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सीधे मौत की सजा देते हो, वजह क्या है?
छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के खिलाफ लगातार षड्यंत्र हो रहे हैं। षड्यंत्र की यह कडी खौफनाक मौत तक पहुंच चुकी है। आखिर इन षड्यंत्रकारियों को राज्य में कौन संरक्षण दे रहा है? किसके संरक्षण में बीजापुर के युवा पत्रकार मुकेश चन्द्राकर की हत्या कर दी गई। चौथे स्तंभ की हत्या का असली गुनाहगार कौन है? ऐसे कई सवाल लिए राज्यभर के पत्रकार इन दिनों शांतिपूर्ण आंदोलन कर मुकेश को न्याय दिलाने की मांग कर रहे हैं। बहरहाल इसके लिए एसआईटी का गठन किया गया है, जांच के बाद ही असली सच उजागर होगा। लेकिन राज्य में पत्रकारों को धमकाना, उनके वाहनों में मादक पदार्थ रखवाना, नौकरी से निकलवाना आम बात हो चुकी है। राज्य के पत्रकार लम्बे समय से इन घटनाओं का दंश झेल रहे हैं। जिनके सामने आज भी रोजी-रोटी का संकट है। खैर पत्रकार कम शौक में जिंदा रहने वाला किरदार है। किसी न किसी कदर वह अपनी रोजी-रोटी का बंदोबश्त कर गरीब, पीडि़त और शोषित की आवाज बनता है। मुकेश भी शायद बस्तर में यही कर रहे थे। वरना उनका विवाद ठेकेदार से क्यों होता? वह गरीबों और बस्तरवासियों के लिए बन रही सड़क के गुणवत्ता को लेकर सवाल उठा रहे थे। शायद उन्हें चिंता थी कि ठेकेदार बस्तर से रुपया समेटकर निकल जाएगा और बस्तरवासियों को फिर खराब सड़क का दंश झेलना पड़ेगा। लेकिन उन्हें क्या पता था कि संरक्षण प्राप्त कथित गुंडे/ ठेकेदार सीधा मौत की सजा देने में आमदा हैं। बहरहाल पत्रकारों के खिलाफ षड्यंत्र का जाल क्यों बिछाया जा रहा है? इसके पीछे कौन हैं? इन सवालों के साथ मुकेश की लिखी दो लाइनों का जिक्र कर रहा हूं –
”सीधे मौत की सजा देते हो, वजह क्या है?
मुझे बताओ तो सही, मेरा गुनाह क्या है?”
महंत और कांग्रेस को कोर्ट जाने से कौन रोक रहा?
नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत इन दिनों अपने पत्रों के माध्यम से जमकर राजनीतिक सुर्खियां बटोरने का काम कर रहे हैं। महंत ने नगरीय निकाय चुनाव को लेकर राज्यपाल और अब निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर समय पर चुनाव कराने की मांग की है। महंत पत्र के माध्यम से यह कहते नजर आ रहे हैं कि समय पर चुनाव न कराना संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है। इसके साथ ही उन्होंने पत्र के माध्यम से उच्चतम न्यायालय के दो निर्णयों राईट पेटीसन (सी) नम्बर 278 ऑफ 2022 डिसाइडेड ऑन मई 10, 2020 तथा पेटीसन (एस) फॉर स्पेशल लीव टू अपील (सी) नं. (एस) 26468 टू 26469/2024, 11-11-2024 का जिक्र करते हुए अविलंब निर्वाचन कराने की मांग की है। हालांकि महंत के पत्र को अब तक न ही राज्यपाल ने गंभीरता से लिया है, और न ही निर्वाचन आयोग ने कोई प्रतिक्रिया दी है। यही नहीं राज्य सरकार ने भी महंत के पत्र को ठेंगा दिखाते हुए प्रशासकों की दना-दन नियुक्तियां कर दी हैं। लेकिन महंत के लिखे पत्र में भी अब सवाल उठने लगे हैं। क्या वास्तव में महंत और कांग्रेस राज्य में नगरीय निकाय चुनाव जल्द कराने के पक्षधर हैं? जब यह पूरा मामला संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है तो महंत सिर्फ पत्र लिखकर राजनीतिक सुर्खियां बटोरने का काम क्यों कर रहे हैं? डॉ. महंत और कांग्रेस को आखिर कोर्ट जाने से किसने रोक रखा है? ऐसे तमाम सवाल इन दिनों आम जन मानस के बीच घूम रहे हैं।
बदले जाएंगे सुकमा, बीजापुर और बिलासपुर के कलेक्टर
