हलचल… एक और सिंडिकेट घोटाले का पर्दाफाश

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डबल नहीं, अब तिबल इंजन

छत्तीसगढ़ में डबल इंजन की सरकार है। डबल इंजन की सरकार में चारों ओर सांय-सांय विकास हो रहा है। डबल इंजन के बाद अब यहां तीसरे इंजन की दरकार है। दरअसल यहां केन्द्र और राज्य में भाजपा की सरकार को डबल इंजन की सरकार कहा जाता है। इसी कान्सेप्ट को अपनाते हुए नगरीय निकायों को तीसरा इंजन कहा जाने लगा है। वर्तमान में तीसरे इंजन का ज्यादातर हिस्सा कांग्रेस के पास है। लेकिन यह इंजन भाजपा में जुड़ जाए इसके लिए पूरी कवायद की जा रही है। इस इंजन के जुड़ते ही यहां डबल नहीं, बल्कि तिबल इंजन की सरकार हो जाएगी। तिबल इंजन के स्पीड की कल्पना आप स्वयं कर सकते हैं। सरकार तीसरे इंजन यानि की नगरीय निकायों में किसी भी हाल में अपना कब्जा बनाना चाह रही है। इसके लिए निकाय चुनावों की तिथि में अभी और संशोधन होने की पूरी सम्भावना है। कुछ दिनों तक यह माना जा रहा था कि 27-28 दिसम्बर को महापौरों और अध्यक्षों की आरक्षण प्रक्रिया समाप्त होते ही चुनाव का ऐलान हो जाएगा। लेकिन आरक्षण प्रक्रिया को 10 दिन के लिए टाल दिया गया है। स्वाभाविक है प्रक्रिया लेट होने से चुनाव भी देर से होंगे। बहरहाल चुनाव जब भी हों लेकिन राज्य में अब डबल इंजन नहीं, बल्कि तिबल इंजन की सरकार चलते दिखेगी।

संवाद

राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद सार्वजनिक रुप से सम्भवत: पहली बार भाजपा प्रदेश प्रभारी नितिन नवीन ने पत्रकारों से संवाद किया। नितिन नवीन के इस संवाद में राज्य के पत्रकारों ने हंसी-मजाक में ही सही लेकिन छतीसगढ़ संवाद की पूरी व्यथा सुना दी। इस संवाद में संवादहीनता के मुद्दे भी हंसी ठहाकों के बीच गूंजते रहे। कहते हैं कि एक पत्रकार द्वारा संवादहीनता की बात उठाते ही कइयों ने इस पर अपनी-अपनी पीड़ा जाहिर कर दी। नितिन नवीन ने भी इसे संवादहीनता की श्रेणी का दर्जा देते हुए सकारात्मक पहल करने की बात कही। पत्रकारों ने यह भी कह दिया कि आप इतना सकारात्मक रुप से हम सब से मिलकर सभी तरह की बातें कर सकते हैं, तो सिस्टम में बैठे लोग मीडिया से दूरी बनाते क्यों नजर आ रहे हैं? खैर इस मुलाकात से पत्रकार और भाजपा संगठन के पदाधिकारी दोनों उत्साहित दिखे। अब इस संवाद का छत्तीसगढ़ संवाद पर कितना असर होगा यह तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट हो सकेगा।

बदले जाएंगे मंत्री?

राज्य में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर लगातार खबरें सामने आ रही हैं। मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर राजकाज में रुचि रखने वाले हर व्यक्ति ने अपने-अपने तरीके से तथ्यों को जनता के सामने रख दिया। लेकिन मंत्रिमण्डल का विस्तार अभी सिर्फ कायासों तक ही सीमित नजर आ रहा है। दरअसल कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की दिल्ली में कुछ नेताओं के साथ बैठक हुई। यह बैठक किन मसलों को लेकर आयोजित की गई? बैठक का एजेन्डा क्या था? इसको लेकर अभी तक जनता के पास आधा सच ही पहुंच पाया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों और संगठन के नेताओं के साथ दिल्ली में बैठक क्यों की? इस बैठक में राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री शिव प्रकाश जो कि यहां के क्षेत्रीय प्रभारी भी हैं उनके अलावा कोई भी बड़े राष्ट्रीय पदाधिकारी मौजूद नहीं थे। उसके बाद भी यह बैठक दिल्ली में क्यों आयोजित की गई? बैठक राजधानी रायपुर में भी आयोजित की जा सकती थी फिर भी छत्तीसगढ़ के नेता दिल्ली क्यों पहुंचे? ऐसे तमाम सवाल इन दिनों जनता के बीच घूम रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि मंत्रिमंडल से 2-3 चेहरे हटाए जा सकते हैं, इस संदर्भ में बात लीक न हो इसलिए इस बैठक का आयोजन दिल्ली में किया गया। तो कुछ लोगों का मानना यह है कि 2 नाम तय कर लिए गए हैं, बस औपचारिक ऐलान कर उन्हें मंत्री पद की शपथ दिलाई जाएगी। इसके साथ ही एक वर्ग का मानना यह भी है कि जब नगरीय निकाय चुनाव सामने हों तो भला कौन सिर्फ दो नेताओं को मंत्री बनाकर खुश करेगी और दर्जनों को नाराज करने का जोखिम उठाएगी। बहरहाल मंत्री जो भी बने इन दिनों कयासों का दौर चल पड़ा है।

