अरुण साव भ्रष्ट हैं, यह तो स्पष्ट है
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल डिप्टी सीएम अरुण साव पर प्रहार करने का कोई मौका नहीं गंवाना चाहते। वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? यह तो अरुण साव और भूपेश बघेल ही जानेंगे। लेकिन भूपेश का साव को बार-बार निशाने पर लेना संदेह पैदा करता है। दरअसल भूपेश बघेल और अरुण साव के बीच इन दिनों कुछ ठीक नहीं चल रहा है। बीते विधानसभा सत्र में भी भूपेश ने ‘यह तो स्पष्ट है, अरुण साव भ्रष्ट है’ का नारा बुलंद किया था। शायद भूपेश पूरी रणनीति के तहत अरुण साव को राडार पर लेकर चल रहे हैं। क्योंकि वह साव और उनके विभाग को घेरने का मौका हाथ से नहीं जाने देते। इसका एक और उदाहरण देखा और समझा जा सकता है। पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा और उनके पुत्र के यहां जब ईडी की टीम ने दबिश दी, तब भी भूपेश ने अरुण साव पर ही निशाना साधा था। भूपेश ने कहा था कि अरुण साव बहुत ताकतवर नेता हैं उनसे जो उलझता है उन्हें वह जेल भेजवा देते हैं। भूपेश ने कहा था कि कवासी लखमा ने सड़क और पुलिया का सवाल विधानसभा में उठाया था, इसलिए लखमा के यहां अरुण साव ने ईडी भेज दिया। तो भला राजधानी रायपुर का मौका भूपेश कहां हाथ से जाने देते। मोवा ब्रिज में घटिया सड़क निर्माण पर भी भूपेश ने अरुण साव को राडार पर लेते हुए कहा कहा ‘यह तो स्पष्ट है, अरुण साव भ्रष्ट है’। बीजापुर में घटिया सड़क निर्माण ठेकेदार और पत्रकार पर भी भूपेश ने यही कहा ‘यह तो स्पष्ट है, अरुण साव भ्रष्ट है’? बहरहाल इसके पीछे कारण जो भी हो, लेकिन भूपेश और साव के बीच राजनीतिक अदावत इन दिनों जमकर चर्चा में है।
मै विपक्ष हूं, मै ही पत्रकार हूं और मै ही सरकार हूं
मै विपक्ष हूं, मै पत्रकार हूं और मै ही सरकार हूं। यह लाइन कुरुद विधायक अजय चंद्राकर पर इन दिनों एकदम फिट बैठती है। हालांकि जब पत्रकार, विपक्ष और नेता सभी अपने दायित्वों से पीछे हटने लगें तो ऐसे किरदार की अत्यंत आवश्यकता होती है। अजय चंन्द्राकर की कई दफा रायपुर से दिल्ली तक शिकायत की जा चुकी है। लेकिन वह बार-बार यह संदेश दे रहे हैं कि ‘मै विपक्ष हूं, मै ही पत्रकार हूं और मै ही सरकार हूं’ जब जिस किरदार की जरुरत होगी तो मै बखूबी निभाउंगा। खैर अब तक चंन्द्राकर अपने किसी भी किरदार से पीछे हटते नजर नहीं आये। भविष्य में क्या होगा फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। वह विधानसभा से लेकर पार्टी फोरम तक अपनी बातों को दमदारी से रखने का काम कर रहे हैं। दरअसल अजय चंद्राकर का यह राजनीतिक रुख कई मायनों में अहम है। राज्य में अभी मंत्रिमंडल का विस्तार होना है। ऐसे में अजय ने यह साफ संकेत दे दिया है कि यदि मुझे अवसर नहीं मिला तो मै सरकार को घेरने से भी परहेज नहीं करुंगा। दूसरा खामोश रहकर अजय चंद्राकर टीएस सिंहदेव की तरह अपना राजनीतिक हश्र नहीं करना चाहते। चंन्द्राकर यह भली-भांति जानते हैं कि यदि पार्टी और सरकार में पकड़ कमजोर हुई तो अगले विधानसभा चुनाव में जिस तरह टीएस सिंहदेव अंबिकापुर नहीं बचा पाये, ठीक वैसे ही कुरुद की जमी बचा पाना मुश्किल होगा। इसलिए चन्द्राकर का यह रूख आगे भी बरकरार रह सकता है।
असर दिखने लगा है, छवि गढऩे लगा है
