हलचल… 28 सीट का सच क्या?

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28 सीट का सच क्या?

कहते हैं कि उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए पूरे दमखम से लगे हुए हैं। पिछली बार गुटीय जंग में मात खाये सिंहदेव इस बार फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। सिंहदेव टिकट वितरण के दौर में ही बड़ा दांव चलना चाह रहे हैं। कहा जा रहा है कि टीएस सिंहदेव 90 में से 28 प्रत्याशी अपने पसंद के उतारने की बात पार्टी फोरम में रखी है। यही कारण है कि कांग्रेस में अब तक प्रत्याशियों को लेकर एकराय नहीं बन पा रही है, दरअसल में टीएस सिंहदेव भी अब हाईकमान के दरबार में एक अहम चेहरा हो गए हैं। कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा ने कुछ दिनों पहले कहा था कि 5 अक्टूबर तक कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इसके पीछे प्रमुख वजह आपसी खींचतान बताई जा रही है। वास्तव में यदि सिंहदेव अपने 28 समर्थकों को टिकट दिलाने में सफल होते हैं, तो यह उनका बड़ा सियासी दांव होगा। इसके पीछे सिंहदेव का मकसद हरहाल में अपने लोगों को 20 सीटों पर जीत दर्ज करना है, ताकि दबाव बना रहे।

भाजपा का चौबे प्रेम

भारतीय जनता पार्टी का चौबे प्रेम जग जाहिर है, नेता प्रतिपक्ष रहते हुए चौबे जी को यूं ही सरकार का 13वां मंत्री नहीं कहा जाता था। चौबे जी अपने 86 गुणों से 10 साल तक कांग्रेस ही नहीं रमन सरकार के भी चहेते बने रहे, वह नेता प्रतिपक्ष के रुप में पूरे दमखम से जनता की आवाज उठाते रहे। भाजपा का यह प्रेम भला चुनावी साल में कैसे कम हो सकता है। कहा जा रहा है कि अब साजा में चौबे जी के सामने भाजपा ऐसे प्रत्याशी को उतारने जा रही है, जो जनमानस के लिहाज से ठीक से बोल नहीं सकता, समझ नहीं सकता और शायद सोच भी नहीं सकता। जिसका राजनीतिक अनुभव एकदम शून्य है। भाजपा की अघोषित सूची जिसे घोषित की तरह मीडिया में वायरल कराया गया। उसके बाद यह माना जा रहा है कि मंत्री रविन्द्र चौबे इस बार मोहम्मद अकबर के 60 हजार मतों के जीत के रिकार्ड को तोडऩे जा रहे हैं। दरअसल में बीरनपुर मामले के बाद भाजपा साजा विधानसभा सीट में साहू समाज से प्रत्याशी उतारना चाह रही है, लेकिन भाजपा को साजा में कोई बड़ा चेहरा नहीं मिल पा रहा, या भाजपा चाह नहीं रही? भाजपा नेताओं का तर्क है कि जब बंगाल में बर्तन धोने वाली महिला चुनाव जीत सकती हैं, तो छत्तीसगढ़ में मजदूरी करने वाले ईश्वर साहू चुनाव क्यों नहीं जीत सकते। खैर यह भाजपा की रणनीति है या चौबे प्रेम यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता लग सकेगा।

सिंहदेव की राह पर मरकाम

4 साल तक पीसीसी चीफ की कमान सम्भालने के बाद मोहन मरकाम वर्तमान में भूपेश सरकार के केबिनेट मंत्री हैं। मरकाम बाबा समर्थक नेता माने जाते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में मरकाम कोन्डागांव सीट से मात्र 1796 वोट से जीत हासिल करने में सफल हुए। 2023 में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि मोहन मरकाम और लता उसेण्डी में जीत और हार का फासला नजदीकी हो सकता है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है। मरकाम का ग्राफ मंत्री बनने के बाद लगातार बढ़ रहा है। वह सिंहदेव की राह पर चल रहे हैं, वहीं लता उसेण्डी भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के बाद भी जस के तस खड़ी हैं। यहां सिंहदेव की राह का मतलब सिंहदेव समर्थक से नहीं है। दरअसल में टीएस सिंहदेव 2008 के विधानसभा चुनाव में अंबिकापुर विधानसभा सीट से मात्र 948 वोटों से जीत दर्ज करने में सफल हुए थे। उसके बाद सिंहदेव का ग्राफ लगातार बढ़ते गया। 2013 के विधानसभा चुनाव में सिंहदेव ने तकरीबन 20 हजार मतों से जीत हासिल की। और 2018 में यह आकड़ा 40 हजार वोटों तक पहुंच गया।

