल हो गए तो प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था और आरक्षण पूरी तरह खत्म हो जायेगा ।