हलचल… कलाकार

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कलाकार

आपने कलाकार शब्द को सुना होगा शायद समझा भी होगा। आमतौर पर टीव्ही सीरियलों, फिल्मों, नृत्य-नाटकों और मंचों पर विभिन्न तरह की प्रस्तुति देने वाले व्यक्तियों को कलाकार कहा जाता है। लेकिन यहां पर कलाकार राज्य के एक मंत्री को कहा जाने लगा है। वह भी उन्हीं के बड़े नेताओं और पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा। हालांकि राजनीतिज्ञों के पास तरह-तरह की कला होती ही है, अब मंत्री जी के पास कौन- कौन सी कला है, यह तो उनके नेता और कार्यकर्ता ही जानेंगे। कहते हैं कि मंत्री जी कला में उस्ताज हैं, वह समयानुसार अपने व्यक्तित्व को प्रदर्शित करते रहते हैं। उनके बार-बार बदलते स्वरुप को देखकर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उनका नामकरण कलाकार रख दिया है। वैसे तो नेताजी के उपर यह नाम एकदम फिट बैठ रहा है, अक्सर नेता जी को बदलते देखा गया है, उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोग भी कहते हैं कि नेताजी में बहुत बदलाव आ गया है। बहरहाल जितने मुंह उतनी बातें लेकिन इस बीच मंत्रीमंडल के भीतर कलाकार शब्द चल पड़ा है।

अति-आत्मविश्वास कितना वाजिब?

निश्चित तौर पर ओपी चौधरी राज्य के एक ऐसे मंत्री हैं, जिनके विवेक और कार्यशैली से आम जनमानस खासी प्रभावित रहती है, खासकर युवाओं के बीच वह काफी लोकप्रिय है। अपने आप में विश्वास होना बहुत अच्छी बात है, लेकिन अति-आत्मविश्वास कितना वाजिब है? इसका फैसला तो खुद ओपी चौधरी को करना है। दरअसल विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान अनुपूरक बजट को लेकर सदन में महत्वपूर्ण चर्चा चल रही थी। इस बीच अधिकारी दीर्घा में अधिकारियों की संख्या न के बराबर थी, जिस पर विपक्ष ने आपत्ति जताई। विपक्ष की आपत्ति कुछ हद तक वाजिब भी है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने आपत्ति जताते हुए कहा कि बजट को लेकर इतनी महत्वपूर्ण चर्चा चल रही और यहां एक भी अधिकारी मौजूद नहीं हैं। यह सुनते ही वित्त मंत्री ओपी चौधरी सीट पर बैठे-बैठे यह बोल गए कि अधिकारियों की आवश्यकता नहीं है। निश्चित ही ओपी का आशय यह रहा होगा कि मैं वित्त मंत्री के रुप में सक्षम हूं, अधिकारी रहें या न रहें, हर सवाल का जबाव दूंगा। और इसका मतलब यह भी हो सकता है कि वह उन मंत्रियों में शामिल नहीं हैं जिसे अधिकारी चिट भेजेंगे तो वह जबाब देंगे। यह बात कहीं न कहीं ओपी चौधरी के अन्दर अति आत्मविश्वास का भी संकेत देती हैै। जबकि उन्हीं के साथ में बैठे अन्य मंत्री बिना चिट के जबाव नहीं दे सकते। तो भला विधानसभा में अधिकारियों की जरुरत कैसे नहीं है? बहरहाल जब ओपी चौधरी को घेरने की बात हो तो विपक्षी सदस्य भला कैसे अवसर हाथ से जाने देंगे। यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ। बिना मौका गंवाए पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने वित्त मंत्री ओपी चौधरी का बयान सुनते ही विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह से अधिकारी दीर्घा हटाने की मांग कर डाली। भूपेश ने कहा कि यदि अधिकारियों की यहां आवश्यकता नहीं तो सदन में अधिकारी दीर्घा की भी जरुरत नहीं, इसे हटवा दिया जाए। खैर विधानसभा अध्यक्ष ने बात की गंभीरता को समझते हुए भी बड़ी शालीनता से इस विषय को टाल दिया और मामला वहीं समाप्त हो गया। लेकिन वित्त मंत्री ओपी चौधरी के इस जवाब को राजनीतिक मायनों में अति-आत्मविश्वास का दर्जा दिया जा रहा है।

