रायपुर। कांग्रेस ने सूबे में गुटबाजी की तबाही का दौर देखा है। तब गुटबाजी का चेहरा बन चुके अजीत जोगी के अलग हो जाने के बाद लगा था सब कुछ शांत हो गया लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। सत्ता के पिछले पांच साल गुटबाजी भले सतह पर नहीं दिखी, लेकिन तब सत्ता प्रमुख रहे भूपेश बघेल ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। दरअसल तब गुटबाजी इसलिए सतह पर नहीं दिखी क्योंकि शायद विपरीत ध्रुव पर टीएस सिंहदेव जैसे शांत नेता थे। भूपेश बघेल के हाथों आज की स्थिति में पूर्व मुख्यमंत्री तमगा के अलावा कुछ खास नहीं है। नेता प्रतिपक्ष पद पर डॉ. चरणदास महंत है तो प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान आदिवासी नेता दीपक बैज के हाथों है। इसे छिनने की छटपटाहट साफ दिखने लगी है जो अब टकराव की मोड़ पर है। दरअसल, भूपेश बघेल सहित कांग्रेस के चंद नेताओं को यह लगने लगा है पार्टी अब राष्ट्रीय परिदृश्य पर पुराने दिनों की ओर लौट रही है। और वर्ष 2028 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को विजयश्री मिल सकती है। इसे भांप कर पिछले करीब दो माह से भूपेश बघेल व उनके करीबी नेता कुछ न कुछ ऐसा कर रहे हैं जो सुर्खियां बन रही है। सत्ता मिलने के ख्वाब को देखते हुए अब किलेबंदी शुरू कर दी गई है। इसकी पहली कड़ी में पार्टी के कार्यक्रमों को भूपेश बघेल खुद के डिजाइन में ढालने का उपक्रम कर चुके हैं। इसे महंत व सिंहदेव भली-भांति समझ रहे हैं लेकिन मौन साधे हैं। अब भूपेश बघेल अपने मकसद की दूसरी कड़ी के रूप में शीर्ष पर बैठे दो नेताओं नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत व दीपक बैज को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिए हैं। वे संभवत: आलाकमान को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि कांगे्रस को सत्ता में लाना महंत-बैज के वश की बात नहीं है। यह सिर्फ और सिर्फ भूपेश बघेल ही कर सकते हैं। उनकी इस मंशा को महंत समझ चुके हैं इसीलिए विधानसभा में कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर किए गए भूपेश के प्रहार का उन्होंने हल्के मूड में ही सही लेकिन करारा जवाब दिया था। तब राजनीति में लंबी पारी खेलने वाले महंत को सब कुछ समझ आ गया था लेकिन वक्त की थाह लगाकर वे मौन साध लिएं। डॉ. महंत को यह बखूबी मालूम है कि सत्ता की चावी अजीत जोगी व भूपेश बघेल जैसे तेजतर्रार बन कर हासिल नहीं की जा सकती बल्कि इसके लिए मोतीलाल वोरा व डॉ. रमन सिंह जैसे शांत नेता बनना होगा। तेजतर्रार राजनीति करने वाले अजीत जोगी व भूपेश बघेल कार्यकाल पूरा होते ही पार्टी को चुनाव में हरा बैठे। अजीत जोगी सत्ता से हटने के बाद पंद्रह साल तक ऐड़ी चोटी का जोर लगाए लेकिन छत्तीसगढ़ की जनता ने उनको दोबारा सत्ता पर नहीं बिठाया। तब वे गुटबाजी का चेहरा बन गए थे। इसके चलते हाईकमान से दूरी बनी और अंतत: कांग्रेस से रुखसत हो गए। जहां तक भूपेश बघेल की बात है वे अभी कुछ खोए नहीं हैं लेकिन वक्त की नजाकत नहीं समझे तो जोगी की कहानी बन जाएंगे। यह जरूर है जोगी जितनी उनकी पकड़ न तो पार्टी में और न ही जनता में है। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हाईकामान व कांग्रेसजनों को लगता था वे फि र से सत्ता में वापसी कराएंगे लेकिन सूबे की जनता गुटबाजी के खेल में माहिर भूपेश को सत्ता से बेदखल कर दिया। हाल के दिनों में जिस तरह कांग्रेस के भीतर खेल शुरु किया गया इससे यही लग रहा है सब कुछ मुख्यमंत्री बनने के लिए किया जा रहा है। इस खेल में भूपेश बघेल केंद्र में हैं और रविंद्र चौबे खुद होकर मोहरे बन गए हैं। भूपेश बघेल इन दिनों पार्टी को हाईजेक करने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। पिछले दिनों उनके पुत्र को ईडी ने गिरफ्तार कर जेल भेजा, तब भी पार्टी को झोंक दिया गया। इस तरह का विरोध तो पूर्व मंत्री कवासी लखमा को जेल भेजे जाने के मौके पर देखने को नहीं मिला, जबकि उनके पुत्र चैतन्य बघेल कांग्रेस के सदस्य हैं भी या नहीं, सार्वजनिक नहीं है। फि र उनकी गिरफ्तारी को लेकर सड़कों पर हंगामा क्यों किया गया? यह पार्टी को हाइजैक करने की कड़ी थी। तब कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने भूपेश बघेल को खुल कर साथ दिया था। पूरी पार्टी ईडी और भाजपा सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर आई थी। संभवत: भूपेश बघेल इसे खुद की स्वीकार्यता समझ बैठे। वह समझ बैठे हैं अगले मुख्यमंत्री के रूप में पार्टी उन्हीं का चयन करेगी, लेकिन कहीं से उनके मन में डॉ. महंत व टीएस सिंहदेव को लेकर कुंहासा है जिसे अपने जन्मदिन के मौके पर छंाटने की कोशिश करते नजर आए। इस मौके पर जिस ढंग से सीनियर लीडर रविंद्र चौबे ने उनके लिए खुल कर बैटिंग की इससे लगता है भूपेश बघेल पूरी रणनीति के साथ मैदान में उतरने जा रहे हैं। एक समय अजीत जोगी भी इसी तरह की चाल चल कर कांग्रेस पार्टी को छलनी कर दिए थे। क्या भूपेश बघेल भी यही करने जा रहे हैं? यह सुलगता सवाल है यदि ऐसा ही सब कुछ रहा तो फि र भाजपा को वर्ष 2028 के विधानसभा चुनाव को लेकर ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। जहां तक रविद्र चौबे की बात है तो वे ऐसे नेता हैं जो पार्टी से ज्यादा हमेशा नेताओं को शीर्ष पर रखते रहे हैं। संभवत: इसे समझ कर दीपक बैज ने उनको व्यंग्यात्मक रूप से महाज्ञानी का दर्जा दिए हैं। बहरहाल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस एक बार फि र गुटबाजी की राह पर जाती दिख रही है। ऐसे में डॉ. महंत, सिंहदेव व बैज की तिकड़ी किस तरह की राजनीतिक रुख अख्तियार करते हैं यह देखना होगा।