हलचल… खटाखट-खटाखट

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टेम्पो भर-भरकर रुपया

प्रधामंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दस साल के कार्यकाल में पहली बार अडानी और अंबानी को आड़े हाथों लिया। हैरत की बात यह है कि जो राहुल गांधी पूरे पांच साल तक अडानी और अंबानी के नाम की माला जपते थे, वह पूरे लोकसभा चुनाव में इन नामों को अपने जुबां में लाने से परहेज करते दिख रहे हैं? खैर क्यूं परहेज कर रहे हैं? यह तो राहुल गांधी ही जानेंगे। लेकिन इस बीच प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार इन दोनों उद्योगपतियों पर जमकर हमला बोला। मोदी राहुल पर निशाना साधते-साधते कब अडानी और अंबानी तक पहुंच गए उन्हें भी खबर नहीं लगी। लेकिन पीएम मोदी ने जिस तरह अडानी और अंबानी पर हमला बोला इससे यह माना जा रहा है कि मोदी और इन दोनों उद्योगपतियों के बीच इन दिनों कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चुनावी सभा के दौरान मोदी ने कहीं न कहीं जानबूझकर दोनों उद्योपतियों पर हमला बोला। खैर इसके पीछे मकसद क्या है? इसके राजनीतिक मायने क्या हैं? फिलहाल यह मंथन का विषय है। लेकिन मोदी ने राहुल पर निशाना साधते हुए अडानी और अंबानी पर टैम्पों में भर-भरकर रुपये देने का आरोप लगाया। क्या वास्तव में अडानी और अंबानी ने कांग्रेस को टैम्पों में भर-भरकर रुपये दिये हैं? या मोदी ने इन दोनों उद्योगपतियों पर झूठे और मनगढंत आरोप लगाए हैं, यह तो जांच का विषय है। यदि पीएम मोदी की बात पर यकीन किया जाए तो 10 साल बाद आखिर अडानी और अंबानी का राहुल और कांग्रेस के प्रति इनता प्रेम क्यों उमड़ रहा है? इसके पीछे क्या राज है? जिस अडानी और अंबानी का देश राजनीति में सीधा दखल है, आखिर मोदी जैसे ताकतवर नेता को लोकसभा चुनाव के बीच उनके खिलाफ फायर क्यों करना पड़ा? यह तमाम सवाल आम जनता के जेहन में घूम रहे हैं।

खटाखट-खटाखट

एक ओर पीएम मोदी ने कांग्रेस और राहुल को टेम्पो में भर-भरकर रुपए देने का आरोप देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों के उपर लगाया है, दूसरी ओर मोदी के आरोप के बाद राहुल खटाखट महिलाओं को लाख रुपए देने की बात कह रहे हैं। मोदी के आरोप के बाद राहुल गांधी खटाखट-खटाखट नौकरियां और रुपए देने की बात अपनी चुनावी भाषण में कहते नजर आते हैं। चुनाव परिणाम आते ही सभी को सरकारी नौकरी मिलेगी खटाखट। महिलाओं को एक लाख रुपये मिलेंगे खटाखट। गरीबों को मिलने वाला अनाज 10 किलो कर दिया जाएगा खटाखट। यह हम नहीं कह रहे वल्कि कांगेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कह रहे खटाखट। अब राहुल के खटाखट की चर्चा इतनी ज्यादा हो गई है कि पीएम मोदी ने भी कहा है कि चुनाव परिणाम आते ही राहुल विदेश चले जाएंगे खटाखट। यह चुनाव पता नहीं अब क्या-क्या करायेगा खटाखट। अब तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा क्या होगा खटाखट।

