VEDIO: कपिलेश्वर के 7 मंदिरो के समूह में एक में 6 फीट विशाल प्राचीन गणेश जी की प्रतिमा है स्थापित, और मुख्य महादेव के मंदिर के दाए बाए में भी गणेश जी है विराजमान-

बालोद- छत्तीसगढ़ में कई ऐसी ऐतेहासिक धरोहर है, जिसकी ख्याति देशभर में है। जिनकी मान्यताएं, धारणाएं, इतिहास बहुत कुछ कहता है। ऐसे ही एक धरोहर छत्तीसगढ़ के बालोद में भी है। जिला मुख्यालय बालोद में स्तिथ कपिलेश्वर मंदिर अपने आप में कई सारे रहस्यों को छुपाया हुआ हैं। 11वीं-14वीं शताब्दी की शिवलिंग, भगवान गणेश की मूर्तियां आज भी शोभायमान है। यह मंदिर नागवंशी गोड़ राजाओं के द्वारा निर्मित है। यह एक पुरातात्विक धरोहर भी है। यहां 7 मन्दिरों का समूह है। जिसमें 6 प्राचीन मंदिर के पट द्वार पर गणेश जी की प्रतिमा अंकित है। साथ ही गणेश जी की 6-6 फीट की दो चतुर्भुज प्रतिमा और साढ़े 5 फिट की एक प्रतिमा स्थापित हैं। कपिलेश्वर मंदिर (जहां शिवलिंग स्थापित है) के दाए व बाए भाग में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित है। बाएं भाग में स्थापित चतुर्भुज गणेश जी की प्रतिमा 6 फीट की है। जिसके पीछे वाले हिस्से में चक्र, जनेऊ, रुद्राक्ष, लंगोट, बाजूबंध और सामने में मोदक अंकित है। यहां की पहचान देशभर में कपिलेश्वर शिव मंदिर समूह एवं बावड़ी छत्तीसगढ़ राज्य के रूप में होती है। वैसे तो यहां के स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से संरक्षण प्राप्त है। लेकिन जनसेवा समिति के पदाधिकारी व सदस्य यहां जरूरी सुविधाएं जुटा रहे हैं।

गर्भगृह में गणेशजी की 6 फीट की प्रतिमा स्थापित-
यहां का दूसरा मंदिर भगवान गणेश का है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान गणेश की विशाल 6 फीट की प्रतिमा स्थापित है। जानकारों की माने तो चर्तुर्भुजी गणेश के ऊपरी दायें हाथ में परशु हैं तथा निचला दायां हाथ अभय मुद्रा में है। ऊपरी बांये हाथ में दांत तथा निचला हाथ में मोदक पात्र है। गणेश जी का उदर भाग खंडित है। इस मंदिर परिसर के अन्दर निर्मित सभी छहों मंदिर के द्वार शाखा के सिरदल पर अंकित चतुर्भुजी गणेश प्रतिमाएं तथा गणेश मंदिर में स्थापित विशाल गणेश प्रतिमा की आकृति लगभग एक समान है। केवल गणेश मंदिर के सिरदल में अंकित प्रतिमा अस्पष्ट तथा अनगढित है। इस मंदिर का शिखर ऊपर की ओर संकरा होता गया है। मंदिर का शिखर पीड़ा देवल प्रकार में निर्मित है। छत्तीसगढ़ में भगवान गणेश की कई प्रतिमाएं मिलती है। लेकिन अधिकांश प्रतिमाएं खुले में या किसी मंदिर के मंडप में स्थापित प्राप्त होती है। लेकिन ऐसे मंदिर बहुत कम ही मिलते हैं जो सिर्फ भगवान गणेश को समर्पित है।

हर दरवाजे के ऊपर गणेश की मूर्तियां-
यह प्रत्येक मंदिर के दरवाजे के ऊपर गणेश की मूतियां अंकित है। मंदिरों के शिखर भाग पर नागों की आकृतियां अंकित है। अनुमान है कि यहां पर भी स्थानीय नागवंशी राजाओं का शासन रहा होगा। किवंदती है कि इनके शासन काल में ही इन मंदिरों का निर्माण होना माना गया है। यहां भगवान राम का मंदिर गर्भगृह और मंडप में विभक्त है।

छोटा गणेश की प्रतिमा भी चतुर्भुजी है-
कपिलेश्वर के दाई ओर छोटा गणेश की प्रतिमा भी चतुर्भुजी है। दायें ऊपरी हाथ में परशु तथा अक्षमाल युक्त निचला हाथ अभय मुद्रा में है। बायें ऊपरी हाथ में कमलकलिका तथा निचले हाथ में मोदक पात्र धारण किए है। माथे में चौड़ा हार बंधा है। सुण्ड का मध्य भाग खण्डित हैं। दोनों हाथों तथा पैरों में कड़ा एवं गले में यज्ञोपवीत धारण किये हैं। गणेश का थुलथुल उदर बायें के ऊपर अवस्थित है। प्रतिमा करीबन साढ़े 5 फीट हैं। इस मंदिर परिसर में दो अन्य गणेश की विशाल प्रतिमायें, सती स्तंभ, हनुमान, पंचपाण्डव तथा कुंती, द्रौपदी युक्त शिला पटट एवं उमामहेश्वर प्रतिमाएं आदि दर्शनीय हैं।

