बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में बरसात के साथ ही सड़कों की जर्जर स्थिति एक बार फिर सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गई है। हालात इतने बदतर हो चले हैं कि अब ग्रामीणों का आक्रोश नेताओं तक पहुंचने लगा है। ताजा मामला बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र का है, जहां केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू को ग्रामीणों के भारी विरोध और नारेबाजी के चलते अपने काफिले के साथ वापस लौटना पड़ा। विरोध का यह दृश्य न केवल सत्ताधारी दल के लिए चेतावनी है, बल्कि पीडब्ल्यूडी विभाग की कार्यशैली पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है।
बताया जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री तोखन साहू अपने गृह ज़िले मुंगेली से गुजरते हुए दौरे पर निकले थे। बारिश के चलते सड़कें इतनी खराब हो चुकी हैं कि स्थानीय ग्रामीणों का धैर्य जवाब दे गया। मनियारी नदी के पास जैसे ही मंत्री का काफिला पहुंचा, ग्रामीणों ने रास्ता रोक लिया और सड़क की दुर्दशा को लेकर जमकर विरोध प्रदर्शन किया। विरोध इतना तीव्र था कि मंत्री को अपना दौरा बीच में छोड़कर लौटना पड़ा।
गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्री तोखन साहू और पीडब्ल्यूडी मंत्री अरुण साव दोनों ही लोरमी विधानसभा क्षेत्र से आते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जब खुद लोक निर्माण मंत्री के विधानसभा क्षेत्र की हालत इतनी खस्ता है, तो प्रदेश के अन्य क्षेत्रों का क्या हाल होगा?
हाईकोर्ट भी राज्य की सड़कों को लेकर पहले ही तल्ख टिप्पणी कर चुका है। बीते दिनों जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने पीडब्ल्यूडी अधिकारियों को फटकार लगाई थी, लेकिन इसके बावजूद जमीनी हालात में कोई खास सुधार नहीं दिखाई दे रहा।
प्रदेश के विभिन्न जिलों के आठ राज्य सड़क खंडों के लिए केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में सीआरआईएफ योजना के तहत 892.36 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है। बेमेतरा, मुंगेली, राजनांदगांव, जशपुर, बिलासपुर और खैरागढ़ जिलों को इसमें शामिल किया गया है। हालांकि, जिस मार्ग से केंद्रीय मंत्री का दौरा था, वहां के लिए विशेष फंड का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। उस इलाके में केवल रुटीन बजट के जरिए काम चलाया जा रहा है, जिसका नतीजा अब जनता के गुस्से के रूप में सामने आ रहा है।
साफ है कि मंत्री से लेकर अधिकारी तक, सबकी कार्यशैली पर जनता ने सवाल उठा दिए हैं। सड़कों की हालत सुधारने के लिए केवल बजट घोषणाएं काफी नहीं, जमीनी अमल ज़रूरी है। वरना आने वाले दिनों में ऐसे विरोध और चक्काजाम आम बात हो जाएंगे।