चन्द्राकर के तेवर

शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्षी विधायकों का तेवर औसत रहा, वह कुछ खास नहीं कर पाये। वहीं अपने स्वभाव अनुरुप डॉ. चरणदास महंत नेता प्रतिपक्ष के रुप में विपक्ष का दायित्व निभाते नजर आये। लेकिन इस सत्र में विपक्षी सदस्यों से ज्यादा तेवर सत्तापक्ष के सदस्यों में देखा गया। कुरुद विधायक अजय चन्द्राकर का तेवर देखते ही बनता था, वह उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा को घेरने में तनिक भी कोताही नहीं बरते। हालांकि एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि के रुप में अजय का यह दायित्व भी है कि वह खामियों को सदन में उजागर कर राज्य की जनता के साथ न्याय करें। निश्चित ही अजय चन्द्राकर शीतकालीन सत्र के दौरान इसकी कोशिश भी करते नजर आये। लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसके अलग ही मायने हैं, खैर चन्द्राकर अब किसी भी राजनीति मायनों से परे हैं। चन्द्राकर के तेवर को देखकर यह कहा जा सकता है कि सम्भवत: उन्होंने मंत्रीमंडल की आस को भी त्याग दी है। दरअसल दंतेवाड़ा में सड़क निर्माण में हुए कथित भ्रष्टाचार पर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा के जवाब से अजय चंद्राकर असंतुष्ट नजर आये। इस दरम्यान बिना संयम के अपनी ही पार्टी कीे सरकार पर वह आरोप लगा बैठे कि भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया जा रहा है। हालांकि अजय को विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह का पूरा संरक्षण मिला। जिसके बदौलत वह उपमुख्यमंत्री से बार-बार सवाल करते नजर आये। बार-बार पूरक प्रश्न पूछने के कारण आखिरकार उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा को अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी, साथ ही ठेकेदार को ब्लैक लिस्टेट करने की घोषणा की गई। कुल मिलाकर चंद्राकर का यह तेवर आगे भी बरकरार रहा तो, राज्य में ठंडे विपक्ष की कमी का एहसास नहीं होगा।

सुबोध की रिलीविंग और एक दिन के भीतर पोष्टिंग, मायने?

1997 बैच के आईएएस अफसर सुबोध कुमार सिंह को मुख्यमंत्री सचिवालय के प्रमुख सचिव की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। एक सप्ताह के अन्दर यह पूरा घटनाक्रम हुआ और एक दिन के भीतर राज्य सरकार ने सुबोध सिंह का आदेश जारी कर दिया। खैर सरकार ने आनन-फानन में सुबोध सिंह को छत्तीसगढ़ वापस क्यों बुलाया और रातों- रात उन्हें पीएस टू सीएम क्यों बनाया गया? यह तो स्वयं मुख्यमंत्री विष्णुदेव ही जानेंगे। बहरहाल कारण जो भी लेकिन सुबोध सिंह के छत्तीसगढ़ वापस आने से एक बार फिर प्रशासनिक गति जरुर देखने को मिलेगी। डॉ. रमन सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए सुबोध सिंह सीएम सचिवालय के ही नहीं बल्कि पूरे अफसरशाही में एक विश्वसनीय चेहरा रहे। रमन सिंह के कार्यकाल में वह मुख्यमंत्री सचिवालय में रहते हुए माइनिंग, ऊर्जा और लोक निर्माण जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सम्भाल चुके हैं। निश्चित ही सुबोध सिंह के अनुभव का लाभ राज्य को मिलेगा। लेकिन आनन-फानन में सुबोध को सीएम सचिवालय में क्यों बैठाया गया? इसको लेकर चर्चाएं छिड़ी हुई हैं।

