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वाह बस्तर, वाह…..
बस्तर की कहानी ही कुछ जुदा है। यहां बीते दशकों में लाल आतंक का खौफ रहा। नक्सलियों ने कई दफे जवानों को घेरकर बेरहमी से उनका सीना छलनी कर दिया। राजनेताओं के उपर भी ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गई। ताड़मेटला में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 76 जवानों को एकसाथ निशाना बनाया। झीरम घाटी में कई राजनेताओं को घेरकर गोलियों से भून दिया गया। जवानों के साथ-साथ सत्तापक्ष और विपक्ष ने कई नेताओं को खोया। कई जवानों ने बस्तर की धरती को खून से सींचा। लेकिन लाल आंतक का दौर खत्म नहीं हुआ। ऐसी अनेकों घटनाएं हुई जिसने कई मासूमों के सिर से पिता का साया छीन लिया, कई माताओं ने अपने जवान बेटों को खोया, कई महिलाओं का सुहाग उजड़ गया। लेकिन अब वक्त बदल चुका है, यही बस्तर है, यही जमीन है, यही गोलियां हैं लेकिन निशाने में अब नक्सली हैं। बीते 9 माह में विष्णु सरकार ने नक्सल मामले में निश्चित ही बड़ी जीत हासिल की है। नक्सल मामलों में सरकार की जितनी सराहना की जाए वह कम है। यह पहला मामला है जब 36 से अधिक नक्सलियों को जवानों ने एक साथ घेरकर मार गिराया। अब तक ऐसे मंसूबों में नक्सली कामयाब होते थे, अब जवानों के हौसले बुलंद हैं। वाह बस्तर, वाह …….
खतरे की घंटी
वैसे तो लोकसभा चुनाव परिणाम में ही भाजपा के लिए जनता ने रेड अलर्ट जारी कर दिया था। लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा और जम्मू में हुए विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल ने भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। आने वाले दिनों में महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण राज्य में भी विधानसभा चुनाव होने हैं, यहां भी भाजपा के उठापटक से जनता बहुत खुश नजर नहीं आ रही है। झारखण्ड के परिणाम भाजपा के पक्ष में हो सकते थे, लेकिन ईडी द्वारा हेमंत सोरेन को जेल भेजना भाजपा के लिए सरदर्दी बन गया है, फिलहाल झारखण्ड में क्या होगा अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके बाद दिल्ली और बिहार की जनता को भी चुनाव का वेसब्री से इंतजार है। इस बीच भाजपा और संघ के आंतरिक ढांचे में भी मौजूदा राजनीतिक हालातों को लेकर जमकर खींचतान मची हुई है। कभी कांग्रेस के वादों और चुनावी घोषणाओं को फ्री रेवड़ी की संख्या देने वाली भाजपा तामाम राज्यों में रेवडिय़ां ही नहीं रेवडिय़ों के साथ चने भी बांटना शुरु कर दी है, उसके बाद भी पूरे देश में पार्टी का गिरता ग्राफ चिंता का विषय है। निश्चित ही यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है।.
पहले मंत्रीमंडल फिर निगम मंडल
मंत्रीमंडल के पूरा हुए बिना निगम मंडल की परिकल्पना भला कैसे की जा सकती है। राज्य में दो मंत्री पद अभी भी रिक्त हैं, ऐसे में पहले निगम मण्डल के अध्यक्षों की नियुक्ति करना जल्दबाजी होगी। इसलिए कहा जा रहा है कि दीपावली के पहले राज्य में दो नए मंत्री शपथ लेंगे। दरअसल में पहले निगम मंडल की नियुक्तियां करना और बाद में मंत्रीमंडल का विस्तार करना व्यवहारिक और राजनीतिक रुप से उचित नहीं समझा जा रहा, इसलिए निगम मंडल की नियुक्तियां रुकी हुई हैं। हालांकि राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि निगम मंडल की सूची लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय दिल्ली रवाना होंगे, लेकिन मंत्रिमंडल के विस्तार के पहले निगम मंडल में मुहर लगने की संभावना कम है। साय मंत्रीमंडल में रायपुर सम्भाग से एक विधायक को जगह मिलने जा रही है। वहीं बस्तर सम्भाग के एक पूर्व मंत्री को भी जगह मिलने की चर्चा है। दरअसल में नगरीय निकाय चुनाव के पहले राज्य सरकार काम की गति को और बढ़ाना चाहती है, ऐसे में दो रिक्त पदों में अनुभवी नेताओं को जगह देने की चर्चा है।
