हलचल… मंत्री ने चुकाये सारे लोन

मंत्री ने चुकाये सारे लोन

कहते हैं कि एक मंत्री जी ने चुनाव के वक्त लिए अपने सभी लोन चुका दिए हैं। दरअसल में मंत्री जी के पीछे शेयर मार्केट की तरह रुपये लगाए गए थे, वो भी बिना गारंटी के। शेयर मार्केट के अनुभवी लोग रुपया वहीं लगाते हैं, जहां रकम में इजाफा होने की सम्भावना होती है। ठीक वैसा ही नेता जी के साथ हुआ, नेताजी पर रुपये लगाने वालों को भरोसा था कि वह मंत्री बनेंगे ही, और वह बन भी गए। ऐसे में राशि वापस मिलना तो तय है, अब यह बात अलग है कि शेयर मार्केट की तरह रिटर्न मिला कि नहीं? पर कहा यह जा रहा है कि मंत्री ने चुनाव के दौरान लिए गए अपने सारे लोन चुका दिए हैं। लोन चुकाने के बाद अब जमीन की तलाश जारी है।

दिनेश शर्मा पर निगाहें

विधानसभा का मानसून सत्र सम्पन्न हो चुका है। विधानसभा के सचिव दिनेश शर्मा को वर्तमान नेता प्रतिपक्ष और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत का खास माना जाता है। डॉ. रमन और चरणदास महंत विरोधी दल से होते हुए भी एक दूसरे की बातों का पूरा ख्याल रखते हैं। सम्भवत: इसीलिए दिनेश शर्मा अभी भी विधानसभा के सचिव बने हुए हैं। पर अंदरखाने में उनके कांग्रेसी समर्थक होने की खबरें तैरने लगी हैं, यह सुनियोजित तरीके से फैलायी जा रही हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि जल्द ही विधानसभा के सचिव दिनेश शर्मा को रिप्लेस कर दिया जाएगा। खैर सत्यता क्या है? यह तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट हो सकेगा।

मेरी भी नहीं सुनते

वास्तव में ऐसा हो सकता है क्या? जब किसी मंत्री के लिए यह कहा जाने लगे कि वे मेरी भी नहीं सुनते, उन्हीं से बात कर लीजिए। खैर सच क्या है? क्या नहीं, यह तो मंत्री जी ही जानेंगे। लेकिन राजनीति में इस तरह की बातें यदि अपनी जगह बनाने लगीं तो मंत्री जी के लिए दूरगामी नुक्सान की पूरी सम्भावना है। कहा तो यह भी जा रहा है कि मंत्री जी की कार्यप्रणाली पर संघ भी नजर बनाए हुए है। बीते सात माह के कार्य- व्यवहार से पार्टी के कार्यकर्ता मंत्री जी से नाराज हैं ही, संघ भी मंत्री जी का बहुत पक्षधर नहीं है। लेकिन वर्तमान में उनका सिक्का मजबूत है, इसलिए कार्यकर्ता समेत संघ भी खामोशी से उनके कार्यों पर निगाहें बनाकर चल रहा है।

सबसे बड़ा वनमंडल प्रभारी डीएफओ के हवाले

राज्य का सबसे बड़ा बजट वाला वनमण्डल प्रभारी डीएफओ के हवाले कर दिया गया है। एक एसडीओ को प्रभारी डीएफओ बना दिया गया है। हालांकि वर्तमान समय में राज्य में आईएफएस अफसरों की कमी नहीं है, लेकिन अनुभव रखने और अच्छा प्रदर्शन करने वाले अफसरों को छोटे-छोटे वनमंडल की जिम्मेदारी सौंपकर खानापूर्ति कर दी गई है। वैसे अकबर राज में भी प्रभारी डीएफओ की परंपरा खासी प्रचलित थी। तब आईएफएस अफसरों को दरकिनार करते हुए प्रभारी डीएफओ बनाए जाते थे। क्यों बनाए जाते थे? इस पर फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन अब यह परंपरा फिर गति पकडऩे लगी है। कहते हैं कि वर्तमान कर्ता-धर्ता अकबर राज में प्रभारी डीएफओ बनाकर रिजल्ट अच्छा देते थे, उसी परंपरा को जीवित रखने फिर से पहल जारी कर दी गई है। दरअसल में इस वनमंडल के डीएफओ लंबे समय के लिए छुट्टी में है, ऐसे में पूरा वनमंडल एसडीओ के हवाले कर दिया गया है।

