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टीएस सिंहदेव का नेतृत्व मंजूर नहीं?
2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ की जनता ने भूपेश बघेल के नेतृत्व को खारिज कर दिया। लोकसभा चुनाव में भी भूपेश का जादू नहीं चला, वह स्वयं राजनांदगांव से लोकसभा चुनाव हार गये। नगरीय निकाय चुनाव में सत्ता दल की जीत स्वाभाविक है, लेकिन 10 के 10 नगर निगमों में कांग्रेस का सफाया हो जाए तो निश्चित ही नेतृत्व पर सवाल उठेंगे ही। सम्भवत: निकाय चुनाव में अब तक का कांग्रेस का सबसे कमजोर प्रदर्शन रहा है। कमजोर प्रदर्शन के कारण वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को बदलने की बात इन दिनों राजनीतिक चर्चा का विषय बनी हुई है। इसके पहली कड़ी में पूर्व सीएम भूपेश बघेल को महासचिव की जिम्मेदारी सौंपते हुए पंजाब राज्य का प्रभारी बनाया गया है। लेकिन जैसे ही टीएस सिंहदेव का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए सामने आया सिंहदेव के धुर विरोधी नेताओं की दिल्ली दौड़ शुरु हो गई। पूर्व मंत्री अमरजीत भगत, डॉ. शिव डहरिया समेत कई नेता घोषित रुप से सिंहदेव की खिलाफत में उतर पड़े हैं? हालांकि यही दृश्य राज्य में कांग्रेस की सत्ता रहते हुए भी सामने आये थे। तब सिंहदेव की खिलाफत में उतरे बृहस्पिति सिंह ने उन पर हत्या करवाने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। जबकि 2018 में सत्ता हासिल करने के बाद राज्य कांग्रेस में 4 बड़े नेता उभरकर सामने आये थे, जिसमें भूपेश बघेल, डॉ. चरणदास महंत, टीएस सिंहदेव और ताम्रध्वज साहू के नाम शामिल हैं। वर्तमान परिदृश्यों में महंत राज्य कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद चेहरे के रुप में जाने जाते हैं। सम्भवत: इसीलिए उन्हें नेताप्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई है। नेता प्रतिपक्ष महंत को सिंहदेव का नेतृत्व मंजूर है, महंत सार्वजनिक रुप से कह भी चुके हैं कि अगला चुनाव टीएस सिंहदेव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। वहीं ताम्रध्वज साहू इन दिनों हासिए पर जा चुके हैं। तो फिर किसे सिंहदेव का नेतृत्व मंजूर नहीं है? और क्यों? 2018 के पहले राज्य की सत्ता में कांग्रेस को वापस लाने में टीएस सिंहदेव की महत्वपूर्ण भूमिका रही, सिंहदेव घोषणा पत्र बनाने लेकर हर मोर्चे पर पार्टी के साथ खड़े रहे, तो अब खिलाफत क्यों? बहरहाल इस विषय पर चिंतन और मंथन की जरुरत है।
मूणत और पुरंदर ठोंक रहे ताल, चन्द्राकर खामोश
राज्य सरकार अब चुनावी मोड़ से बाहर आ चुकी है। 24 फरवरी को त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव के भी परिणाम आ जांएगे। सम्भवत: बजट सत्र के बाद राज्य मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाएगा। रायपुर संभाग से मंत्री पद के लिए रायपुर पश्चिम विधायक राजेश मूणत और रायपुर उत्तर विधायक पुरंदर मिश्रा इन दिनों ताल ठोंक रहे हैं। दोनों में मंत्री पद को लेकर जमकर प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है। मुख्यमंत्री के जन्मदिन में यह दोनों नेताओं ने विज्ञापन पर जमकर खर्च किया। राज्य के समाचार पत्रों में मूणत और पुरंदर के ही बधाई विज्ञापन छाये हुए थे। नगरीय निकाय चुनाव परिणाम में भाजपा को मिली रिकार्ड जीत के बाद पुरंदर यह भली-भांति जानते हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार में सीएम विष्णुदेव की पसंद को महत्व दिया जा सकता है। केन्दीय नेतृत्व शायद मंत्री पद विस्तार और पसंद का मामला सीएम साय पर छोड़ दें। सम्भवत: इसीलिए पुरंदर इन दिनों सीएम के इर्द-गिर्द खूब दिखाई देते हैं। वहीं रायपुर में 15 साल बाद भाजपा की महापौर बनने का श्रेय राजेश मूणत लेना चाहते हैं। मूणत इसी बहाने फिर से मंत्री पद के लिए ताल ठोंकना शुरु कर दिए हैं। दूसरी ओर रायपुर संभाग से मंत्री पद के प्रवल दावेदार अपने स्वभाव के विपरीत अजय चन्द्राकर इन दिनों खामोश हैं।
हसदेव अरण्य पर खामोशी?
