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बेल के लिए खेल तो नहीं ?
राज्य में इन दिनों जो खेल चल रहा है, वह अब आम जनता को भी खुली आंखों से दिखने लगा है। दरअसल यहां भ्रष्टाचार को लेकर सरकार का दोहरा चरित्र जनता के बीच उजागर हो रहा है। खैर भ्रष्टाचार पर ज्यादातर सरकारें शुतुरमुर्ग ही बनना चाहती हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में तो भाजपा की सत्ता वापसी ही भ्रष्टाचार पर वार करके हुई है, तो फिर यहां भ्रष्टाचार पर शुतुरमुर्ग बनना कितना उचित होगा? इस पर सरकार के जिम्मेदारों को मंथन और चिंतन करना चाहिए। दरअसल यह बात हम यहां इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि राज्य में शराब घोटाला मामले में सरकार की भूमिका शुतुरमुर्ग की तरह दिख रही है। यहां शराब घोटाले में शामिल आरोपों के चलते पूर्व आबकारी मंत्री कांग्रेस के सीनियर आदिवासी नेता कवासी लखमा पिछले कई माह से जेल में बंद हैं। शराब घोटाले के आरोपों पर ही पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल को भी सलाखों के पीछे डाल दिया गया है। लेकिन शराब घोटाले में शामिल 22 आबकारी अफसरों की जमानत याचिका खारिज होने के बावजूद भी सरकार इन अफसरों को जेल में डालने से फिलहाल कतराती दिख रही है? क्या इन अफसरों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है? क्या बेल के लिए यह खेल खेला जा रहा है? ऐसे अनेक सवाल इन दिनों जनता के जेहन में घूम रहे हैं। खैर इस मामले में मल्टीपल ऐजेंसियां जांच कर रही हैं। ईडी के साथ-साथ ईओडब्ल्यू और एसीबी में भी मामला दर्ज है। ऐसे में इन अफसरों को बचाने का प्रयास किया जाएगा या फिर भ्रष्टाचार में शामिल इन अफसरों को सलाखों के पीछे भेजकर राज्य की जनता के साथ न्याय किया जाएगा ? फिलहाल इस पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।
पीसीसीएफ स्तर पर होंगे फेरबदल
अरण्य भवन में सीनियर अफसरों के रिटायरमेंट का सिलसिला शुरू हो गया है। इस साल के अंत तक कई सीनियर आईएफएस अफसर रिटायर हो जाएंगे। इस माह पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ सुधीर अग्रवाल और पीसीसीएफ आलोक कटियार रिटायर होने जा रहे हैं। सुधीर और आलोक के रिटायर होते ही पीसीसीएफ स्तर पर पहली बार बड़े फेरबदल की संभावना है। कहा जा रहा है कि वाइल्ड लाइफ की जिम्मेदारी किसी रिजल्ट ओरिएंटेड अफसर को सौंपी जा सकती है। दरअसल सुधीर अग्रवाल का कार्यकाल वन्यजीवों के लिहाज से बेहद ही निराशा भरा रहा। उन पर यह आरोप लगते रहे कि उनके कार्यकाल में छत्तीसगढ़ में रिकार्ड वन्यजीवों की मौत हुई है। यही नहीं, सुधीर हेड ऑफ फारेस्ट बनने की लड़ाई में भी उलझे रहे, अभी भी व्ही. श्रीनिवास की नियुक्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुधीर की याचिका लंबित है। कहा जाता है कि सुधीर अग्रवाल ने इस दौरान विभागीय कार्यों में रुचि नहीं ली। खैर इसका मूल्यांकन करना सरकार का काम है, लेकिन राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद पहली बार पीसीसीएफ स्तर के अफसरों में इस माह बड़े फेरबदल होने जा रहे हैं।
श्रीफल को बचा लो सरकार
‘श्री’ को देवी लक्ष्मी के पर्याय के रूप में तथा सम्पत्ति, सम्पदा, धन इत्यादि के पर्याय के रूप में उपयोग किया जाता है। वहीं श्रीफल को नारियल कहा जाता है। शास्त्रों में नारियल को माता लक्ष्मी और देवी-देवताओं का प्रिय बताया गया है, लेकिन कमीशनखोरी और भ्रष्टाचारियों ने अब श्रीफल ‘नारियल’ को भी दागदार बनाने की ठान ली है। नारियल के नाम पर एक-एक लाख रुपये की खुले तौर पर उगाही करने का आरोप लग रहा है। आरोप यह है कि राजस्व विभाग के कुछ अफसरों का प्रमोशन होना है। कहते हैं कि जिन अफसरों का प्रमोशन होना है, उन्होंने एक ग्रुप बनाया है। इस ग्रुप में खुले तौर पर प्रमोशन के लिए एक अफसर से 1 लाख रुपये का नारियल इकट्ठा किया जा रहा है, ताकि सामूहिक रूप से चढ़ावा चढ़ाकर अफसरों का प्रमोशन कराया जा सके। यह खबर सुनने के बाद राज्य की जनता श्रीफल को बचाने की गुहार लगा रही है। खैर इसका वास्तविक सच तो जांच के बाद ही उजागर हो सकता है, लेकिन राजस्व विभाग पहली बार विवादों नें नहीं आया है। इसके पहले भी बीते विधानसभा सत्र में भर्ती में अनियमितता और गड़बड़ी का मुद्दा चर्चा का विषय बना रहा, लेकिन इस बार पानी सर से ऊपर चला गया है। अब कमीशनखोरी करने वालों ने श्रीफल ‘नारियल’ को भी नहीं बख्शा। माता लक्ष्मी और देवी-देवताओं के प्रिय फल नारियल को आखिर किसे खुश करने के लिए बदनाम किया जा रहा है? आखिर एक-एक लाख के कई नारियल किसे चढ़ाए जाएंगे? इसका खुलासा होना चाहिए।
कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार का सच क्या?