जनसंपर्क विभाग सरकार का मुखौटा होता है। सरकार की योजनाओं को आमजन तक पहुंचाने के साथ ही मुख्यमंत्री की छवि गढऩे का काम भी यह विभाग बखूबी करता है। सरल और शांत छवि के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उनकी सरकार ने महज कुछ माह में ही जनता से किए वादे यानि की मोदी की गांरटी को पूरा करने का काम किया है। राज्य की महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने 1000 रुपये प्रतिमाह प्रदान किए जा रहे हैं। धान की सर्वाधिक कीमत छत्तीसगढ़ राज्य में दी जा रही है। पीएससी के भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। राज्य की जांच एजेसिंयां अब सक्रिय रुप से छापामार कार्रवाई कर भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग लड़ रही हैं। बस्तर में नक्सलवाद को जड़ से समाप्त करने का प्रयास साकार होते दिख रहा है। यहीं नहीं नवा रायपुर अब आकार लेते दिख रहा है। राज्य में पर्यटन का विस्तार होते दिख रहा है। इसके अलावा भी अनेकों उपलब्धियां सरकार की झोली में हैं। उसके बाद भी वादे पूरे करने वाली इस सरकार को ‘स्लो सरकार’ का तमगा दे दिया गया। आखिर क्यों? इसका जिम्मेदार कौन है? क्या सरकार का मुखौटा और मुख्यमंत्री की छवि गढऩे वाला जनसंपर्क विभाग बीते एक साल में पूरी तरह फेल रहा? क्या पूर्व में यहां दायित्वों का बखूबी निर्वहन नहीं किया गया? बहरहाल यह चिंतन और मंथन का विषय है। लेकिन बीते एक साल में इस विभाग में जिस तरह से अंधी चली, सरकारी धन का बंदरबांट किया गया, उसका खामियाजा वर्तमान आयुक्त रवि मित्तल और कई मीडिया संस्थान भुगत रहे हैं। शायद इन्हीं गतिविधियों के कारण मुख्यमंत्री के सचिव पी. दयानंद को संवाद में सर्जिकल स्ट्राइक करना पड़ा। हालातों को देखकर यह कहने में कोई संकोच नहीं कि बीते एक साल में यहां सरकार की छवि की चिंता कम, बल्कि रुपया कूटने का काम ज्यादा किया गया। सोशल मीडिया में घूम रहे करोड़ों रुपये के आरो बीते एक साल की दास्तान को चीख-चीख कर बयां कर रहे हैं, खैर यह सब जांच का विषय है। लेकिन देर से ही सही पर अब मुख्यमंत्री के सचिव पी. दयानंद के सर्जिकल स्ट्राइक और आयुक्त रवि मित्तल के प्रयासों का असर दिखने लगा है, जनसंपर्क सरकार और मुख्यमंत्री की छवि गढऩे लगा है।
नया सीएस कौन?
राज्य के सीएस अमिताभ जैन 14 जनवरी से 21 जनवरी तक अवकाश में हैं। इस दौरान आईएएस रेणु पिल्ले को मुख्य सचिव का प्रभार सौंपा गया है। अमिताभ जैन के अचानक छुटटी में जाने से कयासों का दौर शुरु हो गया है। दरअसल आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज द्वारा सुप्रीम कोर्ट में राज्य सूचना आयुक्तकी नियुक्तियों के संदर्भ में एक याचिका लगाई गई है, हालांकि यह अन्य राज्य के संदर्भ में है। जिसके सुनवाई में 5 सप्ताह के अन्दर इनके पद भरे जाने के निर्देश हैं। इसके प्रगति के लिए चयन समिति का भी गठन किया गया हैै। अमिताभ जैन के अचानक छुट्टी में जाने के कारण को इस याचिका से भी जोड़कर देखा जा रहा है। वास्तव में यदि ऐसा हुआ तो छत्तीसगढ़ में भी खाली पदों पर जल्द नियुक्ति करने का दबाव बढ़ेगा। ऐसे में अमिताभ जैन की छुट्टी को ट्रायल भी समझा जा रहा है। बहरहाल वास्तविक कारण क्या है? इसे तो सरकार और सीएस अमिताभ जैन ही जानेंगे। लेकिन सवाल यह उठता है कि अमिताभ जैन के बाद राज्य का अगला सीएस कौन बनेगा? वर्तमान में तो प्रभारी सीएस रेणु पिल्ले हैं। लेकिन सीएस की रेस में आईएएस मनोज पिंगुआ और ऋचा शर्मा भी हैं। आईएएस सुब्रत साहू कांग्रेस सरकार के काफी नजदीक रहे, इसलिए उनकी संभावना फिलहाल न के बराबर है। अब तक की स्थिति में मनोज पिंगुआ के सीएस बनाये जाने की खबरें तैरती रही हैं। लेकिन वर्तमान में ऋचा शर्मा सीएम सचिवालय के काफी नजदीक हैं। इसलिए ऋचा के नाम से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
आयोग में खामोसी से नियुक्तियां
आयोगों में बड़ी ही खमोसी ने एक-एक करके नियुक्तियां जारी हैं। इसी कड़ी में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा भाजपा संगठन में विभिन्न पदों का दायित्व संभालने वाले रुपनारायण सिंहा को योग आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। दरअसल भाजपा पूरे रणनीति के तहत खमोशी से आयोगों में नियुक्तियां कर रही है, ताकि कार्यकताओं का एक साथ दबाव न झेलना पड़े। इससे पहले भी कई आयोगों और प्राधिकरणों की नियुक्तियां की जा चुकी है। आंतरिक सूत्रों की माने तो कुछ बड़े आयोगों और निगम – मंडलों को छोड़ दें तो बांकि के लिए ऐसे ही एक-एक करके नियुक्तियां जारी रहेंगी, ताकि कार्यकर्ताओं को आसानी से मनाया और समझाया जा सके।
