thethinkmedia@raipur
फूड की जिम्मेदारी से मुक्त करने के मायने क्या?
1994 बैच की आईएएस अफसर एसीएस ऋचा शर्मा को खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया है। इस जिम्मेदारी को अब 2003 बैच की आईएएस अफसर रीना बाबा साहब कंगाले सम्भालेंगी। लेकिन इस आदेश के मायने क्या है? ऋचा शर्मा के पास फूड में काम करने का खासा अनुभव है। और यह विभाग कई मायनों में सरकार के लिए अहम भी माना जाता है। उसके बाद भी ऋचा को इस जिम्मेदारी से मुक्त क्यों किया गया है? यह सवाल प्रशासनिक गलियारों में इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। खैर इस आदेश के दो मायने हो सकते हैं। पहला यह कि एसीएस ऋचा शर्मा की इमेज एक तेज-तर्रार और साफ छवि के अफसरों में है, ऐसे में राज्य सरकार ऋचा को सीएस बनाने पर भी विचार कर सकती है? दरअसल 1994 बैच के आईएएस अफसर मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा दोनों ही सीएस की रेस में हैं। यदि 1993 बैच के आईएएस अफसर अमित अग्रवाल की राज्य वापसी नहीं होती, तो सरकार सुब्रत साहू से इतर एसीएस मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा दोनों में से किसी एक पर विचार कर सकती है। इसलिए दूसरा प्रमुख कारण ओवरलोड या बेहतर काम न होने के कारण ऋचा को फूड से हटाने की बात सिरे से खरिज हो जाती है। बहरहाल ऋचा शर्मा को फूड से हटाने का वास्तविक कारण क्या है? यह निकट भविष्य में स्पष्ट हो जाएगा।
और कितने कटारा
राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ राज्य और यहां के अफसर भ्रष्टाचार के लिए चिन्हांकित हों चुके हैं। बीते वर्षों में ईडी ने जिस तरह से भ्रष्टाचार को लेकर खुलासे किए हैं वह छत्तीसगढ़ के लिए कतई हितकर नहीं हैं। यहां के अफसरों ने भ्रष्टाचार का एक नया आयाम तय किया है। यहां भ्रष्टाचार की लगातार परतें खुल रही हैं। सुबह की सुर्खियों में कौन से अफसर का नाम छप जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। राष्ट्रीय जांच एजेन्सी ईडी ने अब आईएएस राजेन्द्र कुमार कटारा को भी भ्रष्टाचार पर घेर दिया है। कटारा पर अरोप है कि बीजापुर कलेक्टर रहते हुए डीएमएफ घोटाला पर उन्हें भी घूस दिया गया है। ईडी की माने तो कटारा भी एक भ्रष्ट अफसर हैं, खैर इसकी सत्यता तो न्यायालय को तय करनी है। लेकिन एक-एक करके राज्य के आईएएस अफसर भ्रष्टाचार पर इस तरह से घिरेंगे इसका अंदाजा किसी को नहीं था। कटारा वर्तमान में बलरामपुर जिले के कलेक्टर हैं, उन पर भ्रष्ट होने के अरोप लग चुके हैं। भ्रष्टाचार का आरोप भी केन्दीय जांच एजेन्सी ईडी नेे लगाया है। निश्चित ही इस खुलासे के बाद कटारा की कलेक्टरी जाना तय है। लेकिन इस खुलासे ने आम जनता के जेहन में एक और सवाल छोड़ दिया है कि आखिर राज्य में और ऐसे कितने कटारा हैं? उनके कारनामों का खुलासा कब होगा?
प्राचार्य पदोन्नति पर जल्दबाजी क्यों?
