नई सरकार बनने के बाद से यह सुनना और कहना आम बात हो चुकी है कि सरकारी कामकाज ठंडा पड़ा हुआ हैं, विभागीय कार्य भी काफी धीमे चल रहे हैं। दरअसल में इसके पीछे एक अफवाह फैलाई जा रही है, कि वित्त मंत्री ओपी चौधरी विभागों को बजट नहीं दे रहे, जिसके कारण सरकारी कामकाज एकदम स्लो चल रहा है। कहीं न कहीं इस हवा के कारण वित्त मंत्री ओपी चौधरी की राजनीतिक लोकप्रियता में गिरावट साफ तौर पर दिखने लगी है। जबकि सच यह है कि विभागीय मंत्री बजट राशि खर्च नहीं कर रहे और ठीकरा वित्तमंत्री ओपी चौधरी के सर फोड़े जा रहे हैं। बहरहाल अब ओपी चौधरी ने इस अफवाह पर विराम लगाने की कोशिश शुरु कर दी है। दरअसल में राज्य के दोनों उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा और अरुण साव के विभागों के साथ-साथ मंत्री रामविचार नेताम, केदार कश्यप और श्यामबिहारी जायसवाल के विभागों में बजट राशि खर्च नहीं हो पाने पर वित्त मंत्री ने चिंता जताई है। यहीं नहीं वित्त मंत्री ने इन पांच विभाग के मंत्रियों को पत्र भी लिखा है, जिसमें कहा गया है कि बजट की राशि जिस अनुपात में खर्च की जानी चाहिए, उस अनुपात में खर्च नहीं की जा रही है। हालात यह हो गए हैं कि वित्त मंत्री को बजट की राशि खर्च करने के लिए मंत्रियों से अनुरोध करना पड़ रहा है? खैर वित्तमंत्री जी की चिंता जायज है। राशि खर्च नहीं होने के कारण विभागों में काम भी न के बराबर हो रहे हैं और काम नहीं होने से जनता के साथ-साथ भाजपा कार्यकर्ताओं के मनोबल में भी कहीं न कहीं गिरावट दिखने लगी है। सम्भवत: इसलिए वित्त मंत्री को अब बजट इकट्टठा करने से ज्यादा खर्च करने की चिंता सताने लगी है।
कबूतर का कारनामा
वैसे तो शास्त्रों में कबूतर को शांति का प्रतीक माना गया है। एक जमाने में कबूतर संदेशवाहक भी होते थे। खैर अब वक्त बदल चुका है, अब तो लोग कबूतर को सिर्फ दाना खिलाना ही पसंद करते हैं। लेकिन कबूतर अभी भी संदेशवाहक का काम कर रहे हैं, यह जानकर आपको आश्चर्य होगा। कबूतर के संदेश के कारण एक जिले के एसपी निपट गए, उन्हें पुलिस मुख्यालय अटैच कर दिया गया है। दरअसल में आज से एक माह पूर्व यानि की 15 अगस्त के मौके पर अतिथियों से शांति का पैगाम दिलाने कबूतर उड़वाया गया। मुख्य अतिथि के रुप में मौजूद विधायक पुन्नुलाल मोहिले का कबूतर फुर्र से उठ गया। कलेक्टर राहुल देव का भी कबूतर शांति का पैगाम लेकर फुरफुराकर आसमान की ओर उड़ गया, लेकिन एसपी साहब का कबूतर गश खाकर जमीन में गिर पड़ा। निश्चित तौर पर समारोह में मौजूद भीड़ को देखकर एसपी साहब इस घटना से निराश थे और उन्होंने पत्राचार कर डाला। जिसमें कहा गया कि उन्हें जानबूझकर बीमार कबूतर सौंपा गया था। खैर कबूतर बीमार था या स्वस्थ यह तो डॉक्टर ही बता पायेंगे, लेकिन कबूतर के गश खाकर गिरने की खबर पूरे राज्य में सुर्खियां बनी रही। कहा तो यह भी जा रहा है कि कलेक्टर और एसपी के बीच बिलकुल पटरी नहीं बैठ रही थी। दरअसल में उसके पीछे सीनियर और जूनियर का मामला आड़े आ रहा था। आईपीएस गिरिजाशंकर जायसवाल 2010 बैच के अफसर हैं। वह डीआईजी लेवल के अफसर हैं। वहीं आईएएस राहुल देव 2016 बैच के अफसर हैं, जिसके कारण दोनों के बीच में जमकर खींचतान मची हुई थी। खैर सच क्या है? यह तो राहुल और गिरिजाशंकर ही जानेंगे। लेकिन कबूतर के चक्कर में 6 माह के भीतर ही गिरिजाशंकर को मुख्यालय अटैच कर दिया गया।
