thethinkmdeia@raipur
कलेक्टरों को 6 माह का अभयदान
राज्योत्सव सम्पन्न होने के बाद राज्य सरकार एक छोटी लिस्ट जारी करने जा रही थी। कहा जा रहा है कि इस लिस्ट में रायपुर कलेक्टर गौरव कुमार सिंह को अच्छी पोष्टिंग मिलने वाली थी। दरअसल इस लिस्ट में विवादित कलेक्टर अजीत वसंत को कोरबा से हटाकर मंत्रालय लाने की तैयारी थी। वहीं रायपुर के कलेक्टर गौरव कुमार सिंह के बेहतर परफारमेंस को देखते हुए उन्हें एक और महत्वपूर्ण जिला कोरबा की कमान सौंपी जा सकती थी। इसके साथ ही रायपुर कलेक्टर के लिए आईएएस रजत बसंल का नाम उभरकर सामने आया था। लेकिन इस बीच मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण किया जाना है, जिसके कारण निर्वाचन से जुड़े अफसरों को हटाने में रोक लगा दी गई है। हालांकि इसके लिए अभी तक कोई सार्वजनिक आदेश जारी नहीं किए गए हैं। लेकिन कहा जा रहा है कि राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी यशवंत कुमार ने सामान्य प्रशासन विभाग को इसके लिए पत्र लिखा है। 5 नवंबर को राज्योत्सव के कार्यक्रम सम्पन्न हो चुके हैं, लेकिन अभी तक यह छोटी लिस्ट जारी नहीं की है, जिससे यह माना जा रहा है कि 6 फरवरी 2026 तक कलेक्टरों को अभयदान मिल गया है।
बस्तर में जमीनों की लूट का सच क्या?
कई वर्षों तक नक्सलवाद का दंश झेलने वाला बस्तर अब नक्सल मुक्त होने जा रहा है। तय मियाद के अनुसार मार्च 2026 तक यानि कि 4 माह बाद छत्तीसगढ़ राज्य नक्सलवाद मुक्त घोषित कर दिया जाएगा। निश्चित ही सरकार के प्रयास और जवानों के अदम्य साहस की सराहना की जानी चाहिए। लेकिन इस बीच प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस बस्तर के भोले-भाले लोगों की जमीन लूटने का मुददा जोर-शोर से उठा रही है। आखिर इसका सच क्या है? इस पर भी सरकार को मंथन और चिंतन करना चाहिए। दरअसल उद्योगपति महेन्द्र गोयनका और उनकी पत्नी मीनू गोयनका पर बस्तर में 120 एकड़ जमीन कब्जा करने का आरोप है। इसको लेकर कांग्रेस ने जांच समिति का गठन किया है। जांच दल को मौके पर जाने से प्रशासन ने रोक दिया। खैर जांच दल मौके पर नहीं पहुंच पाया तो पीडि़त ही कांग्रेसी नेताओं के पास पहुंचकर अपनी व्यथा सुनाई। कहा जा रहा है कि जांच समिति इसके लिए भैरमगढ़ थाने भी पहुंचे, जहां उन्होंने महेन्द्र गोयनका और उनकी पत्नी मीनू गोयनका पर अपराध दर्ज करते हुए ग्रामीणों की जमीन वापस दिलाने की मांग की। वास्तव में यदि यह घटना सच है? तो बस्तर अंचल में प्रशासन को जमीनों की लूट से बचाने के लिए अलग से दिशा-निर्देश जारी किए जाने चाहिए, वरना आने वाले दिनों में बस्तर की जमीन लूटने व्यापारियों की होड़ लग जाएगी।
तो क्या डांगी पर गाज गिरेगी?
