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भाजपा-कांग्रेस दोनों का रुख गैर ब्राह्मण प्रत्याशी की ओर
निकाय चुनाव का ऐलान चाहे जब भी हो लेकिन चुनावी परा चढऩे लगा है। रायपुर नगर निगम सामान्य महिला के लिए रिवर्ज घोषित किया गया है। सामान्य महिला घोषित होते ही निगम की नेता प्रतिपक्ष मीनल चौबे काफी उत्साहित हैं। मीनल निगम की राजनीति में काफी सक्रिय हैं, और वह वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में हैं, इसलिए उनकी दावेदारी स्वाभाविक भी है। लेकिन आरक्षण को लेकर उपजे विवाद के चलते भाजपा आसमंजस की स्थिति में है। पार्टी के प्रमुख नेताओं का मानना है कि आरक्षण विवाद को शांत करने के लिए ज्यादा से ज्यादा आरक्षित वर्ग से प्रत्याशी मैदान में उतारे जाएंगे। ऐसे में मीनल का क्या होगा? फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। भाजपा की रणनीति से एक बात तो साफ है कि सीट भले ही सामान्य महिला रिजर्व घोषित हुई है, लेकिन प्रत्याशी ओबीसी वर्ग से उतारे जाने की ज्यादा संभावना है। बहरहाल भाजपा इस विषय पर जमकर एक्सरसाइज कर रही है। वहीं दूसरी ओर दूध की जली कांग्रेस अब छांछ भी फूंक-फूंक पी रही है। मतलब रायपुर दक्षिण के उपचुनाव में ब्राह्मण वर्ग से उम्मीदवार उतारने का खामियाजा कांग्रेस भुगत रही है। कांग्रेस के आकाश शर्मा भले ही ब्राह्मण वर्ग से आते हैं, लेकिन उन्हें उपचुनाव में ब्राह्मणों के वोट भी नहीं मिले। ऐसे में कांग्रेस बीते चुनावों के अनुभवों के आधार पर रायपुर नगर निगम में ओबीसी कैंडीडेट को मैदान में उतारने का विचार कर रही है। सम्भवत: इसीलिए पूर्व महापौर किरणमयी नायक की सक्रियता इन दिनों फिर बढ़ गई है।
लोकतंत्र में उखाड़कर फेंकने की ताकत सिर्फ जनता के पास
यह स्मरण होना चाहिए कि भारतीय लोकतंत्र में उखाड़कर या उठाकर फेंकने की ताकत सिर्फ जनता के पास है। जिस पुलिस बल और जिन अफसरों का रुतवा दिखाकर आप जनता जनार्दन को उठवाकर फेंकने की सरेआम धमकी दे रहे हैं, वह उन्हीं जनता के सुरक्षा के लिए है। आप तो सिर्फ किरायेदार हैं, चार साल बाद यही जनता फिर आपसे हिसाब मांगेगी। तब भी आपका यही तेवर रहेगा? उस समय भी आपका यही रुतवा रहेगा क्या? शायद नहीं। जिन महतारियों का आपकी सरकार वंदन कर रही है, उनके साथ आपका ऐसा क्रूर व्यवहार क्यों? दरअसल कोरबा जिले में हजारों की संख्या में महिलाएं आंदोलन कर रही थी। जिनके समक्ष स्थानीय विधायक और उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन पहुंचे, उन्हें देखकर महिलाएं और क्रोधित हो गई। मंत्री जी भी तमतमा उठे, मंत्री देवांगन ने महिलाओं को साफ कह दिया कि ज्यादा हेकड़ी दिखाओगे तो उठवाकर फेंकवा दूंगा। फिर क्या महिलाओं ने मंत्री जी को जमकर खरी-खोटी सना दीं। क्रोधित महतारियों ने साफ कह दिया कि आप क्या हमें फेंकवाओगे, हम आपको उखाड़ के फेंक देंगे। बढ़ते विवाद को देखकर कोरबा कलेक्टर अजीत बसंत को बीच बचाव करना पड़ा। कलेक्टर के सूझबूझ से मामला फिलहाल शांत हो गया। लेकिन स्थानीय विधायक और नेताओं को यह मंथन और चिंतन करना चाहिए कि जनता के प्रति आपका यह व्यवहार कितना उचित है।
अनपढ़ होना ही विशेष योग्यता, तो अनपढ़ का रोना क्यों?