लोकसभा चुनाव के बाद कारनामों की खुलेगी कुण्डली

कहते हैं कि पिछले पांच साल यानि कि कांग्रेस सरकार में अफसरों और कारोबारियों के कारनामों की लंबी सूची बनकर तैयार है। अभी तो सिर्फ कोयला, शराब, सट्टा और खाद्यान्न मामलों की गड़बडिय़ों की फाइलें खुली हैं। महज चार विभाग में हुए घोटालों के आरोप में तीन दर्जन से अधिक अधिकारी, कर्मचारी और व्यापारी सालाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। भाजपा का तेवर देख यह कहा जा रहा है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे को आगे भी जीवित रखा जाएगा। इसलिए सम्भवत: लोकसभा चुनाव के बाद सभी विभागों में हुई गड़बडिय़ों की फाइलें खोली जा सकती हैं। राज्य में विष्णु सरकार का महज चार माह बीता है इस दौरान जंग खा रही एसीबी और इओडब्ल्यू की सक्रियता बढ़ गई है। चारों ओर धर-पकड़ चालू है। राज्य की जांच एजेंसियों के सक्रिय होने से भ्रष्ट अफसर और कारोबारी सकते में हैं। दूसरी ओर राज्य सरकार को मोदी की गारंटी का भी ख्याल रखना है। विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने छत्तीसगढ़ में चीख-चीख कर कहा था कि मोदी की गारंटी है भ्रष्टाचारी बक्से नहीं जाएंगे। अब इस गारंटी को भी पूरा करने विष्णु सरकार कमर कसना शुरु कर दी है।

ओपी सख्त, खींची लकीरें

वित्त मंत्री ओपी चौधरी सरकारी राजस्व बढ़ाने हर दिशा में काम कर रहे हैं। शायद यही कारण है कि उन्होंने अफसरों के लिए भी लकीरें खींचना शुरु कर दिया है। अफसरशाही से निकलकर नेता बने ओपी यह भली-भांति जानते हैं कि राज्य में व्यर्थ हो रहे राजस्व को कैसे रोका जा सकता है। ओपी ने पहले शराब की दरों में वृद्वि की बाद में जमीन की रजिस्ट्री में मिल रही 30 प्रतिशत की छूट को समाप्त कर दिया। अब वित्त मंत्री ने अफसरों की भी सीमाओं को भी याद दिलाया है। दरअसल में वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने अपने पहले बजट भाषण में ही स्पष्ट कर दिया था कि वह लीकेज को रोकने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। चूंकि ओपी खुद आईएएस रह चुके हैं, उन्हें यह पता है कि अफसरों के स्तर पर कहां-कहां लीकेज रोके जा सकते हैं। वित्त मंत्री चौधरी ने इसकी शुरुआत सरकारी वाहनों में कटौती से की है। अब सचिव या सचिव से उच्च स्तर के अधिकारी या कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों के लिए अधिकतम 12 लाख रुपये तक की ही गाडियां खरीदी जा सकेगी। यहीं नहीं अब अफसर अपने कार्यक्षेत्र से बाहर सरकारी वाहन नहीं ले जा सकेंगे। इसके लिए पेट्रोल और डीजल की लिमिट तय की गई है। अफसर यदि इसका उल्लंघन करेंगे तो उनके वेतन से वसूली का प्रावधान किया गया है, साथ ही अनुशासनात्मक कार्यवाही का भी प्रावधान है। संयुक्त संचालक एवं इससे उच्च स्तर के अधिकारी 8.50 लाख तक की ही गाड़ी की सवारी कर सकेंगे। मैदानी कार्यालयों के अधिकारियों के लिए अधिकतम 10 लाख की ही गाडिय़ां खरीदी जा सकेंगी। ओपी के इस आदेश के बाद 25 से 30 लाख की चमचमाती इनोवा चढऩे वाले अफसर खासे परेशान हैं। वित्त विभाग के इस आदेश के बाद अब कुल मिलाकर अफसरों को हाथी की सवारी करने के बाद ऊंट की सवारी करनी पड़ेगी।

