Thethinkmedia@raipur
संदूक से निकला भाजपा का कट-पेस्ट वाला घोषणा पत्र
न न करते-करते आखिरकर भाजपा ने संदूक से निकालकर कट-पेस्ट वाला घोषणा पत्र जारी कर ही दिया। हम यहां भाजपा के घोषणा पत्र को कट-पेस्ट वाला घोषणा पत्र इसलिए कह रहे हैं क्योंकि भाजपा ने कर्जमाफी को छोड़कर लगभग वही घोषणाएं की है, जो कांग्रेस ने पहले ही कर दी है। हां यह बात जरुर है कि बहुत सी योजनाओं में राशि का कुछ-कुछ अन्तर देखा जा सकता है। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में यह स्वीकार कर लिया है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता पाना है तो धान और किसान जरुरी है। शायद यही कारण है कि 2018 में धान और किसान को अनदेखा करने वाले मोदी और शाह को अन्तत: विवस होकर छत्तीसगढ़ में 3100 रुपये प्रति क्विंटल में धान खरीदी का ऐलान करना पड़ा। हांलाकि भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में किसान, मजूदर के साथ-साथ महिलाओं को भी साधने का प्रयास किया है। पहली बार राज्य में घोषणा पत्र को लेकर प्रतिस्पर्धा देखने को मिली, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 3000 रुपये में धान खरीदी की बात कही, तो भाजपा ने 3100 कर दिया। वहीं कांग्रेस ने प्रति एकड़ 20 क्विंटल तक धान खरीदी करने की बात की, तो भाजपा ने 21 क्विंटल कर दिया। कुल मिलाकर भाजपा के घोषणा पत्र में कुछ भी नया देखने को नहीं मिला। ऐसे में आम मतदाता का झुकाव भाजपा की ओर कितना होगा, यह तो निकट भविष्य में ही पता लग सकेगा। फिलहाल भाजपा के इस घोषणा पत्र को आमजन द्वारा कट-पेस्ट वाला घोषणा पत्र कहा जा रहा है।
कांग्रेस का 70 पार को दावा खोखला
2018 में अपार बहुमत पाने के बाद राज्य में कांग्रेस अति आत्मविश्वास में नजर आ रही है, शायद यही कारण है कि कांग्रेसी नेता 70 पार का दावा कर रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस का यह दावा खोखला दिखाई दे रहा है। राज्य में 2018 की तरह कोई लहर नहीं है, और न ही इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास मतदाताओं को कुछ नया देने के लिए है। नतीजन इस चुनाव में हर एक सीट पर मुकाबला काफी नजदीकी होने के आसार हैं। ऐसे में पार्टी के रणनीतिकारों और प्रबंधकों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है। 2023 के इस चुनाव में एक-एक सीटों पर जोड़-तोड़ का गणित अभी से चालू हो गया है, जिससे नए समीकरण बनने की बात को भी इनकार नहीं किया जा सकता। फिलहाल कांग्रेस का यह अति आत्मविश्वास किसी भी लिहाज से उचित नहीं। ऐसे में कांग्रेस का 70 पार का दावा कितना सच होगा, इसका खुलासा निकट भविष्य में हो जाएगा।
दिल्ली दरबार के भरोसे भाजपाई
अब तक के इतिहास में पहली बार भाजपा गैर-प्रबंधकीय तरीके से चुनाव लड़ रही है। भाजपा के तमाम नेता एक के बाद एक गलती दोहराते नजर आ रहे हैं, इससे यह माना जा सकता है कि राज्य भाजपा के पास कोई विजन नहीं है। राज्य भाजपा के नेता दिल्ली दरबार के भरोसे हाथ सिकोड़कर बैठे हैं। दिल्ली वालों का भरोसा राज्य से इस कदर टूट चुका है कि वह छत्तीसगढ़ के पत्रकारों को भी किनारे करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। कहते हैं कि भाजपा ने घोषणा पत्र जारी करते समय दिल्ली से पत्रकारों को बुलाया था। भाजपा का राज्य के पत्रकारों पर भी तनिक भरोसा नहीं रहा। घोषणा पत्र जारी करते समय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर भाजपा कार्यालय में पहली पंक्ति में दिल्ली के पत्रकार बैठाए गए थे, वहीं छत्तीसगढ़ के पत्रकार किनारा पकड़ते दिखे। अब तो लोग भी कहने लगे कि भाजपाई दिल्ली दरबार के भरोसे बैठे हुए हैं।
कई स्टार प्रचारकों को अब तक मैदान में नहीं उतार पाई भाजपा
7 नवम्बर को पहले चरण के 20 सीटों पर मतदान होने हैं, लेकिन भाजपा अपने कई स्टार प्रचारकों को भी अब तक मैदान में नहीं उतार पाई है। अभी तक देखा जाए तो मोदी, शाह, हिमंत विस्वा शर्मा, रविशंकर प्रसाद, देवेन्द्र फणनवीस और कल योगी आदित्यनाथ बस ही चुनावी सभा में दिखाई दे रहे हैं। राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, स्मृति ईरानी जैसे कई नेताओं को भाजपा अब तक मैदान में उतार नहीं पाई है। भाजपा ने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है, जिसमें से सिर्फ 5-7 नेता ही अब तक दिखाई दे रहे है। राज्य के 20 सीटों पर 7 नवम्बर को मतदान होने हैं, ऐसे में भाजपा अपने स्टाार प्रचारकों को भी मैदान में उतार पाने में विफल होते दिख रही है।
हिंदुत्व का प्रयोगशाला बना कवर्धा
छत्तीसगढ़ का कवर्धा हिंदुत्व का प्रयोगशाला बन गया है। यहां पर कांग्रेस की ओर से मंत्री मोहम्मद अकबर प्रत्याशी हैं, वहीं भाजपा ने फायरब्रान्ड नेता विजय शर्मा को मैदान में उतारा है। जिसके कारण कवर्धा में भी स्थिति 2018 से जुदा देखने को मिल सकती है। भाजपा ने कवर्धा को हिंदुत्व का नया प्रयोगशाला बना दिया है, जिसके लिए उत्तर प्रदेश से भगवाधारी नेता सीएम योगी आदित्यनाथ की सभा कराई गई है। योगी को सुनने के लिए कवर्धा में जमकर उत्साह दिखाई दिया। ऐसे में कवर्धा हिन्दुत्व का नया प्रयोगशाला बनते दिख रहा है।
ब्यूरोक्रेसी खामोश
विधानसभा चुनाव के दौरान पहली बार ऐसा देखा जा रहा है कि राज्य की ब्यूरोक्रेसी एकदम मौन है। पिछले चुनावों के दौरान ज्यादातर अफसर पहले से ही गणित लगाकर अपना-अपना जुगाड़ जमाना शुरु कर देते थे। लेकिन इस विधानसभा चुनाव में हर जगह, हर अफसर यह कहते नजर आ रहे हैं कि मामला बहुत करीबी होगा, फिलहाल ऊंट किस करवंट बैठेगा यह कहा नहीं जा सकता। ठीक इसके विपरीत 2018 के चुनाव में अफसरों ने पहले ही कांग्रेस की सरकार बनने की सम्भावना से इनकार नहीं किया था। राज्य के हर सीट पर मुकाबला करीबी होते देख ब्यूरोक्रेसी खामोश है।
editor.pioneerraipur@gmail.com