सुकमा और बीजापुर कलेक्टरों के बदले जाने के संकेत हैं। दरअसल बीजापुर कलेक्टर विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान भी चर्चा में रहे। शीतकालीन सत्र को बीते पंद्रह दिन भी नहीं हुआ कि अब पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या का मामला सुर्खियों में छाया हुआ है। इसके साथ ही प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी एक छोटी सर्जरी संभावित है। दरअसल बिलासपुर कलेक्टर अवनीश शरण सचिव प्रमोट हो चुके हैं, लिहाजा एक और आदेश जल्द जारी हो सकता है। जिसमें बिलासपुर, बीजापुर और सुकमा के कलेक्टर बदले जा सकते हैं। अवनीश शरण को महानदी भवन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। वहीं रायपुर नगर निगम के कमिश्नर अबिनाश मिश्रा के परफारमेंस को देखते हुए उन्हें सुकमा या बीजापुर का कलेक्टर बनाया जा सकता है। प्रशासनिक दृष्टिकोण से बिलासपुर, रायपुर के बाद दूसरा बड़ा जिला माना जाता है, इसलिए यहां रायपुर के समकक्ष अनुभवी अफसर की तैनाती की जाएगी।
प्रशासनिक कसावट लाने की कवायद
आमतौर पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरल और सहज नेता के रुप में जाने जाते हैं। उनके व्यक्तित्व का हर इंशान मुरीद है। लेकिन एक साल बीतने के बाद सीएम विष्णुदेव स्वयं भी प्रशासनिक कसावट लाने के पक्षधर हैं। सम्भवत: इसीलए साल के पहले दिन ही मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के तेवर बदले-बदले से दिखे। सीएम ने पहले दिन ही सचिवों और विभागाअध्यक्षों की बैठक लेकर प्रशासनिक कसावट लाने के साफ निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को चौकन्ने रहने तथा राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ आम जनता को बेहतर ढंग से मिल सके इसके लिए मंत्रालय में जमकर कवायद की। दरअसल इसके सूत्राधार आईएएस सुबोध कुमार सिंह हैं। सुबोध के सीएम सचिवालय में वापसी के बाद एक बार फिर प्रशासनिक कसावट दिखने लगी है। सम्भवत: सुबोध सिंह को आनन-फानन में छत्तीसगढ़ वापस भी इसीलिए लाया गया है।
डिप्टी कलेक्टरों की भरमार
पिछली सरकार ने डिप्टी कलेक्टरों से फील्ड के काम लेने की बजाय उन्हें मंत्रालय या मुख्यालयों में पदस्त करने की परम्परा शुरु की थी। जिसका चलन इस सरकार में और तेजी से बढ़ गया है। यहां जनसंपर्क विभाग से लेकर मंत्रालय और मुख्यालयों में भी डिप्टी कलेक्टरों की भरमार है। यह बात अलग है कि इनकी जरुरत फील्ड में ज्यादा है। ज्यादा से ज्यादा डिप्टी कलेक्टरों की फील्ड में उपलब्धता से प्रशासनिक कसावट आयेगी। अकेले जनसंपर्क और संवाद में तीन डिप्टी कलेक्टरों की पदस्थापना की गई है। जिसमें से जनसंपर्क संचालक अजय अग्रवाल वर्तमान में आईएएस प्रमोट हो चुके हैं। इसके अलावा डिप्टी कलेक्टर विनायक शर्मा और वैभव क्षेत्रज को भी छत्तीसगढ़ संवाद में पदस्त किया गया है। डॉ. रमन सिंह के मुख्यमंत्री कार्यकाल में छत्तीसगढ़ संवाद के अतिरिक्त मुख्यकार्यपालन अधिकारी से लेकर जीएम तक की पोष्ट में जनसंपर्क विभाग के अफसरों की तैनाती की जाती रही है। आम तौर पर जनसंपर्क विभाग के अफसर पत्रकारों के ज्यादा नजदीक होते हैं। जनसंपर्क में पर्याप्त अधिकारियों की उपलब्धता के बाद भी डिप्टी कलेक्टरों की पदस्थाना करना कितना उचित है? यह तो शासन को तय करना है। यहीं नहीं मंत्रालय और अन्य मुख्यालयों में भी इनकी काफी संख्या में तैनाती की गई है, जबकि इन अफसरों से फील्ड में बेहतर काम लिया जा सकता है।
इन्तहां हो गई इंतजार की
मंत्रिमण्डल विस्तार की खबरें नेताओं के सब्र की इन्तहां ले रही हंै। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय राज्यपाल रमेन डेका को नए साल की बधाई देने राजभवन पहुंचे, तो इधर सोशल मीडिया में मंत्रिमंडल विस्तार की खबरें आग की तरह फैल गई। ऐसा लगा कि अगले दिन सुबह मंत्रियों की शपथ होने जा रही है। सोशल मीडिया में खबरें तो चल पडीं, लेकिन वेटिंग इन मिनिष्टरों का हाल-बेहाल हो गया। उनके यहां कोई कॉल और मैसेज नहीं, सब परेशान और हैरान आखिर मंत्री बन कौन रहा है? सम्भावित चेहरों के स्टाफ एक दूसरे के यहां घंटियां घनघनाते रहे। नेता जी भी रात करवट बदल-बदल कर काटते रहे। बडी मुश्किल से सुबह हुई, लेकिन गनीमत है कि सुबह की किरणों ने आस को बरकरार रखा। लेकिन अब कई नेता फूट-फूटकर कहने लगे हैं- ‘इन्तहां हो गई इंतजार की’।
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