स्वच्छता मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है। स्वच्छता किसी से उधार ली गई आधुनिक अवधारणा नहीं है, बल्कि भारत की प्राचीन सभ्यता (सिंधु घाटी) में शौचालय निर्माण और अपशिष्ट प्रबंधन में उपयोग की जाने वाली वैज्ञानिक विधियों के ऐतिहासिक साक्ष्य हैं। लेकिन सैकड़ों वर्षों की दासता ने भारत की सामाजिक व्यवस्था से स्वच्छता के महत्वपूर्ण मूल्य को छीन लिया। स्वच्छता के संबंध में अनेक विद्वानों एवं संस्थाओं ने अपने-अपने तरीके से समझाने का प्रयास किया है। मुख्य रूप से ’स्वच्छ’ शब्द का अर्थ है- अत्यन्त साफ, विशुद्ध, उज्जवल एवं स्वस्थ। स्वच्छ शब्द में ’ता’ प्रत्यय जोड़ने पर भाववाचक ’स्वच्छता’ बनता है। स्वच्छता का तात्पर्य है-सब प्रकार से साफ-सफाई, निर्मलता एवं पवित्रता। मन-हृदय की, शरीर एवं वस्त्रों की, घर-बाहर, पानी-वायु-भूमि आदि की निर्मलता या सफाई रखना ही स्वच्छता है। स्वच्छ भारत मिशन, दुनिया की सबसे बड़ी स्वच्छता पहल, महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि के रूप में, 02 अक्टूबर, 2019 तक खुले में शौच मुक्त भारत को प्राप्त करने के लिए 2014 में भारत के प्रधान मंत्री द्वारा स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत की गई थी। इस कार्यक्रम के कारण 10 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का निर्माण हुआ, जिससे स्वच्छता कवरेज 2014 में 39% से बढ़कर 2019 में 100% हो गया, जब लगभग 6 लाख गांवों ने खुद को खुले में शौच से मुक्त (ODF) घोषणा की जबकि अध्ययनों से संकेत मिलता है कि स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) अभियान ने महत्वपूर्ण आर्थिक, पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभाव डाला, विशेष रूप से महिलाओं के सशक्तिकरण में योगदान दिया, इससे SDG 6.2 (स्वच्छता और स्वच्छता) की उपलब्धि भी निर्धारित समय-सीमा से 11 साल पहले हुई।
महात्मा गांधी ने स्वच्छता को स्वतंत्रता संग्राम का एक अहम हिस्सा माना था। आजादी के बाद, स्वच्छता पर जोर देने की शुरुआत हुई, लेकिन यह प्राथमिकता से ग्रामीण क्षेत्रों तक नहीं पहुँच पाई। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता को लेकर जागरूकता और इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास बहुत ही सीमित था। इस क्रम में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता योजना 1986 में भारत सरकार ने केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम की शुरुआत की। इसका उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता सुधारने के लिए बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना था। वही समग्र स्वच्छता अभियान (TSC) 1999 के अंतर्गत ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता में सुधार लाना था, जिसमें व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का निर्माण, स्कूलों में शौचालय निर्माण, और स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाना शामिल था। इसी क्रम में निर्मल भारत अभियान (NBA 2012) के तहत व्यापक पैमाने पर स्वच्छता सुविधाओं का विस्तार करना और 2022 तक खुले में शौच मुक्त भारत का निर्माण करना था। स्वच्छता के क्रम में सबसे आमूलचूल परिवर्तन स्वच्छ भारत मिशन (SBM 2014) के संचालन से मिलती है। इसके तहत शौचालयों का व्यापक निर्माण हुआ, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सफलताएँ 2019 तक भारत के सभी राज्यो को 100% खुले शौच मुक्त गांव (ODF) घोषित किया गया। शौचालयों का निर्माण बड़े पैमाने पर हुआ और स्वच्छता के प्रति जागरूकता भी बढ़ी। यह भारत का अब तक का सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान रहा। स्वच्छ भारत अभियान के तहत भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा कार्यक्रम लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण एवं जनकेन्द्रित अभियान है अभियान के एक भाग के रूप में प्रत्येक पारिवारिक इकाई के अन्तर्गत व्यक्तिगत घरेलू शौचालय की इकाई लागत को 10,000 रूपये बढ़ाकर 12,000 रूपये कर दिया है और इसमें हाथ धोने, शौचालय की सफाई एवं भण्डारण को भी सम्मिलित किया गया है। इस तरह शौचालय के लिये केन्द्र सरकार की तरफ से मिलने वाली सहायता 7200 रूपये और राज्य सरकार का योगदान 4800 रूपये होगा। अन्य स्त्रोतों से अतिरिक्त योगदान करने की स्वीकार्यता भी होगी।
विश्व शौचालय संगठन
वैश्विक स्तर पर स्वच्छता के मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व शौचालय संगठन का 2001 में स्थापित किया गया हैं जिसका उद्देश्य प्रत्येक वर्ष 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस के रूप में मनाता है। चूँकि स्वच्छता की वैश्विक चुनौतियाँ अभी भी कई विकासशील देशों विशेषकर उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में खुले में शौच की समस्या बनी हुई है। यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों, शहरी झुग्गियों, और गरीब समुदायों में स्वच्छता की सुविधाओं की कमी अब भी एक बड़ी चुनौती है। जिससे महिलाएँ और बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। महिलाओं के लिए सुरक्षित शौचालयों की कमी से उनका स्वास्थ्य और सुरक्षा दोनों प्रभावित होती हैं तथा स्कूलों में शौचालय की अनुपस्थिति से बच्चों की शिक्षा बाधित होती है।