बाहरी और भीतरी के बीच फंसते नजर आ रही भाजपा, रिंग मास्टर की भूमिका में ओम माथुर और नितिन नबीन

ए.एन. द्विवेदी

रायपुर

 

 

 

 

 

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव भाजपा बनाम कांग्रेस न होकर बाहरी बनाम भीतरी हो चुका है। दरअसल में यह हम नहीं कह रहे यह हताश भाजपा नेता स्वंय कहते घूम रहे हैं। राज्य भाजपा में ओम माथुर और नितिन नबीन रिंग मास्टर की भूमिका में हैं। भाजपा के स्थानीय क्षत्रप सरकश के निरीह शेर बनकर रह गए हैं। माथुर और नितिन नबीन जिसे जैसा चाह रहे वैसा नचा रहे। विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य भाजपा के किसी भी चेहरा को माथुर और नितिन नबीन ने सामने नहीं आने दिया, वह अब तक अकेले ही रिंग में कूदते नजर आ रहे हैं। माथुर प्रभारी होने के नाते भाजपा की पूरी कमान स्वयं सम्भाले हुए हैं। माथुर और नबीन ने प्रदेश भाजपा के क्षत्रपों के मुह पर टेप मार दिया है, जिससे उनका दम फूलने लगा है। इसमें सबसे जादा दम इन दिनों प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव का फूल रहा है। नितिन नबीन और माथुर ने प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को रबर स्टाम्प बनाकर कोने में रख दिया है। अतीत में प्रदेश अध्यक्ष के रुप में साव से जादा मजबूत आदिवासी नेता विष्णुदेव साय रहे हैं, जबकि उस दौरान भी रिंग मास्टर की तरह व्यवहार करने वाले सौदान सिंह का छत्तीसगढ़ में बोलबाला था। वर्तमान में आलम यह है कि अरुण साव की भूमिका प्रदेश अध्यक्ष की न होकर सिर्फ एक प्रत्याशी की रह गई है, वह अपने निर्वाचन क्षेत्र में ही हांफते नजर आ रहे हैं। यहीं नहीं माथुर और नितिन नबीन ने टिकट वितरण में जमकर मनमानी की उन्होंने जिसे चाहा टिकट दे दी, जिसकी चाहा टिकट काट दी। जिसके कारण छत्तीसगढ़ में सत्ता के नजदीक खड़ी भाजपा चुनाव से पहले ही फांफने लगी है। ठीक इसी तरह मैनेजमेन्ट के गुरु कहलाने वाले 7 बार के विधायक बृजमोहन अग्रवाल को सिर्फ उनके निर्वाचन क्षेत्र तक ही सीमित रखा गया, यहीें नहीं उनका मुंह भी बंद कर दिया गया है। ऐसा नहीं है कि राज्य भाजपा में चेहरों की कमी है, 15 साल के सरकार में एक से एक चेहरे सामने उभरकर आये, लेकिन माथुर और नितिन नबीन की हंटर की वजह से सब खामोश हो गए, जब तक ये स्थानीय नेता मुखर नहीं होंगे राज्य भाजपा की राह आसान नहीं होगी। कुल मिलाकर बाहरी और भीतरी के खेल में भाजपा बुरी तरह फंसते नजर आ रही है।

सौदान युग की वापसी तो नहीं?

अतीत में माथुर से जादा मजबूत सौदान सिंह रहे हैं। 2018 के चुनाव तक सौदान सिंह की राज्य में तूती बोलती रही है। कभी माथुर की तरह सौदान सिंह का राज्य भाजपा में एकक्षत्र राज था, लेंकिन इसी हंटरबाजी के कारण 2018 के चुनाव परिणाम के बाद से सौदान सिंह को छत्तीसगढ़ से मुक्त कर दिया गया। आज आलम यह है कि चंडीगढ़ और हिमांचल प्रदेश का प्रभार मिलने के बाद विफल होने पर भाजपा की राजनीति में सौदान सिंह को कहीं स्थान नहीं मिल रहा है। यह अति बाहरीबाद का जीता -जागता उदाहरण के साथ सबक भी है ।

कांग्रेस की कमान स्थानीय नेताओं को

राज्य भाजपा में बाहरी नेताओं का बोलबाला है, वहीं कांग्रेस अपने स्थानीय नेताओं की क्षमता का भरपूर उपयोग कर रही है। राज्य में कांग्रेस 68 सीटों के आपार बहुमत के साथ सत्ता में है। जाहिर सी बात है कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा किसी भी लिहाज से ओम माथुर और नितिन नबीन से कम नहीं है, शैलजा भी कांग्रेस आलाकमान के उतना ही नजदीक है, जितने भाजपा में माथुर बताये जाते हैं। लेकिन कांग्रेस अपने स्थानीय नेताओं को आगे कर सत्ता वापसी की कवायत कर रही है। राज्य कांग्रेस में सीएम भूपेश बघेल, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, डॉ. चरणदास महंत समेत अन्य नेता फ्रंट फुट पर खलते नजर आ रहे, शायद यही बजह है, जिससे कारण आज भी राज्य में कांग्रेस मजबूत दिखाई दे रही है।

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