रायपुर भारतीय सांस्कृतिक निधि रायपुर अध्याय एवं मानव विज्ञान अध्ययन शाला पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में बस्तर का सांस्कृतिक वैभव विषय पर ऑडियो-विजुएल माध्यम से प्रस्तुतिकरण किया गया। संस्कृति एवं पुरातत्व अध्येता राहुल कुमार सिंह ने प्रमुख वक्तव्य देते हुए कहा कि सांस्कृतिक वैभव की जब भी चर्चा होती है, तो उसके प्ररिप्रेक्ष्य व संदर्भ का उल्लेख होता है। विशिष्ट बातों के लिए जिन तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिये, उसे सामने रखने की कोशिश उन्होंने की।
छत्तीसगढ़ के तीन हिस्सों उत्तर, मध्य व दक्षिण को विस्तार से बताया। दक्षिण छत्तीसगढ़ लौह अयस्क जिसे रेड कोरिडोर भी कहते हैं का क्षेत्र है। उन्होंने छत्तीसगढ़ प्रदेश का भौगोलिक विश्लेषण भी किया। उन्होंने पीसी अग्रवाल द्वारा लिखित ह्यूमन जियोग्राफी ऑफ बस्तर डिस्ट्रिक्ट (Human Geography of Bastar District) का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें वैज्ञाानिक भविष्य की चर्चा की गई है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. शिव कुमार पांडेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि ललित सुरजन के माध्यम से इन्टैक ने रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में प्रवेश किया। उन्होंने विभिन्न धरोहरों जैसे – नैसर्गिक, मानव निर्मित, मूर्त-अमूर्त, वास्तुकला, कला-शिल्प आदि का उल्लेख किया तथा इसे सहेजने के लिए युवाओं की भूमिका को प्रतिपादित किया।
उनके अनुसार, छत्तीसगढ़ का बस्तर जनजातीय बहुलता वाला क्षेत्र है। बस्तर के वैभव व साहित्य की काफी चर्चा होती है। कोंडागांव के हरिहर वैष्णव ने भाषा को नई दृष्टि दी और उसे आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। बस्तर की भाषा एवं जनजातियों का समय के साथ क्षरण हुआ है, जिसे संरक्षित रखना आवश्यक है। उन्होंने उपस्थित श्रोताओं को आह्वान किया कि इस अंचल के सांस्कृतिक वैभव जैसे – बस्तर शिल्प, लोक संगीत आदि को न सिर्फ जानें, बल्कि उसे सहेज कर रखें।
छत्तीसगढ़ के तीन हिस्सों उत्तर, मध्य व दक्षिण को विस्तार से बताया। दक्षिण छत्तीसगढ़ लौह अयस्क जिसे रेड कोरिडोर भी कहते हैं का क्षेत्र है। उन्होंने छत्तीसगढ़ प्रदेश का भौगोलिक विश्लेषण भी किया। उन्होंने पीसी अग्रवाल द्वारा लिखित ह्यूमन जियोग्राफी ऑफ बस्तर डिस्ट्रिक्ट (Human Geography of Bastar District) का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें वैज्ञाानिक भविष्य की चर्चा की गई है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. शिव कुमार पांडेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि ललित सुरजन के माध्यम से इन्टैक ने रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में प्रवेश किया। उन्होंने विभिन्न धरोहरों जैसे – नैसर्गिक, मानव निर्मित, मूर्त-अमूर्त, वास्तुकला, कला-शिल्प आदि का उल्लेख किया तथा इसे सहेजने के लिए युवाओं की भूमिका को प्रतिपादित किया।
उनके अनुसार, छत्तीसगढ़ का बस्तर जनजातीय बहुलता वाला क्षेत्र है। बस्तर के वैभव व साहित्य की काफी चर्चा होती है। कोंडागांव के हरिहर वैष्णव ने भाषा को नई दृष्टि दी और उसे आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। बस्तर की भाषा एवं जनजातियों का समय के साथ क्षरण हुआ है, जिसे संरक्षित रखना आवश्यक है। उन्होंने उपस्थित श्रोताओं को आह्वान किया कि इस अंचल के सांस्कृतिक वैभव जैसे – बस्तर शिल्प, लोक संगीत आदि को न सिर्फ जानें, बल्कि उसे सहेज कर रखें।
दक्षिणी छत्तीसगढ़ के बस्तर में सात जिले हैं। रायबहादुर हीरालाल द्वारा यहां के शिलालेख पर काम किया गया है। उन्होंने छत्तीसगढ़ प्रदेश के पौराणिक इतिहास को समझाते हुए कहा कि गढ़ धनोरा में विष्णु की प्रतिमा मिली है। बस्तर की संस्कृति को देखते हुए उस विविधता को देखना चाहिए कि वह कितनी समन्वित है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में बोलने वाली भाषा जैसे – आर्य, छत्तीसगढ़ी, भतरी, हल्बी, द्रविण, परजी, धुरवी, गोंडी, दोरली, मुरिया, अबुझमाडिया के बारे में उन्होंने जानकारी दी। दंतेश्वरी मंदिर में मेरिया नरबलि की प्रथा रही है।