हलचल…सौरभ कुमार ने चौंकाया?

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रायपुर समेत सभी नगर निगमों में भाजपा का कब्जा

निकाय चुनाव में चारों ओर भाजपा का दबादबा रहा। 10 के 10 नगर निगमों में भाजपा के महापौर प्रत्याशियों ने विजयश्री हासिल की। पंद्रह साल बाद रायपुर में भी भाजपा को शहरी सत्ता हासिल करने में सफलता मिली है। सुनील सोनी के बाद यहां लगातार कांग्रेस का दबदबा रहा। पहले किरणमयी नायक फिर प्रमोद दुबे और उसके बाद भूपेश के पसंदीदा एजाज ढेबर रायपुर के महापौर रहे। रायपुर से भाजपा प्रत्याशी मीनल चौबे ने रिकार्ड मतों से जीत दर्ज की हैं। मीनल के पास निगम में काम करने का अनुभव भी है, वह इसके पहले रायपुर नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी निभा चुकी हैं। निश्चित ही मीनल चौबे के अनुभव का लाभ रायपुर की जनता को मिलेगा। इसके साथ इस बार भाजपा पार्षदों की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है। 70 में से 48 भाजपा पार्षद चुनाव जीतने में सफल हुए हैं। रायपुर में कांग्रेस का प्रदर्शन अब तक का सबसे कमजोर रहा। कांग्रेस पार्षदों के बराबर ही निर्दलीय पार्षद चुनाव जीतने में सफल रहे। कुल मिलाकर रायपुर समेत सभी नगर निगमों में भाजपा कब्जा जमाने में सफल रही। कांग्रेसियों के हाथ एक बार फिर मायूसी लगी।

सौरभ कुमार ने चौंकाया?

आईएएस सौरभ कुमार के डेपुटेशन में जाने की खबरें इन दिनों अफसरशाही में चर्चा का विषय बना हुआ है। सौरभ कुमार को राज्य सरकार ने एनआरडीए की जिम्मेदारी सौंपी हैं। वह वर्तमान में एनआरडीए के सीईओ का दायित्व निभा रहे हैं। सौरभ कुमार जिस विभाग का दायित्व संम्भाल रहे हैं, उस विभाग के मुखिया ओपी चौधरी हैं। सौरभ कुमार मंत्री ओपी चौधरी के पसंदीदा अफसर हैं, और सम्भवत: ओपी चौधरी भी सौरभ के पसंदीदा मंत्री हैं। उसके बाद भी सौरभ अपने कैरियर के इस सुनहरा अवसर को क्यों गवाना चाहते हैं। वह दिल्ली डेपुटेशन में क्यों जाना चाहते हैं? ओपी चौधरी एक तेज तर्रार और युवा मंत्री हैं, सौरभ कुमार को भी एक काम करने वाले अफसर के रुप में जाना जाता है। तो फिर वह इस अवसर को क्यों खोना चाह रहे हैं? बहरहाल अब यह तो सौरभ कुमार ही जानेंगे कि वह डेपुटेशन में क्यों जाना चाहते हैं। लेकिन इस खबर ने सभी को चौंकाने का काम किया है।

कांग्रेस को फिर याद आये टीएस सिंहदेव

एक के बाद एक हार से राज्य कांग्रेस और कांग्रेस के आलाकमान काफी चिंतित हैं। पहले कांग्रेस ने राज्य की सत्ता गंवाई, फिर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। अब निकाय चुनाव में कांग्रेस की दुर्दशा हो गई। लगातार हो रही फजीहत से कांग्रेस को एक बार फिर टीएस सिंहदेव याद आने लगे हैं। यह बात अलग है कि कांग्रेस ने सिंहदेव की कम फजीहत नहीं की है। 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले टीएस सिंहदेव के पास अप्रत्यक्ष रुप से राज्य कांग्रेस की कमान थी। कहा जाता है कि सिंहदेव ने 2018 के विधानसभा चुनाव में काफी रुपये खर्च किए, खैर सच क्या है? यह तो टीएस सिंहदेव ही जानेंगे। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में अकूत रुपया खर्च करने के बाद भी सिंहदेव ढाई साल के बजाय पांच साल तक वेटिंग इन सीएम बने रहे। अब कांग्रेस फिर अपने पूर्व स्थिति की ओर चल पड़ी है। खेमेबाजी के साथ-साथ पार्टी आर्थिक तंगी से भी जूझ रही है। सम्भवत: इसीलिए कांग्रेस को फिर सिंहदेव याद आने लगे हैं। निकाय चुनाव में निराशाजनक परिणाम के बाद टीएस सिंहदेव को राज्य कांग्रेस की कमान सौंपने की कवायद शुरु हो चुकी है। सिंहदेव जल्द ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये जा सकते हैं। आलाकमान अब राज्य में और खेमेबाजी बरदास्त करने के मूड में नहीं है, शायद इसी कारण से पूर्व सीएम भूपेश बघेल को महासचिव की जिम्मेदारी सौंपते हुए पंजाब का प्रभारी बनाया गया है। लेकिन 2018 से पहले के सिंहदेव और अब के सिंहदेव में राज्य की जनता काफी भिन्नता देख रही है, ऐसे में सिंहदेव को फिर अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए जमकर पसीने बहाने पड़ेंगे।

फाइल चारों धाम घूम रही और अफसर गंगा स्नान से भी वंचित?