व्याख्याता से प्राचार्य पदोन्नति के मामले पर सरकार की जमकर किरकिरी हुई। राज्य सरकार के आदेश पर हाईकोर्ट ने 24 घंटे के भीतर रोक लगा दी। रोक लगाने के साथ-साथ हाईकोर्ट ने विभाग पर नाराजगी भी जाहिर की। सवाल यह उठता है कि जब प्राचार्य पदोन्नति के लिए पहले से याचिकाएं कोर्ट में लंबित हैं, यहीं नहीं इसी संदर्भं में विभाग ने पहले ही कोर्ट को आश्वस्त किया था कि अगली सुनवाई तक प्राचार्य पदोन्नति के आदेश जारी नहीं किए जाएंगे। फिर जल्दबाजी क्यों? प्रकरण कोर्ट में लंबित है उसके बाद भी अफसरों ने इसमें गंभीरता क्यों नहीं दिखाई? खैर यह स्कूल शिक्षा विभाग है, यहां पर पूर्व की सरकार में भी पदोन्नति और स्थानान्तरण के मामले में जमकर खेल हुआ है। बहरहाल यहां पर आदेश जल्दबाजी में क्यों जारी किए गए फिलहाल इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन बृजमोहन अग्रवाल के मंत्री पद से इस्तीफा के बाद यह विभाग मुख्यमंत्री के पास है। निश्चित ही अफसरों की जिम्मेदारी थी कि वह मामले की पूरी पड़ताल कर लें, उसके बाद आदेश जारी किए जाने थे। लेकिन विभाग के जिम्मेदार अफसरों ने पड़ताल करने की वजाय लापरवाही दिखाई, और पूरी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। बहरहाल मामले में इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई गई? एक साथ सैकड़ों लोगों की सूची क्यों जारी की गई ? इसको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं छिड़ी हुई हैं।
महंत के निशाने में अब कौन?
नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत भारतमाला परियोजना के बाद अब तेन्दूपत्ता बोनस घोटाले को लेकर मोर्चा खोल दिए हैं। महंत ने राज्यपाल को पत्र लिखकर मांग की है कि सिर्फ डीएफओ पर कार्रवाई करना पर्याप्त नहीं है, यह एक सिंडिकेट घोटाला है। आदिवासियों से जुड़ा हुआ मामला है। दरअसल महंत का कहना है कि इतने बड़े घोटाले में सिर्फ एक अफसर पर कार्रवाई की गई है, बाकी पर क्यों नहीं की गई? सहकारी समितियों के पोषक अधिकारी, प्रबंधक वन विभाग के ही अधाीन आते हैं, उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है? यहीं नहीं महंत ने राज्यपाल को लिखे पत्र में यह भी कहा है कि विधानसभा में विभागीय मंत्री द्वारा जानकारी दी गई है कि बोनस की राशि शत-प्रतिशत वितरण की गई है। लेकिन जनता के समक्ष यह घोटाला उजागर हुआ है। इस पर भी दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए। सवाल यह उठता है कि भारतमाला परियोजना में भ्रष्टाचार उजागर करने के बाद महंत के निशाने पर आखिर अब कौन हैं?
‘बोरे बासी’ का राजनीतिकरण क्यों?
1 मई यानि की विश्व मजदूर दिवस को पिछली सरकार ने राजनीतिकरण कर दिया था। दरअसल बोरे बासी यहां गांव से लेकर शहरों तक खाया जाने वाला आम व्यंजन है। लेकिन सुबह जल्दी काम पर निकलने के कारण यह व्यंजन मजदूर वर्ग का खास व्यंजन होता है। सम्भवत: इसीलिए 1 मई यानि की विश्व मजदूर दिवस के दिन बोरे बासी खाने की परम्परा को विशेष महत्व दिया जाता है। लेकिन मजदूरों की भावनाओं और उनके खास व्यंजन का राजनीतिकरण क्यों? पिछली सरकार में बड़े से छोटे अफसरों ने घर, आफिस, मॉल और यहां तक कि फाइव स्टार होटलों में बैठकर बोरे बासी खाने की फोटो सोसल मीडिया में पोष्ट की थी। सम्भवत: उस दरम्यान यहां कांग्रेस की सरकार थी इसलिए अफसर भी कांग्रेस के रंग में रंगे दिखे। लेकिन इस साल क्यों नहीं? क्या यह बोरे बासी का राजनीतिकरण नहीं है? खैर यह डिजिटल क्रांति का युग है। उस दौर में बोरे बासी खाने वाले अफसरों की तस्वीरें सोसल मीडिया में खूब ट्रेंड हुई थी, जो आज भी गूगल में सुरक्षित हैं। कुछ अफसरों नेे इसकी वाहवाही भी लूटी थी। जो इस साल खामोश दिखे। हालांकि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने अपने स्टैण्ड को कायम रखा। पूर्व सीएम भूपेश बघेल और पीसीसी चीफ दीपक बैज समेत अन्य कांग्रेसी नेता बोरे बासी खाते नजर आये। भूपेश और बैज की फोटो भी सोसल मीडिया में खूब वायरल हुई। लेकिन वह अफसर नजर नहीं आये जो कभी बोरे बासी खाने का ढोंक करते थे।
