रायपुर@thethinkmedia.com
सूबे के सियासी दौर में फ्रंटलाइन के नेता रहे डॉ. चरणदास महंत इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजनीति में गुमनाम से हो गए हैं? जो नेता भाजपा के पंद्रह साल में संघर्ष करते रहा। यूपीए की सरकार में केन्द्रीय मंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष समेत न जाने कितने पदों पर आसीन रहा, अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री रहे। वह इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजनीति में गुमनाम आखिर क्यों है? यही नहीं वर्ष 2018 में जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को अपार बहुमत मिली तो भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव, ताम्रध्वज साहू और डॉ. चरणदास महंत मुख्यमंत्री पद के प्रवल दावेदार थे। लेकिन अपनी ही सरकार के पांच साल बीतते-बीतते यह राजनेता सियासी मैदान में हांफ ने लगा आखिर क्यों? इसके लिए खुद महंत को आत्ममंथन करनें की जरुरत है। दरअसल में महंत को गुमनाम कहने के पीछे कई कारण हैं। विधानसभा अध्यक्ष के पद पर आते ही महंत की राजनीति ढलान की ओर चल दी जिसके लिए सम्भवत: महंत ही खुद जिम्मेदार हैं।
महंत की निष्क्रियता का ही परिणाम है कि अब उन्हें राज्य की पिक्चर से ही हटा दिया गया है। बीते चार साल की बात करें तो महंत ने सक्रिय राजनीति में कहीं भी अपनी उपस्थिति नहीं दर्ज कराई। एकात साल पहले उन्होनें राज्य में उपजे मुख्यमंत्री पद के विवाद को लेकर सार्वजनिक रुप से कहा था ‘लड़े से टरे’ बने जिससे वह सुर्खियों में रहे। दूसरी बार सुर्खियों में तब आये जब उन्होंने खुलकर राज्य से बाहर जाने की इक्छा जताई थी, वह राज्य सभा जाना चाहते थे। लेकिन उनकी यह ख्वाइस भी पूरी नहीं हो सकी। बहरहाल इन सभी के लिए वह खुद ही जिम्मेदार हैं। चार साल पहले सियासी क्षितिज पर इस चमकदार सितारे को छत्तीसगढ़ की जनता ही नहीं मीडिया तक ने भुला दिया है। तो
फिर गुमनाम महंत कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा।
हाल ही में राज्य के एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने चुनावी सर्वे का प्रोफार्मा प्रस्तुत किया, साथ ही ऑनलाइन माध्यम से सर्वे फार्म भरकर चुनावी सर्वे कराया जिसमें डॉ. महंत गुमनाम थे? दरअसल में समाचार पत्र के सर्वे का पहला सवाल यह था कि कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला नेता कौन है? जिसमें सर्वप्रथम भूपेश बघेल, दूसरे नम्बर पर टीएस सिंहदेव और तीसरे स्थान पर ताम्रध्वज साहू का नाम रखा गया। यहां पर भी महंत गुमनाम थे। यानि कुल मिलाकर उनको रेस से ही बाहर कर दिया गया। सवाल यह है कि जो नेता 2018 की रेस में फ्रंटलाइन में रहा, मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार रहा। वह 2023 आते-आते गुमनाम हो गया? आखिर क्या वजह है कि इस नेता की दावेदारी दूर -दूर तक नहीं दिखाई दे रही। क्या वास्तव में महंत गुमनाम हो गए हैं? या उनकी रुचि कम हो गई है। दरअसल में महंत ही अपने राजनीतिक कैरियर में विराम लगाने के प्रमुख कारण हैं। 2018 में जब उन्हे सीएम पद नहीं मिला और भूपेश बघेल के नाम पर मुहर लग गई। तब महंत ने भूपेश बघेल के अन्डर काम करने से मना कर दिया था, यानि कि उन्होनें मंत्री बनने से इनकार कर दिया था। जिसके कारण उन्हें छत्तीसगढ़ विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी में बैठने से पहले महंत ने छत्तीसगढ़ के इतिहास को नहीं पलटा, वे चाहते तो छत्तीसगढ़ की इतिहास में राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल की तरह अमिट छाप छोड़ सकते थे। वैसे तो छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अब तक के इतिहास को देखेंगे तो कोई भी विधानसभा अध्यक्ष रिपीट नहीं हुए। अब आगे आखिर महंत का क्या होगा?