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कैट के दरवाजे से जीपी की छत्तीसगढ़ एन्ट्री
सीनियर आईपीएस जीपी सिंह के छत्तीसगढ़ वापसी के रास्ते लगभग खुल गए हैं। कैट के रास्ते जीपी एक बार फिर छत्तीसगढ़ एन्ट्री करने जा रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा था कि राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के एक बड़े घोटाले की पोल खोलने में जीपी सिंह की अहम भूमिका रही है। बहरहाल सच क्या है? यह तो जीपी ही जानेंगे। लेकिन आचार संहिता के बाद जीपी सिंह की राज्य में धमाकेदार एन्ट्री हो सकती है। कहते हैं राज्य की सुशासन वाली विष्णु सरकार भी जीपी के लिए सहमत हो गई है। कभी एसीबी चीफ रहे जीपी सिंह पर एसीबी ने ही कहर बरसाया था। आरोप कितने सच थे, कितने झूठे इसकी परतें खुलना शुरु हो चुकी हैं। भूपेश सरकार में जीपी पर लगाम कसने के लिए एक खास आईपीएस की नियुक्ति एसीबी, ईओडब्ल्यू में की गई थी। इनके पहले यहां पर एजीडी स्तर के अफसरों को कमान मिला करती थी। बहरहाल आगे क्या होगा इसका खुलासा तो आने वाले दिनों में ही होगा।
मूणत के साथ पुरंदर भी रेस में
कहते हैं कि राजनीति में किसके भाग्य कब खुल जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता। बसना से टिकट मांग रहे पुरंदर मिश्रा को रायपुर उत्तर से टिकट मिल गई। टिकट ही नहीं मिली बल्कि भगवान महाप्रभू की कृपा से पुरंदर ने स्कूटी वाले सरदार जी को घर बैठा दिया। पुरंदर के चुनाव जीतने के बाद राज्य में उत्कल समाज का झुकाव भाजपा की ओर बढ़ा है। वहीं भाजपा के तामाम नेता उड़ीसा में सीटों को बढ़ाने के साथ ही नवीन बाबू को पटकनी देने की कोशिश कर रहे हैं। केबिनेट मंत्री बृजमोहन अग्रवाल चुनाव परिणाम के बाद दिल्ली की यात्रा में चल देंगे। ऐसे में रायपुर से किसी एक विधायक को जगह मिल सकती है, जिसमें राजेश मूणत का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। लेकिन समय नजदीक आते ही इस रेस में महाप्रभू के भक्त पुरंदर मिश्रा भी शामिल हो चुके हैं। दरअसल में पुराने चेहरों को लेकर भाजपा अभी भी हां या न की स्थिति में है। ऐसे में आगे क्या होगा इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता। वहीं पहले से रिक्त एक और मंत्री पद के लिए बिलासपुर से अमर अग्रवाल और सरगुजा से रेणुका सिंह की भी चर्चा है।
केज आवंटन पर खेल
मतस्य पालन विभाग इन दिनों सुर्खियों में है, कुछ दिन पहले तक इस विभाग को कोई ठीक से जानता भी नहीं रहा होगा। लेकिन इस विभाग में जमकर कारनामे हुए। केज के आबंटन में राशि की जमकर बंदरबाट हुई। कई जगह अधिकारियों ने अपने रिस्तेदारों, ड्रायवरों, नौकरों के नाम भी केज आबंटन करा लिया। अब इसकी परतें खुल रही हैं। दरअसल में इस व्यवसाय में न ही कोई बड़ा गोदाम चाहिए, न ही कोई बड़ी जमीन चाहिए, न ही कोई बड़ी रकम, किराये में भी कोई बड़ी राशि खर्च नहीं करनी है। सरकारी जलाशयों का उपयोग करके आप रातों-रात करोड़पति बन सकते हैं। इस विभाग में कार्यरत रहे कई अधिकारी करोड़पति बन भी चुके हैं। पूंजी भी लगाने की जरुरत नहीं है, इसमें 100 प्रतिशत तक की सब्सिडी लूटने की भी खबर सामने आई है।
योगेश की रायपुर वापसी?