विशेष जिले के ठेकेदारों का बोलबाला
राज्य के हर कोने में एक जिले विशेष के ठेकेदारों का इन दिनों बोलबाला है। कोरबा से लेकर बलरामपुर और बस्तर से लेकर रायपुर तक एक ही जिले के ज्यादातार ठेकेदार इन दिनों काम कर रहे हैं। करें भी क्यों न, जब नेता ताकतवर होता है, तो उनके लोगों का भी बोलबाला रहता है, यहां भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा हैै। लेकिन यह कब तक चलेगा इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता। कहा जा रहा है कि नेताजी को लेकर उनके ही पार्टी में दबे स्वर में विरोध शुरु हो चुका है। उनकी हर एक कार्यप्रणाली पर निगाहें हैं, उनसे जुड़ी हर बात दिल्ली दरबार तक पहुंचाई जाने लगी है। समय रहते नेताजी पार्टी के कार्यकर्ताओं के इस विरोध की चिंगारी को बुझाने में सफल हो गए तो ठीक, वरना चुनाव आते-आते यह विरोध रुपी चिंगारी ज्वाला बन सकती है।
फेमस पीए का क्या कसूर
वैसे तो पूर्व की भाजपा सरकार में भी मंत्रियों के पीए फेमस रहे हैं, उनके कारनामों की लंबी-चौड़ी सूची है। लेकिन पूर्व के सबक के बाद वर्तमान भाजपा सरकार के मंत्रियों ने पीए के मामलों पर फूंक-फूंक कर कदम रखे थे। पर पीए का काम ही ऐसा होता है कि वह कम समय में आम जनता के बीच जल्दी फेमस हो जाता है। चाहे फेमस होने का कारण अच्छा काम हो, या बुरा काम। हाल ही में एक मंत्री के पीए के नाम पर दतरेंगी रेत खदान पर फोन गया। खदान के संचालकों द्वारा गिधपुरी थाना में रिपोर्ट दर्ज कराया गया। दरअसल रिपोर्टकर्ता के मोबाईल पर एक अंजान नंबर से फोन आया और वह अपने आप को सरकार के एक बड़े मंत्री का पीए बताया। यही नहीं कॉल करने का तरीका एकदम पीए स्टाईल का बताया गया। बकायदा फोन करने वाले व्यक्ति ने यह भी कहा……. हाउस से बोल रहा हूँ। रेत को लेकर इस कथित पीए ने उन्हें धमकाया भी। फर्जी पीए मामले को लेकर पुलिस ने आरोप पंजीबद्ध किया है और आरोपी को भी हिरासत में ले लिया है। लेकिन इस घटना के बाद मंत्रियों के पीए की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित हो चुका है। कहने का आशय यह है कि मंत्री के पीए इतनी जल्दी फेमस हो जाते हैं कि उनके नाम और स्टाईल को भी अपराधी प्रवृति के लोग भुनाने में लग जाते हैं। अब मंत्रियों को ही तय करना है कि उनके पीए किस काम के लिए फोन करेंगे। अपने पीए पर निगरानी की जिम्मेदारी मंत्रियों की है। वरना पूर्व की भाजपा सरकार की भांति इस सरकार में भी पीए के फेमस होने में देर नहीं लगेगी। हालांकि इस फर्जी कॉल में बेचारे पीए का कोई दोष नहीं है, लेकिन पीए के कथित फोन और एफआईआर को लेकर इन दिनों जमकर चर्चा हो रही है।
कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस
राज्य में सुशासन को गति देने और सरकारी योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के मद्देनजर जल्द ही कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जा सकता है। वर्तमान में राज्य सरकार सुशासन तिहार मना रही है। इस तिहार में जनता की समस्याओं का त्वरित निराकरण करने के आदेश हैं। इसी दरम्यान कभी भी प्रशासनिक कसावट लाने और सरकार की योजनाओं का लाभ जनता को बेहतर तरीके से पहुंचाने के मद्देनजर कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेस का आयोजन किया जा सकता है।
editor.pioneerraipur@gmail.com