जीपी सिंह की धमाकेदार वापसी

आईपीएस जीपी सिंह आरोपों से बरी होकर एक बार फिर राज्य की अफसरशाही में धमाकेदार एंन्ट्री कर चुके हैं। हालांकि अभी तक जीपी सिंह को राज्य सरकार ने कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी है। लेकिन यह माना जा रहा है कि जीपी सिंह को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। जीपी सिंह अपने स्वभाव अनुरुप आमद देने के बाद विधानसभा पहुंचे वहां पर सीएस से लेकर तमाम अफसरों से मुलाकात की। इसके साथ ही जीपी ने कुछ राजनेताओं से भी मुलाकात की। हालांकि जीपी सिंह को अचानक विधानसभा में देखकर प्रशासनिक गलियारों में चहल-पहल शुरू हो गई।

नियम-परम्परा और विजय शर्मा

राज्य के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा एक अच्छे राजनेता के साथ-साथ एक अच्छे वक्ता भी हैं। उनका प्रजेन्टेशन सभी को सम्मोहित करने वाला होता है। लेकिन सदन तो नियम परम्पराओं से चलता है और विधानसभा में नियम-परम्पराओं के संरक्षण की जवाबदेही विधानसभा अध्यक्ष की होती है। दरअसल यह बात हम यहां इसलिए कहना चाहते है कि आपके अन्दर कितनी भी खूबियां हो, लेकिन कुछ जगह उन्हें दबा कर रखना पड़ता है। उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा को भी शीतकालीन सत्र में नियम-परम्पराओं के सामने अपनी खूबियों को दबा के रखना पड़ा। विधानसभा सत्र के आखिरी दिन कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष ने स्थगन लाया था। स्थगन प्रस्ताव के आरोपों पर बतौर गृहमंत्री विजय शर्मा को जवाब देना था। परंपराओं अनुरुप लिखित जवाब को संबंधित मंत्री सदन के अन्दर वाचन करते हैं या पढ़ते हैं, वहीं शासन का जवाब होता है। लेकिन उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा लिखित जवाब को और अधिक अच्छे ढंग से देने का प्रयास कर रहे थे। वह कुछ पाइंट स्वंय नोट कर लिखित जवाब से पहले बोलना शुरु कर दिए। जिस पर विपक्ष ने आपत्ति जताई, विपक्षी सदस्यों ने कहा कि यह नई परम्परा है अभी तक विभाग द्वारा दिए गए लिखित जवाब का मंत्री वाचन करते आये हैं। मंत्री जी को कुछ और बोलना है तो चर्चा में बोल लेंगे। स्थगन प्रस्ताव पर शासन का जवाब खत्म होने के बाद भी उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा के अन्दर और कुछ बोलने की जिज्ञासा दिखी। उन्होंने इसके लिए विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह से अनुमति भी मांगी, लेकिन अध्यक्ष ने साफ तौर पर कह दिया अब कोई अनुमति नहीं है। शायद विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह को यह आभास हो चुका था कि अब विजय शर्मा को इस विषय में ज्यादा बोलने का अवसर देना ठीक नहीं। बहरहाल इस वाकया के शिकार उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा कहीं न कहीं यह प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहे थे कि उनके मंत्रालयों में उनकी पकड़ काफी मजबूत है, और वह अधिकारियों द्वारा बनाए गए बयानों से ज्यादा अपने अध्ययन और विवेक पर विश्वास करते है। सम्भवत: इसीलिए वह लिखित जवाब के साथ और भी कुछ तथ्य जोड़कर बोलना चाहते थे, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिली। इस घटनाक्रम से यह समझा जा सकता है कि आपके अन्दर विशेष कला होने के बावजूद भी कुछ जगह नियम और परम्पराओं का ख्याल रखना पड़ता है।

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