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राज्य की अनमोल धरोहर और पीडब्ल्यूडी
हम नया कुछ सुनते हैं, नया कुछ देखते हैं, तो उसकी तस्वीर हमारे दिलों दिमाग में आ जाती है। निश्चित ही नए विधानसभा भवन को आने वाले पीढिय़ों के हिसाब से तैयार किया गया है। सरकार दूरदर्शी है, लेकिन भवन निर्माणकर्ता एजेन्सी की दूरदर्शिता पर सवाल उठने लगे हैं। निर्माण क्वालिटी और राज्य की इस बहुमूल्य धरोहर में लगाई सामग्रियां शंका के दायरे में है। यह कहने में भी संकोच नहीं कि गुणवत्ता के मानकों में शायद ही नए विधानसभा भवन की निर्माण सामग्री और कंस्ट्रक्शन क्वालिटी खरा उतरे। खैर निर्माण अधूरा ही सही लेकिन शीतकालीन सत्र पूरा हो चुका है। राज्य की इस बहुमूल्य धरोहर के निर्माण और क्वालिटी को लेकर सवाल भी उठना लाजमी है। दरअसल इस भवन के ठीक सामने बना महानदी भवन (मंत्रालय) की निर्माण क्वालिटी और विधानसभा भवन की निर्माण क्वालिटी, सामग्रियों में अतंर साफ दिखता है। यहां न काम की सफाई नजर आई न सामग्रियों की गुणवत्ता। जबकि एक दशक बीत जाने के बाद भी मंत्रालय महानदी भवन की गुणवत्ता में कोई सवाल नहीं उठे। खैर अब यह जनता की सम्पत्ति है इसे संवारने का काम सरकार का है। सरकार बचे हुए कामों में गुणवत्ता का कितना ख्याल रखती है, इसका मूल्यांकन आगामी सत्र में किया जाएगा।
ननकीराम कंवर जीते, वसंत भी नहीं हारे
आमतौर पर नेता और अफसर की लड़ाई के अधिकतर मामलों में अफसर को ही हारना पड़ता है। और खासकर जब भिड़ंत सत्ताधारी दल के नेता के साथ हो तो अफसरों का जोखिम बढ़ जाता है। खैर ताजा मामला कोरबा का है, जहां कलेक्टर रहते हुए आईएएस अजीत वसंत भाजपा के सीनियर आदिवासी नेता ननकीराम कंवर से सीधा भिडऩे का जोखिम उठाया। निश्चित ही भिड़ंत के पहले दिन से ही तय था कि कोरबा कलेक्टर को देर-सबेर हटा दिया जाएगा, हुआ भी कुछ ऐसा ही। अपने दल के ही नेताओं की नाराजगी को देखते हुए सरकार ने कोरबा कलेक्टर को हटा दिया है। लेकिन यहां सरकार में बैठे अफसरों के निर्णय की तारीफ न करना बेईमानी होगी। दरअसल कोरबा से हटाकर आईएएस अजीत वसंत को सरगुजा का कलेक्टर बना दिया गया है। वर्तमान में सरगुजा जिला कई मायनों में बेहद अहम माना जाता है। कुल मिलाकर अजीत वसंत को कोरबा से हटा भी दिया गया और उनके कद को भी छोटा नहीं किया गया। मतलब राजनेताओं और अफसरशाही में संतुलन बनाने की पूरी कोशिश की गई है। यहां ननकीराम कंवर को भी संतुष्ट कर दिया गया और वसंत को भी मनचाही पोष्टिंग दे दी गई है। हालांकि बिलासपुर संभागीय कमिश्नर की जांच यहां पूरी तरह वैल्यूलेस साबित हुई है। बहरहाल कोरबा मामले में यह कहा जा सकता है कि ननकीराम कंवर भी जीत गए और आईएएस अजीत वसंत भी नहीं हारे। इसी से मिलता-जुलता मामला बेमेतरा जिला का है, हालांकि बेमेतरा का मामला पब्लिक में नहीं आया, लेकिन कलेक्टरों के ट्रांसफर लिस्ट ने यह साफ कर दिया है कि पॉलिटिकल वैल्यू को इम्पारटेंस देना ही होगा, वरना परिणाम कोरबा, बेमेतरा और सरगुजा जैसे ही होंगे।
मुख्यमंत्री से जादा पापुलर होते ओएसडी
सत्ता चीज ही ऐसी है, इसके इर्द-गिर्द रहने वालों के चर्चे दूर-दूर तक होने लगते हैं। चर्चाएं कभी अच्छाइयों के होते हैं, तो अच्छाइयों के साथ बुराइयां भी दौड़ी चली आती हैं। यहां कभी कोई ओएसडी चर्चे का केन्द्र रहता है, तो कभी कोई पल भर में पापुलर हो जाता है। खैर यह मशला चर्चाओं से बाहर निकलकर थाने तक पहुंच गया है। दरअसल एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी के सहायक प्राध्यापक को मुख्यमंत्री का कथित ओएसडी बताकर उनके नंबर में फोन किया गया और प्रोफेसर को जमकर धमकाया गया। हालांकि यह यूनिवर्सिटी भी एक कददावर भाजपा नेता की है। लेकिन प्रोफेसर इस कड़ाके ठंड में भी सूर्य की तपन को सहन नहीं कर पाये और पसीने-पसीने पोंछते हुए थाने पहुंच गए। रायपुर पुलिस ने मामले में तुरंत धर-पकड़ कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। लेकन यह मसला अब थाना और जांच तक सीमित नहीं रहा, इस कथित कॉल के बाद ओएसडी साहब की चर्चाएं भी बाजार में सुर्खियां बटोरने लगी हैं। सम्भवत: अपराधी किश्म के लोगों को भी यह समझना आसान हो गया है कि बाजार में इन दिनों कौन सा नाम तेजी से पापुलर हो रहा है।