सीनियर आईएफएस अफसर एपीसीसीएफ अलोक कटियार, सुनील मिश्रा, अरुण कुमार पांडे, प्रेम कुमार, सहित अन्य अफसरों को अभी तक प्रमोशन नहीं मिल पाया है। इसमें से एक अफसर रिटायर हो गए, वहीं सुनील मिश्रा इसी साल के मई माह में रिटायर हो जाएंगे। दरअसल जुलाई माह से इन अफसरों के प्रमोशन की फाइल चारों धाम की यात्रा कर रही है (इस टेबल से उस टेबल घूम रही है)। चारों धाम की यात्रा में निकली इनके प्रमोशन की फाइल जरुर घूम रही है। लेकिन प्रमोशन की आस लिए इनमें से कुछ अफसरों को महाकुम्भ का पुण्य लाभ भी नसीब नहीं हुआ है। चारों धाम की यात्रा पर निकली इनकी फाइल फाइनली सीएम सचिवालय पहुंच चुकी है। धर्म-कर्म वाली विष्णु सरकार इन अफसरों को जल्द ही महाकुम्भ के पुण्य लाभ का अवसर प्रदान कर सकती है। सम्भव है कि बजट सत्र प्रारम्भ होने से पहले होने वाली केबिनेट में इनके प्रमोशन पर मुहर लग जाए।

विनय जायसवाल का क्या?

चिरमिरी नगर निगम में कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व विधायक विनय जायसवाल नजदीकी मुकाबले में चुनाव हार चुके है। दरअसल विनय जायसवाल जिस क्षेत्र से आते हैं वह क्षेत्र नेताप्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत के प्रभाव वाला क्षेत्र है। राज्य में कांग्रेस की सरकार रहते हुए तत्कालीन चिरमिरी विधायक वर्तमान महापौर प्रत्याशी विनय जायसवाल पूर्व सीएम भूपेश बघेल के बेहद करीबी रहे। तो डॉ. महंत ने विनय जायसवाल को महापौर की टिकट देने की पैरवी क्यों की? यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। और इस क्षेत्र से कांग्रेस के बागी बलदेव दास आखिरी तक मैदान में डटे रहे? यह तमाम राजनीतिक समीकरण आखिर क्या कहना चाहते हैं? फिलहाल इस पर मंथन और चिंतन की जरुरत है। कांग्रेस के विनय जायसवाल 4000 मतों से चुनाव हार गये। वहीं कांग्रेस से बागी प्रत्याशी बलदेव दास जो कि पनिका समाज से आते हैं, उन्हें 1976 वोट मिले हैं। वास्तव में यह वोट और बलदेव दास कांग्रेस के लिए काम करते तो परिणाम कुछ और होते। खैर विनय अब विधायक से लेकर महापौर तक की टिकट पाने वाले नेताओं में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में अब उन्हें आगे कितना अवसर मिलेगा फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता।

किसने बिगाड़ा खेल?

रिएजेन्ट खरीदी और चोपड़ा बंधू इन दिनों चर्चा के विषय बने हुए हैं। कई करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप में सलाखों के पीछे पहुंचे चोपड़ा बंधू क्या अकेले इतने बड़े घोटाले को अंजाम दे सकते हैं? आखिर इसका सच क्या है? ऐसेे तमाम सवाल इन दिनों आम जन के जेहन में घूम रहे हैं। चोपड़ा बंधू का सीजीएमएसी में एकछत्र राज रहा। यह कारोबार तो वर्षों से चल रहा था तो अचानक चोपड़ा बंधू सलाखों के पीछे कैसे पहुंच गए? किसने बिगाड़ा चोपड़ा बंधू का खेल? क्या सिर्फ इसके पीछे कमीशन का ही खेल है, या चोपड़ा बंधू की मोनोपाली को खत्म करने की रणनीति में कुछ अफसर भी शामिल हैं? क्या बिना बजट के पहली बार खरीदी की गई? या फिर इसके पहले भी इसी तरीके से खरीदी होती रही है? 10 प्रतिशत कमीशन की सच्चाई क्या है? या 30 करोड़ रुपये के चंदे की मांग ने उलझाया? आखिर घोटाले का सच क्या है? बहरहाल सच जो भी हो राज्य की जांच एजेन्सी ईओडब्ल्यू मामले की पड़ताल कर रही है। आने वाले दिनों में दूध का दूध पानी का पानी होना तय है।

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