नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी संजीव भट्ट की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने 1990 के कस्टोडियल डेथ केस में अपनी आजीवन कारावास की सजा को निलंबित करने की मांग की थी. उन्होंने इस मामले में जमानत की भी मांग की थी, जिसे शीर्ष अदालत ने ठुकरा दिया.
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि वह सजा को निलंबित करने और संजीव भट्ट को जमानत पर रिहा करने के पक्ष में नहीं है. हालांकि, पीठ ने निर्देश दिया कि भट्ट द्वारा शीर्ष अदालत के समक्ष दायर अपील पर प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई की जाएगी. यह मामला 1990 में घटित एक घटना से संबंधित है जब संजीव भट्ट जामनगर जिले में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात थे.
वहां सांप्रदायिक दंगा भड़कने के बाद उन्होंने आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (TADA) के तहत लगभग 133 लोगों को हिरासत में लिया था. ये दंगे उस वर्ष 30 अक्टूबर को भारतीय जनता पार्टी (BJP) और विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा भारत बंद के आह्वान के बाद हुए थे, जो तत्कालीन भाजपा प्रमुख लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के विरोध में किया गया था. आडवाणी ने राम मंदिर मुद्दे को लेकर गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा निकाली थी.