महारथ के बीच ई-फाइल
बस्तर के सबसे ताकतवर जिले में पदस्त रहे एक कलेक्टर के बारे में कहा जाता है कि उन्हें फाइलों को धर कर बैठने में महारथ हासिल है। उन पर आरोप हैं कि काम कोई भी हो, कैसा भी हो, जब तक पार्टी साहब से मुलाकात नहीं करती, नमस्कार-चमत्कार नहीं करती, तब तक फाइलें धूल खाते पड़ी रहती हैं। हालांकि साहब इसके पहले भी बस्तर सम्भाग में ही पदस्थ थे। हाल ही के ट्रांसफर लिस्ट में उन्हें बस्तर से बाहर निकालकर एक प्रमुख जिले की कमान सौंपी गई है। लेकिन अब सुशासन की किरणें निकलते दिख रही हैं। कलेक्टर कार्यालय में भी अब ई-फाइल का चलन चालू हो गया है। ऐसे में साहब अब नए और मलाईदार जिले में क्या तरकीब निकालते हैं? यह तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट हो पायेगा। दरअसल बस्तर के रहवासी कई मामलों में शांत होते हैं, यहां के राजनेता भी ज्यादा विवादों को पसंद नहीं करते, ठेकेदार भी अपना काम निकाल चलते बनते हैं। लेकिन साहब को जिस नए जिले में पदस्त किया गया है, वहां की तसीर कुछ जुदा रही है। पिछले एक दशक यहां कलेक्टरी करना तलवार की धार पर चलने से कम नहीं है।
चन्द्राकर के तेवर, ठंडा विपक्ष और मुख्यमंत्री पद
वैसे तो विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विपक्ष के तेवर ठंडे नजर आये। किसानों के मुद्दों पर भी विपक्ष कुछ खास नहीं कर पाया। जमीनों की बढ़ी गाइडलाइन दर पर सरकार को घेरने में कांग्रेस विफल नजर आई। लेकिन शीतकालीन सत्र में सत्ताधारी दल के विधायकों ने ठंडे विपक्ष का तनिक भी एहसास नहीं होने दिया। कुरुद विधायक अजय चंद्राकर अपनी ही सरकार के प्रति मुखर नजर आये। चन्द्राकर ने अपने ही सरकार को घेरने में कोताही नहीं बरती। विधानसभा में अजय चन्द्राकर ने विजन 2047 को आइना दिखाने का काम किया। हालांकि यह दायित्व सर्वप्रथम विपक्ष का था, लेकिन अजय मैदान मार ले गए। शायद अजय अब यह भली-भांति जानते हैं कि वह वर्तमान में राजनीति के सबसे निचले पायदान में खड़े हैं। अब पार्टी और सरकार उन्हें इससे नीचे लेकर कतई नहीं जा सकती। इसलिए वह अपने तेवर और विपक्ष के फेवर से परहेज नहीं कर रहे। यही वजह है कि हंसी मजाक में ही सही लेकिन अजय चंद्राकार के तेवर को देखते हुए विपक्ष ने उन्हें 15 विधायक तोड़कर लाने पर मुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया है। खैर राजनीति में कुछ असंभव नहीं है। मध्यप्रदेश, शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। बहरहाल आगे जो भी हो, लेकिन शीतकालीन सत्र में चन्द्राकर ने ठंडे विपक्ष की कमी को महसूस होने नहीं दिया।
सौम्या फिर पहुंची सलाखों के पीछे
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ओएसडी रहीं सौम्या चौरसिया एक बार फिर सलाखों के पीछे पहुंच गई हैं। इस बार उन्हें शराब घोटाले मामले में गिरफ्तार किया गया है। सौम्या चौरसिया को कुल पांच बार गिरफ्तार किया जा चुका है। सबसे पहले 500 करोड़ रुपये के अवैध कोल लेवी मामले में ईडी ने चौरसिया को गिरफ्तार किया था। बाद में इसी मामले में ईओडब्ल्यू ने गिरफ्तार किया। इसके बाद डीएमएफ घोटाले में फिर ईओडब्ल्यू ने चौरसिया को गिरफ्तार किया। इसके बाद आय से अधिक के मामले में भी उन्हें गिरफ्तार गिया गया। अब एक बार फिर शराब घोटाले मामले में ईडी ने सौम्या चोरसिया को गिरफ्तार किया है। कहा जाता है कि सौम्या चौरसिया को 2008 से 17 वर्ष की सेवा अवधि में शासन द्वारा तकरीबन 89 लाख रुपये सेलरी मिली जबकि इस दौरान उहोंने 50 करोड़ की 45 बेनामी संपत्तियां खरीद डाला। खैर सौम्या चौरसिया तो इस जाल में फंस गई, लेकिन हमारे सिस्टम में और कितने सौम्या चौरसिया खैर मना रही हैं? उनका नम्बर कब आयेगा? अब इसको लेकर भी काम करने की जरुरत है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष और छत्तीसगढ़
