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भारतमाला ही क्यों? सीजीएमएससी क्यों नहीं?
नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत की जिद यानि की विपक्ष की जिद के कारण देर से ही सही लेकिन भारतमाला परियोजना में हुए भ्रष्ट्राचार की परतें खुलना शुरु हो गई हैं। इस मामले को लेकर हाल ही में राज्य की जांच एजेन्सी ईओडब्ल्यू और एसीबी ने जमीन दलाल समेत कई अफसरों के ठिकानों में दबिश दी है। वास्तव में विपक्ष में बहुत ताकत होती है। इसका अंदाजा इस कार्रवाई से लगाया जा सकता है। जो काम डॉ. महंत सत्ता में बैठकर नहीं करा सके वह काम महंत विपक्ष में बैठकर डंके की चोट पर करा रहे हैं। दरअसल भारतमाला परियोजना में घोटाले की बीज कांग्रेस सरकार के दौरान ही बोई गई थी। डॉ. चरणदास महंत उस समय विधानसभा अध्यक्ष थे। सत्ता में रहते हुए भी महंत इस मसले में कुछ नहीं कर पाये। लेकिन विपक्ष में आने के बाद उन्होंने खुलेआम ऐलान किया कि भारतमाला परियोजना में हुए भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करनी पड़ेगी। महंत ने यह भी कहा कि उन्हें हाई कोर्ट जाना पड़े, सुप्रीम कोर्ट जाना पड़े, प्रधानमंत्री के पास जाना पड़े, जाएंगे। लेकिन इस मामले में कार्रवाई तो करनी ही पड़ेगी। कहने का मतलब यह है कि अगर विपक्ष अपने जिद में उतर जाए तो कार्रवाई तो करनी पड़ेगी। खैर इस मामले में महंत की पहल पर अब असर होते दिख रहा है। वरना भातरमाला परियोजना में भ्रष्टाचार के आरोपी अफसर अच्छी-अच्छी पोष्टिंग पाने में भी सफल हो चुके थे, वह भ्रष्टाचार की रकम को भी हजम कर चुके थे। लेकिन भ्रष्टाचारी अधिकारियों की सुध तक नहीं ली गई थी। महंत के प्रयास से यह जिंद फिर जाग उठा है। इसके साथ महंत ने आम जनता के जेहन में एक सवाल भी छोड़ दिया है। भारतमाला परियोजना की तरह उन्होंने सीजीएमएससी घोटाले पर आवाज बुलंद क्यों नहीं की? 500 करोड़ रुपये से अधिक के रिजेन्ट खरीदी पर विपक्ष खामोश क्यों है?
सुशासन का उदय
राज्य में सुशासन का उदय हो चुका है, यहां अब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सुशासन का असर दिखने लगा है। राज्य के युवाओं को अब फैशन डिजाइनिंग के लिए अन्य राज्यों में जाने की जरुरत नहीं होगी। सरकार के प्रयास से नवा रायपुर में फैशन डिजाइनिंग के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलाजी (NIFT) की स्थापना होने जा रही है। निश्चित ही राज्य सरकार की यह बड़ी उपलब्धि है। इसके साथ ही (NIFT) की स्थापना से राज्य के युवाओं का रोजागार की दिशा में और भी रास्ते खुलेंगे। कुल मिलाकर सुशासन का उदय सरकारी योजनाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पब्लिक सेक्टर, रोजगार मूलक क्षेत्र में भी यहां सुशासन का उदय होते दिख रहा है।
जशप्योर की धूम
महुआ काफी गुणकारी होता है और यह यहां के स्थानीय निवासियों के रोजगार का प्रमुख साधन भी है। लेकिन इसी महुए से शराब भी बनाई जाती है। शराब निर्माण के कारण राज्य में महुए के लिए एक अलग दृश्य दिखाई देता है, लेकिन अब यह मिथक टूटने लगा है। महुआ में अनेकों पोषक तत्व पाए जाते हैं। आदिकालीन से ही महुए का उपयोग मानव करता रहा है। इसी दिशा में तत्कालीन जशपुर कलेक्टर और वर्तमान जनसंपर्क आयुक्त रवि मित्तल ने जशप्योर नामक उत्पाद को प्रचलन में लाया। जशप्योर में महुआ और मिलेट्स, कोदो, कुटकी, रागी से बने उत्पादों की धूम अब राष्ट्रीय स्तर पर भी होने लगी है। शायद इसी कारण केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री चिराग पासवान ने जशप्योर के उत्पादों की खुले मन से सराहना की। चिराग पासवान यही नहीं रूके उन्होंने यह भी कहा यह प्रयास केवल आदिवासी समुदाय के लिए नहीं, बल्कि समग्र खाद्य उद्योग के लिए नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। वास्तव में महुआ काफी पोष्टिक होता है, इसे नवाचार के साथ राष्ट्रीय स्तर पर जोडऩे की आवश्यकता महसूस हो रही थी, जिसे आईएएस रवि मित्तल के प्रयासों ने साकार कर दिखाया। जशप्योर आदिवासी नेतृत्व को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्वास्थ्य और पोष्टिक खाद्य उत्पादों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