धीमी गति से संगठन चिंतित
सदस्यता अभियान के धीमी गति को लेकर बीजेपी संगठन काफी चितिंत है। सम्भवत: इसीलिए अजय जामवाल और पवन साय ने साफ तौर पर कह दिया कि सदस्यता अभियान में तेजी लाएं। दरअसल में राज्यभर से 50 लाख कार्यकर्ता बनाने का लक्ष्य रखा गया है। संगठन की बैठक में जो तथ्य सामने आये हैं उसमें से अभी तक मात्र 7-8 लाख सदस्य ही बनाए गए हैं। निश्चित ही लक्ष्य के अनुरुप अभी तक सदस्यता अभियान एकदम ठंडा पड़ा हुआ है। कार्यकर्ता क्यों रुचि नहीं ले रहे फिलहाल यह चिंतन और मंथन का विषय है। खैर आगे यह आकड़ा कितना पहुंचेगा फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन सदस्यता के अभी तक के आकड़ों को देखें तो काफी निराशाजनक परफारमेंस दिख रहा है। लक्ष्य के अनुरुप मूल्यांकन किया जाए तो अभी तक क्वालीफाई का आकड़ा भी राज्य भाजपा ने हासिल नहीं किया है। दरअसल में 50 लाख सदस्यों का लक्ष्य रखना मतलब क्वालीफाई होने के लिए कम से कम 17 लाख का आकड़ा पार करना होगा। लेकिन सदस्यता अभियान के वर्तमान आकड़ों को देखकर यह कहा जा सकता है कि लक्ष्य के अनुरुप प्रथम श्रेणी अथवा एक्सीलेंट का आकड़ा तय करना फिलहाल कठिन नजर आ रहा है।
बदनाम गुलदस्ता
वैसे तो अफसरशाही में गुलदस्ता लेना और देना एक परंपरा बन चुकी है। कुछ अफसरों की बात छोड़ दें तो यह परंपरा हर सरकारी दफ्तर में देखने को मिलती है। खैर इस शिष्टाचार में कोई बुराई भी नहीं है। लेकिन बड़ा सा गुलदस्ता देखकर किसी के वजन का मूल्यांकन करना कितना उचित है? दरअसल में गुलदस्ता की बात इसलिए की जा रही है क्योंकि अंबुजा सीमेन्ट से जुड़े एक अधिकारी को गुलदस्ते के कारण जेल की हवा खाना पड़ रहा है। अधिकारी ने एक कलेक्टर को गुलदस्ते के साथ नोटों का बंडल भी सौप दिया। कलेक्टर को नोटों के बंडल क्यों दिए गए फिलहाल इस पर बात करना अभी उचित नहीं है। लेकिन गुलदस्ता लेकर पहुंचा शख्स जेल पहुंच चुका है। कहते हैं कि वजन को देखकर कलेक्टर साहब को शक हुआ और उन्होंने वहीं पर अपने चपरासी से पैकेट खोलने कहा, पैकेट खुला तो उसमें नोटों का बंडल निकला। गुलदस्ता तक तो ठीक था, लेकिन नोटों का बंडल देख कलेक्टर साहब ने अंबुजा सीमेन्ट के अधिकारी को जेल भेजवा दिया। इस ग्रुप का संचालन किसके हाथ में है यह पूरा देश जानता है। बड़े-बड़े पॉलिटिशियन इस बिजनेशमेन के इशारों से चलते हैं, तो भला कलेक्टर साहब कहां लगते हैं। फिलहाल कारण जो भी हो बेचारा गुलदस्ता इन दिनों बदनाम हो गया है।
बिना गृह मंत्री कानून व्यवस्था की बैठक ?
