हलचल… मंत्रियों के नाम का ऐलान

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देखो और बूझो

देखो और बूझो यह तो हम लोग बचपन से ही पढ़ते आ रहे हैं। शायद आप भी पढ़े होंगे? इसलिए इस चित्र को भी देखिए और बूझिए। दरअसल इस चित्र विशेष को भाजपा ने विधानसभा चुनाव के वक्त तैयार किया था। जिसे 2023 के विधानसभा चुनाव में आरोप पत्र के रुप में जनता के समक्ष जारी किया गया हैै। आरोप पत्र बनाने वाले की दूरदर्शिता देखिए। यहां यह सोचना गलत है कि नजर आप पर नहीं है? यह आज की भाजपा है निगाहें सब पर और सब तरफ है। गौर करने वाली बात यह है कि इस चित्र में जितने पात्रों के नाम भूपेश बघेल के सीने में उकेरे गए हैं वह अपने मंजिल को पा चुके हैं या मंजिल के नजदीक हैं। हालांकि चित्र और कार्रवाई का मामला अभी तक पूर्व सीएम भूपेश बघेल के सीनेे में लगे बैच और पीठ में भरे नोटों के बोरे के इर्द-गिर्द ही घूमता दिखाई दे रहा है। भूपेश बघेल के सर पर रखी खास टोकरी में क्या है? फिलहाल इसका राज अभी तक जनता के सामने नहीं आ पाया है। इस राज का खुलासा क्यों नहीं पा पाया है? इसका जबाव तो भाजपा और जांच एजेसियां ही दे सकती है। खैर आम तौर पर मानवीय स्वभाव के अनरुप दूर या उंचाई में काफी मूल्यवान वस्तु को रखा जाता है। संभव है भूपेश के सर में रखी टोकरी और उसके अन्दर रखी वस्तु भी काफी मूल्यवान होगी। जनता इसे देखने के लिए उत्सुक है।

समय बदलता है और लोग भी

अक्सर हम सुनते हैं कि समय बदलता है, समय को बदलते हम सब देखते भी हैं। लेकिन लोग भी बदलते है यह थोड़ा कम देखने को मिलता है, पर सच है लोग भी बदलते हैं। तस्वीर देख लीजिए इस तस्वीर में राज्य के वर्तमान वित्त मंत्री ओपी चौधरी नजर आ रहे हैं। जो आज से पांच साल पहले लोगों की चिंता में डूबे रहते थे। सड़क, घर और स्कूल हर जगह उन्हें सिर्फ चिंता सताती थी। फिलहाल इस तस्वीर में ओपी चौधरी सड़क पर चिंता करते नजर आ रहे थे, स्कूल की बात कभी और की जाएगी। जून 2020 में ओपी चौधरी ने यह तस्वीर सोशल मीडिया में साझा की थी। इस दौरान वह भाजपा के एक साधारण कार्यकर्ता थे। उस समय ओपी चौधरी एक वाहन के टक्कर से गिरे एक बाइक सवार राहगीर की मदद करते नजर आये, दुर्भाग्य राहगीर नशे में था। ओपी चौधरी को खूब चिंता हुई। उन्होंने सोशल मीडिया में पोष्ट शेयर करते हुए लिखा कि ‘ऐसे में हमारा छत्तीसगढ़ कैसे आगे बढ़ेगा? ओपी चौधरी ने इस बीच सुझाव भी दिये कि समाज को नशे के खिलाफ सोच विकसित करनी चाहिए। बेशक करनी चाहिए, अब समय चक्र बदल चुका है। वास्तव में सोच विकसित करनेे का सही समय अब है। लेकिन मामला कुछ उल्टा दिखाई दे रहा है। शराब के रेट घटाए जा रहे हैं, जाहिर सी बात है, लक्ष्य ज्यादा पिलाने का होगा। नई शराब दुकानें खोले जाने की धड़ाधड़ मंजूरी दी जा रही है, शायद मामला राजस्व बढ़ाने का होगा, धन जुटाने का होगा। ऐसे में अब जनता वित्त मंत्री चौधरी से पूछ रही है कि ‘हमारा छत्तीसगढ़ कैसे आगे बढ़ेगा? इसलिए याद रखिए समय बदलता है और लोग भी।

संजय जोशी की ताजपोशी ?

