हलचल…सीएस पर मुहर

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मुख्यमंत्री-नेता प्रतिपक्ष की दोस्ती, और भूपेश…

वैसे तो मुख्यमंत्री और उनकी सरकार की खामियां गिनाना विपक्ष का प्रमुख काम होता है। लेकिन जब नेता प्रतिपक्ष पर ही मुख्यमंत्री से दोस्ती के आरोप लगने लगे, तो विपक्षी दल की कार्यप्रणाली और जनता के प्रति उनकी जवाबदेही को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। दरअसल नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत पर उनकी ही पार्टी के नेता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक मीटिंग के दौरान आरोप लगाया कि नेता प्रतिपक्ष डॉ. महंत मुख्यमंत्री विष्णुदेव के खिलाफ सवाल नहीं उठाते हैं। इस मीटिंग में प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सचिन पायलट समेत अन्य बड़े नेता मौजूद थे। खैर इस बात में कितना दम है यह तो नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत और पूर्व सीएम भूपेश बघेल ही जानेंगे। लेकिन मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष की दोस्ती इन दिनों मीडिया की सुर्खियां बन गई हैं। जिसकी चर्चा 10 जनपथ में भी होने लगी है। और यह माना जा रहा है कि भूपेश बघेल ने बड़ी ही चालाकी से महंत के खिलाफ पांसे चलना शुरु कर दिए हैं। राजनीति की समझ रखने वालों का मानना है कि भूपेश की स्मृति में भाजपा का बीता कार्यकाल घूम रहा है। जहां भूपेश बघेल की सरकार के खिलाफ आंदोलन को तेज करने के लिए तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को हटाकर नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। खैर भूपेश अपने इस रणनीति में कितना सफल होते हैं यह तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट होगा।

लाठी महंत की, सिर किसका ?

दरअसल भूपेश बघेल ही नहीं डॉ. चरणदास महंत भी राजनीति के मझे खिलाड़ी हैं, वह भी राजनीति का दांव चलना बखूबी जानते हैं। एक तरफ भूपेश बघेल ने नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत और सीएम विष्णुदेव की दोस्ती का राग अलाप कर महंत के खिलाफ शांत पानी में पत्थर फेंकने का काम किया है, तो वहीं दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने इशारे ही इशारे में पूर्व सीएम भूपेश बघेल को फिर राजनीतिक लट्ठमार घोषित करने पर जोर दिया है। महंत यह भली-भांति जानते हैं कि आने वाले समय में भूपेश बघेल का प्रहार उनके खिलाफ और तेज होगा, इसलिए शायद महंत बार-बार भूपेश के बायान के बाद लट्ठ और लाठी की बात करते नजर आते हैं। जो भूपेश बघेल के बयानों और उनकी गंभीरता पर बड़ा राजनीतिक प्रहार है। दरअसल मीडिया ने जब महंत से इस विषय को लेकर सवाल किया तो उन्होंने सहज लहजे में कह दिया कि इस बार विधानसभा लाठी लेकर जाएंगे। महंत का स्टैड भूपेश के खिलाफ एकदम क्लियर है, इसके पहले भी डॉ. चरणदास महंत ने इसी से मिलता जुलता बयान राजनीतिक बयान भूपेश बघेल के परिप्रेक्ष्य में दिया था। खैर अब सवाल यह उठता है कि महंत की लाठी भाजपा और मुख्यमंत्री विष्णुदेव को घायल करने जा रही है, या फिर भूपेश बघेल को लहू-लुहान करने का काम करेगी ? यह तो महंत ही जानेंगे। लेकिन दोनों नेता जिस तरह से एक-दूसरे पर राजनीतिक तीर छोड़ रहे हैं, उससे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि महंत, भूपेश और कांग्रेस में इन दिनों कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

राजेश राणा की जगह कौन?

पिछले कुछ माह में विष्णुदेव सरकार के फैसले की खबरें मीडिया तक नहीं पहुंच पा रही हैं। या यूं कहें कि सरकार के रणनीतिकार यह नहीं चाहते कि फैसले से पहले बात सार्वजनिक हो और अनावश्यक राजनीतिक दबाव को झेलना पड़े। खैर कहा जा रहा है कि क्रेड़ा यानि कि अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण के सीइओ आईएएस राजेश राणा को बड़ी जिम्मेदारी मिलने जा रही है। राजेश राणा बालोद समेत कई जिलों में कलेक्टरी कर चुके हैं। हालांकि उनके खाते में अब तक बड़े जिलों या राजधानी में काम करने का अनुभव नहीं है। अब राजेश राणा की किश्मत उन्हें कहां ले जाती है, इसका फैसला जल्द होने जा रहा है।

