हलचल… दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का सच?

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दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का सच?

हाल ही में रायपुर दक्षिण विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने विधायकी से इस्तीफा दे दिया है। बृजमोहन अग्रवाल अब रायपुर से सांसद हैं। जिससे रायपुर दक्षिण विधानसभा में उपचुनाव होने तय है। रायपुर दक्षिण सीट पर उपचुनाव होना है, यह तो सबको पता है। लेकिन इन दिनों एक और सीट यानि की दो सीटों पर उपचुनाव होने की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है। खैर सच क्या है? यह तो राज्यपालों की नियुक्तियों के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा। लेकिन इस समय रायपुर दक्षिण के अलावा एक और सीट में उपचुनाव होने की चर्चा छिड़ी हुई है। कहते हैं कि इस सीट में उत्तराधिकारी प्रत्याशी अभी से चुनावी तैयारी में जुट गए हैं।

यादव समाज को साधने की जुगत

यादव समाज के वोट भले ही राज्य में बिखरे हुए हैं, लेकिन राज्य में इस समाज की संख्या को इग्नोर नहीं किया जा सकता। यूपी के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी इस समाज का झुकाव कहीं न कहीं कांग्रेस या इंडिया समूह की ओर जादा दिखाई दे रहा है। भिलाई से देवेन्द्र यादव, खल्लारी से द्वारिकाधीश यादव तथा चन्द्रपुर से रामकुमार यादव का विधायक होना इसका जीता-जागता उदाहरण है। वहीं भाजपा हेमचंद यादव के निधन के बाद छत्तीसगढ़ में कोई बड़ा यादव चेहरा तैयार नहीं कर पाई। हेमचंद यादव तत्कालीन रमन सरकार में मंत्री हुआ करते थे। उनके निधन के बाद भाजपा को यादव समाज से एक नेता तैयार करने की आवश्यकता महसूस होने लगी। सम्भवत: इसीलिए दुर्ग सीट से गजेन्द्र यादव को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया। मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए राज्य में यादव समाज के वोट को साधने के लिए गजेन्द्र यादव को विष्णु सरकार में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है।

वीआरएस तो नहीं ?

सीनियर आईएफएस सुधीर अग्रवाल वर्तमान हेड ऑफ फारेस्ट व्ही श्रीनिवास राव की नियुक्ति को कैट तक ले गए। सुधीर ने हेड ऑफ फारेस्ट बनने के लिए हर एक दरवाजा खटखटाया, कैट भी गए। लेकिन कैट से भी सुधीर अग्रवाल को निराशा हाथ लगी। कहते हैं कि सुधीर की एकमात्र उम्मीद कैट से भी खरिज हो गई, जिसके बाद वह वीआरएस की तैयारी में हैं। अन्दरखाने में यह भी चर्चा है कि अन्य राज्यों में सुधीर के बैच के अफसर हेड ऑफ फारेस्ट बन गए हैं, लेकिन यहां पर सुधीर को सभी दरवाजों में नकामयाबी हासिल हुई। जिससे वह काफी हतास हैं, खैर सच क्या है? यह तो सुधीर ही जानेंगे, जितने मुंह उतनी बातें।