सचिवालय दिखने लगा गुलजार
आईएएस सुबोध कुमार सिंह के सीएम सचिवालय में वापसी के बाद मंत्रालयीन कार्यों में गति दिखने लगी है। मंत्रालय के कई अफसरों का भी कहना है कि अब सीएम सचिवालय व्यवस्थित दिखने लगा है। यहीं नहीं सुबह समय पर पहुंचने के साथ ही देर शाम तक मंत्रालय गुलजार रहता है। शायद कार्यों के व्यवस्थित होने तक सुबोध ने किसी विभाग की जिम्मेदारी लेने में कोई जल्दबाजी नहीं की। सीएम सचिवालय को व्यवस्थित चलाना भी अपने आप में एक बड़ी जिम्मेदारी होती है। लेकिन ऐसे संकेत है कि व्यवस्था सुधारने के बाद सुबोध कुछ अहम विभाग अपने पास रख सकते हैं। फिलहाल आईएएस डॉ. रोहित यादव के अवकाश में जाने के कारण मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव सुबोध सिंह को बिजली कंपनियों का वर्तमान में अतिरक्त प्रभार सौंपा गया है। हालांकि सुबोध ने पूर्व में भी ऊर्जा और खनिज विभाग की जिम्मेदारी बखूबी निभाया था।
हे सरकार, सुन लो मेरी भी पुकार
राज्य के सीनियर आईएफएस अफसरों के हलात इन दिनों कुछ ऐसे ही नजर आ रहे हैं। राज्य सरकार आईएएस, आईपीएस और राज्य सेवा के अफसरों का दनादन प्रमोशन आदेश जारी कर रही है। लेकिन कई महीनों से लंबित सीनियर आईएफएस अफसरों का दर्द कोई सुनने को तैयार नहीं है। दर्द से कराह रहे इन अफसरों को प्रमोशन के लिए तरह-तरह के नियम बताये जाते हैं। दरअसल एपीसीसीएफ स्तर के पांच अफसर पीसीसीएफ प्रमोट होने हैं, इसके लिए फाइल कई महीनों तक मंत्रालय में इस टेबल से उस टेबल घूमती रही। और शायद मंत्रालय से निकलकर अब भी कहीं घूम ही रही है। फाइल के घुमंतु प्रवृत्ति के कारण इन अफसरों का प्रमोशन नहीं हो पाया। इनमें से एक अफसर तो रिटायर भी हो गए, और भी एकात अफसर इसी साल रिटायर हो जाएंगे। खैर जैसे ही यह अफसर अन्य सेवा के अफसरों की प्रमोशन लिस्ट देखते हैं, भगवान से मिन्नतें करते हैं, हे सरकार अब तो सुन लो हमारी भी पुकार।
एसआईटी का सच क्या?
बीजापुर में एक पत्रकार ने अपने दायित्वों का निर्वहन अपनी जान गवां कर किया। रुपयों की खनक में डूबे ठेकेदार को उस पत्रकार के दर्द की कराह भी सुनाई नहीं दी। पत्रकार मुकेश की अत्यंत ही क्रूरता से हत्या कर दिया गया। पूरे राज्य के पत्रकार सड़क पर निकले हत्यारों को फांसी देने की मांग की जा रही है। पुलिस प्रशासन के कुछ अफसरों पर मिली भगत का संदेह भी जाहिर किया जा रहा है। सरकार ने एसआईटी गठित कर दी मामले की जांच चल रही है। लेकिन पत्रकार अब भी आंशकित हैं। ठेकेदार सुरेश चन्द्राकर से अच्छे संबंध होने की यदि थोड़ी भी ढील दे दी गई तो पत्रकार का बलिदान व्यर्थ चला जाएगा। स्थानीय पत्रकारों की शंका वाजिब भी है। क्योंकि लगातार मांग के बाद भी विभाग ने इस मामले में एक सिपाही तक का ट्रांसफर नहीं किया। बीजापुर के पत्रकार स्वयं लाश खोजते-खोजते ठेकेदार के अवैध ठिकानों तक पहुंच गए, उसके बाद पुलिस पहुंची। ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही, शंका तो होगी ही। खैर एसआईटी ने प्रेस रिलीज में हत्या के तीन दिन पहले ठेकेदार सुरेश चन्द्राकर द्वारा भारी रकम निकालने की बात कही है। यदि सुरेश चन्द्राकर ने भारी भरकम राशि निकाली थी, तो उसका क्या उपयोग किया गया? नगदी राशि कहां खर्च की गई? क्या पुलिस ने राशि बरामद की? सुरेश की रुपए को लेकर क्या योजना थी? ऐसे तमाम सवाल उठने लाजमी हैं। बहरहाल नगदी का सच क्या है? कौन-कौन इस हत्याकांड में शामिल हैं यह तो जांच पूरी होने के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा।
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