हलचल… बदले जाएंगे पांच कलेक्टर

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बढ़ी हुई गाइडलाइन दर पर कोहराम

वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने जमीन की गाइडलाइन दरों में रिकार्ड बढ़ोत्तरी की है। जमीनों को लेकर उनके अपने तर्क हैं, बढ़ी हुई दर को तर्क सहित वित्त मंत्री चौधरी विभिन्न न्यूज चैनलों के माध्यम से जनता के समक्ष अपनी बात रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जनता उनकी एक सुनना पसंद नहीं कर रही है। इसका अंदाजा ओपी चौधरी द्वारा उनके सोशल मीडिया एकाउंट में पोष्ट किए एक इंटरव्यू में आ रही जनता की कमेंट्स से लगाया जा सकता है। दरअसल जमीनों की बढ़ी गाइडलाइन का विषय अब व्यापारी, बिल्डर और ब्रोकरों तक सीमित नहीं रहा, इस विषय में अब आम जनता सीधे धमक दे चुकी है। शायद यही कारण है कि बढ़ी हुई बिजली दरों के बाद बढ़ी हुई जमीनों की गाइडलाइन दर को लेकर इन दिनों चारों ओर कोहराम मचा हुआ है। विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष के सीनियर नेता भी अब इस मामले को लेकर मुखर हो चुके हैं। 35-40 साल तक विधायक और 20 वर्ष तक मंत्री रहे वर्तमान रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को सार्वजनिक रुप से पत्र लिखकर इसे निरस्त करने की सलाह दी है। अब बृजमोहन अग्रवाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर वित्त मंत्री ओपी चौधरी पर राजनीतिक प्रहार करने की कोशिश की है, या वह अपने अनुभवों व आम जनमानस की आवाज को सरकार तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, फिलहाल इस पर कुछ कहना उचित नहीं है। लेकिन जनता- जनार्दन की ओर से आ रहे सुझाव और सार्वजनिक विरोध पर सरकार को गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरुरत है।

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बदले जाएंगे पांच कलेक्टर

कुछ जिले के कलेक्टरों से राज्य सरकार काफी खफा है। जिन्हें बदलने की कवायद चल ही रही थी, कि इस बीच में एसआईआर आ गया और कलेक्टरों के ट्रांसफर रोक दिए गए। दरअसल भारत निर्वाचन आयोग ने राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि इस प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रक्रिया पूर्ण होने तक न हाटाया जाए। खैर अब पानी सर से ऊपर जा चुका है, अब इन पांच कलेक्टरों को एसआईआर भी शायद न बचा पाए। कुछ जिले के कलेक्टर यह मानकर चल रहे हैं कि एसआईआर के चलते फरवरी माह तक उनकी मनमानियों के लिए अघोषित रुप से आजादी मिल गई है। लेकिन यह विष्णु सरकार है, यहां सुशासन की सरकार है, उनकी मनमानी कतई स्वीकार नहीं है। सरकार और जनता के प्रति जवाबदेही से काम करना ही पड़ेगा। शायद इसीलिए सरकार एसआईआर के बीच ही पांच कलेक्टरों को अविलम्ब हटाना चाहती है। कहा जा रहा है कि राजधानी से सटे हुए एक जिले के कलेक्टर, दुर्ग से लगे हुए एक जिला के कलेक्टर, बिलासपुर संभाग से एक कलेक्टर, सरगुजा से एक एवं बस्तर संभाग से एक कलेक्टर को बदलने के लिए राज्य सरकार ने भारत निर्वाचन आयोग को पत्र लिखा है। मतलब इन पांच कलेक्टरों का हटना लगभग तय है। हालांकि अभी तक इसकी कोई अधिकारिक पुष्टि नहीं है। लेकिन सरकार इन कलेक्टरों को अब दो माह भी झेलना पसंद नहीं कर रही है।

इंसान नहीं समय बलवान

इंसान अक्सर गलतफहमी का शिकार रहता है, उसे लगता है कि वह बहुत बलवान है। लेकिन इंसान नहीं बल्कि समय बलवान होता है, दरअसल इंसान खुद बलवान होने का वहम पाल बैठता है। खैर इंसान, बलवान और समय के संदर्भ में बात निकली है, तो इसी के संदर्भ में कुछ लिखना बेहतर होगा। कुछ दिन पहले तक सूबे के एक प्रमुख अफसर का समय इतना बलवान था कि उन्होंने विभाग को भ्रष्टाचार का चारागाह बना दिया था। सात अफसरों को किनारे करके शीर्ष कुर्सी भी हासिल करने में वह सफल हो गए। धमतरी काण्ड से लेकर मुख्यालय तक के अनेकों काण्ड दबा दिए गए, अनेकों भ्रष्टाचार पर लीपा-पोती कर दी गईं, विधानसभा की लोकलेखा समिति भी आज तक जवाब खोज रही। कभी विपक्ष में रहते हुए भाजपा इनके खिलाफ माला जपती रही, इनके भ्रष्टाचार को विधानसभा से लेकर लोकसभा तक उजागर किए गए। लेकिन राज्य में सत्ता बदली, पर क्या मजाल है कि साहब को बदल दिया जाए। खैर दरअसल यहां तक साहब नहीं बल्कि उनका समय बलवान था। लेकिन जब समय खराब होता है तो अच्छे-अच्छो की उलटी गिनती शुरु हो जाती है, सम्भवत: उनकी भी उलटी गितनी शुरु हो गई है। कहा जा रहा है कि सरकार ने राज्य के युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले इस अफसर को अब सजा देने का मन बना लिया है। जिसके लिए इस कथित ताकतवर अफसर को शो-काज नोटिस दी गई है। शो-कॉज नोटिस पाने के बाद से साहब इन दिनों खासे विचलित हैं। क्या लिखें, क्या जबाव दें, इसको लेकर उनका गला सूख रहा है।

छत्तीसगढ़ का लौह अयस्क और पानी, उद्योग आंध्रपदेश में?