दर्द तो बहुत है, पर कहूं किससे

छत्तीसगढ़ राज्य पर्यावरण संरक्षण मंडल के सदस्य सचिव आईएफएस अरुण प्रसाद ने सरकारी सेवा से इस्तीफा दे दिया है। उनके नोटिस के अनुसार 30 जून उनका आखिरी कार्यदिवस हो सकता है। हालांकि अभी तक केन्द्र सरकार की ओर से प्रसाद को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। पर अरुण प्रसाद की प्लानिंग को देखकर यह कहा जा सकता है, केन्द्र का निर्णय अब महज एक औपचारिक कागजी कार्यवाही है। दरअसल प्रसाद ने 30 जून के पहले ही अपनी पूरी तैयारी कर ली है, उन्होंने अपने जरुरी समान तक समय पूर्व शिप्ट कर लिए हैं। खैर जाने वाले को कौन रोक सकता है? लेकिन प्रसाद को इस बात का दर्द जरुर होगा कि उनकी राय कोई लेने को भी तैयार नहीं है, शायद विभागीय मंत्री भी उन्हें मिलने का समय तक नहीं दे रहे। खैर यह दुनिया का दस्तूर है जाने वाले से भला कौन राय लेता है। इससे यह बात भली-भांति समझ लेना चाहिए कि अधिकारी और कर्मचारी तभी तक उपयोगी है, जब तक वह कुर्सी में विराजमान है।

सीएस पर मुहर

वर्तमान सीएस अमिताभ जैन की सेवाकाल का आज आखिरी दिन है। लंबी पारी खेलने के बाद सीएस जैन आज पवेलियन वापस जाएंगे। वहीं सोमवार को मंत्रिपरिषद की बैठक का भी आयोजन किया गया है। कहते हैं कि सोमवार को इस बात का खुलासा हो जाएगा कि अगले सीएस के रुप में केन्द्र सरकार छत्तीसगढ़ को सरप्राइज देकर चौकाने जा रही है, या फिर मुख्यमंत्री विष्णुदेव की पसंद पर मुहर लगने जा रही है। खैर यह बात तो तय हो चुकी है कि अब राज्य को नया सीएस मिलने जा रहा है। दरअसल अब इस रेस में सिर्फ दो दावेदारों के नाम सामने आ रहे हैं। जिसमें एसीएस सुब्रत साहू और मनोज कुमार पिंगुआ के नाम की चर्चा है। सुब्रत और भूपेश बघेल की नजदीकी का विषय कुछ हद तक उन्हें पीछे ढकेलेने का काम कर रही है। वहीं मनोज पिंगुआ का सरल स्वाभाव उनकी सबसे बड़ी ताकत के रुप उभरकर सामने आई है। बहरहाल राज्य के सीएस के रुप में सुब्रत, पिंगुआ या फिर अन्य पर मुहर लगेगी इसका खुलासा जल्द होने जा रहा है।

1000 सवालों के साथ हंगामें के आसार

अगले माह विधानसभा का मानसून सत्र है। इसको लेकर माननीयों ने सवालों की झड़ी लगा दी है। यह सत्र भले ही 5 दिवस है, लेकिन सवालों की जमकर बौछार हो रही है। तकरीबन 1000 सवाल लगाए जा चुके हैं। दरअसल मानसून सत्र के पहले राज्य में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की आम सभा होनी है। जिसको लेकर कांग्रेसी नेता और विधायक काफी उत्साहित हैं। खाद और बीज की किल्लत को लेकर कांग्रेस विष्णु सरकार के खिलाफ मुखर होने की तैयारी में जुटी है। वहीं सत्ता पक्ष के विधायक भी सवाल करने में पीछे नहीं हैं। कुल मिलाकर सत्र छोटा होगा लेकिन हंगामेदार होने के आसार हैं।

फिर चढ़ गया गरीब फांसी में

किसी भी प्रशासनिक घटना का शिकार पहले गरीब ही होता है। क्योंकि बड़े अफसर या ऊपर तक पहुंचने में बहुत वक्त और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। दरअसल यह बात हम इसलिए कह रहे हैं कि चर्चित भारतमाला सड़क परियोजना में मुआवजा घोटाले को लेकर एक पटवारी ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी है। आरोपी पटवारी की इस घोटाले में कितनी भूमिका थी यह तो जांच पूरी होने के बाद ही पता लग सकेगा। लेकिन इस आरोप की कीमत रिटायर होने जा रहे पटवारी सुरेश कुमार मिश्र ने जान देकर चुकाने का प्रयास किया है। जान देने से पहले उन्होंने निर्दोष होने की गुहार लगाई थी, खैर यह तो जांच का विषय है। दूसरी तस्वीर आप खुद देख लीजिए इस भ्रष्टाचार का कथित मेन सरगना एसडीएम निर्भय साहू, तहसीलदार शशिकांत कुर्रे, नायब तहसीलदार लखेश्वर प्रसाद किरण पुलिस की गिरफ्त से अब तक बाहर हैं। सभी के खिलाफ वारंट जारी हो चुके है और उन्हें फरार भी घोषित कर दिया गया है, लेकिन कानून के हाथ अभी तक इन आरोपियों तक नहीं पहुंच पाये हैं? क्या इन्हें जमीन निगल गई या आसमान? ऐसे में गरीब यानि की निचले कर्मचारी कब तक बली का बकरा बनेंगे? गरीब कब तक फांसी में चढ़ेगा? बड़ी मछलियों को पकडऩे में पुलिस और प्रशासन के हाथ क्यों कांप रहे हैं?

 

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