अनिल और सुधीर की जोड़ी

कहते हैं कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। आईएफएस लॉबी में भी इन दिनों कुछ ऐसा ही दिखाई दे रहा है। दरअसल में वर्तमान वनबल प्रमुख व्ही श्रीनिवास राव को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सात अफसरों को सुपरसीट करके वनबल प्रमुख बनाया था। इस दौरान सबसे सीनियर आईएफएस अफसर सुधीर अग्रवाल नेे श्रीनिवास राव का खूब विरोध किया। सुधीर इस फैसले के खिलाफ कैट तक गए, अब वह हाईकोर्ट की शरण में पहुंच गए हैं। कुल मिलाकर सुधीर अग्रवाल और श्रीनिवास राव की लड़ाई अभी भी जारी है। इस बीच कभी वनबल प्रमुख की रेस में रहे अनिल साहू का सुधीर को अच्छा खासा सपोर्ट मिल रहा है। कहते हैं कि अनिल भी श्रीनिवास राव के प्रतिद्वंदियों में से एक हैं। अब देखना यह है कि सुधीर और अनिल की जोड़ी क्या गुल खिलाती है।

हताश-निराश अजय

मानसून सत्र में अजय चंन्द्राकर का परफारमेन्स अब तक में सबसे निराशाजनक दिखाई दिया। यह बात अलग है कि सत्र के समापन के दिन विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने अजय का मनोबल बढ़ाने के लिए यह जरुर कहा कि अजय सबसे जादा सचेत रहे। पर वास्तव में इस बार अजय चंन्द्राकर का परफॉर्मेंस अब तक में से सबसे निराशाजनक रहा। दरअसल में अजय खुद भी निराश और हताश नजर आये। ऐसे में परफॉर्मेंस का निराशाजनक होना स्वाभाविक है। अजय, बृजमोहन और शिवरतन के सदन में मौजूद रहते 14 सदस्यों की संख्या भी 44 नजर आती थी। कहने का आशय यह है कि कांग्रेस 68 सदस्यों के रिकार्ड बहुमत के साथ बीते पांच साल सत्ता में रही, लेकिन विधानसभा सत्र के दौरान अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल और शिवरतन शर्मा जिस तरह से सत्ता पक्ष को घेरते थे, ऐसा लगता था कि भाजपा सदस्यों की संख्या 14 नहीं बल्कि 44 है। क्या यह वहीं अजय चन्द्राकर हैं? जो सदन के अन्दर कभी यह महसूस ही नहीं होने दिए कि भाजपा महज 14 सदस्यों के साथ विपक्ष की भूमिका निभा रही है। नियम-परंपराओं के साथ अजय के तेवर देखते ही बनता था, जो इस बार नहीं दिखा। अपनी भी बात अजय विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह के समक्ष इस बार दमदारीपूर्वक नहीं रख पाये। शायद इसी कारण अजय के सदन में मौजूद रहते हुए भी मानसून सत्र में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल और राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा बुरी तरह घिरते नजर आये, लेकिन अजय खामोश बैठे रहे? कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस सत्र में अजय चंद्राकर की हताशा और निराशा साफ नजर आई।

ओपी ने बदली परंपरा?