अब ईडी भी
छत्तीसगढ़ में हुए चर्चित सीजीपीएससी घोटाले में और भी चेहरे बेनकाब होने जा रहे हैं। दरअसल इस मामले में सीबीआई के साथ-साथ ईडी ने भी जांच शुरु कर दी हैै। पीएससी भर्ती घोटाले में मनी लांड्रिग की चैन को अब खंगाला जा रहा है। रुपया देकर अफसर बनने की चाह रखने वाले अभ्यार्थियों और उनसे जुड़े व्यापारियों की अब परतें खुल सकती हैं, वह बेनकाब हो सकते हैं। दरअसल इस भर्ती के लिए कई सोर्स का उपयोग कर राशि पहुंचाई गई है, जिसकी पड़ताल ईडी के द्वारा की जा रही है। भर्ती में गड़बड़ी और इसकी राशि कहां-कहां तक पहुंची इसकी भी परतें खुल सकती है।
एक व्यक्ति, एक पद
कार्यकर्ताओं के बीच दबे स्वर में नाराजगी को देखते हुए भाजपा एक व्यक्ति, एक पद को लेकर जल्द निर्णय ले सकती है। दरअसल भाजपा सरकार ने हाल ही में विभिन्न निगम मंडलों में 36 पदाधिकारियों की नियुक्तियां की है। इसमें से कई नेता अभी भी संगठन में काबिज हैं, जिन्हें जल्द हटाने की कवायद शुरु हो चुकी है। सत्ता में जगह हासिल करने वाले कई नेताओं की संगठन से छुट्टी होगी। इसके साथ ही संगठन में दूसरे कार्यकर्ताओं को जगह दी जाएगी। कहा जा रहा है कि इसी बीच निगम मंडल की दूसरी संभावित लिस्ट भी जारी हो सकती है।
हताशा के शिकार
राज्य के वेटिंग इन मिनिस्टर इन दिनों हताशा के शिकार हो चुके हैं। कुर्ता-पायजामा और जैकेट तैयार हो, शपथ लेने की तारीख का भी अघोषित रुप से ऐलान हो जाए, फिर अचानक सन्नाटा छा जाए, तो हताशा होना स्वाभाविक है। यह तो वही बात हो गई कि भूखे के सामने थाली परोसकर वापस रख दिया जाए। ऐसे में हताशा के साथ नाराजगी और विद्रोह की आग भी अंदर ही अंदर धधकने लगती है। खैर भाजपा इन दिनों विद्रोह और विद्रोही दोनों तरह के नेताओं को किनारे लगाने में सक्षम है। इसलिए विद्रोही और विरोध अन्दरखाने में ही दफन है, यहां विरोध जुवां तक नहीं आ पा रहा है। लेकिन नेताओं में हताशा के बोल साफ तौर पर दिखने लगें है। खैर अब देखना यह है कि भाजपा इन हताश नेताओं के दर्द को कब महसूस करती है।
तरीका गलत, तो परिणाम गलत
आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा की एक एडिशलन एसपी का रिपोर्टिंग बॉस एक एएसआई था। आपको यह भी जानकर आश्चर्य होगा कि सेन्ट्रल एजेसियों की रेकी पुलिस द्वारा कराई जाती थी। दरअसल महादेव सट्टा एप के प्रमोटर्स को संरक्षण देने के लिए यह काम किया जाता था। इन खबरों में कितनी सच्चाई है यह तो रेकी करने वाले दोनों कांस्टेबल, करवाने वाले एडिशलन एसपी और एडिशनल एसपी के रिपोर्टिंग बॉस एएसआई साहब ही जानेंगे। कहा जाता है कि एडिशनल के रिपोर्टिंग बॉस एएसआई इसके बाद उपर या संबंधितों को जानकारी देते थे। खैर अब महादेव सट्टा एप मामले में राज्य कई अफसर सलाखों के पीछे जाने वाले हैं। लेकिन इस बीच महकमे में चर्चा है कि दोनों कांस्टेबल यदि सीधा एएसआई को रिपोर्ट करते तो प्रोटोकाल बराबर मेन्टैन होता, रिपोर्टिंग का तरीका भी सही होता और शायद परिणाम भी गलत नहीं होता। लेकिन दोनों कांन्सटेबल सेन्ट्रल एजेन्यिों की रैकी कराकर एडिशनल एसपी को रिपोर्ट करते थे, फिर एडिशनल एसपी एएसआई साहब का रिपोर्ट करते थे। यह बात कुछ हजम नहीं हुई, कि एक एसपी रैंक का अफसर एएसआई को रिपोर्ट करे। खैर मामला सट्टे का है यहां सब संभव है। लेकिन इस घटना के खुलासे के बाद अब लोग चटकारे लेते हुए कहते नजर आते हैं कि रिपोर्टिंग का तरीका ही गलत था तो परिणाम गलत होना स्वाभाविक है।
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