कभी रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल से दो-दो हाथ करने वाले योगेश तिवारी की इन दिनों बृजमोहन के साथ नजदीकियों के अलग ही राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक जमीन मजबूत करने योगेश रायपुर से बेमेतरा चले गए। बेमेतरा में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के बाद वह फिर रायपुर का रुख करते हुए दिख रहे हैं। दरअसल में योगेश तिवारी राज्य में किसान नेता के रुप में अपनी छवि गढऩे में सफल होने के बाद विधानसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा का दामन थाम लिया। लेकिन भाजपा ने योगेश को बेमेतरा से मौका नहीं दिया। कुछ लोगों का कहना यह भी है कि उसी समय योगेश तिवारी को आश्वासन दे दिया गया था कि आपको रायपुर वापस भेजा जाएगा। शायद इसीलिए अपने जन्म दिन के अवसर पर योगेश ने बेमेतरा छोड़ रायपुर में शक्ति प्रदर्शन किया। यहीं नहीं बृृजमोहन अग्रवाल का हाथ पकड़कर सैकड़ों केक काटे गए। कहा तो यह भी जा रहा है कि बृजमोहन के दिल्ली एक्सप्रेस में सवार होते ही, योगेश राजधानी एक्सप्रेस का सफर कर सकते हैं।
सोसर के लिए एक रुपया भी नहीं हुआ जारी
राज्य में गर्मी का प्रकोप देखते ही बनता है। इस भीषण गर्मी में लगभग सभी जलाशय सूखने के कगार पर हैं। आदमी के साथ वन्यजीवों पर भी इसका खासा प्रभाव देखा जा रहा है। वनों के भीतर पानी की कितनी व्यवस्था है इस पर सावल उठ रहे हैं। जब बड़े-बड़े जलाशय सूख गए हैं, तो वनों के भीतर पानी की क्या दशा होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि वन्यप्राणियों के पानी उपलब्धता के लिए वनों के भीतर सोसर का निर्माण किया जाता है। इन सोसरों में टैंकरों के माध्यम से पानी भरे जाते हैं। जिससे जानवरों को गर्मी के मौसम में आसानी से जल उपलब्ध हो जाता है। हद तो तब हो गई जब यह खबर सामने आई कि इस भीषण गर्मी में वाइल्ड लाइफ द्वारा सोसर के लिए एक रुपया का बजट जारी नहीं किया गया। आलम यह है कि पानी की तलास में वन्यजीव गांवों की ओर भाग रहे हैं जहां पर वह अकाल मौत के शिकार हो जा रहे हैं। यह बात अलग है कि कुछ संवदेनशील अधिकारी वनमंडल स्तर पर पानी की व्यवस्था करने में जुटे हैं, लेकिन वाइल्ड लाइफ से सोसर के लिए इस वर्ष एक रुपया बजट जारी नहीं किया जाना उच्चस्त अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है।
भले ही मुआवजा 1-1 करोड़ देना पड़े, लेकिन फैक्ट्री को आंच नहीं
बेमेतरा की एक बरुद फैक्ट्री में विस्फोट हुआ। काम करने वाले मजदूरों के चीथड़े बरामद हुए, लेकिन उनकी सिनाख्त नहीं हो सकी और नहीं कितने लोगों की मौत हुई इसका वास्तविक खुलासा हो पाया। कहते हैं कि प्रबंधन ने हाजिरी रजिस्टर को ही गायब करा दिया। कौन-कौन ड्यूटी में उपस्थित थे इसका भी खुलासा नहीं हो पाया। फैक्ट्री के खिलाफ कार्यवाही करने में सत्ताधारी दल भाजपा के हाथ कांपा रहे हैं, नतीजन फैक्ट्री के एक मैनेजर के उपर एफआईआर दर्ज कर खाना पूर्ति की गई है। कहा यह जा रहा है कि यह फैट्री मध्यप्रदेश के एक कद्दावर नेता रहे नामचीन चेहरे के दामाद की है। शायद इसीलिए यह अघोषित रुप से फरमान है कि मुआवजा चाहे 1-1 करोड़ रुपये देने पड़ जाएं, लेकिन फैक्ट्री को आंच नहीं आनी चाहिए। बहरहाल असली सत्यता का खुलासा तो जांच में ही हो पाएगा।
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