हलचल… राजनीतिक चतुराई

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संसदीय ज्ञान का निचोड़

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय जनता पार्टी चौकाने वाले निर्णय लेती रही है। इसी कड़ी में एक और चौकाने वाले निर्णय की सुगबुगी सुनाई दे रही है। राज्य भाजपा में अजय चंन्द्राकर को संसदीय मामलों ज्ञाता माना जाता है। वहीं संसदीय मामलों के दूसरे बड़े जानकार सांसद बृजमोहन अग्रवाल हैं। लेकिन बृजमोहन अग्रवाल वर्तमान में छत्तीसगढ़ विधानाभा के सदस्य नहीं हैं। ऐसे में पार्टी संसदीय मामलों के जानकार अजय चंद्राकर को मंत्री न बनाकर विधानसभा उपाध्यक्ष बनाने की रणनीति पर विचार कर रही है। दरअसल इसके पीछे तर्क यह है कि चंद्राकर के उपाध्यक्ष बनने से वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह को काफी सर्पोट मिलेगा। वहीं रायपुर दक्षिण से नवनिर्वाचित विधायक सुनील सोनी को भी छत्तीसगढ़ विधासभा का उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है। बहरहाल अब अजय चंद्राकर को विधानसभा का उपाध्यक्ष बनाया जाएगा या फिर सुनील सोनी पर मुहर लगने जा रही है, इसका खुलासा तो निकट भविष्य में ही हो सकेगा।

जांच की आंच से बच पांयेगे ?

राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं है, आज से एक साल पहले राज्य में भूपेश बघेल की तूती बोलती थी। भूपेश के नाम पर अफसर ही नहीं, नेता भी थर्राने लगते थे। लेकिन राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं है। भूपेश और उनके सचिवालय में काम करने वाले अफसर इसके जीते-जागते उदाहरण हैं। उनके सचिवालय में जिन अफसरों के नाम से लोग बंद कमरे में भी कुर्सियां छोड़ खड़े हो जाते थे, वह आज सलाखों के पीछे हैं। चाहे फिर वह मुख्यमंत्री के सचिव रहे टामन सिंह सोनवानी हों, अनिल टुटेजा हों या फिर उपसचिव रहीं सौम्या चौरसिया हों। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, डॉ. रमन सिंह का भी मुख्यमंत्री पद जाने के बाद उनके प्रमुख सचिव रहे अमन सिंह को राज्य छोडऩे के लिए मजबूर कर दिया गया। सुबोध सिंह जैसे काबिल अफसर को एक साल तक डम्प करके रखा गया, जिसके बाद वह खुद राज्य से बाहर चले गए। ऐसे कई अफसरों की लंबी सूची है। खैर अफसरों के लिए अब यह आम धारणा बन चुकी है, इसलिए आगे उनके साथ ऐसा नहीं होगा फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता है। यह बात अलग है कि रमन सिंह और उनके टीम पर सिर्फ आरोप लगते रहे, लेकिन वह काजल की कोठली से बच निकले। लेकिन भूपेश और उनकी टीम भ्रष्टाचार पर चारों खाने चित हो गई। लेकिन क्या यह सिलसिला यहीं रुकने वाला है? क्या जांच की आंच से भूपेश बच जांएगें? ऐसे अनेकों सवाल इस समय उठ रहे हैं। वर्तमान में भूपेश के इर्द-गिर्द रहे लगभग सभी अफसर बुरी तरह घिर चुके हैं, ऐसे में भूपेश बच पायेंगें?