सांसद से अब फिर पार्षद की ओर सुनील

देशभर में इन दिनों भाजपा की राजनीति ही कुछ जुदा किश्म की दिखाई दे रही है। इस दौर में कब, कौन, क्या? बन जाए कोई ठिकाना नहीं है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में एक झटके में मुख्यमंत्री के चेहरों को किनारे कर दिया गया। कई केन्द्रीय मंत्री भी बदल दिए गए, पर किसी ने चूं नहीं की। तो भला सांसदों की क्या मजाल है कि वह कुछ बोल दें। ऐसा ही कुछ रायपुर से सांसद सुनील सोनी के साथ हुआ। सुनील ने पिछला लोकसभा चुनाव रिकार्ड मतों से जीता था, फिर भी बेरहमी से पार्टी ने उनका टिकट काट दिया। पांच साल के कार्यकाल में सुनील पर कोई आरोप-प्रत्यारोप भी नहीं लगे फिर भी उन्हें घर बिठा दिया गया। खैर अब सुनील की टिकट कट चुकी है, 4 जून को रायपुर को नया सांसद मिल जाएगा। लेकिन सुनील का क्या होगा? ऐसे में सुनील क्या करेंगे? इस पर चर्चा छिड़ी हुई है। कहा जा रहा है कि सुनील सोनी अब एक बार फिर निगम की राजनीति में सक्रिय हो गए हैं। लेकिन यहां भी समस्या है अब महापौर का चुनाव जनता सीधा नहीं कर सकती। सुनील को पहले पार्षद का चुनाव लडऩा होगा। मौजूदा नियमों के आधार पर पार्षद बनने के बाद ही वह अगली सीढ़ी चढ़ सकते हैं। उसमें भी राजनीतिक जोखिम है, बीजेपी का दूसरा खेमा इस बार महिला महापौर बनाने पर जोर दे रहा है। कुल मिलाकर सुनील सांसद के बाद अब एक बार फिर पार्षद के लिए जोर अजमाइस करेंगे। महापौर बन गए तो उनकी किश्मत वरना वो जहां से राजनीति की शुरुआत की वहीं फिर खड़े दिखाई देंगे।

कद्दावरों के बीच जनता की झोली खाली

छत्तीसगढ की राजनीति में कवर्धा का अपना एक अलग स्थान रहा है। यहां की राजनीति से निकलकर कई साधारण कार्यकर्ता दिग्गज नेता बन गए। सीधे, सहज स्वाभाव के डॉ. रमन सिंह कवर्धा की माटी से निकलकर 15 साल राज्य के मुख्यमंत्री रहे। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे, वर्तमान में वह राज्य के विधानसभा अध्यक्ष हैं। मोहम्मद अकबर कांग्रेस सरकार में दो-दो बार मंत्री रहे। अब विजय शर्मा एक सामान्य कार्यकर्ता से सीधा राज्य के उपमुख्यमंत्री हैं। यह कवर्धा की माटी का कमाल है, यहां से निकला नेता सीधा कद्दावर नेता बन जाता है। पहले रमन फिर अकबर और अब विजय पर राज्य की बड़ी जिम्मेदारियां हैं। तीनों नेता अपने समय में कद्दावर रहे हैं, फिलहाल विजय शर्मा कद्दावर नेता बन चुके हैं। जाहिर सी बात है जिम्मेदारी बड़ी तो कार्यक्षेत्र का दायरा भी बढ़ जाता है। लेकिन जब यह दायरा बढ़ता है तो क्षेत्र के लिए समय घटता चला जाता है। रमन कवर्धा से निकलकर राजनांदगांव पहुंच गए। अकबर ने कवर्धा से ज्यादा राजधानी से मोहब्बत की। कुल मिलाकर बीते कई वर्षों में कवर्धा की जनता को स्थानीय विधायक का सुख नहीं मिल पा रहा। कवर्धा की जनता के लिए अपने विधायक से मिलना तीर्थ यात्रा करने के समान है। क्योंकि यहां से निकला नेता सीधा कद्दावर बन जाता है। इसी पर कबीर दास जी कहते हैं ‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंथी को भी छाया नहीं फल लगे अति दूर’।

