दंतेवाड़ा , प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने एक नागरिक द्वारा क्रिप्टो, नेटवर्क मार्केटिंग और डायरेक्ट सेलिंग फर्मों में धोखाधड़ी को लेकर दर्ज कराई गई शिकायत पर संज्ञान लेते हुए इसे विचारार्थ लिया है। किरंदुल निवासी प्रवेश कुमार जोशी ने PMOPG/E/2025/0093665 पंजीकरण संख्या के तहत एक विस्तृत पत्र भेजकर इस बढ़ते खतरे के प्रति चिंता जाहिर की थी।
उन्होंने आरोप लगाया था कि कुछ निजी कंपनियां और नेटवर्क मार्केटिंग एजेंसियां भोले-भाले नागरिकों, खासकर युवाओं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को जल्दी अमीर बनने के सपनों का झांसा देती हैं और उनकी मेहनत की कमाई को ठगती हैं।
प्रवेश कुमार जोशी की प्रमुख माँगें:
बिना उचित प्राधिकरण चालू डायरेक्ट सेलिंग और क्रिप्टो-आधारित इकाइयों की जांच और उन पर नियंत्रण।
नेटवर्क मार्केटिंग और क्रिप्टो इन्वेस्टमेंट मॉडलों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तय करना।
सभी डायरेक्ट सेलिंग और मल्टी लेवल मार्केटिंग (MLM) कंपनियों के लिए प्रमाणन और पंजीकरण अनिवार्य करना।
देशभर में जन-जागरूकता अभियान चलाकर जनता को धोखाधड़ी वाले स्कीमों से आगाह करना।
आधिकारिक शिकायत पोर्टल और सार्वजनिक रूप से चीते डालने योग्य कंपनियों की सूची जारी करना।
पीएमओ की प्रतिक्रिया:
शिकायत पर 08 अगस्त 2025 को पीएमओ द्वारा “मामला बंद” के रूप में प्रतिक्रिया दी गई। टिप्पणी में कहा गया:
“आपकी चिंताओं और सुझावों को नोट कर लिया गया है। इस पर नीति बनाते समय सभी विषयगत पहलुओं को ध्यान में रखा जाएगा। हम इस विषय पर आपकी टिप्पणियों को बहुत महत्व देते हैं।”
पीएमओ की ओर से उत्तर क्रिप्टो अनुभाग की उप निदेशक सुश्री संजू यादव द्वारा जारी किया गया है।
विश्लेषण:
यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि सरकार इस बड़े और संवेदनशील मुद्दे पर गंभीर है। हाल के वर्षों में भारत में क्रिप्टो फाइनेंस, चिट फंड्स और एमएलएम योजनाओं के नाम पर कई धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं।
केंद्र सरकार पहले ही डायरेक्ट सेलिंग गाइडलाइंस (2021) और क्रिप्टोकरेंसी को विनियमित करने के विभिन्न प्रयासों को लागू कर चुकी है। हालांकि, जोशी जैसे नागरिकों द्वारा ऐसे मामलों को उजागर करना नीति निर्माताओं को जमीनी सच्चाई से अवगत कराता है और भविष्य के लिए ठोस कानून बनाने की जरूरत को रेखांकित करता है।
निष्कर्ष:
प्रवेश जोशी जैसे जागरूक नागरिकों की भूमिका देश के डिजिटल और आर्थिक भविष्य को सुरक्षित करने में अहम है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इन सुझावों को कितनी प्राथमिकता देती है और नीति निर्माण में इन्हें किस प्रकार सम्मिलित किया जाता है।