टिकरिया जाएंगे, योगेश आएंगे

20 हजार से अधिक कार्यकर्ताओं की फौज के साथ किसान नेता योगेश तिवारी ने भाजपा प्रवेश कर लिया। 2 माह पहले सर्वप्रथम हचलच कालम में योगेश के भाजपा प्रवेश की खबर लिखी जा चुकी है, जिसमें शनिवार को अंतिम मुहर लग गई। अब योगेश के आने बाद राहुल टिकरिया का क्या होगा? इसको लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। राहुल टिकरिया वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य हैं, बीजेपी की अघोषित सूची में टिकरिया को बेेमेतरा सीट से प्रत्याशी बनाया गया है। यह बात अलग है कि मीडिया में सूची वायरल होने के बाद कई सीटों पर प्रत्याशी बदल दिए जाएंगे। सम्भव है योगेश तिवारी ने भी अपनी शर्तों में भाजपा ज्वाइन की है। 2018 के विधानसभा चुनाव में योगेश तिवारी छजकां से मैदान पर थे, उन्हें कुल 28332 मत मिले। लेकिन उसके बाद से योगेश 5 साल तक बेमेतरा में सक्रिय रहे, उन्होंने किसान नेता के रुप में अपनी पहचान बनाई। अब जनाधार और लडऩे वाले नेता योगेश भाजपा के हो चुके हैं। बेमेतरा की राजनीतिक तस्वीर साफ दिखाई दे रही है। अब टिकरिया जाएंगे और योगेश आएंगे।

तेरा परिवारवाद, मेरा परिवारवाद

भाजपा ही नहीं कांग्रेस भी परिवारवाद में घिरते दिख रही है। पूर्व सीएम रमन सिंह के भांजे विक्रांत सिंह को खैरागढ़ से टिकट मिलने के बाद परिवारवाद के आरोप लग रहे थे, दूसरी ओर अब कांग्रेस के खिलाफ भी परिवारवाद का मोर्चा खोला जा रहा है। दरअसल में रायपुर ग्रामीण से सीनियर विधायक सत्यनारायण शर्मा ने अपनी सीट पुत्र पंकज शर्मा के लिए रिक्त करने हुए सियासी विराम की ओर जाते दिख रहे हैं। रायपुर ग्रामीण से पंकज शर्मा ही कांग्रेस की ओर से संभावित उम्मीदवार होंगे। पंकज के उम्मीदवारी की पार्षद स्तर के नेता तो पहले ही खुला विरोध कर चुके हैं। अब अन्दर ही अन्दर परिवारवाद को लेकर विरोध की चिंगारी धधकते दिख रही है। इस बीच बीरगांव नगर पालिका के अध्यक्ष रहे डॉ. ओमप्रकाश देवांगन ने भी शर्मा परिवार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। हाल ही में देवांगन ने सोशल मीडिया में एक पोष्ट किया जिसमें लिखा गया कि ‘एक अरोग्य पुत्र को राजा बनाने के चक्कर में पूरा हस्तिनापुर बर्बाद हो गया था, अब रायपुर ग्रामीण में ऐसा इतिहास गलती से मत दोहराना।

 

रुपयों का ढेर बना जी का जंजाल
विधायक जी की टिकट खतरे में

चन्द्रपुर विधायक रामकुमार यादव का नोटों के ढेर के सामने एक गिलास पानी पीना राजनीतिक रूप से घातक साबित होते दिख रहा है। बेचारे विधायक जी ने नोटों पर नजर तक नहीं घुमाया, कितना नोट है यह भी पता नहीं, सिर्फ पानी पीकर स्टिंग के शिकार हो गए। यह बात अलग है कि जब एक गिलास पानी ही पीना था तो नोटों के ढेर के पास जाने की जरुरत क्या थी? पानी तो विधायक जी को कहीं भी मिल जाता। खैर अब विधायक जी के वायरल वीडियो का असर दिखाई देने लगा है, भ्रष्टाचार में पहले से घिरी कांग्रेस सरकार अब और इस दाग को आगे लेकर नहीं चल सकती। शायद इसीलिए रामकुमार यादव की छु्ट्टी करने का मन लगभग बना लिया गया है। कहते हैं कि छजकां प्रत्याशी रही गीतांजली पटेल टिकट की शर्त पर कांग्रेस में शामिल हो सकती है। हालांकि अभी तक इसकी अधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान चंन्द्रपुर सीट में भाजपा तीसरे स्थान पर रही। त्रिकोणीय मुकाबले में रामकुमार यादव 5 हजार वोट से चुनाव जीते थे। छजकां और बसपा गठबंधन की प्रत्याशी गीतांजलि एक बार फिर मैदान में उतरने को तैयार हैं। यदि ऐसा समीकरण बना तो कांग्रेस की ओर से रामकुमार की जगह गीतांजलि पटेल मैदान में होंगी।

कैंप में 40 हाथियों की ट्रेनिंग का सच ?

40 हाथियों को पकडऩा और उन्हें ट्रेनिंग देना सुनने में थोड़ा अटपटा लग रहा है, लेकिन छत्तीसगढ़ में ऐसा मामला सामने आया है। छत्तीसगढ़ में 40 हाथी कब पकड़े गए? दरअसल 40 हाथी पकड़े जाने का खुलासा तब हुआ जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित हाई पावर कमेटी को राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी ने बताया कि कोरबा में रहवासी क्षेत्र और नेशनल हाईवे के आसपास दिखने वाले 40 हाथियों को पकड़कर बंधक बनाकर छत्तीसगढ़ और आसपास के कैंप में रखा गया है, जहां पर उनकी प्रॉपर ट्रेनिंग चल रही है। चर्चा है कि इस संबंध में हाई पावर कमेटी के चेयरपर्सन से अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) की मीटिंग भी जून 23 को हुई थी। अब जिसको लेकर लोग कह रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में सब संभव है।

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