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साय, सांय-सांय
सीनियर आदिवासी नेता नन्दकुमार साय इन दिनों सांय-सांय पार्टी छोड़ रहे हैं। पहले उन्होंने सांय से भाजपा छोड़ दी। बाद में कांग्रेस भी नंदकुमार ने सांय -सांय छोड़ दी। भाजपा ने नंदकुमार साय को प्रथम नेता प्रतिपक्ष रहने का गौरव दिया, विधायक बनाया, सांसद बने, अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। पर उनको और भी कुछ सांय-सांय बनना था, नतीजन वह कांग्रेस में सांय से चले गए। कांग्रेस में जाते ही उन्हें सांय-सांय सीएसआईडीसी अध्यक्ष बना दिया गया। यह बात अलग है कि नन्दकुमार साय यदि इतना सांय-सांय निर्णय नहीं लेते, तो मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का शायद ही सांय-सांय नम्बर लग पाता।
खास विरादरी
सत्ता का चरित्र ही ऐसा होता है जिसमें कुछ विशेष लोग ही घुल मिल पाते हैं। इस दौर में सत्य सुुनने, कहने, लिखने और दिखाने का साहस कम ही लोग कर पाते हैं। खैर ऐसा करने और कहने वाले लोग एक दौर के बाद सत्ता से दूर हो जाते हैं। इसके विपरीत एक ऐसी विरादरी होती है जो हमेशा यही कहती है कि ‘भैया आप तो, आप हैं, सर आपका जवाब नहीं।’ वास्तव में ऐसे लोगों की संख्या अब हर क्षेत्र में बढ़ रही है। इस तरह के लोग विशेष गुणों के माध्यम से सत्ता के खास बन बैठते हैं। इनका काम ही सत्ता का गुणगान करना होता है। इस दरम्यान बड़ा नुकसान पार्टी और सत्ता चलाने वाले नेताओं का होता है। दरअसल में यह विरादरी इतनी सफाई से महिमामंडित करते हैं कि राजनेता या दल वास्तविकता से कोसों दूर हो जाते हैं। शायद इसी महिमामंडल के कारण 2018 के विधानसभा चुनाव में रमन सिंह जनता का मूड नहीं भांप पाये और भाजपा 15 सीटों पर सिमट गई। और 2023 के विधानसभा चुनाव में देश के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री कहलाने वाले भूपेश बघेल ने भी शायद इसी के चलते सत्ता गवां दी। परिणाम कुछ भी हो लेकिन यह खास विरादरी सत्ता के करीब पहुंच ही जाती है। विष्णुदेव साय और नया मंत्रिमंडल इस खास विरादरी से भला कैसे बच पायेंगे।
चंन्द्राकर, मूणत, अमर और मोहिले बाहर क्यों?
यह मोदी मैजिक है, यहां कुछ भी संभव है। अजय चंन्द्रकार, राजेश मूणत, पुन्नुलाल मोहिले और अमर अग्रवाल जैसे नेताओं को बाहर का दरवाजा क्यों दिखा दिया गया? इस बात की इन दिनों जमकर चर्चा है। इन नेताओं को साय मंत्रिमण्डल में जगह नहीं मिली। वास्तव में ये सब मोदी मैजिक में ही संभव है। अजय चंन्द्रकर ऐसे नेता हैं जिनसे विपक्ष में रहते हुए भी राज्य के अधिकारी झिझकते रहे। चंन्द्राकर पिछले पांच साल अक्रामक रहे। अजय चंन्द्राकर ने सदन के भीतर, तो राजेश मूणत ने सदन के बाहर आवाज बुलंद की। मोहिले और अमर अपने स्वाभाव अनुरुप शांति से बैठे रहे। राजेश मूणत को टिकट देने के लिए ही भाजपा का शीर्ष नेतृत्व तैयार नहीं था, इसलिए उनके मंत्री बनने की फिलहाल किसी को उम्मीद नहीं थीं, हुआ भी कुछ ऐसा ही। लेकिन अजय, अमर और मोहिले को क्यों नहीं शामिल किया गया? फिलहाल इस पर खूब चर्चा हो रही है। दरअसल में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इन्हीें नेताओं में से कईयों को लोकसभा का प्रत्याशी बनाने के मूड में दिख रहा है। खैर अब देखना यह होगा कि अजय, अमर, मोहिले को भाजपा कुछ और जिम्मेदारी सौंपती है, कि सिर्फ विधायक बनकर पांच साल गुजारने होंगे।
सीबीआई की एन्ट्री
पांच साल तक राज्य में सीबीआई बैन रही, लेकिन भाजपा के तेवर देख यह माना जा रहा है कि एक बार फिर राज्य में जल्द सीबीआई की एन्ट्री होने जा रही है। वैसे भी मोदी और अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने पर भ्रष्टाचारियों को टांग देने और उल्टा लटकाने की बात कही है। उस पर अमल होने के पूरे आसार दिख रहे हैं। दरअसल में भाजपा ने पीएससी घोटाले की जांच कराने की बात मोदी की गारंटी यानि की अपने घोषणा पत्र में कही है। अब उसका समय आ चुका है, यदि भाजपा पीएससी घोटाले की जांच नहीं कराती तो युवा मतदाताओं का भरोसा जीत पाना मुश्किल होगा। इसलिए लोकसभा चुनाव के पहले राज्य में सीबीआई फिर एन्ट्री करने जा रही है। सीबीआई के एन्ट्री करते ही ईडी की राह भी आसान होने की सम्भावना दिख रही है। अभी तक सीबीआई बैन होने के कारण कोल घोटाला, शराब घोटाला, महादेव सट्टा ऐप डीएमएफ पर विस्तृत जांच नहीं हो पा रही थी। बैन हटते ही ईडी इन मामलों को भी सीबीआई को सौंप सकती है।