कमीशनखोरी की गूंज ने राज्य सरकार की किरकिरी करने का काम किया हैै। क्रेडा के अध्यक्ष भाजपा नेता भूपेंद्र सवन्नी पर 3 प्रतिशत कमीशन लेकर काम देने का आरोप लगा है। यह आरोप और कोई नहीं, बल्कि उनके विभाग में काम करने वाले ठेकेदारों ने लगाया है। खैर आरोप सच हैं या झूठ, यह जांच का विषय है, लेकिन कमीशनखोरी के आरोपों ने सरकार और राज्य भाजपा को कठघरे में खड़ा कर दिया है। दरअसल भूपेंद्र सवन्नी कोई नए नवेले नेता नहीं हैं। वे राज्य भाजपा के बड़े पदाधिकारी रहे चुके हैं। इसके पूर्व वे छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन रह चुके हैं। ऐसे में उनके विभाग के अंदर उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया जाए, यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। कमीशनखोरी की गूंज दिल्ली तक पहुंच जाए, यह भी कोई मजाक की बात नहीं हैै। यह बात अलग है कि भाजपा के स्थानीय नेता डैमेज कंट्रोल में जुट गए हैं, लेकिन कमीशनखोरी की खबरें इन दिनों सुर्खियों में बनी हुई हैं। हालांकि यह कोई पहला मामला नहीं है, इसके पहले भी राज्य के एक मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं, जिसमें आरएसएस के एक पदाधिकारी के द्वारा प्रधानमंत्री समेत सभी नेताओं को शिकायत की गई है। बाद में शिकायतकर्ता ने मीडिया के सामने आकर कहा कि यह शिकायत उनके द्वारा नहीं की गई है, उनके लेटरहेड का दुरुपयोग किया गया है। खैर इस मामले में अपराध भी दर्ज किया गया है और राज्य की पुलिस पड़ताल कर रही है। अब ठीक ऐसी ही घटना भूपेंद्र सवन्नी के साथ घटित हो गई है। 3 प्रतिशत कमीशन के आरोप का पत्र सार्वजनिक होने के बाद यहां भी काम करने वाला एक संगठन सामने आकर सवन्नी पर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया है। खैर अभी तक भूपेंद्र सवन्नी मामले पर झूठी शिकायत को लेकर अपराध दर्ज नहीं किया गया है।
हेमंत की जगह अमिताभ
छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष हेमंत वर्मा का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है। कहा जा रहा है कि हेमंत समय से पहले पद छोड़ सकते हैं। दरअसल चर्चा है कि हेमंत वर्मा की जगह वर्तमान सीएस अमिताभ जैन को मौका दिया जा सकता है। आईएएस अमिताभ जैन ने अपनी सेवा-अवधि पूरी कर ली है। वर्तमान में वे तीन माह के एक्सटेंसन में सीएस की जवाबदेही निभा रहे हैं। ऐसे में अमिताभ को छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। इसके पहले अमिताभ जैन को मुख्य सूचना आयुक्त बनाने की खबरें सुर्खियों में थीं, लेकिन अब अमिताभ के संदर्भ में एक और खबर निकलकर सामने आई है। यदि अमिताभ जैन को विद्युत नियामक आयोग की जिम्मेदारी दी जाती है तो मुख्य सूचना आयुक्त की जिम्मेदारी रिटायर्ड डीजीपी अशोक जुनेजा या फिर आलोक चंद्रवंशी को सौंपी जा सकती है।
लुटने का ढोंग तो नहीं?