सदस्यता ले लो, सदस्यता ……
सदस्यता ले लो, सदस्यता.. यह आवाज आपको सुनाई नहीं देती होगी। लेकिन इन दिनों भाजपा के अन्दर और बाहर सिर्फ यही चल रहा है। सदस्यता के लिए भाजपा नेताओं ने अनेकों हथकंडे अपनाने शुरु कर दिए हैं। कुछ दिन पहले भाजपा विधायक पूर्व मंत्री अजय चंन्द्राकर ने रिकार्ड 10,000 सदस्य बनाए जिसकी खबरें मीडिया में खूब प्रसारित करवाई गई। लेकिन राजधानी से 50 किलोमीटर की दूरी में एक भाजपा विधायक ने 25000 सदस्य बनाकर समाचार पत्रों में बड़ा-बड़ा विज्ञापन छपवा दिया, और अब विधायक जी 50,000 के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ गए हैं। दरअसल में सदस्यता की भी कड़ी रिक्त मंत्री पद और निगम मंडल से जुड़ी हुई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि एक नेताजी ने 45 लाख रुपये में एक इवेन्ट कंपनी हायर की है, जो सदस्य बनाने का काम कर रही है। सदस्य बनने पर 50 रुपये देने की भी बात सामने आई है, बहरहाल सच क्या है? यह तो नेताजी ही जानेंगे। अजय चंन्द्राकर जैसे अनुभवी नेता 10,000 के आकड़े में सिमट के रह गए, नये नवेले विधायक जी ने 25000 का आकड़ा पार करके पेपरों में विज्ञापन छपवा दिया, जिसकी जमकर चर्चा हो रही है।
क्लाईमेट चेंज पर राजनेता कितने गंभीर?
क्लाईमेट चेंज को लेकर राजधानी में एक कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला में अलग-अलग मद से जनता के 3 करोड़ रुपये उड़ा दिए गए। वास्तव में सिस्टम और राजनेता क्लाईमेट चेंज को लेकर कितने गंभीर हैं? इस पर सवाल उठ रहे हैं। दरअसल में एक ओर छत्तीसगढ़ का फेफड़ा कहलाने वाला हसदेव अरण्य अडानी के द्वारा छलनी किया जा रहा है, जिसके लिए राज्य सरकार ने बकायदा परमीशन दी है। दूसरी ओर क्लाइमेट चेंज को लेकर कार्यशाला आयोजित कर इसके लिए चिंता जाहिर करना दोनों में खुले तौर पर विरोधाभाष दिखाई देता है।
खैर इस कार्यशाला का उद्देश्य यदि वास्तव में क्लाइमेट चेंज पर चिंता करना है, तो निश्चित ही सरकार की यह पहल सराहनीय है। और यदि आयोजन का उद्देश्य सिर्फ आर्थिक और राजनीतिक लाभ लेना और देना मात्र है, तो इस पर अब भी समय है कि राजनेताओं और सिस्टम को गंभीर हो जाना चाहिए। क्लाईमेट चेंज का असर हम सब खुली आंखों से देख रहे हैं। आज अक्टूबर माह का प्रथम सप्ताह बीत चुका है, लेकिन राजधानी में ठंड की कहीं भी शुगबुगाहट तक नहीं दिख रही। अक्टूबर माह में भी गर्मी और भयंकर उमस क्लाईमेट चेंज का ही प्रभाव है। इसलिए क्लाईमेट चेंज को लेकर राजनेताओं को वास्तव में गंभीर होने की आवश्यकता है।
निशाने में अफसर
संख्या बल में मजबूत कांग्रेस विपक्ष की भूमिका आक्रामक रूप से निभाने की तैयारी में है। लेकिन मुख्यमंत्री के रुप में भाजपा ने एक सरल और सहज राजनेता का चुनाव किया है, इसलिए कांग्रेस उन्हें लाख प्रयासों के बाद भी घेरने में कामयाब नहीं हो पा रही। सम्भवत: इसीलिए कांग्रेस ने राज्य के अफसरों को निशाने में लेना शुरु कर दिया है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल और साहू समाज के वरिष्ठ नेता धनेन्द्र साहू ने लोहरीडीह के घटना को लेकर कलेक्टर और एसपी पर अपराध दर्ज करने की मांग की है। विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि सरकार घटना को दबाने की कोशिश कर रही है। भूपेश बघेल ने बकायदा पीसी लेकर सवाल खड़े किए हैं कि प्रशांत साहू की मौत के लिए कितने पुलिस कर्मियों और और अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। भूपेश ने अफसरों के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा कि क्या तत्कालीन कलेक्टर और एसपी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है? पूर्व सीएम भूपेश बघेल और कांग्रेस के इरादे साफ दिख रहे हैं कि वह राज्य के अफसरों को घेरने में तनिक भी कोताही नहीं बरतेंगे।
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