फिर संघ का दरवाजा खटखटाएगी भाजपा?

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लोकसभा चुनाव के नतीजे अब जनता के सामने हैं। जनता ने साफ तौर पर संदेश दिया है कि मोदी जी अब आप हमारी भी सुनो। दरअसल में अभी तक मोदी सिर्फ अपने मन की बात देश की जनता को सुनाते आये हैं, लेकिन कभी भी उन्होनें जनता की आवाज सुनने की कोशिश नहीं की। लेकिन अब जनमत ने साफ तौर पर कह दिया है कि अब आपको हमारी भी सुनना पडेगा। शायद इसी कारण भाजपा को अकेले दम पर देश में बहुमत नहीं मिल पाई। मोदी की गांरटी को देश की जनता ने खारिज करते हुए सामुहिक रुप से एनडीए को सरकार चलाने का मत सौंपा है। लोकसभा चुनाव का परिणाम ठीक वैसा ही आया जैसा आम जनता चाह रही थी। देश की आम जनता को मोदी और अमित शाह का राजनीतिक घमंड साफ तौर पर दिखाई देने लगा है। जनता अन्दर ही -अन्दर यह तय करके बैठ गई थी कि भाजपा को सरकार चलाने का एक बार और अवसर मिलना चाहिए, लेकिन अमित शाह और मोदी की मनमानियों पर रोक लगाया जाए। दरअसल में इस लोकसभा चुनाव में मोदी और शाह का घमंड सातों आसमान पर चढकर बोलने लगा था। इसके अनेकों उदाहरण जनता के सामने हैं। उत्तर प्रदेश की सीटों पर मतदान शेष थे तब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने खुले मंच से मीडिया के सामने कहा कि अब भाजपा का बहुत विस्तार हो चुका है, चुनाव में संघ की जरुरत नहीं पडती। उन्होने यह भी कहा पहले चुनावों में भाजपा संघ का सहारा लेती थी, अब संघ की कोई भूमिका नहीं होती। नड्डा के इस राजनीतिक बयान के मायने क्या हैं? क्या नड्डा ने मोदी और शाह के इशारे पर संघ को आंख दिखाने की कोशिश की? खैर नड्डा जी अब आपको संघ की सुनना पडेगा, और शायद चुनावों में आगे फिर भाजपा को संघ का दरवाजा खटखटाना पडेगा। इस लोकसभा चुनाव में एक दूसरे के पूरक माने जाने वाले संघ और भाजपा में खुले रुप से तकरार दिखी। चुनावी सभा के बीच 10 साल के कार्यकाल में मोदी पहली बार नागपुर में रात्रि विश्राम के लिए रुके, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उनकी संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत से इस दौरान मुलाकात नहीं को सकी। यहीं नहीं नागपुर से भाजपा प्रत्याशी आरएसएस का पसंदीदा चेहरा नितिन गडकरी ने भी मोदी से मुलाकात नहीं की। यह तमाम घटनांए यह संकेत दे रही थीं कि भाजपा और आरएसएस के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। खैर इसके लिए कहीं न कहीं मोदी, शाह और नड्डा ही जिम्मेदार हैं। इस लोकसभा चुनाव में भाजपा के अन्दर कहीं भी संघ की विचारधारा नहीं नजर आई। शायद इसीलिए संघ ने आखिरी-आखिरी चुनाव से दूरी बना ली। जैसा संघ का नाम है वैसा ही संघ समूह पर भरोसा करते रहा है, लेकिन भाजपा इसके विपरीत व्यक्ति विशेष पर केन्द्रित होकर सिमट गई। मोदी की गांरटी इसका सबसे बडा उदाहरण है। इस लोकसभा चुनाव में कहीं भी भाजपा की गांरटी नजर नहीं आई, चारों ओर सिर्फ मोदी की गारंटी ही दिखाई दे रही थी। संघ का विचार कभी भी व्यक्तिवादी नहीं रहा। लेकिन पूरी भाजपा मोदी के इर्द-गिर्द घूमते दिखी। खैर अब भाजपा को जनता ने स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है, इसलिए आगे क्या होगा यह सवाल पूरे पांच साल तक जनता के बीच घूमते रहेगा। दरअसल पर एनडीए गठबंधन का हिस्सा कहलाने वाले नितीश कुमार कुछ दिन पहले मोदी हटाओ के नारे पर काम कर रहे थे। वहीं चन्द्रबाबू नायडू का राजनीतिक स्टैंण्ड आगे क्या होगा? इस पर फिलहाल कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी। बहरहाल देश की जनता ने एनडीए को बहुमत तो सौंप दिया, लेकिन मोदी और शाह की कमान अपने हाथों में ली है। वहीं जिस भाजपा का इतना विस्तार हो गया था कि उसे चुनावो में संघ की जरुरत नहीं पडती थी। अब उसी भाजपा को आगे संघ का दरवाजा फिर खटखटाना पड़ सकता है।

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