Thethinkmedia@raipur
समय से पहले फ़साद के मायने क्या?
राज्य में वैसे अभी विधानसभा चुनाव को पूरा-पूरा तीन साल बाकी है। लेकिन मौजूदा हालात देखकर ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ राज्य चुनावी वर्ष में प्रवेश कर चुका है। समय से पहले यहां ऐसा क्यों हो रहा है? चारों ओर हो रहे फ़साद के आखिर मायने क्या हैं? फिलहाल इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता। अमूमन इस तरह की तस्वीरें चुनावी साल में देखने को मिलती हैं, लेकिन यहां समय से पहले क्यों? दरअसल इन दिनों चारों ओर राजनीतिक फ़साद, व्यवसायिक फ़साद, धार्मिक फ़साद की तस्वीरें सामने आ रही हैं, जो किसी सरकार के लिए कतई हितकर नहीं हो सकतीं। भाजपा नेताओं के बीच खुलकर गुटबाजी सामने आने लगी हैं, विधानसभा में अजय चन्द्राकर और बिलासपुर में अमर अग्रवाल की तस्वीर राजनीतिक फ़साद के ताजा उदाहरण हैं। प्रापर्टी गाइडलाइन की बढ़ी दरें और सरकार का यू-टर्न व्यवसायिक फ़साद का जीता-जागता उदाहरण है। सत्ता- संगठन के फ़साद की तस्वीरें बाजार में चर्चा की विषय बनी हुई हैं। बीते सप्ताह में धार्मिक फ़साद की तस्वीरें भी हमारे सामने मौजूद हैं। आखिर राज्य में इस तरह की गतिविधियों से फायदा किसका? नुकसान किसका? इस पर मंथन और चिंतन करने की जरुरत है।
फिर बदले जाएंगे तीन-चार कलेक्टर
छत्तीसगढ़ सरकार एक बार फिर तकरीबन तीन-चार कलेक्टरों को बदलने जा रही है। इस लिस्ट में वह तमाम नाम शामिल हैं जिन्हें पिछले लिस्ट में ही बदलने की संभावना थी। दरअसल इसमें से दो कलेक्टरों (एक बस्तर संभाग तथा दूसरे रायपुर संभाग से हैं) ने एनओसी के लिये आवेदन किया है। संभवत: राज्य सरकार इन दोनों कलेक्टरों को रिलीव कर सकती है। वहीं एक कलेक्टर इसी माह रिटायर हो रहे हैं। यानि कि तीन से चार कलेक्टरों का बदलना लगभग तय है। कहा तो यह भी जा रहा है की इसी लिस्ट में एक-दो और नाम भी शामिल हो सकते हैं। बहरहाल इसके लिए ट्रांसफर आदेश जारी होने तक इंतज़ार करना पड़ेगा। वहीं नये साल में प्रमोशन के बाद सचिवों के भी विभाग बदले जा सकते हैं। कुल मिलाकर नवा साल में राज्य सरकार बड़ी प्रशासनिक सर्जरी करने जा रही है।
दर्जन भर आईपीएस अफसरों के प्रभार बदले जाएंगे
नया साल 2008 बैच के अफसरों के लिए नई सौगात लेकर आ रहा है। दरअसल 2008 बैच के आईपीएस अफसर 1 जनवरी 2026 से आईजी प्रमोट होने जा रहे हैं। दरअसल जल्द ही आईपीएस अफसर प्रशांत अग्रवाल, नीथू कमल, पारुल माथुर, डी श्रवण, कमलोचन कश्यप, मिलना कुर्रे आईजी बन जाएंगे। हालांकि इसी माह कमलोचन रिटायर भी होने जा रहे हैं। वहीं 2012 बैच के आईपीएस अफसर रामकृष्ण साहू, शशिमोहन सिंह, रजनेश सिंह, आसुतोष सिंह इसी दरम्यान डीआईजी प्रमोट हो जाएंगे। इसके साथ ही आईपीएस भोजराम पटेल, मोहित गर्ग, अभिषेक पल्लव और जितेन्द्र शुक्ला एसएसपी प्रमोट होंगे। इसके साथ ही जनवरी माह से पुलिस कमिश्नर प्रणाली की भी शुरुआत होना है, ऐसे में इस प्रमोशन लिस्ट के साथ-साथ दर्जनभर आईपीएस अफसरों के तबादले होने के संकेत हैं।
काली गाड़ी और काली भैंस
बीते सप्ताह में काली गाड़ी और काली भैंस दोनों धराशयी हो गए। हालांकि इसकी चर्चा कहीं देखने, सुनने और पढऩे को नहीं मिली। दरअसल यह काली गाड़ी एक आईएफएस अफसर की है, और दो काली भैंसे धरसीवां के एक किसान की है। कहते हैं कि रायपुर की ओर आ रही आईएफएस अफसर की काली गाड़ी स्कार्पियो ने दो काली भैसों को हवा में उड़ा दिया। गाड़ी की स्पीड इतनी ज्यादा थी कि काली भैंसें ऑन स्पाट दम तोड़ दीं, तो वहीं काली गाड़ी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई। कहा तो यह भी जा रहा है, कि हादसे में घायल हुई दंपत्ति की स्थिति नाजुक है। फिलहाल इनकी वास्वितक स्थिति का पता नहीं चल पा रहा है। बहरहाल काली गाड़ी और काली भैंस के राज को रफा-दफा कर दिया गया है।
चुनावी फंडिंग से जेल की हवा तक