पिछले एक दशक से छत्तीसगढ़ का राजनीतिक परिदृश्य राष्ट्रीय मामलों में काफी मजबूत साबित हुआ है। दरअसल कभी छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे जेपी नड्डा लंबे समय से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। वहीं इस बीच छत्तीसगढ़ राज्य में भाजपा की वासपी के प्रमुख सूत्राधार रहे प्रदेश भाजपा के प्रभारी नितिन नबीन को भाजपा का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। दरअसल 46 वर्षीय नितिन नबीन राजनीति के मझे खिलाड़ी हैं, वह बिना संभावना के भी छत्तीसगढ़ राज्य में भाजपा की सरकार बनाने में कामयाब हुए। वहीं हाल ही में हुए बिहार चुनाव के परिणाम जनता के सामने हैं। नितिन नबीन की जड़ें बिहार में काफी मजबूत हैं। वह एक सरल और सहज नेता के रुप में जाने जाते हैं। संभवत: पार्टी ने उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष का दायित्व सौंपकर यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले समय में भाजपा की कमान एक युवा नेता के हांथ में होगी। दरअसल भाजपा पूरे देश में सेकण्ड लाइन के नेताओं को फ्रंटलाइन में शिप्ट करने का काम तेजी से कर रही है। इसी कड़ी में नितिन नबीन को भी आगे लाया गया है। लेकिन इस निर्णय से नितिन नबीन ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ का राजनीतिक पृष्ठभूमि राष्ट्रीय मामलों में काफी मजबूत होकर सामने आया है, पहले जेपी नड्डा यहां के प्रभारी रहे, अब नितिन नबीन भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बना दिए गए हैं।
मोदी, शाह के बाद अब जेपी नड्डा
पिछले दो माह में पीएम नरेन्द्र मोदी छत्तीसगढ़ दो बार आ चुके हैं। एक बार राज्योत्सव के अवसर पर तो एक बार डीजीपी कॉन्फ्रेंस के चलते मोदी छत्तीसगढ़ पहुंचे थे। वहीं केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का दौरा भी कई दफे हो चुका है। अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का छत्तीसगढ़ दौरा प्रस्तावित है। हालांकि जेपी नड्डा के अभी तक कोई अधिकृत कार्यक्रम जारी नहीं हुए हैं। लेकिन कहा जा रहा है कि 22 दिसम्बर को नड्डा छत्तीसगढ़ प्रवास पर रहेंगे। दरअसल नड्डा के छत्तीसगढ़ प्रवास के कई मायने निकाले जा रहे हैं। जेपी नड्डा की राजनीतिक पृष्ठभूमि छत्तीसगढ़ से जुड़ी हुई है। वहीं नए कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन का भी छत्तीसगढ़ से गहरा नाता है। संभव है इस अवसर पर कोई सभा का भी आयोजन किया जा सकता है।
निशाने पर बिल्डर
एैसा कहा जाता है कि काला धन छिपाने का सबसे सही ठिकाना जमीन और सोना होता है। लेकिन अब यह दोनों सरकार के निशाने पर है। संभवत: जाँच एजेंसियाँ भी यह मानकर चल रही हैं कि अकेले रायपुर के कई नामी बिल्डरों के प्रोजैक्ट्स में नेताओं और अफसरों ने जमकर काला धन इन्वेस्ट किया है। इसलिए बिल्डरों के प्रोजैक्ट्स और उनके इन्वेस्ट की जाँच इन दिनों केंद्रीय जाँच एजेंसी ईडी ने शुरू कर दी है। इसी के चलते कचना स्थित एक बिल्डर के ठिकानों में दबिस दी गई है। जिसकी पड़ताल भी चालू है। सूत्र बताते हैं कि इस कारोबारी के पीछे मध्यप्रदेश के एक कारोबारी ने भी रुपये लगाना शुरू कर दिया है। हालांकि इस कारोबारी का विवादों से गहरा नाता रहा हैं। एैसे में जाँच एजेंसियों के हाथ कितनी जानकारी लगी है, यह तो जाँच संबंधी जानकारी उजागर होने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि अब कारोबारियों के साथ-साथ बिल्डर भी निशाने पर हैं।
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