लोकसभा चुनाव सम्पन्न हुए तकरीबन एक साल होने को है। भाजपा के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पार्टी के साथ ही मोदी सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग जैसे अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी भी सम्भाल रहे हैं। वर्तमान हालातों की बात की जाए तो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा बीते एक साल में राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए एकमत नहीं हो पाई है। पार्टी के अन्दर ऐसा क्या चल रहा है? जिसके चलते अब तक नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर मुहर नहीं लग पायी है? खैर यह तो पीएम मोदी और संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के बीच का मसला है। लेकिन अब एक बार फिर राष्टीय अध्यक्ष पर संजय जोशी के ताजपोशी की बातें छनकर सामने आने लगी हैं। हालांकि लंबे समय से यह बात भी कही जाती रही है कि संजय जोशी के नाम पर मोदी और शाह सहमत नहीं है। खैर कहते हैं कि संघ ने एकमात्र नाम संजय जोशी पर विचार किया है। ऐसे में भाजपा और मोदी का अगला कदम क्या होगा? फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। संघ को अपनी पसंद से समझौता करना पड़ेगा या वर्तमान राजनीतिक हालातों को देखते हुए पीएम मोदी संघ के प्रस्ताव पर मुहर लगाएंगे इसका खुलासा निकट भविष्य में होने जा रहा है। दरअसल लंबे अरसे के बाद पीएम मोदी 30 मार्च को नागपुर स्थित संघ मुख्यालय पहुंचे। मोदी का संघ कार्यालय जाना इस बात की ओर संकेत देता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए एक बार फिर संजय जोशी की दावेदारी मजबूत हुई है। खैर सत्यता क्या है? यह तो निकट भविष्य सामने आ ही जाएगी।

रमन पसंद

लबें इंतजार के बाद निगम मंण्डल में नियुक्तियों का सिलसिला शुरु हुआ। पहली किश्त में 36 नेताओं को जगह मिली। जिसमें ज्यादातार विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह के पसंद पर मुहर लगी है, इसलिए इस सूची का नाम रमन पसंद रख दिया गया है। इस सूची में प्रमुख रूप से संजय श्रीवास्तव, सौरभ सिंह, भूपेन्द्र सवन्नी, राजीव अग्रवाल, नीलू शर्मा, नंदे साहू, पूर्व मंत्री रामसेवक पैकरा, अनुराग सिंहदेव समेत अन्य को महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी दी गई है। सूची को लेकर कहा जा रहा है कि यह सभी नेता वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के करीबी रहे हैं। कुल मिलाकर रमन सिंह भले ही इस समय संवैधानिक पद की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं, लेकिन निगम मंडल की सूची यह चीख-चीखकर बयां कर रही है कि रमन सिंह की पकड़ अभी भी पार्टी के अन्दर मजबूत है। सूची देखकर यह कहा जा सकता है कि राज्य सरकार के हर बड़े निर्णय में रमन सिंह की महती भूमिका है। यही नहीं पीएम मोदी ने भी हाल ही बिलासपुर में हुए कार्यक्रम में डॉ. रमन सिंह और उनके कार्यकाल का विशेषतौर पर जिक्र करते हुए सराहना की। आमतौर पर यह मोदी के स्वभाव में नहीं है। हालांकि रमन सिंह राज्य के एक ऐसे नेता हैं जिनके राजनीतिक व्यवहार में 15 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद भी कोई परिवर्तन जनता ने नहीं देखा। राज्य में भाजपा की सत्ता जाने के बाद भी रमन को कोसने वालों की संख्या कम नहीं थी, तब भी रमन का स्वभाव वैसा ही नजर आया। संभव है इसलिए आज भी पीएम मोदी से लेकर पार्टी के सभी पदाधिकारी रमन पसंद का खास ख्याल रखते हैं।

