रायपुर। जय अभी 17 वर्ष का है और छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले का निवासी है। वह 2 साल का था जब पता चला कि वह सिकल सेल एनीमिया की बीमारी से ग्रसित है। शुरू में उसके परिवार ने सिकल सेल के लिए मानक उपचार का विकल्प चुना, जिसमें नियमित रक्त संक्रमण और कुछ दवाएं शामिल थीं। इस उपचार से जय बीमारी से तो बचा रहा , परन्तु जय को अभी भी लगातार दर्द के असहनीय एपिसोड का अनुभव होता था। जय के पिता राजू दीवान के अनुसार, धीरे-धीरे इस दर्द की आवृत्ति और गंभीरता इतनी अधिक हो गई कि उन्हें लगने लगा कि वह जय को खो देंगे । जब भी जय को दर्द होता, उन्हें तुरंत अस्पताल जाना पड़ता। एक बार अस्पताल में उनकी मुलाकात एक लड़के से हुई जो जय की ही उम्र का था और जनवरी 2023 में उसका अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण डॉ. गौरव खरया ने किया था। इस लड़के के माता-पिता ने अपनी कहानी साझा करते हुए बताया कि कैसे प्रत्यारोपण ने उसे सिकल सेल रोग के कारण होने वाले दर्द और बाकी लक्षणों से राहत दी थी।
इस मुलाकात से प्रेरित होकर, उन्होंने रायपुर में डॉ. गौरव खरया से पेटल्स अस्पताल में परामर्श लिया। डॉ खरया दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में सेंटर फॉर बोन मैरो ट्रांसप्लांट के निदेशक हैं। डॉ. खरया ने उन्हें इलाज के लिए दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में आमंत्रित किया। डॉ. खरया का कहना है कि उपचार पद्धतियों में प्रगति ने विभिन्न प्रकार के प्रत्यारोपणों–जिसमें हैप्लोआइडेंटिकल प्रत्यारोपण जिसमे माता या पिता बोन मेरो देते हैं, एम आर डी प्रत्यारोपण जहां ज्यादातर भाई या बहन बोन मेरो प्रदान करते हैं, साथ ही असंबंधित मिस-मैच प्रत्यारोपण भी शामिल हैं — की सफलता को बढ़ाया है।
“सफल प्रत्यारोपण के लिए मरीज और डोनर की सही जांच, इलाज़ की एक सटीक योजना बनाना महत्वपूर्ण होता है। हमारे ज्यादातर मरीजों को प्रत्यारोपण के उपरान्त एक नया स्वस्थ जीवन मिलता है । जितनी कम उम्र में ट्रांसप्लांट किया जाता है, मरीज के ठीक होने की संभावना उतनी ही बेहतर होगी, क्योंकि बार-बार संक्रमण और अन्य जटिलताएं शरीर की ठीक होने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं,” डॉ. खरया कहते हैं।
पिछले साल जुलाई में, जय और उसका परिवार दिल्ली गए, जहां बोन मेरो डोनर का निर्धारण करने के लिए जय, उसकी मां और उसके पिता पर परीक्षण किए गए। उनके पिता को एक बेहतर डोनर पाया गया। जय को उसकी मूल अस्थि मज्जा कोशिकाओं को खत्म करने के लिए कीमोथेरेपी की दो साइकिल दी गयी और उसके बाद रेडिएशन दिया गया । उसके बाद, डोनर की कोशिकाओं को उसके शरीर में प्रत्यारोपित किया गया।
छह महीने बाद, जय अब दर्द से मुक्त है और अपनी 12वीं कक्षा की पढ़ाई शुरू करने के लिए तैयार है। राजू केवल एक ही खेद व्यक्त करते हैं – कि उन्होंने बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने का निर्णय बहुत देर से लिया। यदि उन्होंने पहले ही निर्णय ले लिया होता तो जय को इतना नुकसान नहीं उठाना पड़ता।
सिकल सेल रोग से पीड़ित अधिकांश मरीज़ नियमित रूप से रक्त-आधान कराते हैं और मौखिक दवाएँ लेते हैं। किन्तु, इन रोगियों के जीवन की गुणवत्ता उम्र के साथ बिगड़ती जाती है। डॉ. खरया कहते हैं, “वर्तमान में, बोन मैरो ट्रांसप्लांट एकमात्र उपचारात्मक उपचार विकल्प उपलब्ध है, और हाल के वर्षों में इसकी सफलता दर में काफी सुधार हुआ है।”
सिकल सेल रोग से अपरिचित लोगों के लिए, यह एक आनुवंशिक विकार है जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं कठोर हो जाती हैं और सिकल (सी) आकार धारण कर लेती हैं। ये सी-आकार की रक्त कोशिकाएं आपस में चिपक जाती हैं और रक्त वाहिकाओं को अवरुद्ध कर देती हैं, जिससे गंभीर दर्द, अचानक रक्तस्राव और अन्य जटिलताएं होती हैं।