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फंस गया पेंच
छत्तीसगढ़ में बहुप्रतिक्षित मंत्रिमंडल का विस्तार फिलहाल टल गया है। वेटिंग इन मिनिस्टरों को अभी और वेट करना पड़ सकता है। दरअसल कहा जा रहा है कि मंत्रिमंडल के विस्तार का मामला राजेश मूणत के कारण लटक गया है। कहते हैं कि भाजपा संगठन दुर्ग से गजेन्द्र यादव, बिलासपुर से अमर अग्रवाल और रायपुर से पुरंदर मिश्रा के नाम पर लगभग सहमत है। लेकिन इस बीच डॉ. रमन सिंह की पसंद आड़े आ रही है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि डॉ. रमन सिंह ने रायपुर शहर पश्चिम विधायक राजेश मूणत का नाम मंत्रिमंडल के लिए आगे बढ़ाया है, जो संगठन को स्वीकर नहीं है। इसी के चलते फिलहाल मंत्रिमंडल का विस्तार कुछ दिनों या कुछ महीनों के लिए टाल दिया गया है। हालांकि विस्तार के समय को भले ही आगे बढ़ा दिया गया है, लेकिन दो चेहरे गजेन्द्र यादव और अमर अग्रवाल का मंत्री बनना लगभग तय है। अब पेंच मूणत और पुंरदर के बीच फंसा हुआ है। डॉ. रमन सिंह मौजूदा समय राज्य के सबसे सीनियर और अनुभवी नेता है। ऐसे में भाजपा संगठन एकदम से उन्हें न भी नहीं कह सकता और राजेश मूणत के नाम पर सहमति भी नहीं बन पा रही है। इसलिए फिलहाल मंत्रिमंडल का विस्तार टाल दिया गया है।
इससे पहले इतनी दुर्गति कभी नहीं हुई
राज्य में वन्यजीवों और वन्यजीवों के कर्ता-धर्ता की इतनी दुर्गति पहले कभी नहीं हुई। वर्तमान पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ सुधीर अग्रवाल पर आरोप है कि उनके कार्यकाल में सबसे ज्यादा वन्यजीवों की मौत हुई है। वहीं सुधीर अग्रवाल अब तक के पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ में सबसे कमजोर अफसर साबित हुए हैं। मामला यहां तक पहुंच गया कि उनके अधीन अधिकारियों-कर्मचारियों ने उन्हें उनके कार्यालय में ही बंद कर दिया। दरअसल सुधीर के निर्देश पर हाल ही में रायपुर वाइल्ड लाइफ विंग के कार्यालय को जंगल सफारी शिप्ट किया गया। जिसको लेकर अधिकारी और कर्मचारी उनसे काफी खफा हैं। नाराज कर्मचारी मुख्यालय पहुंचकर सुधीर पर धावा बोलते हुए उन्हें कमरे में कैद कर दिया। कहा जा रहा है कि कर्मचारियों की मांग थी कि कार्यालय को यथावत रायपुर करें। और जब तक आदेश जारी नहीं होगा न वे खुद जायेंगे और न ही पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल को जाने देंगे। फिर क्या पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल का गला सूखने लगा। उन्होंने मुख्यालय के एक अफसर को फोन करके घटना की जानकारी दी। अफसर ने तपाक से कह दिया पुलिस बुला देते हैं। यह सुनते ही फुली एसी कमरे में भी सुधीर पसीना-पसीना हो गए। फिर बाद में सुधीर की तो नहीं लेकिन एक महिला अफसर के फोन का असर हुआ। मुख्यालय के अन्य अफसर मध्यस्तता करके किसी तरह इस मामले को शांत कराया।
राजस्व बढ़ानेे का ढोंग, जनता के रुपयों की बर्बादी
लोकतंत्र में सबसे ताकतवर जनता होती है। इसीलिए जनता को अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है। लेकिन अब समय बदल चुका है, जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि कमजोर हो गए है। उन्हें अपनी और जनता की ताकत का कोई अंदाजा नहीं रहा। खैर जब जनप्रतिनिधि कमजोर होते हैं, तो अफसर हावी होते हैं। रायपुर में भी कमोवेश इन दिनों यही होते दिख रहा है। यहां अफसरशाही सर चढ़ कर बोल रही है। रायपुर नगर निगम के अफसर राजस्व बढ़ाने का ढोंग कर, जनता के रुपयों की खुलेआम बर्बादी कर रहे हैं। दरअसल इसके पीछे कारण भी है यहां बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत जैसेे कद्दावर नेता वर्तमान में हासिए पर जा चुके हैं। अफसर भी यह बात भली-भांति जानते है, इसलिए यहां न बृजमेाहन की सुनी जा रही और न ही मूणत की कोई सुनने को तैयार है। सभवत: इसीलिए रायपुर में जनता के रुपयों की खुलकर बर्बादी की जा रही है, और जनप्रतिनिधि बेबस नजर आ रहे हैं। मैं सिर्फ यहां दो उदाहरण दे रहा हूं, बांकी की बात कभी और की जाएगी। यह दोनों उदाहरण जनप्रतिनिधियों के कमजोर होने और जनता के रुपयों की बर्बादी की दास्तां चीख-चीखकर बयां कर रही हैं। रायपुर कलेक्ट्रेड के सामने मल्टीलेवल पार्किंग बनाई गई है। बेशक पार्किंग का निर्माण ट्राफिक को सुव्यवस्थित करने और जनता को वाहन खड़े करने के लिए जगह उपलब्ध कराना है। लेकिन यहां चहेतों को दुकान खोलकर दे दी गई है, बीपीओ सेन्टर चलाए जा रहे हैं। संपत्ति रायपुर नगर निगम की है, लेकिन निगम को राजस्व कितना मिल रहा यह किसी को पता नहीं। समिति के अध्यक्ष और सचिव जनप्रतिनिधि हैं या अफसर? यह भी पता नहीं। पश्चिम विधायक राजेश मूणत के निर्वाचन क्षेत्र में कला केन्द्र चलाए जा रहे है, बेशक चलना चाहिए। और जब संपत्ति निगम की है तो इससे आने वाला राजस्व भी नगर निगम को मिलना चाहिए। लेकिन मिल रहा है? इसका खुलासा होना चाहिए। कला केन्द्र जहां संचालित हो रहा है वह निर्वाचन क्षेत्र मूणत का है, तो कला केन्द्र संचालन करने वाले समिति के अध्यक्ष भी जनप्रतिनिधि होंगे, मूणत हैं, या नहीं? यह वहीं जानेंगे। कुल मिलाकर संपत्तियां नगर निगम की और निगम को राजस्व का अता-पता नहीं, यह राजस्व बढ़ाने का ढोंग नहीं तो और क्या है?
