सामाजिक कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार बृजलाल अग्रवाल ने कहा कि प्रदेश में शराब बंदी को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों राजनैतिक दल आमने सामने किन्तु दोनों दल शराब बंदी का नाम लेकर जनता को गुमराह करते है, एक ओर शराब बंदी का आश्वासन ( हल्ला ) करते है तो दूसरी ओर आबकारी विभाग को 10 प्रतिशत अधिक बिक्री का लक्ष्य दिया जाता है | नेताओ के चेहरे बदलते है नेताओ की जिस दिन नीति और नियत साफ होगी एवं इच्छा शक्ति होगी उस दिन शराब बंदी निश्चित रूप से तय हो सकती है |
अविभाजित मध्यप्रदेश में 46 जिले थे तब शराब की दुकाने प्रदेश में गिनी चुनी थी तब प्रदेश का मुख्यमंत्री दिग्गी राजा ने कानून में संशोधन कर ठेकेदारों को पच्चीस हजार रुपये जमा कर उप दुकान खोलने की अनुमति दी थी इस प्रकार जैसे-जैसे दुकाने बढ़ती गई वैसे-वैसे शराब की बिक्री बढ़ती गई अर्थात बिक्री बढ़ने का मुख्य कारण सरकार का राजस्व है | आबकारी राजस्व 900 करोड़ रुपये था आज छत्तीसगढ़ में 27 जिले है और आबकारी राजस्व 3800 करोड़ है, जबकि इन 18 वर्षों में कांग्रेस और भाजपा दोनों सत्तों में थी अभी वर्तमान में कांग्रेस के घोषणा पत्र में शराब बंदी का वायदा किया गया था किन्तु 3 वर्ष बीत गए अब कांग्रेस बगले झांक रही है | इसी प्रकार पूर्व में 15 वर्ष भाजपा सरकार रही तब शराब बंदी के लिए भारत माता वाहिनी का गठन किया गया किन्तु शराब ठेकेदारों के कोचियों ने घर पहुच सेवा बखूबी की और शराब बंदी कम ना होकर बढ़ती जा रही है | शराब का व्यवसाय फलने फूलने का मुख्य कारण राजकीय राजस्व है | दुकाने कॉफी बढ़ गई एक सर्वे के मुताबिक यदि शराब दुकानों में शराबियों के लगे लाईन से पता चलता है कि लगभग 95 प्रतिशत गरीबी रेखा के नीचे वाले ही मिलते है | अतः जनहित में नशाबंदी बंद करने की पहल किसी ना किसी राजनैतिक दल को करनी होगी |