आईपीएस रतनलाल डांगी पर कथित यौन उत्पीडऩ के आरोप के बाद सरकार ने उन्हें 14 दिन बाद प्रशासन अकादमी से हटा दिया है। दरअसल इसे एक संकेत माना जा सकता है कि सरकार ऐसे आरोपों को लेकर सख्त है। और संभव है कि आईपीएस रतनलाल डांगी पर इसके आलावा भी अन्य कार्रवाई भी जल्द की जाए। कहा जा रहा है कि आईपीएस आनंद छाबड़ा के नेतृत्व में जल्द ही डिजिटल साक्ष्य लिया जाएगा। इसके बाद महिला से भी पूछताछ होगी। मतलब साफ है कि रतनलाल डांगी की मुश्किलें आगे और बढऩे वाली हैं। इसके पहले रतनलाल डांगी की मुख्यालय को भेजी गई चिट्ठी ने सबको हैरान कर दिया था। रतनलाल डांगी की चिट्ठी और मीडिया रिपोर्टों को पढ़कर ऐसा लग रहा था कि डांगी खुद पीडि़त हैं। पर सवाल यह उठता है कि इतने ताकतवर होने के बावजूद डांगी आखिर सालों तक प्रताडऩा क्यों सहते रहे? संभव है जांच दल को भी आम आदमी की तरह डांगी की स्क्रिप्ट पर ऐतवार न हो? जिसके कारण डांगी पर कार्रवाई का सिलसिला शुरु कर दिया गया है।
साव पर भ्रष्टाचार के आरोप और कांग्रेसी नेताओं की खामोशी
भाजपा सरकार के दो साल पूरे होने को है, इस दरम्यान उपमुख्यमंत्री अरुण साव विवादों से दूर रहे। वहीं बीते दो साल में दूसरे उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा को विपक्षी दल कानून व्यवस्था को लेकर पल-पल घेरते नजर आई। लेकिन अब उपमुख्यमंत्री अरुण साव का नाता भ्रष्टाचार से जुड़ गया है। हालांकि कांग्रेस अरुण साव को लेकर शांत है। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज अभी तक उनके कथित भ्रष्टाचार के आरोप पर बयानबाजी करने से बचते नजर आ रहे हैं। दरअसल अरुण साव पर आरोप है कि वह अपने पारिवारिक कार्यक्रम में सरकारी मद से तकरीबन 1 करोड़ की राशि का भुगतान किया है। आरोप सच हैं या झूठ? फिलहाल यह जांच का विषय है। लेकिन आरोपों के बीच अरुण साव की साख पर बट्टा लगते दिख रहा है। दबे जुबान अरुण साव पर लगे आरोपों की जगह-जगह चर्चा हो रही है। वहीं भ्रष्टाचार पर कांग्रेसी नेताओं की खामोशी भी उन्हें कटघरे पर खड़ी कर रही है। कहा जा रहा है कि विपक्ष में रहते हुुए भाजपा ने भ्रष्टाचार को राज्य का बड़ा मुददा बनाया था, तो फिर कांग्रेस अब भ्रष्टाचार पर खामोश क्यों हैं?
आखिर जनप्रतिनिधियों की पीड़ा कौन सुनेगा?