बस्तर के नदी नालों के पानी के सहारे अब तक करोड़ों टन लौह अयस्क ले जा चुकी एएमएनएस जैसी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्टील कंपनी आंध्रपदेश के अनकापल्ली में 1.4 लाख करोड़ रुपये की लागत से देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट लगाने जा रही है। जानकारी अनुसार आर्सेलर मित्तल निप्पोन स्टील (पहले एस्सार) द्वारा किरन्दुल स्थित एनएमडीसी की खदानों से रोजाना औसतन 20 हजार टन लौह अयस्क चूर्ण स्लरी पाइपलाइन के जरिये अपने विशाखापटनम स्थित प्लांट ले जाया जा रहा है। बस्तर की शबरी नदी और दंतेवाड़ा के मदाड़ी नाले के हजारों क्यूसेक पानी का उपयोग रोजाना इस परिवहन में किया जा रहा है। जानकारी अनुसार आंध्रप्रदेश के अनकापल्ली में इस कंपनी द्वारा जो स्टील प्लांट लगाया जा रहा है उसकी वार्षिक क्षमता 24 मिलियन टन है। जानकारों की माने तो इतनी बड़ी मात्रा में स्टील बनाने के लिए करीब 36 लाख टन लौह अयस्क की आपूर्ति बैलाडीला की खदानों से की जानी है। पहले फेज में 20 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा और दूसरे फेज में अतिरिक्त 35 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। अर्थात इस प्लांट से कुल 55 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। खैर इससे बस्तर और छत्तीसगढ़ का क्या हित होगा? इस पर भी मंथन और चिंतन होना चाहिए। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ का लौह अयस्क, पानी और उद्योग आंध्रप्रदेश में क्यों ?

यादगार बनेगा नया विधानसभा भवन का पहला सत्र

छत्तीसगढ़ में धर्मान्तरण एक ज्वलंत मुद्दा है। बस्तर और आदिवासी इलाकों में धर्मान्तरण की घटनाएं काफी देखी और सुनी जाती हैं। राज्य सरकार अब धर्मान्तरण पर नकेल कसने जा रही है। दरअसल 14 दिसमंबर से शुरु होने वाले विधानसभा के शीतकालीन सत्र में धर्मान्तरण को लेकर विधेयक लाया जाएगा। निश्चित ही छत्तीसगढ़ में धर्मान्तरण पर पूर्ण विराम लगाने की आवश्यकता है, जिस पर विष्णु सरकार मुहर लगाने जा रही है। संभवत: इस सत्र में विधेयक पारित कर दिया जाएगा। जो छत्तीसगढ़ के साथ-साथ विधानसभा के नए भवन के लिए भी यादगार बन जाएगा। इस भवन से ही धर्मान्तरण पर नकेल कसने की नींव रखी जाएगी। सरकार के साथ ही यह नया भवन भी इस पवित्र निर्णय का साक्षी बनेगा।

एकाधिकार पर नियंत्रण जरुरी

देशभर में इंडिगो की फ्लाइटें निरस्त कर दी गई हैं। हजारों की संख्या में लोग परेशान हैं, हलाकान हैं। किसी की शादी नहीं हो पाई, कोई अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच पाया, तो कोई अस्पताल नहीं पहुंच पा रहा, ऐसी अनेकों खबर इन दिनों मीडिया में पढऩे, सुनने और देखने को मिल रही। इंडिगो की फ्लाइट निरस्त हुई तो अन्य कंपनियों ने हवाई किराया आसमान पहुंचा दिया। दरअसल यह घटना एकाधिकार का सबसे ज्वलंत उदाहरण है। इसमें कंपनियां कोई जवाबदेही लेने को तैयार नहीं हैं। जनता भटक रही, चीख रही, चिल्ला रही, कोई सुनने को तैयार नहीं। निजीकरण का इससे बड़ा और दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण कुछ नहीं हो सकता। एकाधिकार होने का सबक इस घटना से नहीं लिया गया तो, भविष्य में ऐसी घटनाओं की भरमार होगी। जहां-जहां सरकारी सिस्टम ध्वस्त होंगे, जवाबदेही खत्म होंगी, वहां ऐसी घटनाएं सामने आती रहेंगी। संचार की सबसे बड़ी कंपनी भारत संचार निगम (बीएसएनएल) तबाह होने की स्थिति में है। ऐसे में प्राइवेट संचार कंपनियां आगे क्या करेंगी? इसका अंदाजा इस घटना से लागाया जा सकता है। बीएसएनएल के अतिरिक्त देश और प्रदेश में अनेकों एकाधिकार के उदाहरण मौजूद हैं। इसलिए किसी भी क्षेत्र मेें एकाधिकार देश के लिए घातक है, इस पर नियंत्रण होना अत्यंत आवश्यक है।

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