रायपुर, गंभीर रूप से घायल और बीमार मरीजों को रेडक्रास से जो खूना मुप्त मिलना था, रक्तपिपासुओं ने उसे ब्लड बैंकों को बेच डाला। 800 यूनिट ब्लड के इस घाटालो से 6.40 लाख की काली कमाई हुई। चंद लोगों ने अपनी जेबें गर्म की। इधर,थैलेसीमिया से पीड़ित प्रदेश के 550 बच्चे खून के लिए तरसते रह गए। रिडक्रास की राज्य शाखा में ये घोटाला तब हुआ जब रायपुर समेत पूरी दुनिया कोरोना की मार से त्रस्त थी। मई 2020 की तीसरें चरण की लॉकडाउन लागू हुआ। अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों का ही इलाज हो रहा था। ब्लड की डीमांड घट गई थी। खून की अधिकतम 35 दिन तक ही स्टोर किया जा सकता हैं। मॉडर्न ब्लड बैंक के स्टॉक मे रखा यूनिट खराब न हो,इसलिए तय हुआ कि इसे प्राइवेट ब्लड बैंकों में मूप्त बांटा जाएगा। लेकिन ऐसा नही हुआ। रेडक्रास के अकाउंटटे राजेश मिश्रा और सुपरवाइजर आसिफ इकबाल खान ने प्राइवेट ब्लड बैंको में इस खून का 800 रूपए प्रति यूनिट के हिसाब से सौंदा किया।
जबकि इस दौरान प्रदेश में थैलेसीमिया से पीड़ित 550 बच्चों को खून के अभाव में तरस रहे थे और इनका दुख देखकर इनके माता-पिता तड़प रहे थे। ऐसे बच्चों के लिए काम करने वाली काजल सचदेव ने बताया कि 2020 में 8 माह अभियान चलाकर भी हम 120 यूनिट ब्लड ही इकट्ठा कर पाए। जबकि, हर माह जरूरत 1100 यूनिट की थी। खून के लिए हम जहां-तहं भटक रहे थे।