2018 में जब कांग्रेस सत्ता में आई तो उस दरम्यान कांग्रेस के पास कवासी लखमा के अलावा लखेश्वर बघेल, संतराम नेताम, मोहन मरकाम समेत कई सीनियर आदिवासी विधायक मौजूद थे, जिन्हें मंत्री बनाया जा सकता था। लेकिन कवासी लखमा को ही क्यों चुना गया? और खोजकर उन्हें ही आबकारी मंत्री क्यों बनाया गया? दरअसल आरोप यह है कि आबकारी घोटाले का खांका पहले ही तैयार हो चुका था। और कोंटा विधायक लखमा का अनपढ़ होना उनके आबकारी मंत्री बनने की विशेष योग्यता साबित हुई। शायद इसीलिए पढ़े लिखे आदिवासी नेताओं मोहन मारकाम, लखेश्वर बघेल और संतराम नेताम को उस समय दरकिनार करते हुए कवासी लखमा को मंत्री पद से नवाजा गया। जब उस समय कवासी का अनपढ़ होना मंत्री पद पाने की विशेष योग्यता थी, तो अब अनपढ़ होने का रोना क्यों? 2000 करोड़ रुपये से भी अधिक के शराब घोटाले में ईडी जांच कर रही है। ईडी का आरोप है कि लखमा को प्रतिमाह 2 करोड़ रुपये का लाभ दिया जाता था। सवाल यह उठता है कि उस समय लखमा ने अनपढ़ होने का रोना नहीं रोया, तो अब क्यों? बहरहाल ईडी मामले की जांच कर रही है। ईडी ने अपनी जांच में एक पूर्व आईएएस को शराब घोटाले का मेन सरगना बताया है। कहा जा रहा है कि मामले में उनकी भी जल्द गिरफ्तारी हो सकती है।
अडानी समूह की धमाकेदार एन्ट्री
वैसे तो अडानी समूह द्वारा राज्य में वर्षों से काम किया जा रहा है। यहां की ज्यादातर सीमेन्ट कंपनियां अडानी समूह द्वारा खरीदे जा चुके हैं। बीते पांच साल में हसदेव अरण्य और कोल खनन की गूंज खूब सुनाई दी, इसलिए छत्तीसगढ़ की जनता भी इस समूह को अब भली-भांति जानने और पहचानने लगी है। राज्य में उद्योगपतियों को एक अच्छा माहोल मिल रहा है। सम्भवत: इसीलिए अडानी समूह के चेयरमेन गौतम अडानी को खुद चलकर छत्तीसगढ़ आना पड़ा। गौतम अडानी और सीएम साय की मुलाकात में यह बात सामने आई कि अडानी समूह पॉवर क्षेत्र में 65 हजार करोड़ रुपये का निवेश करेगा। वहीं सीमेन्ट क्षेत्र में भी 5 हजार करोड़ रुपये निवेश की बात सामने आई है। निश्चित ही यह बहुत बड़ी रकम होती है। यदि विष्णुदेव सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल में इस मुलाकात को मूर्त रुप देने में सफल हो गई, तो निश्चित ही राज्य में रोजगार के अनेकों अवसर पैदा होंगे।
मंत्रिमंडल विस्तार का सेमीफाइलन
जगदलपुर विधायक किरण सिंहदेव को एक बार फिर प्रदेश भाजपा की कमान सौंप दी गई है। इसके पहले किरण सिंह देव को मंत्री बनाये जाने का भी कयास लगाया जा रहा था। लेकिन बस्तर संभाग से ही भाजपा अध्यक्ष के रुप में किरण सिंहदेव के दोबारा ताजपोशी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकार में अब इस सम्भाग से सिर्फ एक मंत्री केदार कश्यप बस्तर का प्रतिनिधित्व करते रहेंगे और अब अन्य की गुंजाइस यहां से नहीं है। किरण सिंहदेव के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद अब मंत्रिमंडल में रायपुर और दुर्ग सम्भाग की दावेदारी ज्यादा मजबूत हो गई है। रायपुर सम्भाग में पुराने चेहरों में कुरुद विधायक अजय चंन्द्राकर, रायपुर पश्चिम विधायक राजेश मूणत और नये विधायकों में रायपुर उत्तर सीट से विधायक पुरंदर मिश्रा प्रमुख दावेदार हैं। वहीं दुर्ग सम्भाग से एक मात्र दावेदार गजेन्द्र यादव मैदान में दिख रहे हैं। बिलासपुर में अमर अग्रवाल के नाम के कयास लगाये जा रहे हैं। जबकि पहले ही इस सम्भाग से उपमुख्यमंत्री अरुण साव, वित्त मंत्री ओपी चौधरी, उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन मौजूद हैं। यही नहीं बिलासपुर से ही सांसद तोखन साहू को केन्द्र सरकार में मंत्री बनाया गया है। ऐसे में अमर की दावेदारी स्वाभाविक रुप से कमजोर पड़ती दिख रही है। बहरहाल मंत्रिमंडल विस्तार के सेमीफाइनल में चार नाम पहुंच चुके हैं जिसमें अजय चन्द्राकर, राजेश मूणत, गजेन्द्र यादव और पुरंदर मिश्रा के नाम शामिल हैं।
पीए और साहब की जुगलबंदी
पूर्व की कांग्रेस सरकार में सत्ता की मलाई खाने वाले एक आईएएस के पीए और साहब की जुगलबंदी की इन दिनों जमकर चर्चा हो रही है। कहते हैं कि साहब अपने बुरे दिन को भी इंज्वाय कर रहे हैं, लेकिन साहब के इंज्वायमेंट और पीए की जुगलबंदी से वहां पर कार्यरत अन्य अधिकारी-कर्मचारी खासे परेशान हैं। राज्य की विष्णु सरकार ने उन्हें एक साल तक लूपलाईन में रखा, लेकिन अब उनकी एक बार फिर वापसी हो चुकी है। शायद उनकी मंत्रालय वापसी से पीए के बीच चल रही जुगलबंदी कम हो जाए, जिससे स्थानीय अधिकारी और कर्मचारी राहत की सांस लें।
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