पूरे देश में छत्तीसगढ़ राज्य अपने हरे-भरे वनों के लिए मशहूर है। इस राज्य में प्रकृति का प्रेम साफ तौर दिखता है, लेकिन आने वाली पीढिय़ों के लिए यह सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएगा। छत्तीसगढ़ का फेफड़ा कहलाने वाला हसदेव अरण्य उजडऩे जा रहा है। 18 लाख मिलियन टन का लक्ष्य लेकर अडानी समूह फिर से कोल खनन की तैयारी में है। इसके लिए एनओसी मिलते ही मार्च-अप्रैल माह से एक बार फिर लाखों की तादात में पेड़ों की बली चढ़ा जाएगी। भले ही संदर्भ अलग हो लेकिन वन क्षेत्रों के कम होने पर चिंता करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है और राज्यों को साफ तौर पर कहा है कि किसी भी हाल में वन क्षेत्र कम न किए जाएं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ हसदेव अरण्य और कोल खनन से नहीं है। खैर यहां कि खामोशी यह चीख-चीख कर कह रही है कि हसदेव अरण्य को तबाह होने से अब कोई नहीं रोक सकता। सत्ताधारी दल और विपक्ष दोनों ने ही हसदेव अरण्य पर खमोशी बना ली है? बेबस आदिवासी-वनवासी अपनी बात कहें तो कहें किससे? आम जन तथा सामाजिक संगठनों के द्वारा लगातार हसदेव अरण्य को बचाने के लिए आंदोलन किये जा रहे है। कभी हसदेव अरण्य का एक डाल भी नहीं कटने देंगे का दंभ भरने वाले नेता इन दिनों खामोश हैं? बहरहाल इस खामोशी की वजह जो भी हो लेकिन आने वाली पीढ़ी के लिए यह सुंदर वन सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएगा।
आचार संहिता के बाद बदले जाएंगे कलेक्टर
आचार संहिता समाप्त होते ही राज्य सरकार कुछ आईएएस अफसरों के विभागों में फेरबदल कर सकती है। इसके साथ ही कुछ जिले के कलेक्टर भी बदले जाएंगे। दरअसल दुर्ग कलेकटर ऋचा चौधरी और आईएएस नम्रता गांधी की केन्द्र में पोष्टिंग होनी है। इन्हें रिलीव करते ही नए आर्डर जारी किए जाएंगे। माना जा रहा है कि इन जिलों के साथ और भी कुछ जिलों के कलेक्टर बदले जा सकते हैं। इसके साथ ही एनआरडीए के सीइओ सौरभ कुमार और आर. प्रसन्ना भी डेपुटेशन में जा सकते हैं। सरकार प्रसन्ना और सौरभ को रिलीव करेगी तो सचिव स्तर के अफसरों में भी फेरबदल स्वाभाविक है। ऐसे में कलेक्टरों के साथ ही सचिव स्तर के अफसरों के विभागों में भी जल्द फेरबदल हो सकते हैं।
ई-कुबेर की तबाही, सूरजपुर और बलरामपुर जैसे इलाकों में पिछड़ी भाजपा
‘ई-कुबेर’ ने वन विभाग को ‘ई-सुदामा’ बना दिया है। लाख प्रयत्नों के बाद भी ई-कुबेर की वजह से वन विभाग बजट राशि खर्च करने में नाकामयाब दिख रहा है। इस वर्ष राशि खर्च न होने की वजह से वनक्षेत्रों के अंतर्गत काम भी न के बराबर हुए हैं। सम्भवत: इसी वजह से विभाग लंबा-चौड़ा बजट सरेंडर करने जा रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि ई-कुबेर की वजह से पंचायत