स्मारक स्थल स्थानीय सांस्कृतिक आस्था का केन्द्र है-
बालोद नगर के पश्चिमी किनारे पर एक प्राचीन विशाल तालाब निर्मित है। जिसकी उत्तरी मेड़ पर एक ऊंची प्रस्तर निर्मित भित्ति स्थित है। जो किसी किले की दीवार मालूम पड़ती है। इस दीवार के पूर्वी और पश्चिमी दिशा में दोनों तरफ लगभग 1 फर्लांग की दूरी पर भग्नावशेष विद्यमान हैं। जो मराठा कालीन निर्मित प्रतीत होते हैं। यहीं पर तालाब की मेड़ में एक खुले संग्रहालय की स्थापना जिला पुरातत्व संघ, दुर्ग तथा नगरपालिका बालोद के द्वारा वर्ष 1990-91 में की गई थी। जिसके अंतर्गत लगभग 90 प्राचीन प्रतिमायें प्रदर्शित की गई हैं। कपिलेश्वर मंदिर समूह के सभी स्मारक मूलत: शैव मंदिर रहे हैं। इन मंदिरों का निर्माण स्थानीय नागवंशी शासकों के राजत्व काल में 11-14वीं शताब्दी ई में करवाया गया होगा। छ्त्तीसगढ में परवर्ती काल के स्थापत्य कला के उदाहरणों में से कपिलेश्वर मंदिर समूह महत्वपूर्ण है। राज्य संरक्षित यह स्मारक स्थल स्थानीय सांस्कृतिक आस्था का केन्द्र है।

गणेश चतुर्थी में होती है भव्य पूजा-
वार्ड पार्षद एवं कपिलेश्वर मंदिर संरक्षक मोहन कलिहारी बताते है कि कपिलेश्वर मंदिर यहां का ऐतेहासिक मंदिर है,और ये माना जाता है कि 11वी से 14वी शताब्दी के बीच का निर्मित है। 7 मंदिरों का समूह है, जिसमें 6 से साढ़े 6 फ़ीट की तीन प्राचीन मूर्तिया गणेशजी की है। गणेश जी चूंकि सनातन धर्म में प्रथम पूज्यनीय होते हैं। तो इनका स्पष्ट उदाहरण यहां दिखता है कि सभी मंदिरों के मुख्य द्वार के ऊपर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की गई है, इससे स्पष्ट होता है कि उस समय में भी गणेश जी प्रथम पूज्यनीय रहे है। और आज भी गणेश चतुर्थी के समय यहां भव्य पूजा करते है। क्योंकि इतिहास के धरोहर में इस मंदिर का नाम लिखा हुआ हैं। पुरातत्व विभाग के केयरटेकर विनोद कुमार साहू ने बताया कि यहां कुल 7 मंदिरों का समूह है इसको पुरात्तव विभाग द्वारा देखरेख में रखा गया है। गर्भगृह में सिर्फ दो ही मूर्तियां है, एक गणेश जी की और शंकर जी की। संरक्षण के लिए बारिश में समय मे जैसे काई जम जाता है, तो पुरातत्व विभाग से केमिकल वाश किया जाता है।

कपिलेश्वर विकास समिति करती है देखरेख-
अध्यक्ष चेतन सिंह नागवंशी ने बताया कि कपिलेश्वर मंदिर लगभग 11वीं सदी का निर्मित मंदिर है। और ये नागवंशी गोड़ राजाओं के द्वारा निर्मित है। जिसमें हर मंदिर के मुख्य द्वार पर गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्ति बनी हुई है। एक मन्दिर में गणेश जी की विशालकाय मूर्ति स्थापित हैं। और जो मुख्य मंदिर कपिलेश्वर महादेव के मंदिर के दाएं और बाएं तरफ भी गणेश जी की विशाल प्रतिमा स्थापित हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि पुराने राजा महाराजा के समय गणेश जी की पूजा किया करते थे। अब इसका देखरेख कपिलेश्वर विकास समिति के माध्यम से होता है। हम चाहते है कि इस ऐतेहासिक धरोहर का विकास, संवर्धन पुरातत्व संस्कृति विभाग के माध्यम से हो, लेकिन वहां से हमें जितना सहयोग चाहिये वो नही मिल पाता।

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