छत्तीसगड के वैज्ञानिकों की टीम ने डॉ राजेंद्र मिथ के नेतृत्व में कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान से दुनिया में पीपल की नयी प्रजाति की खोज की है। यह छत्तीसगढ राज्य के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। इस प्रजाति का प्रथम संग्रहण डॉ. राजेन्द्र मिश्रा, उपनिदेशक, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया एवं डॉ. एम. एल. नायक, सेवानिवृत्त वनस्पति विज्ञान प्रोफेसर, रायपुर द्वारा एक क्षेत्रीय सर्वेक्षण के दौरान किया गया। इस टीम ने फरवरी 2002 में पहली बार इस प्रजाति को देखी एवं लगभग डेढ़ वर्ष तीनो मौसम में पौधे का अध्ययन करते रहे। इस वृक्ष की विशिष्ट आकृति-विशेषताओं को पहचान कर, इसे विस्तृत वर्गीकरणीय अध्ययन हेतु क्षेत्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय, मैसूर के वैज्ञानिक डॉ. अर्जुन प्रसाद तिवारी को भेजा गया। गहन अध्ययन एवं फिकस वंश की ज्ञात प्रजातियों से तुलनात्मक विश्लेषण के पश्चात यह पुष्ट हुआ कि यह विज्ञान के लिए एक नई प्रजाति है। इसके बाद भी टीम ने देश एवं दुनिया के बनस्पति विज्ञान विशेषज्ञों से सलाह लेते रहे।
डॉ राजेंद्र मिथ ने इस प्रजाति का नाम छत्तीसगढ के ख्यातिप्राप्त बनस्पति विज्ञान विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर डॉ एम एल नायक के नाम से फाईकस नायकी रखने का निर्णय लिया जिन्होंने छत्तीसगढ़ की पादप विविधता पर पांच दशकों से अधिक समय तक महत्वपूर्ण कार्य किया है। फिकस नैकी का औपचारिक वर्णन आज 19 जुलाई को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय समीक्षित शोध पत्रिका नॉर्डिक जर्नल ऑफ़ बॉटनी में प्रकाशित किया गया है।
फिकस नैकी की पहचान इसकी चिकनी सफेद से पीली छाल, अर्ध-हृदयाकार से गोलाकार पत्ती-आधार, नुकीले शीर्ष, आधारवर्ती आवरण-पत्र (ब्रैक्ट्स) जो अधिपात्र (रिसेप्टेकल) की लंबाई के आधे तक फैले होते हैं, तथा बगल में स्थित, बिना डंठल के, रोमशाली अंजीर फलों से की जाती है। ये सभी लक्षण इसे फिकस वंश की अन्य संबंधित प्रजातियों से भिन्न बनाते हैं। यह खोज एक संयुक्त वैज्ञानिक प्रयास का परिणाम है। इस बहु-आयामी टीम ने इस महत्वपूर्ण वर्गीकरणीय खोज का दस्तावेजीकरण, विवरण एवं पुष्टि की।
दुर्भाग्यवश, इस प्रजाति को आईयूसीएन रेड लिस्ट की श्रेणी 2022-2 के मानदंड डि के अंतर्गत अत्यंत संकटग्रस्त (क्रिटिकली एंडेंजर्ड) घोषित किया गया है, क्योंकि इसकी ज्ञात जनसंख्या अत्यंत सीमित है- केवल लगभग 05 परिपक्व वृक्ष लगभग 10 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में पाए गए हैं। इस कारण फिकस नैकी न केवल एक महत्वपूर्ण वर्गिकी खोज है, बल्कि संरक्षण की दृष्टि से भी प्राथमिकता प्राप्त प्रजाति है।
इस खोज के सूत्रधार छत्तीसगढ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरुण कुमार पाण्डेय हैं जिन्होंने कांगेर घाटी को विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिये इसके जैव विविधता के दस्तावेजीकरण करने का निर्णय लिया था. पाण्डेय के मार्गदर्शन में टीम ने नांगेर घाटी के जैव विविधता को पौध प्रजाति एवं प्राणी प्रजाति को अलग अलग 2 खण्डों में हाल ही प्रकाशित किया है.