राजनीतिक चतुराई

मुख्यमंत्री विष्णदेव साय आम तौर पर बेहद सरल और सहज हैं, लेकिन वह चतुर नहीं हैं यह कहना बिलकुल गलत है। जो नेता अपनी सहजता के बदौलत दो-दो बार राज्य भाजपा की कमान सम्भाल चुका हो, जो राजनेता केन्द्र सरकार में मंत्री रह चुका हो, जो नेता सांसद रह चुका हो, वह राजनीतिक रुप से चतुर न हो यह बात राजनीति में रुचि रखने वालों को हजम नहीं हो सकती। 13 दिसंबर को विष्णुदेव का एक साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है। उन्होंने बड़ी ही चतुराई से मोदी की गांरटी के ज्यादातर वादों को पूरा करने में कामयाबी हासिल की है। इसके साथ ही राजनीतिक रुप से अपने प्रतिद्वंदियों को भी किनारे लगाने में वह सफल हुए हैं। पुराने चेहरों में रामविचार नेताम, दयालदास बघेल और केदार कश्यप को उनके केबिनेट में जगह मिली है, जबकि बृजमोहन अग्रवाल को किनारे कर दिया गया है। अब जातिगत और क्षेत्रगत समीकरणों को देखते हुए आगे भी विष्णु केबिनेट में रिक्त 2 मंत्री पदों पर नए चेहरों को अवसर मिलने की प्रबल सम्भावना है। दरअसल पुराने चेहरों में बिलासपुर से अमर अग्रवाल को मंत्री बनाने का कयास लगाया जा रहा है। लेकिन वर्तमान में बिलासपुर सम्भाग से पहले ही अरुण साव, ओपी चौधरी, लखनलाल देवांगन विष्णु कैबिनेट के हिस्सा हैं। यही नहीं बिलासपुर सम्भाग से ही तोखन साहू को केन्द्रीय राज्य मंत्री बनाया गया है, ऐसे में बिलासपुर से अमर अग्रवाल को अवसर मिलेगा या नहीं फिलहाल इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके साथ ही सरगुजा सम्भाग से रेणुका सिंह के नामों पर जमकर कयास लगाये जा रहे हैं। जबकि सरगुजा सम्भाग से पहले ही लक्ष्मी रजवाड़े, रामविचार नेताम, श्याम बिहारी जायसवाल और स्वयं मुख्यमंत्री विष्णुदेव केबिनेट में मौजूद हैं। वहीं रायपुर सम्भाग से टंकराम वर्मा और अजय चंन्द्राकर एक ही समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, ऐसे में अजय पर कितना विचार किया जाएगा यह तो आने वाले वक्त में ही स्पष्ट होगा। इसके साथ ही रमन खेमा राजेश मूणत को मंत्री बनाने का पक्षधर है, कहा जाता है कि इसके लिए रमन सिंह के निवास में हाल ही में बैठक भी हुई है, लेकिन मूणत को लेकर संगठन एकमत नहीं है। इतना ही नहीं बिना किसी राजनीतिक विवाद के आयोगों में भी निरंतर नियुक्तियां जारी है। गौसेवा आयोग, युवा आयोग, पिछड़ा वर्ग आयोग, वक्फ बोर्ड के साथ-साथ कई प्राधिकरणों में भी खामोसी से नियुक्तियों की जा चुकी हैं। लेकिन अभी तक किसी भी ओर विरोध के स्वर सुनाई और दिखाई नहीं दे रहे। निश्चित ही ऐसा काम कोई चतुर राजनेता ही कर सकता है।

दुआओं में याद रखना …

सत्ता परिवर्तन होने के बाद कुछ लोग सत्ता की चासनी के लिए नेताओं और मंत्रियों के पास चिपक ही जाते हैं, तो भला इस सरकार में न हो ऐसा भला कहां संभव है। दरअसल सत्ता परिवर्तन होने के बाद भाजपा कार्यालय में बैठे एक मीडिया प्रेमी नेता राज्य के उपमुख्यमंत्री के यहां चिपक गए। एक साल तक चिपके रहे, चासनी कहीं दिखी नहीं, मीडिया प्रेमी होने के कारण सीएम के विभाग में भी हाथ-पांव मारे वहां भी पहले से बुद्धजीवी मौजूद हैं। हतासा पर-हतासा, साहब भी कोई रिस्पांस न करते, मजबूरी में बॉस के पास शिकायत भी दर्ज कराई गई। तत्कालीन साहब ने बॉस को दो टूक कह दिया आप जैसा निर्देश दें- मैं इनकी सुनूं या उनकी ? फिर क्या वहां भी ठौर ठिकाना न बन पाया। इतना ही नहीं नेता जी एक धार्मिक मामले में भी कोर्ट-कचहरी पहुंच गए, जिसके कारण संगठन ने भी फटकार लगा दी। इन तामाम घटनाओं के बाद नेता जी कहते घूम रहे हैं कि अच्छा चलता हूं …..,दुआओं में याद रखना…… ।

आईएएस अफसरों में पनप रहा विरोध

वैसे तो राज्य सरकार के पास इस समय काम करने वाले आईएएस अफसरों की भरमार है। यही नहीं हाल ही में दर्जनभर अफसरों का आईएएस आवार्ड भी हो गया है। ऐसे में राज्य सरकार के पास पर्याप्त आईएएस अफसर मौजूद हैं। उसके बाद भी कई महत्वपूर्ण विभागों में आईएफएस अफसरों की पदस्थापना की गई है, जिसको लेकर आईएएस विरादरी के अंदरखाने में दबे स्वर में विरोध पनपने लगा है। दरअसल छत्तीसगढ़ पर्यटन मण्डल के एमडी के रुप में आईएफएस विवेक आचार्य की पदस्थापना की गई है। वहीं छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंण्डल में आईएफएस अरुण प्रसाद को सदस्य सचिव बनाया गया है। इसके साथ ही सीएसआईडीसी के एमडी के पद पर आईएफएस विश्वेश कुमार को पदस्त किया गया है। इसके अलावा भी अन्य जगह आईएफएस अफसरों की पदस्थाना को लेकर आईएएस विरादरी के बीच दबे स्वर में विरोध होना शुरु हो गया है।

आरोपों के घेरे में अफसर, फिर भी संविदा क्यों?