अपराधियों के मन में कानून का भय हो, पीडि़तों को न्यान मिले, इस धारणा को लेकर राजधानी के न्यू सर्किट हाउस में कलेक्टर-एसपी कान्फ्रेंस रखा गया। बैठक के दूसरे दिन कानून व्यवस्था की स्थितियों की समीक्षा की गई। इस बैठक में डीजीपी से लेकर प्रत्येक जिले के पुलिस अधीक्षक शामिल हुए, लेकिन गृह मंत्री विजय शर्मा मौजूद नहीं रहे? इसको लेकर चारों ओर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि इस बैठक का नाम कलेक्टर-एसपी कान्फ्रेंस दिया गया। सम्भवत: इसलिए उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्रालय का जिम्मा सम्भाल रहे विजय शर्मा को इस बैठक से दूर रखा गया। विजय शर्मा को केन्दीय गृह मंत्री अमित शाह का पसंदीदा बताया जाता है। नक्सल मामलों की बैठक बिना उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा के सम्पन्न नहीं होती, लेकिन कानून व्यवस्था की इस बैठक में विजय शर्मा से दूरी क्यों बनाई गई? डीजीपी स्तर के पूरे अधिकारी मौजूद रहे, गृह विभाग के एसीएस भी बैठक में शामिल हुए लेकिन मंत्री से दूरी क्यों?
सूर्या और अमरेश के बीच क्या ?
एसीबी चीफ अमरेश मिश्रा और सूर्यकांत तिवारी उर्फ सूर्या के बीच तनातनी की खबरें इन दिनों खलबली मचा दी हैं, सूर्या और आईजी अमरेश मिश्रा के बीच बीते रविवार को क्या हुआ फिलहाल इसका खुलासा नहीं हो सका हैं, लेकिन सोसल मीडिया में तरह-तरह की चर्चाए चल रही हैं। कहते है कि सूर्या ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, कोर्ट ने जेल का सीसीटीवी फ़ुटेज और रजिस्टर समेत अन्य साक्ष्य सुरक्षित रखने का निर्देश दिया हैं। कहा जा रहा है कि छुट्टी के दिन यानि की रविवार को एसीबी चीफ जेल पहुँचे, वहां सूर्यकांत तिवारी और अमरेश के बीच तनातनी हो गई, इसको लेकर जगह-जगह चर्चा हो रही हैं। वहीं इस दरमियान पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने भी एसीबी चीफ के ऊपर गंभीर आरोप लगाये हैं। अब वास्तविकता क्या है? यह तो आईजी अमरेश मिश्रा और सूर्यकांत ही जानेंगे, लेकिन अमरेश मिश्रा का इस केस में डायरेक्ट क्या रूचि है इस पर बहस छिड़ी हुई हैं।
नियुक्ति से पहले घिरे सलाहकार
मुख्यमंत्री के सलाहकारों की नियुक्तियां की जानी है, लेकिन नियुक्ति से पहले ही सलाहकार घिर गये हैं। दरअसल में भूपेश सावन्नी को मुख्यमंत्री का सलाहकार बनाये जाने की खबरें इन दिनों मीडिया में चल रही हैं। लेकिन उनके बिहेव को लेकर अजय चंद्राकर ने भरे मंच में कहा था की मेरे से ठीक से बिहेव किया करो, नहीं तो मैं ठीक कर दूँगा। अब सावन्नी की सलाहकार के रूप में नियुक्ति होनी है, इसी दरम्यान सावन्नी और अजय चंद्राकर के विवाद का वीडियो सोसल मीडिया में घूमने लगा है। अजय चंद्राकर अनुभवी और विद्वान सदस्य है, यह बात अलग है कि वह हालात को देखकर वर्तमान में खामोश हैं, लेकिन आगे भी खामोश रहेंगे फिलहाल इसकी कोई गारंटी नहीं है।