चुनाव में कांग्रेस को फायदा हो गया है। सूरजपुर और बलरामपुर जैसे इलाकों में कांग्रेस को बढ़त मिली है। दरअसल वनक्षेत्रों में ज्यादातर ग्रामीण ही काम करते हैं, लेकिन ई-कुबेर की वजह से इस साल कोई खास काम विभाग में नहीं हो पाया। जिसके वजह से ग्रामीण अंचल में रोजगार भी नहीं मिले। दरअसल राज्य के ज्यादातर गांव वनों पर आश्रित है। मनरेगा के साथ ही वन विभाग के द्वारा ग्रामीणों को काफी रोजगार दिया जाता है, जो इस साल ई-कुबेर ने चौपट कर दिया है। इस बीच कांग्रेस ने भी दावा किया है कि पंचायत चुनाव में पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया है। अब सच क्या है? यह तो कांग्रेसी नेता और वन विभाग के अफसर ही जानेंगे, लेकिन अंदरखाने में यह चर्चा है कि ई-कुबेर की वजह से निकाय चुनाव की तुलना में पंचायत चुनाव में भाजपा पिछड़ गई।
अगला सीएस कौन?
मुख्य सूचना आयुक्त के नियुक्ति की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। कहा जा रहा है कि वर्तमान सीएस अमिताभ जैन सेवा अवधि पूरी करने से पहले वीआरएस लेकर मुख्य सूचना आयुक्त बनाए जा सकते हैं। अब सवाल यह उठता है कि अमिताभ जैन का स्थान कौन लेने जा रहा है। आम तौर पर सीएस को लेकर 1994 बैच के अफसर मनोज पिंगुआ का नाम सामने आ रहा है। पिंगुआ सरल स्वाभाव के अफसर माने जाते हैं। वहीं 1994 बैच की ही अफसर ऋचा शर्मा भी सीएस की रेस में पीछे नहीं हैं। दरअसल ऋचा को सीएस बनाये जाने के पीछे तर्क यह है कि आईएएस मनोज पिंगुआ और राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय दोनों ही सरल स्वाभाव के हैं, इसके साथ दोनों ही ट्राइबल हैं। ऐसे में प्रशासनिक कसावट के लिहाज से ऋचा शर्मा को सीएस की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। वहीं 1993 बैच के अफसर अमित अग्रवाल को यदि केन्द्र सरकार राज्य वापस भेजने में सहमत होती है तो पहली पसंद अमित अग्रवाल हो सकते हैं। रेणु पिल्ले पर भी विचार किया जा रहा है। बहरहाल राज्य का अगला सीएस कौन होगा? इसको लेकर मार्च माह में फैसला हो जाएगा।
गुप्त शक्ति और सीनियर आईएफएस अफसरों का प्रमोशन
लंबे समय से प्रमोशन के लिए चिंतित सीनियर आईएफएस अफसरों के प्रमोशन में गुप्त शक्ति आखिरकार काम आ ही गई। जुलाई माह से इधर-उधर घूम रही इनके प्रमोशन की फाइल पर जब गुप्त शक्ति की विशेष ताकत मिली, तब यह फाइल जाकर कैबिनेट तक पहुंची। सीएम सचिवालय ने भी प्रमोशन के इस प्रकरण में बिना देरी के तत्परता दिखाई। फाइनली सीनियर आईएफएस अफसर सुनील मिश्रा, आलोक कटियार, अरुण कुमार पांडे, प्रेम कुमार पीसीसीएफ प्रमोट हो गए हैं। गुप्त शक्ति के प्रताप के साथ ही इन अफसरों को महाकुम्भ का भी फल मिल रहा है।
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