रेरा से जादा जीएसटी का खौफ

बिल्डरों पर नकेल कसने और आम जनता के हितों के लिए रेरा का गठन किया गया । लेकिन जटिल नियम प्रक्रिया के चलते आम जनता अपनी शिकायत रेरा तक नहीं लेकर जाते। लाख परेशानियां हों लेकिन रेरा में उपभोक्ता जाना ही नहीं चाहता। शायद इसी का फायदा बिल्डरों को मिल रहा। नियम प्रक्रिया जटिल होने के कारण बिल्डरों में भी रेरा का दबाव न के बराबर देखा जा रहा है। लेकिन जीएसटी विभाग ने बिल्डरों की नब्ज पकड़ ली है। कहा जा रहा है कि कच्चे-पक्के के खेल में भारी-भरकम सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाने की खबर से जीएसटी विभाग सक्रिय हो चुका है। शायद इसी कारण राज्य के बिल्डरों पर जीएसटी की लगातार कार्यवाही जारी है। दरअसल में प्रदेश के लगभग सभी बिल्डर कच्चे-पक्के का कारोबार करते हैं जिसमें एक बड़ी रकम कच्चे में यानि की नगदी ले ली जाती है। शेष रकम सरकारी गाइड लाइल यानि कि पक्के में ली जाती है। इस खेल में बिल्डरों द्वारा सरकारी राजस्व को अच्छा खासा चूना लगाया जाता है। सरकारी करों में हो रहे नुकसान के कारण अब जीएसटी विभाग के टारगेट में राज्य के बिल्डर हैं। जाहिर सी बात है ऐसे में रेरा से ज्यादा खौफ इन दिनों जीएसटी का दिख रहा है।

निगम-मंडल के पहले दो मंत्रियों की छुट्टी

छत्तीसगढ़ में लोकसभा के लिए सभी सीटों पर मतदान सम्पन्न हो चुके हैं। चुनाव सम्पन्न होते ही निगम-मंडलों की नियुक्तियों को लेकर खींच-तान शुरु हो गई है। नए-पुराने नेता अपने-अपने दांव लगाना शुरु कर दिए हैं। अपने पसंदीदा और करीबी चेहरों को कुर्सी में बिठाने की जुगत चालू हो चुकी है। इस बीच यह कहा जा रहा है कि निगम मंडल की नियुक्यिों से पहले दो मंत्री बदले जाएंगे। इसमें कितनी सत्यता है यह तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट हो सकेगा। वैसे भी वर्तमान में एक मंत्री का कोटा रिक्त है। वहीं केबिनेट मंत्री बृजमोहन अग्रवाल यदि चुनाव जीतकर आते हैं तो एक और मंत्री पद रिक्त हो जाएगा। ऐसे विष्णु मंत्रीमंडल में चार और नए चेहरे देखने को मिल सकते हैं। सम्भव है कि इसमें रमन सरकार में मंत्री रहे कुछ नेताओं को भी जगह मिल जाए।

आचार संहिता में भी करोड़ों का वारा न्यारा

कहने को तो आचार संहिता के दौरान सभी सरकारी काम रुक जाते हैं। लेकिन राज्य में एक ऐसा विभाग हैं जो आचार संहिता के दौरान भी 100 रुपए के स्टाम्प में एमओयू करके करोड़ों का वारा न्यारा कर दिया है। इस विभाग के अफसरों ने न ही आचार संहिता की परवाह की और न ही भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेडऩे वाली विष्णु सरकार की चिंता की। 26 अप्रैल 2024 को विभाग के अफसर और कम्पनी ने एमओयू साइन किया गया, इस दौरान आदर्श आचार संहिता प्रभावशील है। आरोप यह भी है कि इसमें बड़े अधिकारियों की मिलीभगत से करोड़ों के वारे न्यारे कर दिए गए हैं। खैर यह तो जांच का विषय है, लेकिन प्राथमिक रुप से आचार संहिता के दौरान ही एमओयू साइन कर दिया गया है। जिसकी वजह से बड़ी गड़बड़ी की आशंका जताई जा रही है। लोग मामले का दस्तावेज खंगालना शुरु कर दिए हैं। देर सबेर इस मामले का खुलासा होगा जिससे विभाग की जमकर फजीहत हो सकती है।

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