डॉक्टर, डॉक्टर और डॉक्टर के चक्कर में निपट गई महिला डॉक्टर

शीर्षक पढ़कर आपको लग रहा होगा की चार डॉक्टर लिखने की वजह एक डॉक्टर लिखा जा सकता था, लेकिन वास्तव में ये चारों डॉक्टर अलग-अलग पृष्ठ भूमि से हैं। इसलिए यहां पर चार डाक्टरों का उल्लेख किया गया है। राज्य की राजनीति में यूं तो बहुत से डॉक्टर हैं, लेकिन पंद्रह साल मुख्यमंत्री रहे, वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह छत्तीसगढ़ की राजनीति के सबसे बड़े डॉक्टर हैं। वहीं राजनीति से ताल्लुकात रखने वाले दूसरे सबसे बड़े डॉक्टर चरणदास महंत हैं। डॉ. महंत वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष हैं। इसके पहले वह विधानसभा अघ्यक्ष, केंद्रीय मंत्री, अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री, सांसद और न जाने कितने पदों पर आसीन रह चुके हैं। और तीसरे डॉक्टर जानवरों के इलाज करने वाले डॉक्टर हैं। गौर करने वाली बात यह है कि एक डॉक्टर यानि कि नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने बजट सत्र के दौरान दूसरे डॉक्टर से यानि कि विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह से तीसरे डॉक्टर यानि की जानवरों के डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी। जिस पर पहले डॉ. यानि कि विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह नें निर्देश दिया था कि वहां पर ठीक-ठाक डॉक्टर की व्यवस्था की जाए। दूसरे डॉक्टर यानि की नेता प्रतिपक्ष डॉ. महंत ने कहा था कि जानवरों के डॉक्टर आचार संहिता के दौरान बिना छुट्टी के बाहर घूमते रहे, जिसके कारण कई बेजुवान जानवर काल के गाल में समा गए। चूंकि अब एक माह के भीतर फिर विधानसभा का सत्र होना है, इसलिए जानवरों के डॉक्टर को बचाने के चक्कर में एक महिला डॉक्टर यानि की शीर्षक की चौथी डॉक्टर की सेवा समाप्त कर दी गई हैै। कुल मिलाकर तीन डॉक्टरों के चक्कर में एक महिला डॉक्टर को बलि का बकरा बना दिया गया।

किस्से और भी हैं

इन दिनों एक अफसर अपने कारनामे की वजह से चर्चा का केन्द्र बिन्दु बने हुए हैं। कभी जिला पंचायत सीईओ रहते हुए इनके वजह से तत्कालीन कलेक्टर ने बाढ़ आपदा के बजट को दूसरे मद में खर्च कर डाला था। कहते हैं कि सीईओ रहते हुए साहब फाइल लेकर कलेक्टर साहब के पास पहुंचे उन्होंने भरोसा करते हुए आंख बंद कर फाइल में साइन कर दिया। बाढ़ आपदा की राशि 40 करोड़ रुपये एक दिन में झर्र हो गई। कलेक्टर साहब दूसरे दिन माथा पकड़ लिए। हालांकि कुछ विशेष मददगार इंड्रस्ट्रियों ने कलेक्टर साहब की लाज बचा ली, दूसरे दिन इंड्रस्ट्रियों से रुपये इकठ्ठा करके वापस बाढ़ आपदा में डाले गए। कारनामा इतना ही नहीं है एक जगह और पोष्टिंग के दौरान मिलता-जुलता नाम देखकर साहब ने करोड़ों रुपये ऑनरेरियम की जगह हॉरमोनियम के लिए बांट दिये। अब साहब नए जिले में जाकर नया बखेड़ा खड़ा कर आये।

जीपी सिंह को फिर एसीबी और ईओडब्ल्यू की कमान?

कैट से राहत मिलने के बाद 1994 बैच के आईपीएस अफसर जीपी सिंह की बहाली को लेकर जल्द फैसला आ सकता है। कैट से जीपी को राहत मिलने के बाद राज्य सरकार ने केन्द्र सरकार से इस विषय पर सुझाव मांगा है। केन्द्र से जबाब आने के बाद जीपी सिंह को डीजी स्तर का पद मिलना लगभग तय माना जा रहा है। इस बीच वर्तमान डीजीपी अशोक जुनेजा का कार्यकाल भी अगस्त माह में समाप्त हो जाएगा। ऐसे में जुनेजा की जगह डीजीपी के लिए हिमांशु गुप्ता और अरुणदेव गौतम में से किसी एक को मौका मिल सकता है। हालांकि डीजीपी के लिए पवनदेव के नाम की भी चर्चा है। बहरहाल अरुणदेव, हिमांशु गुप्ता और पवनदेव में से किसी एक को डीजीपी की कमान मिलने के साथ ही जीपी सिंह को फिर एसीबी और ईओडब्ल्यू की कमान सौंपी जा सकती है।

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