जनता की पीड़ा सुनने के लिए जनप्रतिनिधि होते हैं। लेकिन जनप्रतिनिधियों की पीड़ा आखिर कौन सुनेगा? दरअसल राज्य भाजपा के नेता इन दिनों जिले के कलेक्टरों पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। पर इस पर कोई अमल होते दिख नहीं रहा। ननकीराम कंवर का मामला जगजाहिर है, ननकीराम कंवर ने कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत पर कई गंभीर आरोप लगाये थे, उन्होंने राजधानी रायपुर में कलेक्टर को हटाने हंगामा भी किया था पर परिणाम जस के तस है। अब ताजा मामला बेमेतरा जिला का है। बेमेतरा विधायक दीपेश साहू और अन्य जनप्रतिनिधियों ने कलेक्टर पर गंभीर आरोप लगाते हुए जिले में आयोजित राज्योत्सव का बहिष्कार कर दिया। अब कारण क्या है? सच क्या है? फिलहाल यह जांच का विषय है। लेकिन बार-बार जनप्रतिनिधियों के प्रति कलेक्टरों का यह रवैया अनेकों सवाल खड़ा करता है। आखिर राज्य में भाजपा की सरकार होने के बावजूद उनके विधायक और नेता अपने आप को इतने उपेक्षित क्यों मान रहे हैं? आखिर जनप्रतिनिधियों की पीड़ा कौन सुनेगा? इस पर पार्टी को मंथन और चिंतन करना चाहिए।
संविदा पर उठ रहे सवाल
राज्य सरकार में काम करने के लिए अफसरों की कमी नहीं है। लेकिन यहाँ सत्ता की मलाई खाने वाले अफसर रिटायर होने के बाद भी संविदा की भी मलाई खाने को आतुर हैं। हाल ही में एक सीसीएफ स्तर के आईएफएस अफसर ने संविदा के लिए अप्लाई किया है। हालाँकि रिटायरमेंट के ठीक पहले उन पर कई गंभीर आरोप लगे हैं। सीसीएफ स्तर के यह अफसर अब अपना उत्तर-प्रदेश कनेक्शन जमाने के जुगाड़ में हैं। इनके संविदा की फाइल इन दिनों मंत्रालय में सरपट दौड़ रही है। हालांकि वन विभाग में सीसीएफ स्तर के अफसरों की कमी नहीं है। इसके बावज़ूद विभाग में उपकृत करने का खुला खेल चल रहा हैं।
राज्यपाल की सक्रियता की चर्चा
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रमेन डेका शुरू से ही काफी सक्रिय हैं। वह राज्य का लगातार दौरा भी करते रहे हैं। हाल ही में राज्यपाल ने वन एवं परिवहन मंत्री को तलब किया, और ट्रैफिक व्यवस्था समेत स्कूल और सरकारी भवनों के पास पेड़ लगाने के निर्देश दिए। दरअसल वन एवं परिवहन मंत्री केदार कश्यप रायपुर के प्रभारी मंत्री भी हैं। राज्यपाल ने केदार से मौजूदा हालात की चर्चा की और उन पर जल्द अमल करने की बात कही है। हालांकि इसके पहले भी राज्यपाल रमेन डेका ने रायपुर जिला प्रशासन की जलसंचय को लेकर क्लास ली थी, जो उस समय चर्चा का विषय बना हुआ था। निश्चित ही छत्तीसगढ़ के राज्यपाल राज्य के गंभीर मुद्दों पर निगाहें बनाकर रखते है और आवश्यकता पडऩे पर संबंधित की क्लास लेने में भी पीछे नहीं हटते, जो इस समय चर्चा का विषय बना हुआ हैं।
अधिकतर उद्योग बिके, जनता उतरी सड़क पर
छत्तीसगढ़ में एक बार फिर अदाणी समूह के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गये हैं। दरअसल पिछले कुछ वर्षों में अदाणी समूह ने यहाँ से अधिकतर व्यवसाय में अपनी एंट्री की है। सीमेंट, पॉवर प्लांट, खनिज, कंस्ट्रक्शन आदि में अदाणी समूह का छत्तीसगढ़ में धीर-धीरे एकक्षत्र राज होते जा रहा है। राज्य की अधिकतर सीमेंट कंपनियाँ बिक चुकी हैं। संभवत: इसलिए अब यहाँ कि जनता इस समूह के खिलाफ सड़क पर उतर गई है। रायगढ़ में 11 नवम्बर को अदाणी समूह की प्रस्तावित कोयला खदान की जनसुनवाई होनी है। जिसके विरोध में यहाँ पब्लिक सड़क पर उतर गई है। दरअसल यह खदान पहले अंबुजा सीमेंट की थी जिसे अदाणी ने खऱीद लिया है। हालांकि प्रशासन ने अभी तक जनता की एक नहीं सुनी, जिसके कारण इन्हें अपनी रातें सड़क पर गुजारनी पड़ रही है। बहरहाल देखना यह है कि जनता जनार्दन की मांग को प्रशासन सुनता है, या निर्धारित समयावधि में सुनवाई करके यह खदान अदाणी समूह को सौंप दी जाएगी।
editor.pioneerraipur@gmail.com