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फफूंद लगा घोषणा पत्र
भाजपा को घोषणा पत्र का अच्छा खासा लाभ मिल सकता था, लेकिन घोषणा पत्र को परोसने में देरी हो गई, जिससे यह फफूंद वाला बनकर रह गया। खाने की थाली में फफूंद लगी कोई स्वादिष्ट चीज रख दी जाए, तो इंशान उसे रख तो लेता है, लेकिन खाता नहीं। ठीक वैसा ही हाल भाजपा के घोषणा पत्र का दिख रहा है। जनता इनके घोषणा पत्र को देख तो रही है, लेकिन उस पर अमल करने का विचार फफूंद लगी वस्तु की तरह कर रही है। ऐसे में भाजपा को घोषणा पत्र का कितना लाभ मिलेगा यह तो निकट भविष्य में ही पता लग सकेगा। दरअसल में भाजपा ने पहली बार किसी राज्य में बढ़-चढ़ कर घोषणाएं की। लेकिन भाजपा का घोषणा पत्र तैयार होने के बाद भी लंबे समय तक संदूक में रखा रह गया। जिससे उसमें फफूंद लग गई, वहीं कांग्रेस इसके विपरीत हर जगह जा-जाकर तुरंत ताजी घोषणाएं परोसते रही है। जाहिर सी बात है ताजी वस्तु सभी को अच्छी लगती है। ऐसे में राज्य की जनता भाजपा के घोषणा पत्र को फफूंद लगी वस्तु की तरह देखकर, सूंघकर फिर वापस थाली में रख दे रही है।
20 सीटों में 50-50
पहले चरण की 20 सीटों पर मतदान सम्पन्न हो चुका है। जिसमें बस्तर सम्भाग की 12 और दुर्ग सम्भाग (राजनांदगांव- कवर्धा) की 8 सीटें शामिल हैं। पहली बार राज्य में किसी भी दल की कोई लहर नहीं देखी जा रही, आम मतदाता फिलहाल खामोश दिख रहे । 2018 के चुनाव की बात करें तो इन 20 सीटो में से भाजपा के खाते में सिर्फ 2 ही सीट गई थी, जिसमें डॉ. रमन सिंह राजनांदगांव से चुनाव जीतने में सफल हुए थे, वहीं दूसरी सीट भाजपा ने दंतेवाड़ा से जीता था, बाद में भीमा मंडावी की नक्सल घटना में मौत होने के बाद दंतेवाड़ा भी कांग्रेस के खाते में चली गई। कुल मिलाकर वर्तमान में भाजपा के पास 20 में से सिर्फ एक सीट है, वह है राजनांदगांव। ऐसे में 2023 के इस विधानसभा चुनाव के पहले चरण में भाजपा की जबरदस्त बढ़त दिख रही है। कुल मिलाकर मुकाबला 20 सीटों में 50-50 का दिख रहा है।
अकबर, लखमा और मोहन का क्या?
20 सीटों में मतदान सम्पन्न हो चुका है। जिसमें भूपेश सरकार के 3 मंत्रियों का भविष्य ईवीएम में कैद हो चुका है। मंत्री मोहम्मद अकबर, कवासी लखमा और मोहन मरकाम इस चुनाव में जमकर पसीने बहाते नजर आये। भूपेश सरकार के इन तीनों मंत्रियों और भाजपा प्रत्याशियों के बीच कड़े मुकाबले की खबर है। कोंडागांव सीट से मंत्री मोहन मरकाम और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लता उसेण्डी के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है। ऐसे में चुनाव परिणाम किसके फेवर में जाएगा, फिलहाल इसका खुलासा अब 3 दिसम्बर को ही हो सकेगा। पिछले चुनाव की बात करें तो मोहन और लता के बीच कड़ा मुकाबला रहा जिसमें मोहन मरकाम 1796 वोटों से चुनाव जीते थे। वहीं सरकार के दूसरे मंत्री कवासी लखमा की स्थिति भी ठीक नहीं बताई जा रही, लखमा त्रिकोणीय मुकाबले में बुरी तरह घिरे दिखे। इसके साथ ही कवर्धा में कांटे की टक्कर की खबरें सामने आती रहीं। ऐसे में मोहम्मद अकबर की भी धड़कने बढ़ी हुई हैं। फिलहाल पहले चरण की 20 सीटों में सरकार के तीन मंत्रियों का भविष्य ईवीएम में कैद हो चुका है। परिणाम क्या होंगे कुछ कहा नहीं जा सकता।
4 में 2 -2
राजधानी रायपुर की चारों सीटों पर कश्मकश की स्थिति बनी हुई है। रायपुर के चार में से तीन सीटों पर वर्तमान में कांग्रेस का कब्जा है। सिर्फ एक सीट में भाजपा के बृजमोहन अग्रवाल विधायक हैं। लेकिन इस बार के चुनाव परिणाम 2018 से अलग देखने को मिल सकता है। कहते हैं कि 4 में भी 2- 2 का समीकरण बनते दिख रहा है। कुल मिलाकर इस बार राज्य की जनता राजनीतिक संतुलन बनाने के मूड में दिख रही है।
मिलेगा मजबूत विपक्ष, अब नहीं चलेगी मनमानी
छत्तीसगढ़ में बहुमत कौन से दल को मिलने वाला है इसका खुलासा तो अब 3 दिसम्बर को ही होगा। लेकिन राज्य की जनता इस बार मजबूत विपक्ष देने के मूड में दिख रही है। पिछले चुनाव में भाजपा 13 सीटों पर सिमट गई थी। इस बार सीधा 3 गुना या इससे भी जादा बढ़त बना सकती है। ऐसे में राज्य में सरकार कांग्रेस की बने या भाजपा सत्ता में वापसी करे, यहां की जनता को एक मजबूत विपक्ष मिलने वाला है। अब संख्या बल को लेकर न ही कांग्रेसी इतरा सकेंगेे और न ही भाजपाई हीन होंगे। कुल मिलाकर यदि राज्य में मजबूत विपक्ष रहा तो अफसर, नेता में से किसी की मनमानी नहीं चलेगी।
साजा इतिहास रचेगा?
साजा में मंत्री रविन्द्र चौबे का लंबे समय से बोलबाला रहा। अविभाजित मध्यप्रदेश से ही साजा चौबे परिवार के इर्द-गिर्द घूमते रहा। सिर्फ एक बार भाजपा के लाभचंद बाफना को यहां से सफलता मिली। लेकिन इस बार के चुनाव में कद्दावर मंत्री रविन्द्र चौबे के सामने भाजपा ने एक गांव-गरीब, रोजी करने वाले मजदूर को प्रत्याशी बनाया है। इतने बड़े राजनीतिक अनुभव और कद के बाद भी रविन्द्र चौबे साजा में हांफते दिख रहे हैं। साजा में भी कवर्धा की भांति कड़ी टक्कर बताई जा रही है। यहां हम एक बात स्पष्ट कर देना चाह रहे हैं कि ईश्वर साहू ने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा और न ही वह राजनीति में सक्रिय रहे। वह एक मजदूर और सामान्य आदमी है। एक घटनाक्रम के कारण ईश्वर का उदय राजनीति में हुआ है। ऐसे में कांटे की टक्कर की खबर आना अपने आप में मंथन और चिंतन करने की ओर इशारा करता है। कुल मिलाकर यदि साजा का चुनाव ईश्वर साहू की जगह जनता लड़ रही है, तो साजा इतिहास रच सकता है।
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