करो या मरो
राज्य कांग्रेस की स्थिति इन दिनों करो या मरो की हो गई है। मौजूदा हालातों और बीते डेढ़ साल में कांग्रेस एक भी कोई ऐसा आंदोलन नहीं कर पाई है, जिससे पूरे प्रदेश में विपक्ष की ताकत का एहसास हो सके। खैर इसके लिए कुछ हद तक कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही जिम्मेदार है। दरअसल विपक्ष की भूमिका में बैठे वर्तमान नेताओं की तासीर ही नहीं है, जो आक्रामक रुप से भाजपा सरकार पर हमला बोल सकें। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत बहुत सुलझे हुए नेता हैं, और अनुभवी भी। लेकिन विपक्ष के नेता की तरह उनमें धार नहीं। वहीं प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को लेकर अभी भी पार्टी हां या ना कि स्थिति में है। कांग्रेस में हालात इतने बिगड़ चुके है कि पार्टी करो या मरो की स्थिति में पहुंच चुकी है। ऐसा लगता है कि महात्मा गांधी जी द्वारा दिए गये इस नारे को राज्य कांग्रेस आत्मसात नहीं कर पा रही है। खैर राज्य कांग्रेस इसे आत्मसात करे या न करे, कांग्रेस के केंन्द्रीय नेतृत्व ने इसे फालो करना शुरु कर दिया है। शायद इसीलिए गुजरात में हुए अधिवेशन का असर छत्तीसगढ़ में भी दिखने लगा है। संभवत: इसीलिए राज्य में एनएसयूआई के 61 पदाधिकारी हटा दिए गये है, वहीं 16 को नोटिस जारी किया गया है। इन सभी पर निष्क्रियता का आरोप है। कहा जा रहा है कि पार्टी गतिविधियों में यह शामिल नहीं होते थे, इसलिए इनकी विदाई कर दी गई है। कंग्रेस के केन्द्रीय नेताओं का तेवर और यह कार्रवाई साफ तौर पर संकेत दे रही है कि राज्य में अब बड़े नेताओं की भी जवाबदेही तय की जाएगी।
ईओडब्ल्यू में अब डीजीपी
लंबे समय के बाद एचओडी के लिए मापदंड निर्धारित किया गया है। इस मापदंड के हिसाब से राज्य की जांच एजेन्सी ईओडब्ल्यू की कमान अब डीजीपी स्तर के अफसर संभालेंगे। हालांकि इसके पूर्व भी राज्य की जांच एजेन्सी की कमान डीजीपी स्तर के अफसर ही संभालते रहे हैं। लेकिन भूपेश सरकार के दौरान डीआईजी लेवल के अफसरों को यहां पदस्त करने की परंपरा चल पड़ी थी। जो वर्तमान समय तक चल रही है। लेकिन अब विष्णु सरकार ने इस परंपरा पर पूर्ण विराम लगा दिया है। अब एचओडी के लिए मापदंड निर्धारित कर दिये गये हैं। जिसके कारण ईओडब्ल्यू की कमान अब डीजीपी स्तर के अफसर को सौंपी जाएगी। बहरहाल अगला ईओडब्ल्यू चीफ कौन होगा? इसको लेकर चर्चा छिड़ी हुई है।
महादेव के बाद अब गजानन
छत्तीसगढ़ राज्य का सट्टा से गहरा रिस्ता जुड़ चुका है। यहां सट्टा के कारोबार से करोड़ों रुपये कमायेे गए हैं। जिसमें जनप्रतिनिधि और अफसरों की मिलीभगत बताई जा रही है। फिलहाल महादेव सट्टा ऐप मामले की सीबीआई जांच कर रही है। लेकिन सटोरियों का दुस्साहस देखिए महादेव ऐप में पहले ही कई सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं, और कई जाने की कगार पर है। लेकिन अब महादेव के पुत्र गजानन के के पीछे यह सटोरिए पड़ गए हैं। अब गजानन के नाम से सट्टा ऐप चलाया जा रहा है। आखिर यह हो क्या रहा है? सटोरिए पहले महादेव के नाम का उपयोग कर रहे थे, अब उनके पुत्र गजानन के पीछे पड़ गए हैं? हमारे समाज में व्याप्त सट्टा-जुआं जैसेे अपराधों, सामाजिक बुराइयों में हमारे देवताओं को क्यों घसीटा जा रहा? उनके नाम का उपयोग क्यों किया जा रहा? यह एक अबूझ पहेली बन चुकी हैै। इसकी भी जांच होनी चाहिए।
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