वैसे तो इस बार विपक्ष को बहुत कुछ करने की जरुरत नहीं पड़ी, भाजपा सदस्यों ने ही अपनी सरकार को जमकर घेरने का काम किया। भाजपा विधायक धरमलाल कौशिक उपमुख्यमंत्री अरुण साव और स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को बुरी तरह घेरते नजर आये। वहीं धरमजीत सिंह ने भी राजस्व मंत्री को घेरने में कोई कोताही नहीं बरती। लेकिन इस बीच वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने नई परंपरा स्थापित कर दी। दरअसल में भाजपा विधायक धरमजीत के सवालों में राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा बुरी तरह से घिर गए, वह धरमजीत के सवालों का जबाब नहीं दे पा रहे थे। इस दौरान बगल की सीट में बैठे वित्त मंत्री ओपी चौधरी राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा की जगह जबाव देने खड़े हो गए। मुख्यमंत्री के सदन में मौजूद रहने के बावजूद भी ओपी चौधरी मंत्री टंकराम वर्मा की जगह जबाव देते नजर आये। हालांकि इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने टोका-टाकी भी की। भूपेश ने कहा कि अब तक यह परंपरा रही है कि यदि विभागीय मंत्री जबाब नहीं दे पाते तो, मुख्यमंत्री स्वयं उस पर जबाब देते रहे हैं। लेकिन इस बार एक मंत्री दूसरे मंत्री का जबाव दे रहा है, यह नई परंपरा है। कुल मिलाकर ओपी ने परंपरा बदल दी ?

बिन मौसम बेर कहां से लाए

यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि महंत एक चतुर राजनेता हैं। महंत सहज रुप से भी बड़ी बातें कह जाते हैं, और किसी को भनक भी नहीं लगती। दरअसल में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय पूरे मंत्रिमंडल के साथ प्रभु श्रीराम के दर्शन करने अयोध्या पहुंचे थे। इस दौरान मीडिया में खबरें आयी कि सीएम साय प्रभु श्रीराम के लिए शिवरीनारायण से बेर लेकर गए हैं। महंत तो महंत हैं वह विधानसभा में सहज रुप से पूछ बैठे कि ”बिन मौसम बेर कहां से लाए”। महंत ने यह भी कहा कि हम लोग भी प्रभु श्रीराम के दर्शन करना चाहते हैं, अगली बार जाएं तो हमें भी प्लेन से ले चलें। हालांकि महंत ने इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया। लेकिन उन्होंने इशारे- इशारे में यह बता दिया कि हमारी आप पर तगड़ी नजर है।

पायलट, बैज, महंत की तिकड़ी और शैलेश की रणनीति

सत्ता गंवाने के बाद से अचेत अवस्था में पड़ी कांग्रेस सात माह बाद पहली बार सड़क पर उतरी, कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस ने विधानसभा का घेराव किया। भरी बारिश में भी कांग्रेसी एकजुट नजर आये। दरअसल में इस आंदोलन को सफल बनाने प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने संचार विभाग के पूर्व अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी को अघोषित रुप से मैदान में झोंक रखा था। पायलट के निर्देश पर शैलेश नितिन त्रिवेदी बराबर रणनीति पर काम करते रहे। बारिश में भी आंदोलन में अच्छी खासी भीड़ जुट गई। कांग्रेस के अन्दरखाने में इस आंदोलन को सफल माना जा रहा है। आंदोलन के बाद से पायलट, महंत और बैज की तिकड़ी चल पड़ी है। इस तिकड़ी में शैलेश की भूमिका अहम मानी जा रही है। वैसे भी शैलेश नितिन त्रिवेदी पूर्व के सभी अध्यक्षों चाहे वह कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत हों या प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका निभाने वाले भूपेश हों, मोहन मरकाम हों, या फिर दीपक बैज हों सबके साथ शैलेश पूर्व में भी सेतू का काम करते रहे हैं। अब शैलेश एक बार पायलट का भी भरोसा जीतने में कामयाब होते दिख रहे हैं। कुल मिलाकर राजनीतिक गलियारों में यह कहा जाने लगा है कि पायलट, बैज, महंत की तिकड़ी और शैलेश की रणनीति चल पड़ी है।

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