अफसरों को संविदा नियुक्ति उनके विशेष गुणों को ही देखकर दिया जाता है। लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक विवादित अफसर को संविदा नियुक्ति दे दी, जो सुशासन वाली विष्णु सरकार में भी चिपके हुए हैं। दरअसल पंजीयक एवं मुद्रांक विभाग में एक डीआईजी लेवल के अधिकारी की संविदा नियुक्ति की गई है, जिसके खिलाफ कई गंभीर अरोप लगाए गए हैं। मस्तूरी के एक अधिवक्ता ने वर्ष 2021 में मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कई गंभीर आरोप लगाए थे। जिसकी जांच आजतक नहीं की गई, न ही सच जनता के सामने लाया गया। शिकायत पत्र में पंजीयक एवं मुद्रांक विभाग के इस अफसर के नक्सली गतिविधियों में भी संलिप्त होने की बात का जिक्र किया गया है। मोबाइल डीटेल्स के साथ-साथ अन्य जांच की मांग की गई थी, लेकिन उसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। हालांकि जिस सरकार ने संविदा नियुक्ति दी, उसी सरकार में जांच की उम्मीद कम ही होती है। लेकिन सुशासन वाली विष्णु सरकार की क्या मजबूरी है? जो ऐसे अफसरों की संविदा अवधि को बढ़ा दिया गया। वास्तव में यदि शिकायतकर्ता के आरोपों में दम है, तो केन्दीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रयासों में यह कुठाराघात है। दरअसल केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह अरबन नक्सल को समाप्त करने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में राज्य सरकार के अफसर पर इस तरह के आरोपों की जांच किए बिना संविदा नियुक्ति देना कई सवाल खड़े करता है। इतना ही नहीं दुर्ग जिले में इनकी पदस्थापना रहते हुए काफी वित्तीय अनियमितताएं भी उजागर हुई हैं। इसके बावजूद संविदा प्रदान करना विभाग को कटघरे में खड़ा करता है।

आईएएस अफसरों की पदोन्नति के संकेत, आईएफएस में हतासा ?

सीनियर आईएएस अफसरों की पदोन्नति को जल्द हरी झंडी मिल सकती है। पदोन्नति मिलते ही केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति में गए आईएएस गौरव द्विवेदी और मनिंदर कौर द्विवेदी एसीएस बन जाएंगे। दरअसल एसीएस के लिए दो ही नाम हैं। इसलिए गौरव और मनिंदर का एसीएस प्रमोट होना लगभग तय माना जा रहा है। इसके साथ ही रिक्त होने वाले प्रमुख सचिव के पद पर आईएएस सुबोध कुमार सिंह, निहारिका सिंह के साथ शहला निगार पदोन्नत हो सकते हैं। इसके लिए डीपीसी इसी माह हो सकती है। वहीं दूसरी ओर सीनियर आईएफएस अफसर 6 जुलाई को हुए केबिनेट के निर्णय के परिपालन की राह देखते-देखते हतासा के शिकार हो रहे हैं। एपीसीसीएफ सुनील मिश्रा, प्रेम कुमार, अरुण पांडे, आलोक कटियार, और अनूप विश्वास को पीसीसीएफ के प्रमोशन के लिए 6 जुलाई की कैबिनेट में मुहर लगी। लेकिन प्रकरण का निराकरण आजतक नहीं हुआ। यहां तक प्रमोशन की राह देखते-देखते इनमें से एक आईएफएस अफसर अनूप विश्वास रिटायर हो चुके हैं, बांकी भी निराश और हतास हैं।

और कितने अगहन?

विभिन्न मानवीय कारणों से लगातार राज्य में जंगली जानवरों की मौत हो रही है। इसी क्रम में अगहन ने भी अपनी जान गवां दी। मीडिया में लगातार अगहन के स्वस्थ होने की खबरें छपती रहीं, लेकिन डाक्टरों द्वारा अगहन को भी नहीं बचाया जा सका। दरअसल विभाग के अफसरों द्वारा हाथी का नाम अगहन रखा गया था। बीते माह वन्यजीवों की मौत को लेकर हाईकोर्ट ने भी विभाग को कटघरे में खड़ा किया था। विधानसभा में भी 17 चौसिंगाओं की मौत का मामला खूब गूंजा, लेकिन कार्रवाई शून्य है। वन्यप्राणियों की मौतों का सिलसिला लगातार जारी है। जिम्मेदार दोषियों पर पर्दा डालने में जुटे हैं। दरअसल बजट सत्र के दौरान विधानसभा में जंगल सफारी में हुए 17 चौसिंगाओं का मामला गूंजा था। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने जंगल सफारी के डॉक्टर राकेश वर्मा की लापरवाही के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए थे। उसके बावजूद विभाग के बड़े अफसरों के संरक्षण में कार्रवाई नहीं की गई। चौसिंगा मामले में जंगल सफारी में एक-एक करके लासें गिरती रही, डॉक्टर बिना छुट्टी के गोवा घूमते रहे। उसके बाद राज्य के दो बड़े नेता विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह और नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास की मांग और आश्वासन पर भी कार्रवाई नहीं की गई। यह पूरा घटनाक्रम विभाग के द्वारा वन्य प्राणियों के प्रति व्यवहार को उजागर करता है।

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