पुलिस को रिचार्ज करना भाजपा के लिए चुनौती
छत्तीसगढ़ की पुलिस पर पिछले सालों में जो आरोप लगाए जाते रहे हैं, उनको देखते हुए भाजपा के लिए पुलिस को रिचार्ज करना एक बड़ी चुनौती है। विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने एसपी से लेकर हवलदार तक के रेट लिस्ट होने की बात कही थी। भाजपा नेताओं द्वारा यह कहा जाता रहा है कि हर जिले का रेट है, हर पद की बोली लगती है। ऐसे में पुलिस को अब कैसे रिचार्ज किया जाएगा? यह अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। कानून व्यवस्था पर भाजपा हमेशा सवाल खड़े करते रही है। भाजपा के लिए यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा भी रहा। अब क्या भाजपा इस दिशा में सुधार करने जा रही है? कि सत्ता बदलते ही सब खुद ब खुद ठीक हो गया। यदि वास्तव में पद बिकते थे तो इससे बचने के लिए अब भाजपा क्या रणनीति अपनाएगी? खैर अभी तक भाजपा नेताओं के अक्रामकता को देखकर यह जरुर कहा जा सकता है कि मंत्रीमडल के गठन के बाद सबसे पहले पुलिस विभाग में सर्जरी होने जा रही है।
खटक रही विजय की लोकप्रियता
विजय शर्मा का उपमुख्यमंत्री बनाना कुछ खास लोंगों को खटक रहा है। मोदी और शाह के गुड बुक में शामिल अरुण साव और विजय शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन यह कुछ विरादरी को रास नहीं आ रहा है। अब यह खास विरादरी उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा के पीछे लग गयी है। शायद यहीं कारण है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उपमुख्यमंत्री अरुण साव से जादा विजय शर्मा को घेरने की कोशिश की जा रही है। लेकिन मोदी और शाह ऐसे नेताओं को ही पसंद करते हैं। विजय ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए खड़े होने का साहस दिखाया। जेल गए, यह मोदी और शाह भली-भांति जानते हैं। शायद इसीलिए विजय शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया गया। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि विजय शर्मा के साहस के कारण ही पहली बार छत्तीसगढ़ में भी हिन्दुत्व का मुद्दा कारगर साबित हुआ है। छत्तीसगढ़ के इतिहास को देखा जाए जो विजय शर्मा एकमात्र ऐसे नेता है जिनकी छवि कट्टर हिन्दुवादी नेता के रूप में बनकर उभरी है। ऐसे में धर्म नगरी कवर्धा की जनता और मोदी-शाह विजय के साथ आगे भी ताकत से खड़े रहेगें। फिर इस खास विरादरी के खटकने से विजय को भला क्या फर्क पड़ता है।
ओपी से ओपी सर बने चौधरी
ओपी चौधरी एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिनके राजनीतिक दल में शामिल होने से ही तय हो गया था कि वह एक दिन मंत्री बनेंगे। राजनीति में अमूमन ऐसा कम होता है कि जब किसी नेता का भविष्य शीशे की तरह साफ दिखाई देता है। यह बात अलग है कि 2018 में न ही ओपी को जीत मिली, न ही भाजपा राज्य में बहुमत जुटा पाई, इसलिए ओपी का यह सफर 1 साल की बजाए 6 साल का हो गया। खैर 22 दिसम्बर को वह खास दिन आ गया जब ओपी चौधरी ने राज्य के मंत्री के रुप में शपथ ली। ओपी चौधरी की इच्छा शक्ति बताती है कि वह रुकने वाले, ठहरने वाले लोगों में से नहीं हैं। राज्य भाजपा में आखिरकर ओपी की स्वीकार्यता हो चुकी है। अब दिग्गज नेता किनारे कर दिए गए हैं। ओपी चौधरी अब विधायक ही नहीं बल्कि मंत्री हैं। ऐसे में ओपी चौधरी से सीनियर रहे अफसरों को भी अब ओपी सर कहकर सम्बोधित करना पड़ेगा।
सुबोध सिंह की वापसी जल्द
सीनियर आईएएस सुबोध कुमार सिंह की जल्द ही राज्य में वापसी होने जा रही है। सुबोध कुमार सिंह पीएस टू सीएम बन सकते हैं। हलांकि अभी आईएएस दयानंद पांडे को सीएम का सचिव बनाया गया है। दयांनद के साथ ही सुबोध कुमार का नाम इन दिनों सुर्खियों में है। दरअसल में सुबोध के पास सीएम सचिवालय में काम करने का लंबा अनुभव है। लंबे समय तक काम करने के बाद भी सुबोध सरल और बेदाग बने रहे। सुबोध सिंह रायगढ़ कलेक्टर भी रहे। इस दौरान सीएम विष्णुदेव साय से सुबोध की अच्छी टयूनिंग रही। वैसे तो सुबोध की प्रतिनियुक्ति खत्म होने में अभी 4 से 5 माह बाकी है। लेकिन यदि सीएम चाहेंगे तो सुबोध की अभी भी वापसी हो सकती है।
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