किसी राज्य में चुनाव आते ही फंडिंग की जम्मेदारी सबसे अहम जिम्मेदारी मानी जाती है। इसके लिए सरकार में बैठे लोगों को हुनरमंद अफसरों की तलाश रहती है। हुनर काम का नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का होना चाहिए। हालांकि अफसरों को भी अब शार्टकट सफलता पर ज्यादा भरोसा नजर आता है। लेकिन इसकी मंजिल क्या होगी, इसका अंदाजा बाद में लगाया जाता है। दरअसल चुनावी साल में पोस्टिंग की बोली लगाई जाती है और हुनरमंद अफसरों को विशेष पोस्टिंग दी जाती है। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि जांच एजेंसियों ने इन सभी बातों का दावा किया है। जाँच एजेंसियों की माने तो छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव के दौरान यही हुआ था, जो ईडी के चालान के बाद स्पष्ट हो गया है। हालांकि आखिरी सच न्यायालय के फैसले के बाद ही जनता के सामने उजागर होगा। दरअसल जांच एजेंसियों का दावा है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में आबकारी विभाग के जरिए एक राजनीतिक दल को बड़े पैमाने पर फंडिंग की गई। रकम जुटाने की जिम्मेदारी आबकारी उपायुक्त दिनकर वासनिक, नवीन प्रताप सिंह तोमर, विकास गोस्वामी, नीतू नोतानी और इकबाल खान को सौंपी गई थी। आरोप है कि इन अधिकारियों ने चुनाव से पहले अपनी पसंद के अधिकारियों की जिलों में पोस्टिंग कराई और चुनावी फंड के लिए अवैध वसूली की। खैर दावा तो यह भी है कि वसूली की गई राशि की बहुत कम हिस्सा ही अफसरों को मिलती है। आकड़े भी कुछ यही कहते नजर आ रहे हैं। वैसे राज्य में वसूली की जैसी परंपरा बन गई है, भविष्य में भी इन संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। अब अफसरों को तय करना है कि वसूली के छोटे से हिस्से के लिए उन्हें क्या कीमत चुकानी है?
सात करोड़ का बंगला, दस लाख का बाथरूम और जगवार
छत्तीसगढ़ ढाई करोड़ की जनसंख्या वाला राज्य है। छोटे राज्य की खूबी भी है, तो खामियां भी है। राज्य छोटा है, इसलिए विकास की रफ्तार तेज है। लेकिन विकास के साथ-साथ भ्रष्टाचार की खबरें भी यहां तेजी से फैलती है। इन दिनों एक अफसर के बंगले की जमकर चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि एक्सप्रेसवे से लगी हुई एक सोसायटी में साहब ने सात करोड़ की लागत से नया बंगला खरीदा है, तो वहीं बाथरूम और जगवार के लिए दस लाख रुपए खर्च किए गए हैं। बहरहाल सच क्या है, यह तो जांच का विषय है। लेकिन बिना आग के धुआं नहीं उठता। वहीं राजधानी के एक मॉल से लगे हुए सोसायटी में एक डिप्टी कलेक्टर ने पचास लाख रुपए अपने बेटे के रूम के इंटेरियर में खर्च कर दिया है। जिसकी चर्चा होना लाजमी है।
फिर निकला जिन्न
राज्य में एक जानवरों के डॉक्टर को लेकर पिछले साल तक कोहराम मचा रहा। आरोप यह है कि डॉक्टर के लापरवाही के कारण जंगल सफारी में 17 चौसिंगाओं की मौत हो गई। मामला विधानसभा तक पहुंचा, जहां विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने साफ तौर पर डॉक्टर को सेवा से बाहर करते हुए ठीक-ठाक डॉक्टर रखने की बात कही। हालांकि मार्च 2025 में तत्कालीन पीसीसीएफ वन्यप्राणी सुधीर अग्रवाल ने डॉक्टर को सेवा से पृथक कर दिया था। लेकिन इस जानवरों के डॉक्टर का विवादों से गहरा नाता रहा है। गुरु घासीदास नेशनल पार्क में मादा बायसन की मौत पर भी इस पशु चिकित्सक पर गंभीर आरोप लगे थे। आरोपों के बाद डॉक्टर का संविलियन समाप्त कर मूल विभाग को सेवाएं वापस कर दी गई थी। हालांकि कहा तो यह भी जाता है कि एक पूर्व पीसीसीएफ वाईल्ड लाईफ के यह डॉक्टर साहब प्रमुख सलाहकार भी थे। हालांकि पीसीसीएफ का कार्यकाल उपलब्धि विहीन और आरोपों भरा रहा। लेकिन इन तमाम घटनाओं के बाद भी एक बार फिर इस डॉक्टर को लेकर विवाद की स्थिति निर्मित हो गई है, जिसका चारों ओर विरोध शुरू हो गया है। अब देखना यह है कि राज्य के दो प्रमुख डॉॅक्टर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह और नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत पर यह पशुओं के डॉक्टर भारी पड़ते हैं या फिर इनकी सेवाएं पशुधन विभाग में ही रहने दी जाएगी।
editor.pioneerraipur@gmail.com