मंत्रियों के नाम का ऐलान

फाइनली राज्य मंत्रिमंडल के विस्तार का समय आ गया है। जल्द ही दो नए चेहरे साय कैबिनेट का हिस्सा होंगे। वही एक मंत्री की विदाई लगभग तय मानी जा रही है। इसके साथ ही कुछ मंत्रियों के विभाग बदले जाएंगे, जिसमें से एक सबसे ताकतवर मंत्री के प्रमुख विभाग में बदलाव के संकेत हैं। मंत्रिमंडल विस्तार में रायपुर शहर को मायूसी का सामना करना पड़ सकता है। रायपुर के आस-पास के जिलों से दो मंत्रियों को जगह मिलने जा रही है। वहीं पार्टी यदि एक मंत्री की विदाई करने पर मुहर लगाती है, तो उस स्थिति में रायपुर शहर को साय कैबिनेट में मौका मिल सकता है। दरअसल निगम-मंडल के लिए जारी 36 नामों में से दर्जनभर से अधिक चेहरे रायपुर से हैं। ऐसे में रायपुर का पत्ता कटते दिख रहा है। रायपुर शहर तो नहीं लेकिन रायपुर संभाग से एक जुझारु नेता को जगह जरुर मिल सकती है।

सरकार चली जनता के द्वार

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय अपने कार्यकाल का एक तिहाई समय बीतते ही सरकारी योजनाओं के क्रियान्वन, मूल्यांकन और जनता की समस्याओं के निराकरण के लिए सुशासन तिहार मनाने जा रहे हैं। सीएम इस अभियान के माध्यम से जनता के बीच पहुंचकर उनकी नब्ज टटोलेंगे। तीन चरण में होने वाले इस अभियान की प्रशासनिक स्तर पर तैयारियां पूरी कर ली गई है। 8 अप्रैल से यह तिहार शुरु होने जा रहा है। वैसे तो सीएम साय की सादगी और सरलता के प्रति जनता का मत अब तक काफी सकारात्मक रहा है। लेकिन इस अभियान के द्वारा सीएम खुद जनता के बीच पहुंचकर उनके लिए हर संभव निर्णय लेंगे। इसके लिए सीएम सचिवालय ने समयबद्ध, योजनाबद्ध समस्याओं के निराकरण की रणनीति बनाई है। सुशासन तिहार पिछले सरकारों द्वारा चलाये गए लोक सुराज अभियान और भेंट मुलाकात कार्यक्रम से एकदम भिन्न होगा। इस तिहार में सभी स्तर की जबावदेही तय की गई है।

नेता नहीं अब संगठन

कांग्रेस अब आगे कोई गलती दोहराने के मूड में नहीं दिख रही है। किसी राज्य में नेता विशेष को शक्तिशाली बनाने के बजाय कांग्रेस अब संगठन को मजबूत बनाने पर जोर दे रही है। शायद इसीलिए राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं ने देश भर से जिलाध्यक्षों की बैठक बुलाई थी। अभी तक कांग्रेस पार्टी के नेताओं का अरोप था कि राहुल किसी से मिलते नहीं, अब राहुल ने खुद इस गैप को खत्म करने की विशेष पहल की है। राहुल गांधी ने इस बैठक वन टू वन सभी जिलाध्यक्षों से बात की और उनके क्षेत्र और जिले की समस्याओं के बारे में पूछा। इस बैठक में छत्तीसगढ़ से रायगढ़ जिलाध्यक्ष अनिल शुक्ला को बात रखने का अवसर मिला। शुक्ला ने साफ तौर पर कह दिया कि सत्ता मिलने के बाद संगठन से मुंह मोड़ लिया जाता है, पूरी टीम नेताओं की भक्ति में लग जाती है। जिलाध्यक्ष सत्ता के आगे बौने साबित होते हैं, वह पावरलेस हो जाते हैं। गुटवाजी पर रायगढ़ के जिलाध्यक्ष ने दो टूक कहा दिया कि राज्य में संगठन ने चुनाव लड़ा तो जीते, नेताओं ने लड़ा तो चुनाव हार गए। इस दौरान पूर्व सीएम भूपेश बघेल और छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट मंच पर बैठेे थे, तब भी रायगढ़ के जिलाध्यक्ष अनिल शुक्ला ने अपनी बात रखने से परहेज नहीं किया। उन्होंने कहा कि पार्टी, पार्टी एक्शन से बड़े अब नेता और उनके गुट हो गए हैं। उनके स्वागत के इंतजाम हो गए है, इसलिए सत्ता में रहकर भी चुनाव हार जाते हैं। कुल मिलाकर इस रणनीति से यह समझा जा सकता है कि कांग्रेस अब किसी राज्य में बड़े नेता के भरोसे बैठने वाली नहीं है। वह संगठन को तवज्जों देकर आगामी चुनाव की रणनीति में जुट गए हैं।

 

 

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