सक्ति- शक्ति शहर के प्रतिष्ठित मित्तल परिवार द्वारा 17 सितंबर से प्रारंभ झुलकदम रोड में अपने निवास में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन कथा वाचक आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने श्री कृष्ण जन्मोत्सव के सुंदर प्रसंग की प्रस्तुति दी, तथा इस अवसर पर काफी संख्या में धर्म प्रेमी मौजूद रहे, आचार्य जी ने कहा कि संसार के सभी प्राणियों का जन्म अपने-अपने कर्मों के अनुसार होता है किंतु भगवान का अवतार तो करुणा वश होता है,धर्म की स्थापना और रक्षा तथा अधर्म का नाश करने के लिए वह अजन्मा होकर के भी धरती पर अवतार लेते हैं
श्री कृष्ण जन्म के सुंदर अवसर पर आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने बताया कि 28 में द्वापर में भगवान श्री नारायण संपूर्ण ऐश्वर्य तथा अद्भुत कलाओं के साथ मैया देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र बनकर अवतरित हुए । श्री कृष्ण साक्षात भगवान है वह जगतगुरु है और वही कलयुग में संपूर्ण प्राणियों के कल्याण के लिए अक्षरों और शब्दों के रूप में श्रीमद् भागवत महापुराण में समाए हुए हैं, यह उद्गार शक्ति नगर में आयोजित संगीत में श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने श्री कृष्णा प्राकट्य एवं लीलाओं का वर्णन करते हुए प्रकट किया,आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने श्रोताओं को बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए बताया की श्री कृष्ण की संपूर्ण लीलाओं में मानव जीवन के लिए अद्भुत प्रेरणा और संपूर्ण विश्व के लिए संदेश छिपा हुआ है । यमुना के कालीदाह से कालिया नाग का दमन कर उसे रामनक द्वीपभेजना यमुना के जल के विषाक्त अर्थात प्रदूषण को दूर करना है। गोवर्धन धारण अर्थात गिरिराज की पूजा करवाना सारे संसार को संदेश देना है की प्रकृति की पूजा और रक्षा दोनों ही करो,क्योंकि जब तक धरती पर हरियाली रहेगी तब तक ही मनुष्य और अन्य प्राणियों का जीवन इस संसार में सुखी रह सकता है,भगवान ने ब्रज वासियों को इंद्र की पूजा ना करवाते हुए कहा कि धरती पर वर्षा हरी भरी वादियों और पर्वत मंडलों के कारण होती है , इसलिए गिरिराज की पूजा करो। वही चीर हरण लीला करते हुए स्त्रियों को अपना आंचल संभालने और पुरुषों को अपना आचरण संभालने की दिव्य प्रेरणा प्राप्त होती है
आचार्य राजेंद्र जी महाराज द्वारा पूतना वध , उखल बंधन , गौगौचारण , गोवर्धन लीला तथा महारास लीला का सरस वर्णन किया गया और उन्होंने यह भी कहा कि भगवान की यह दिव्य लीला जो श्रीमद् भागवत के दशम स्कंद पूर्वार्ध में अध्याय क्रमांक 29 से लेकर 33 तक पांच अध्याय में वर्णन किया गया है इसे समझने के लिए दिव्या दृष्टि और दिव्या श्रवण के साथ प्रत्येक श्रोता को गोपी बनना पड़ेगा। अर्थात जो अपनी इंद्रियों से श्री कृष्ण रास का सतर्कतापूर्वक पान कर सकें वही भगवान की गोपियों है। रास किसी देह की लीला नहीं बल्कि यह आत्मा का परमात्मा से मिलन का तादात्म्य भाव है,चौथी दिन की कथा का श्रवण लाभ अनेक ग्रामों एवं नागरिकों ने जीवंत झांकियां के साथ प्राप्त किया