छत्तीसगढ़ में ईश्वर को लूट लिया गया है या ईश्वर लुटने का ढोंग कर रहे हैं। इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन साजा विधायक ईश्वर साहू की स्वेच्छानुदान राशि की जो सूची वायरल हुई है, उससे साजा की जनता का भाजपा से नाराज होना स्वाभाविक है। साथ ही इस सूची ने प्रदेश भाजपा को भी कठघरे में खड़ा करने का काम किया है। इस सूची ने सुशासन वाली विष्णु सरकार की भी फजीहत कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। दरअसल साजा से भाजपा विधायक ईश्वर साहू की स्वेच्छानुदान की राशि को मनमानी तरीके से लुटा दिया गया है। इस लूट में उनके पीएसओ और आपरेटर की भूमिका बताई जा रही है। पीएसओ की भूमिका में सवाल उठाना कितना सही है, इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी। कहा जा रहा है कि विधायक ईश्वर साहू के पीएसओ और आपरेटर ने स्वेच्छानुदान की राशि को पूरे रिश्तेदारों, दोस्तों और संबंधियों को बांट दिया है। खैर सच क्या है? यह तो जांच का विषय है। शायद स्वेच्छानुदान की राशि बिना विधायक के हस्ताक्षर या सहमति के नहीं बांटी जा सकती। फिर साजा विधायक को लूटा गया है या विधायक ईश्वर साहू लुटने का ढोंग कर रहे हैं, इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता। वायरल एक अन्य सूची में तो साजा विधायक ईश्वर साहू की भाभी और माता का भी नाम शामिल है। ऐसे में भला पीएसओ और आपरेटर मिलकर स्वेच्छानुदान की राशि को कैसे लूट सकते हैं?
कलेक्टर और भाजपा नेताओं में ठनी
बस्तर संभाग के एक जिले में कलेक्टर और भाजपा नेताओं के बीच ठन गई है। दरअसल कलेक्टर की पोष्टिंग हुए अभी यहां कुछ महीने ही हुए हैं, ऐसे में स्थानीय भाजपा नेताओं द्वारा लगातार उन पर दबाव बनाया जा रहा है। कलेक्टर ने सरकारी जमीन में अतिक्रमण के खिलाफ लगातार कार्रवाई की है। अब अतिक्रमण की बात हो और नेताओं के नाम भला सामने न आएं, ऐसा कहां संभव है। बताया जा रहा है कि इस अतिक्रमण में कुछ भाजपा नेता भी प्रभावित हुए हैं, जिसमें एक भाजपा के पदाधिकारी भी हैं। ऐसे में स्थानीय नेताओं द्वारा कलेक्टर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया गया है। हालांकि इसके पहले भी इस जिले के जनप्रतिनिधियों ने प्रशासन पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। अब देखना यह होगा कि स्थानीय नेताओं के दबाव में कलेक्टर को रवाना कर दिया जाएगा या फिर सरकार अफसरों को थोड़ा फ्री हैंड काम करने का मौका देगी।
मुश्किल नहीं, नामुमकिन है
सीजीएमएससी में हुए तकरीबन 700 करोड़ के रिएजेंट घोटाले में ईडी ने हाल ही में रायपुर और दुर्ग के कुछ स्थानों में दबिश दी है। दरअसल अब इस मामले में भी मल्टीपल एजेंसियों ने जांच करना शुरू कर दिया है। इसके पहले इस मामले की पड़ताल राज्य की जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू-एसीबी कर रही थी। अब ईडी की एंट्री से भ्रष्टाचार में शामिल अफसरों और कारोबारियों और नेताओं की मुसीबतें बढ़ सकती हैं। अब तक ईडी ने ज्यादातर मामलों में धड़ाधड़ गिरफ्तारियां की हैं। इसके पूर्व कोयला घोटाला, शराब घोटाला इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। कोल और शराब घोटाले में शामिल बड़े-बड़े कारोबारियों, नेताओं और सत्ता में रसूख रखने वाले अफसरों को भी नहीं बख्शा गया है। ऐसे में रीएजेंट घोटाले में चैन की सांस लेने वाले अफसरों, कारोबारियों की मुसीबतें बढ़ती दिख रही हैं। रीएजेंट घोटाले में शामिल अफसरों के लिए अब यह कहा जाने लगा है कि बचना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है। दरअसल अभी तक सीजीएमएसी में हुए घोटाले की पड़ताल ईओडब्ल्यू के द्वारा की जा रही थी, लेकिन अब ईडी की सक्रिय रूप से एंट्री हो चुकी है। कहते हैं कि ईडी ने इस मामले में कई अहम दस्तावेज भी जुटा लिए है और कभी भी कुछ आईएएस अफसरों समेत विभाग के अन्य अफसरों को पूछताछ के लिए तलब किया जा सकता है, गिरफ्तारी भी संभव है।
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