लखमा एण्ड लखमा

छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले की जांच ने एक बार फिर गति पकड़ ली है। इस बीच लखमा एण्ड लखमा के यहां ईडी ने दबिश दी है। दरअसल यहां हम लखमा एण्ड लखमा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि दो लखमा के यहां दबिश दी गई है। पहले लखमा हैं राज्य के पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा तो दूसरे लखमा हैं उनके पुत्र हरीश लखमा। दोनों के यहां ईडी ने कार्रवाई की है। अब लखमा के दाएं हाथ यानि की सुशील ओझा और बांये हाथ सद्दाम सोलंकी की तलास ईडी को है। शराब घोटाले मामले में ईडी परत दर परत उधेड़ रही है। आबकारी एमडी एपी त्रिपाठी उनके बाद आबकारी आयुक्त रहे आईएएस निरंजन दास, कारोबारी अनवर ढेबर आदि पर पहले ही ईडी ने शिकंजा कस दिया है। इसी बीच लखमा एण्ड लखमा के यहां छापे को भी शराब घोटाले से जोड़ा जा रहा है। दरअसल आबकारी घोटाले पर आरोप है कि पूर्व मंत्री लखमा को 50 लाख रुपये प्रतिमाह कमीशन के रुप में दिए जाते थे। इसमें सद्दाम और ओझा की भी महतवपूर्ण भूमिका रही है। बहरहाल ईडी मामले की जांच कर रही है, जांच पूरी होने के बाद ही असली सच सामने आ सकेगा।

और कितनी लिओनी

राज्य के महतारी वंदन योजना में सन्नी लियोनी का नाम भी जुड़ गया। महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में उठाये गए इस महत्वपूर्ण प्रयास में अफसरों की लापरवाही के कारण यह महती योजना धूमिल होती नजर आ रही है। लियोनी का नाम जुडऩे से देश-विदेश में इस योजना की चर्चाएं हो रही हैं। अधिकारी-कर्मचारियों ने महतारी वंदन की राशि लियोनी को भी देने में कोई कोताही नहीं बरती। यह बात अलग है कि सन्नी लियोनी को उक्त राशि नहीं मिली, उसे बिचोलिए ने ही डकार लिया। लेकिन सवाल यह उठता है कि जनता के रुपयों को क्या ऐसे ही बर्बाद किया जाएगा? क्या सिस्टम की खामियों की शिकार सिर्फ लियोनी बस हुई हैं? या और एक्टर भी महतारी वंदन की राशि का लाभ ले रहे हैं? इस घटना के बाद जनमानस में ऐसी आशंकाएं होना वाजिब भी है। एक साल बीत जाने के बाद भी वास्तविक हितग्राहियों की जांच क्यों नहीं की जा रही है? इस योजना के लिए अब तक कोई क्राइटेरिया क्यों तय नहीं की गई? वास्तव में इसके जांच की आवश्यकता है, क्योंकि ऐसे ही न जाने कितनी कथित सन्नी लियोनी राज्य की महतारियों के हक में डांका डालने का काम कर रही होंगी।

एक और सिंडिकेट घोटाले का पर्दाफाश

660 करोड़ की रिएजेंट खरीदी का मामला नया मोड़ ले सकता है। दरअसल इसके लिए राज्य सरकार ने विधानसभा में ईओडब्ल्यू से जांच कराने की घोषणा की है। मार्केट दर से कई गुना में खरीदी का मामला शीतकालीन सत्र में मुद्दा बना रहा। माना जा रहा है कि इसमें भी सिंडिकेट रुप से घोटाला किया गया है। स्वास्थ्य मंत्री ने सदन में खुद स्वीकार किया है कि एक बार डिमांड के आधार पर खरीदी की गई है, तो दूसरी खरीदी आनन-फानन में बिना डिमांड के की गई है। स्वास्थ्य मंत्री के इस जवाब ने सिर्फ सीजीएमएससी बस को कटघरे में नहीं खड़ा किया जा सकता है, बल्कि तत्कालीन संचालक भी इस बयान के बाद निशाने पर हैं। क्योंकि बिना डिमांड के खरीदी की ही नहीं जा सकती। लेकिन जब जिलों से डिमांड नहीं थी उसके बाद भी संचालक ने खरीदी के लिए क्यों कहा? उसके बाद सीजीएमएसी ने औने-पौने दाम में खरीदी क्यों की? ऐसे तमाम सवालों ने यहां पर भी सिंडिकेट रुप से किए गए भ्रष्टाचार की ओर इशारा करते हैं। बहरहाल अब मामले की जांच के बाद ही दवांइयों और रिएजेन्ट खरीदी में हुए सिंडिकेट घोटाले का पर्दाफाश होगा।

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